अगर आप सचमुच भारतीय राजनीति के दांव-पेंच देखना चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश से बढ़िया जगह भला क्या होगी. और इसकी शुरुआत करने के लिए यह अच्छा वक्त भी है. अगले साल इस राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में स्वाभाविक ही है कि इन दिनों यहां सियासी समीकरण कई तरह से बदलते हुए दिख रहे हैं. मेल-मुलाकातें हो रही हैं, बातचीत के दौर चल रहे हैं और अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए हरसंभव जगह तलाशी और बनाई जा रही है.
पिछला पखवाड़े का एक दिन. गोरखपुर स्थित एक अस्पताल का छोटा-सा कमरा. बेड पर एक सज्जन लेटे हैं. उनके पैरों में प्लास्टर लगा है और हाथ में ड्रिप. उनका नाम है डॉक्टर मोहम्मद अय्यूब. 56 साल के अय्यूब पीस पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष हैं. उन्हें जो चोटें आई हैं वे उनकी पार्टी के मुताबिक अय्यूब की हत्या के प्रयास का नतीजा हैं. पार्टी का आरोप है कि यह कोशिश कुछ अज्ञात राजनीतिक दुश्मनों ने की थी जो पीस पार्टी को कामयाब होते नहीं देखना चाहते.
‘सभी दलों के प्रमुख लोगों, विधायकों, सांसदों और न्यायाधीशों का नारको टेस्ट होना चाहिए’
2008 में वजूद में आने के बाद पीस पार्टी ने कई बार लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है. पार्टी जिस अंदाज में काम कर रही है उसे देखकर लगता है कि वह बसपा सुप्रीमो मायावती के तरकश से ही एक तीर लेकर उसे वापस उनकी तरफ चलाने वाली है.
पार्टी कार्यकर्ता कहते हैं कि पीस पार्टी दबे-कुचले लोगों की नयी आवाज बनेगी. उनके मुताबिक मुख्य तौर पर यह पार्टी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुसलमानों के मुद्दे उठाएगी. लेकिन यह कोई इस्लामिक पार्टी नहीं है. जो गरीब ब्राह्मण भाजपा द्वारा ठगे गए हैं उनका भी इसमें स्वागत है. बनिया समुदाय के लोग तो इस पार्टी के सदस्य भी हैं और टिकट पाने की होड़ में भी शामिल हैं.
इस लिहाज से पीस पार्टी का उदय एक दिलचस्प घटना लगता है. कुछ समय पहले इसने उत्तर प्रदेश में हुए दो उपचुनाव लड़े. दोनों में यह हार गई. पार्टी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में भी अपने उम्मीदवार उतारे थे. पार्टी के लोग गर्व से बताते हैं कि तीन साल की छोटी अवधि में ही उन्हें वोट काटने वाली पार्टी कहा जाने लगा है. सुनकर हैरानी होती है. मगर पीस पार्टी के पास इसका जवाब है. अगर आपकी पार्टी कुछ सीटों पर दूसरे, तीसरे या चौथे स्थान पर है तो इसका मतलब यह है कि आप राजनीति की सीढ़ी पर ऊपर चढ़ रहे हैं. यानी हम सीटों को लेकर मोलभाव करने की स्थिति में हैं. वाराणसी में हमें मिले पार्टी के एक नेता बताते हैं, ‘कुछ सीटों पर हम उन्हें अपने वोट देंगे और कुछ सीटों पर वे अपने वोट हमें दें. इस तरह अगले चुनाव में दोनों पार्टियों के लिए संभावनाएं कहीं बेहतर होंगी.’
इस गुणा-भाग में कोई नयी बात नहीं है. दिलचस्प यह है कि एक नयी पार्टी यह पुराना फॉर्मूला अपना रही है–यानी हर सीट को जातिगत और धार्मिक समीकरणों के हिसाब से देखना और उसके बाद तय करना कि कहां जीत की संभावनाएं ज्यादा हो सकती हैं. इसके बाद दूसरी पार्टियों में खारिज नेताओं को खुद से जोड़कर असंतुष्टों का एक सम्मिलित वोट बैंक हासिल करना. इसलिए स्वाभाविक ही है कि पीस पार्टी का एक तिहाई हिस्सा बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के असंतुष्टों से मिलकर बना है. ये ऐसे लोग हैं जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के पर उनकी पार्टी ने कतर दिए. पार्टी का दूसरा एक तिहाई हिस्सा ऐसे लोगों का है जो सामाजिक तौर पर पिछड़े हुए हैं. इनमें गरीब ब्राह्मण, पिछड़ी जातियां और मुसलिम समाज के लोग शामिल हैं.
डिस्पोजेबल सिरिंज कारोबार के बड़े खिलाड़ी डॉ अय्यूब की पीस पार्टी ने उन पुराने नेताओं को भी अपने साथ जोड़ने का काम किया है जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर हैं. इनमें इंडियन जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष उदित राज शामिल हैं. कौमी एकता दल के मोहम्मद अंसारी भी हैं. कुछ समय पहले अंसारी बंधुओं ने सपा का साथ छोड़ बसपा से नाता जोड़ा था लेकिन वहां से भी बाहर निकाल दिए गए. पीस पार्टी के गठजोड़ में रामविलास पासवान और अजीत सिंह जैसे प्रमुख नेता भी हैं. आठ दलों के इस गठबंधन की योजना राज्य की सभी 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की है. पीस पार्टी का दावा है कि इनमें से कम से कम आधी सीटों पर वह खुद चुनाव लड़ेगी.
कहा जा रहा है कि ऐसे में पीस पार्टी प्रदेश में कई राजनीतिक पार्टियों का समीकरण बिगाड़ सकती है. राज्य में पहले से ही सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस के रूप में चतुष्कोणीय मुकाबला है. पीस पार्टी के पास भविष्य के लिए कुछ दिलचस्प योजनाएं हैं. अय्यूब कहते हैं, ‘मेरे अभियान का प्रमुख मुद्दा भ्रष्टाचार-मुक्त समाज के लिए संघर्ष करना है.’ उनकी खासियत उनके तरीके में है. वे कहते हैं, ‘मैंने अन्ना हजारे और बाबा रामदेव से काफी पहले भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए अपना समाधान रखा था. कठोर कदम उठाने की जरूरत है. सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख लोगों, विधायकों, सांसदों और न्यायाधीशों का नारको टेस्ट होना चाहिए. इंजेक्शन लगाने के बाद व्यक्ति खुद ही एक घंटे तक सच बोलता है. इसलिए सभी नेताओं को नारको टेस्ट से गुजारा जाए और उनसे सवाल-जवाब किए जाएं. वे खुद ही सच बोलेंगे.’ उनके पास कुछ और योजनाएं भी हैं. उनका कहना है कि मुसलमानों की हालत सुधारने के लिए दो सरकारी समितियों की सिफारिशों को लागू किया जाए. बात सच्चर और रंगनाथ समिति की सिफारिशों की हो रही है. पार्टी प्रवक्ता एमजे खान कहते हैं, ‘मुसलिम नौजवान मौलानाओं और उलेमाओं से खुद को नहीं जोड़ पाते. वे शाहरुख खान और डॉ अय्यूब जैसे लोगों से जुड़ जाते हैं.’
हम उनसे पूछते हैं कि मतदाता उन पर क्यों यकीन करेंगे तो उनका जवाब आता है, ‘यह पेशेवर लोगों की पार्टी है. डॉ. अय्यूब के पास सर्जरी की मास्टर डिग्री है. आईएएस और आईपीएस अधिकारी पार्टी के सदस्य हैं. हम सब शिक्षित लोग हैं जो वंचित के लिए काम कर रहे हैं.’
फंडिंग के बारे में पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘उम्मीदवार को अपने अभियान के खर्च की व्यवस्था खुद ही करनी होगी.’ तो इसका मतलब यह नहीं हुआ कि वंचित लोग चुनाव नहीं लड़ पाएंगे? इस पर वे कहते हैं, ‘अपनी भलाई के लिए उन्हें अमीर उम्मीदवारों पर भरोसा करना होगा.’ पार्टी प्रवक्ता खान कहते हैं, ‘देखिए, पीस पार्टी वोट इधर से उधर कर सकती है. अगर कोई ब्राह्मण उम्मीदवार है तो हम ब्राह्मण वोटों को इधर से उधर कर सकते हैं. जीत के लिए हम यह उम्मीद करते हैं कि 25 फीसदी वोट उस समुदाय का मिल जाए और इसमें हमारे समुदाय का 75 फीसदी वोट जुड़ जाए. यही फॉर्मूला बसपा का है. फर्क बस इतना है कि हमारे समुदाय के लोगों की संख्या उस समुदाय के लोगों से ज्यादा है जिसकी नुमाइंदगी मायावती करती हैं.’
अय्यूब की जान लेने की साजिश के बारे में पार्टी कार्यकर्ताओं का दावा है कि जब वे गोरखपुर जिले में पार्टी के बड़हलगंज कस्बे में लौट रहे थे तो उन्होंने देखा कि कोई कार उनका पीछा कर रही है. वह कार आगे निकली और उसने अय्यूब की कार के आगे अचानक ब्रेक मार दिए. कार्यकर्ताओं के मुताबिक इससे कार का संतुलन गड़बड़ाया और पीछे चल रही पार्टी की गाड़ियां एक-दूसरे से टकरा गईं. अय्यूब और उनके समर्थकों ने राज्य सरकार से विशेष सुरक्षा की मांग की है. मांग नहीं माने जाने पर उन्होंने इस मसले को अपने राजनीतिक अभियान का हिस्सा बना लिया है. उत्तर प्रदेश में पीस पार्टी के कार्यकर्ता जोर देकर कहते हैं कि क्या अय्यूब जैसे नेता को विशेष सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए जो खुद डॉक्टर व राजस्व सेवा का अधिकारी रहा है? जिसने एक अस्पताल बनवाया और अपनी जिंदगी देश को समर्पित कर दी? देखना दिलचस्प होगा कि जनता उनके सवालों का क्या जवाब देती है.