पिछले दिनों जब यूपीए सरकार ने एक जनवरी, 2013 से कैश सब्सिडी योजना लागू करने की घोषणा की तो शायद ही किसी को इस फैसले से हैरानी हुई हो. गेमचेंजर करार दी जा रही इस योजना पर सरकार लंबे समय से विचार कर रही थी. वर्तमान सरकार का मानस समझने वाले लोग जानते थे कि आज नहीं तो कल यह होना ही है. इस योजना के तहत अगले साल एक जनवरी से 51 जिलों में 29 सरकारी योजनाओं और रियायतों (सब्सिडियों) के भुगतान सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजे जाएंगे.
सरकार का कैश सब्सिडी देने का निर्णय भी उसके दूसरे हालिया फैसलों की तरह विवादों से दूर नहीं है. इस योजना को लेकर तमाम तरह के प्रश्न उठाए जा रहे हैं. सबसे बड़ी चिंता फिलहाल इस बात को लेकर है कि कैश सब्सिडी योजना का सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों पर किस तरह का असर पड़ेगा. दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कैश सब्सिडी को सही तरह से लागू कर पाना संभव है. कैश ट्रांसफर के पक्ष और विपक्ष में भी तमाम तरह के तर्क सामने आ रहे हैं.
करीब दो साल पहले सरकार के दिमाग में जब पहली बार कैश सब्सिडी देने का विचार आया तो उसने इसके लिए पहले एक प्रयोग करने की सोची. उद्देश्य था कि अगर यह प्रयोग सफल रहा तो इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा. सरकार ने इसके लिए राजस्थान के अलवर जिले में स्थित कोटकासिम ब्लॉक को चुना. ब्लॉक की 24 ग्राम पंचायतों को केरोसीन पर कैश सब्सिडी देने की योजना बनाई गई.
यह योजना लागू होने के पहले कोटकासिम में लोगों को पीडीएस के तहत 15 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से तीन लीटर केरोसीन राशन की दुकान से मिलता था. योजना लागू होने के बाद वह बाजार भाव पर मिलने लगा. 15 रुपये का केरोसिन 45 रुपये का हो गया. सरकार ने कहा कि बाजारा और सरकारी भाव के बीच जो 30 रुपये का अंतर है वह नकद रूप में उनके खाते में आ जाएगा. लोगों को केरोसीन बाजार भाव पर खरीदना था और सब्सिडी उनके बैंक खाते में जमा होनी थी.
‘आधार कार्ड की अनिवार्यता बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को विभिन्न योजनाओं के लाभ से वंचित कर देगी क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं है’
जिस दिन सरकार ने कैश सब्सिडी लागू करने का एलान किया, उस दिन उसने कोटकासिम को उदाहरण बनाते हुए कहा कि वहां यह योजना सफल रही है. योजना के पूरे देश में लागू करने की बात की गई और शुरुआत में इसे 51 जिलों में 29 योजनाओं पर लागू करने का एलान कर दिया गया. लेकिन सरकार ने लोगों के सामने जिस कोटकासिम की सफलता का उदाहरण पेश किया वहां अगर जमीनी स्थिति की पड़ताल की जाए तो पता चलता है कि कैश सब्सिडी देने की सरकारी योजना बुरी तरह से असफल और जनता के लिए पीड़ादायक रही है. योजना लागू होने के बाद कोटकासिम में केरोसीन की खपत में 80 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी. इस गिरावट पर सरकार ने अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा था कि इलाके में सिर्फ 20 फीसदी केरोसीन की ही जरूरत थी, बाकी 80 फीसदी की तो कालाबाजारी हो रही थी.
लेकिन पड़ताल करने पर 80 फीसदी खपत में कमी के रहस्य से पर्दा उठ जाता है. तहलका ने इसी साल अप्रैल में एक रिपोर्ट की थी (आज नकद, कल रियायत, https://www.tehelkahindi.com/indinoo /national/1185.html) जिसमें यह पाया था कि खपत कम होने का सबसे पहला कारण तो यह था कि सरकार की सब्सिडी पाने के लिए लोगों के पास बैंक खाता होना जरूरी था. ऐसे में वे सारे लोग इस योजना से बाहर हो गए जिनके पास बैंक खाता नहीं था. जब इस योजना को लागू किया गया उस समय उस ब्लॉक में कुल 26 हजार लाभार्थी थे. इनमें से सिर्फ छह हजार के पास बैंक खाता था. ऐसे में कैश सब्सिडी की योजना से 20 हजार लोग सीधे-सीधे बाहर हो गए. दुसरी बात यह है कि तीन लीटर केरोसीन खरीदने के लिए अब पहले के 45 रुपये की बजाय 135 रुपये की जरूरत पड़ने लगी. एक साथ इतनी रकम चुकाने की क्षमता वहां की एक बड़ी जनसंख्या के पास नहीं थी. तीसरी बात यह कि जिन लोगों के पास बैंक खाता था और बाजार भाव पर केरोसीन खरीदने की क्षमता भी, उन्होंने भी कुछ समय के बाद केरोसीन लेना बंद कर दिया. कारण यह था कि बैंक खाते में जो सरकारी सब्सिडी भेजने की बात सरकार ने की थी वह कई लोगों के खाते में पहुंची ही नहीं.
इस तरह से खपत में 80 फीसदी की कमी आने की वजहें साफ होती हैं. लेकिन सरकार ने माना कि कैश सब्सिडी देने से कालाबाजारी पर रोक लग गई और उसे अब सिर्फ पूर्व का 20 फीसदी केरोसीन ही लोगों को देना है. इसे ही आधार बनाकर उसने देश के 51 जिलों में एक जनवरी, 2013 से और पूरे देश में अप्रैल, 2014 से कैश सब्सिडी लागू करने की बात कही है. कुछ जानकार मानते हैं कि भले ही कैश फॉर सब्सिडी वर्तमान परिस्थितियों में खुद में गलत न हो मगर यदि कोटकासिम का प्रयोग लचर क्रियान्वयन के चलते फ्लॉप रहा है तो अब जो सरकार करने जा रही है उसके परिणाम तो और भी बुरे होंगे.
सरकार की इस योजना का लाभ लेने के लिए लोगों के पास आधार कार्ड होना जरूरी है. आधार कार्ड की अनिवार्यता ने खुद इस योजना की सफलता पर सबसे बड़ा प्रश्न चिह्न लगा दिया है. इसका कारण यह है कि 2014 तक पूरे देश में कैश सब्सिडी लागू करने का ख्वाब देखने वाली सरकार ने इस तथ्य को नजरअंदाज किया है कि अभी तक 120 करोड़ की देश की आबादी में से सिर्फ 21 करोड़ लोगों के पास आधार कार्ड है. ऐसे में बाकी जनता का क्या होगा.
झारखंड का रामगढ़ उन जिलों में से एक है जहां इस योजना को प्रथम चरण में ही लागू होना है. वहां के जिलाधिकारी अमिताभ कौशल से हम पूछते हैं कि उनके जिले में कितने फीसदी लोगों के पास आधार कार्ड हैं. वे बताते हैं कि सिर्फ 40 फीसदी. साफ है कि जब एक जनवरी, 2013 से यह योजना रामगढ़ में लागू होगी तो जिले के सिर्फ 40 फीसदी लोगों को इसका फायदा मिलेगा. यानी 60 फीसदी जनता तो पहली बार में ही उन सरकारी योजनाओं से बाहर हो जाएगी क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं है.
अर्थशास्त्री और आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर रितिका खेड़ा कहती हैं, ‘आधार कार्ड की अनिवार्यता बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को उन विभिन्न योजनाओं के लाभ से वंचित कर देगी जिनके वे हकदार हैं. बैंक एकाउंट को आधार कार्ड से जोड़ने की योजना के परिणाम हानिकारक होंगे.’ रामगढ़ जैसी ही स्थिति बाकी जगहों पर है. लेकिन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जब इस योजना को गेम चेंजर बताते हुए इसे लागू करने की बात की तो उस समय उनका कहना था कि जिन 51 जिलों का चयन सरकार ने किया है उनके पीछे सिर्फ एक ही आधार है कि वहां आधार कार्ड वालों की संख्या बाकी जगहों से काफी अच्छी है. 40 फीसदी आधार कार्ड होल्डरों की मौजूदगी को सरकार अगर योजना शुरू करने के आधार के रुप में स्वीकार कर सकती है तो समझा जा सकता है कि स्थिति कितनी विकट है.
एक जनवरी से लागू होने जा रही इस योजना को लेकर सरकार ने कितनी तैयारी की है इसका खुलासा इस बात से ही हो जाता है कि सरकार ने जिन 29 योजनाओं में कैश सब्सिडी देने की बात की है उनके बारे में किसी को पता ही नहीं है. न ही आम जनता को यह पता है कि वे 29 योजनाएं कौन-सी हैं और न ही उन जिलों के अधिकारियों को इनकी खबर है जहां कैश सब्सिडी लागू की जानी है. रितिका कहती हैं, ‘स्थिति यह है कि जिन 51 जिलों में इस योजना को लागू होना है वहां के कलेक्टरों तक को नहीं पता कि यह योजना किन 29 स्कीमों में लागू होगी.’ सरकारी तैयारी की पोल योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया के उस बयान से भी खुलती है जिसमें वे कहते हैं कि सरकार उन जिलों के जिला अधिकारियों से वीडियो कॉफ्रेंसिंग से बात करेगी जहां यह योजना लागू होनी है. बकौल मोंटेक, ‘हम अधिकारियों से बात करके जानने की कोशिश करेंगे कि उनके जिले में इस योजना को लागू करने के लिए बुनियादी ढांचा मौजूद है या नहीं. अगर नहीं तो फिर क्या उन्हें और कुछ समय चाहिए.’योजना में कुछ नया नहीं है. यह सिर्फ रीपैकेजिंग है. कहा जा रहा है कि यह पेंशन और स्कॉलरशिप में लागू होगी. इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि वहां तो कैश ट्रांसफर पहले से ही है -रितिका खेड़ा, अर्थशास्त्र
मोंटेक का यह बयान बताता है कि कैसे सरकार ने राजनीतिक कारणों के चलते बिना किसी तैयारी के इतनी बड़ी योजना लागू करने की न सिर्फ सोची बल्कि उसके लिए तारीख भी तय कर दी. जिलाधिकारियों से जो बात योजना बनाने के समय की जानी चाहिए थी वह बात न सिर्फ योजना बनाने के बाद बल्कि योजना लागू होने की तिथि से 15 दिन पहले की जा रही है.
रिपोर्टों के मुताबिक कई बैंकों ने कैश ट्रांसफर के लिए जरूरी तकनीक अपने पास न होने के कारण सरकार की यह योजना एक जनवरी से लागू कर पाने में अपनी असमर्थता जताई है. पेट्रोलियम सचिव जीसी चतुर्वेदी ने खुद अपने बयान में इस बात को रेखांकित किया है कि कैश सब्सिडी को लागू कर पाना बेहद कठिन होने वाला है. चतुर्वेदी के मुताबिक जिन 51 जिलों का चयन इस स्कीम के लिए किया गया है उनमें से सिर्फ 20 जिलों की 80 फीसदी या उससे ज्यादा जनता के पास आधार कार्ड मौजूद है.
उचित मूल्य की दुकानों ने भी सरकार द्वारा कैश सब्सिडी देने के निर्णय का विरोध किया है. ऑल इंडिया फेयर प्राइस डीलर फेडरेशन के सदस्य किरन पाल सिंह त्यागी के मुताबिक अगर इसे लागू किया गया तो देश के लगभग छह लाख 13 हजार राशन दुकानदार इससे बुरी तरह प्रभावित होंगे.’ राजस्थान का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं, ‘कैश सब्सिडी लागू होने के बाद केरोसीन के दाम बढ़ने से स्थिति यह हो गई है कि लोगों ने केरोसीन लेना बंद कर दिया. डीलर एडवांस पैसा जमा करके जो केरोसीन लाए थे वह ऐसे ही पड़ा रहा. डीलर की एक रुपए की भी आमदनी नहीं रही. ‘मगर जब राशन की दुकान चलाने वालों से यह सवाल किया जाता है कि क्या उनके द्वारा की गईं तमाम तरह की गड़बड़ियां ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं तब इस बात का कोई साफ जवाब सामने नहीं आता.
कुछ लोग हड़बड़ी में लिए गए सरकार के इस निर्णय के पीछे गुजरात चुनावों को कारण मानते हैं. हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी सरकार की इस योजना तथा उसके लागू होने की संभावनाओं को लेकर बेहद आशान्वित हैं. वे कहते हैं, ‘भले ही इस योजना को लेकर तमाम तरह के प्रश्न उठाए जा रहे हैं लेकिन यह योजना एक जनवरी से बिलकुल सही ढंग से सभी 51 जिलों में लागू होगी. सरकार ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है.’ एक पल के लिए सभी तर्कों को उलट कर यह मान भी लिया जाए कि बुनियादी तैयारी में जो भी कमी है वह ठीक हो जाएगी तो क्या यह योजना लोगों के लिए लाभदायक साबित होगी? इस पर जानकारों के मत विभाजित हैं. रितिका खेड़ा कहती हैं, ‘इस योजना में कुछ भी नया नहीं है. ये सिर्फ रीपैकेजिंग की जा रही है. सरकार ने अभी तक बताया नहीं है कि वह किन 29 स्कीमों में इसे लागू करने जा रही है. संभावना ये जताई जा रही है कि इसे पेंशन और स्कॉलरशिप में भी लागू किया जाएगा. अगर ऐसा होता है तो इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि वहां तो कैश ट्रांसफर पहले से लागू है. कैश ट्रांसफर की हकीकत जानने के लिए हमें कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है. कोटकासिम का उदाहरण सामने है. इसके अलावा जिन योजनाओं में कैश ट्रांसफर की व्यवस्था है वे कितनी सफल हैं बताने की जरूरत नहीं.’
ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि कैश सब्सिडी की व्यवस्था अगर सही तरह से लागू हो भी गई तब भी इसके दुरुपयोग की आशांका बनी रहेगी. पैसा बैंक से मिलेगा. बैंक जाने का काम लगभग सभी ग्रामीण परिवारों में पुरुष करते हैं. ऐसे में उन परिवारों में जहां पुरुष शराब और अन्य गलत आदतों के शिकार हैं, स्थिति यह हो सकती है कि वे बैंक से मिलने वाले पैसे का दुरुपयोग करें. यह भी संभावना है कि अगर महिला इसका विरोध करती है तो उसे इस कारण पुरुष प्रताड़ना का शिकार होना पड़े. खेड़ा कहती हैं, ‘हमने एक अध्ययन किया था. हमने लोगों से पूछा कि क्या उन्हें कैश स्वीकार है. दो तिहाई लोगों का जवाब था नहीं. हमें राशन चाहिए. कैश नहीं.’
हालांकि अर्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला इस योजना के सही होने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं. वे कहते हैं, ‘देश के लोग मूर्ख नहीं हैं. वे जानते हैं कि उन्हें जो पैसा मिलेगा उससे उन्हें क्या करना है. लोग सब्सिडी के पैसे का सदुपयोग ही करेंगे. यह सरकार द्वारा बिल्कुल सही दिशा में उठाया गया कदम है.’ वे जन वितरण प्रणाली की खामियों को भी इस योजना के पक्ष में हमारे सामने रखते हैं. एक तरफ लोग जहां इस योजना के लागू होने तथा उसके प्रभाव को लेकर सशंकित हैं वहीं दूसरी तरफ लोग इस बात पर भी चर्चा कर रहे हैं कि शायद यह विभिन्न प्रकार की कल्याणकारी योजनाओं के अंत की शुरुआत की तरफ सरकार का पहला कदम है. ऐसा भी कहा जा रहा है कि सरकार राशन और तमाम सुविधाएं बंद करके एकमुश्त राशि देने के प्रस्ताव पर भी विचार कर रही है.