‘सरकार की नजऱ में शहीद नहीं हैं भगत सिंह’

अमर शहीद भगत सिंह की बहन बीबी प्रकाश कौर के बेटे हकूमत सिंह मल्ही से बातचीत की 'तहलका’ के मनमोहन सिंह ने

भारत सरकार आज भी भगत सिंह को ‘शहीद’ नहीं मानती। अंग्रेजी हकूमत ने भगत सिंह को आतंकवादियों की सूची में डाल दिया था, जो आज तक उसी सूची में चल रहा है। पिछले 72 साल में भारत की किसी भी सरकार ने इस अमर शहीद को ‘शहीद’ का दर्जा नहीं दिया। चाहे वे कांग्रेस की सरकारें रही हों या खुद को राष्ट्रवादी कहने वाली एनडीए की सरकार। इन राजनीतिज्ञों ने केवल अपने स्वार्थ के लिए भगत सिंह के नाम का इस्तेमाल किया, पर न तो उसे शहीद का दर्जा दिया और न ही उसके विचारों को दुनिया तक आने दिया। स्कूल की किसी पुस्तक में भगत सिंह की सोच का कोई जिक्र नहीं है। हालांकि पाकिस्तान में भगत सिंह को ‘शहीद’ का दर्जा देने की कोशिश शुरू कर दी है। यह बात ‘तहलका’ के साथ बातचीत में अमर शहीद भगत सिंह की बहन बीबी प्रकाश कौर के बेटे हकूमत सिंह मल्ही ने कही। मल्ही अभी पिछले महीने पाकिस्तान हो कर लौटे हैं। अब कैनेडा में रह रहे मल्ही को खेद है कि देश की सरकारों ने अपने शहीदों के परिवारों की कोई खोज-खबर नहीं ली।

पाकिस्तान की अपनी यात्रा के बारे में मल्ही ने कहा कि उन्हें फैसलाबाद के पास भगत सिंह के गांव चक 105 में पहुंच कर ऐसा लगा जैसे वे अपनी नानी के घर आ गए हों। उन्हें वही अनुभूति हुई जैसे बचपन में नानी के घर आने पर होती थी। उन्हें वहां अपने बुर्जुगों के होने का एहसास हो रहा था। मल्ही ने बताया कि अब इस गांव का नाम बदल कर भगत सिंह पुरा रख दिया गया है। इस नाम को सरकारी मान्यता भी मिल गई है। यह गांव ‘वंगे’ के नाम से भी जाना जाता है। मल्ही के अनुसार भगत सिंह का यह गांव फैसलाबाद-जड़ांवाली सड़क पर पड़ता है। वहां सड़क पर आपको ‘भगत सिंह पुरा’ गांव के बोर्ड साफ नजऱ आ जाते हैं। वहां के सरकारी अफसरों के मुताबिक भगत सिंह का एक पाठ जल्दी ही स्कूल की किताबों में जोड़ दिया जाएगा ताकि आने वाली नस्लों को पता चल सके कि भगत सिंह की सोच क्या थी। वे क्या चाहते थे? उनके जहन में आज़ाद भारत की तस्वीर क्या थी? वे कैसा भारत चाहते थे?

मल्ही ने बताया कि भगत सिंह पुरा में एक पुस्तकालय खोलने की भी तैयारी हो रही है जिसमें भगत सिंह से जुड़े सभी दस्तावेज और विभिन्न लेखकों की भगत सिंह पर लिखी किताबें रखी जाएंगी भगत सिंह के घर के बारे में मल्ही ने बताया कि जिस घर में भगत सिंह का जन्म हुआ वह अब तीन हिस्सों में बंट चुका है। दो हिस्से जिनके पास हैं उन लोगों ने तो घर को अपने-अपने हिसाब से बनवा लिया है पर जो हिस्सा साकू विर्क नाम के आदमी के पास है उसे उसने भगत सिंह की यादगार के तौर पर सहेज कर रखा है। घर की पूरी मरम्मत करवा दी गई है उसमें उस ज़माने का चरखा ,चक्की और कुछ दूसरे बर्तन मौजूद हैं। इसके अलावा भगत सिंह के ज़माने की बेरी का पेड़ आज भी वहां लगा हुआ है।

मल्ही के मुताबिक देश में भगत सिंह की बात तो सभी करते हैं पर उनकी विचारधारा को समझना नहीं चाहते, क्योंकि उनकी विचारधारा आज की पूंजीवादी व्यवस्था को रास नहीं आती। यहां लोग धर्मों, जातियों और भाषाओं के नाम पर लड़ते या लड़ाए जाते हैं जबकि भगत सिंह ने तो राष्ट्रों की सरहदों से भी ऊपर उठकर ‘वर्ग चेतना’ की बात कही।

हकूमत सिंह मल्ही को इस बात का खेद है कि हमारे देश में राजनेताओं को ‘शहीद’ की परिभाषा का ही पता नहीं। उन्हें पता नहीं कि ‘शहीद’ किसे कहा जाए। एक सवाल के जवाब में मल्ही ने कहा कि उनके परिवार ने कभी यह मांग नहीं उठाई कि भगत सिंह को सरकार शहीद का दर्जा दे क्योंकि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार उन्हें शहीद मानती है या नहीं, पर इससे सरकार की नीयत का पता ज़रूर लगता है। आज देश के करोड़ों लोग भगत सिंह को शहीद मानते और सम्मान देते हैं, अब सरकार की सरकार जाने। उनका कहना था कि देश में शहीदों की कोई कद्र नहीं है। हर बात वोटों को ध्यान में रख कर की जाती है।

पाकिस्तान के बारे में मल्ही ने बताया कि वहां उन्हें पूरा मान-सम्मान दिया गया। कई सांसद और विधायक उनसे मिले। वहां के प्रमुख नौकरशाहों ने भी उनसे संपर्क किया।

आठ अप्रैल 1929 को एसेंबली हाल में भगत सिंह के साथ बम फैंकने वाले उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के बारे में मल्ही ने बताया कि दत्त का जीवन काफी कष्ट में बीता। उन्होंने बताया कि एक बार उनकी नानी विद्यावती (भगत सिंह की माता) उन्हें अपने साथ लेकर बटुकेश्वर दत्त के घर गई थी। उस समय मल्ही नौवी या 10वीं कक्षा के छात्र थे। दत्त की खराब स्थिति देख कर वे उसे दिल्ली ले आई। उस समय दत्त तपेदिक से जूझ रहे थे। उनके घर में उनकी पत्नी और बेटी थीं। दत्त का इलाज एम्स में चला पर सरकार ने कभी उनकी सुध नहीं ली। बस अंत में दत्त की एक ही तमन्ना थी कि मरने के बाद उनका संस्कार वहीं किया जाए जहां उनके साथियों भगत सिंह, शिवराज राजगुरु और सुखदेव थापर का संस्कार किया गया था। आखिर 20 जुलाई 1965 को 54 वर्ष की आयु में यह क्रांतिकारी बिना किसी पहचान के अपने साथियों से जा मिला।

बटुकेश्वर का जि़क्र जनरल टीएन कॉल की मशहूर किताब ‘द अनटोल्ड स्टोरी’ में भी मिलता है।

मल्ही ने विश्वास जताया कि जल्दी ही देश के हालात बदलेंगे और भगत सिंह जैसे सभी शहीदों को एक पहचान मिलेगी। वैसे भी जो देश अपने शहीदों को भूल जाता है, वह कभी विकास नहीं कर सकता।