शी जिनपिंग का नारीवाद

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इन दिनों नारियों और नारीवादियों के निशाने पर हैं। चीनी महिलाएँ उनके उस बयान से काफ़ी नाराज़ हैं, जिसमें उन्होंने वहाँ की युवतियों और अकेली महिलाओं से बच्चे पैदा करने के लिए शादी करने की अपील की है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि परिवार का नया ट्रेंड स्थापित करने में महिलाओं की भूमिका समाज में सबसे अहम है। ग़ौर करने वाला बिन्दु यह है कि राष्ट्र प्रमुख ने हाल में बीजिंग में आयोजित नेशनल वुमेन कांग्रेस की बैठक में यह बयान दिया। यह इकाई चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के अंतर्गत काम करती है और हर पाँच साल में एक बार ऐसी बैठक का चीन में आयोजन किया जाता है।

सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी लम्बे समय से इस मंच का इस्तेमाल महिलाओं के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता को अभिव्यक्त करने के लिए करती आ रही है। पूर्व में ऐसे मौक़ों पर चीनी महिलाओं की घरेलू व कामकाजी दोनों भूमिकाओं पर अधिकारिक बयान आते थे; लेकिन इस बार शी जिनपिंग के संबोधन में कार्यस्थल पर महिलाओं वाला मुद्दा नदारद था और उनका सारा ज़ोर शादी करके बच्चे पैदा करने पर था। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि हमें सक्रिय होकर शादी की नयी संस्कृति और बच्चे पैदा करने वाली संस्कृति को प्रोत्साहित करना चाहिए। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि युवाओं की प्रेम व शादी, बच्चे पैदा करने और परिवार सम्बन्धी विचारों को लेकर जो भी राय है, उस राय को प्रभावित करने में पार्टी के अधिकारियों को अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

दरअसल शी जिनपिंग की इस चिन्ता के पीछे चीन के सामने खड़ा आर्थिक व सामाजिक संकट है। चीन इस बात से भी भयभीत है कि जिस तरह विश्व में उसके ख़िलाफ़ घेरेबंदी की जा रही है, उससे दुनिया की फैक्ट्री का तमग़ा उसके हाथ से छिन सकता है। विश्व में उसके प्रति अविश्वास का माहौल गहराता जा रहा है और दूसरी तरफ़ घरेलू मोर्चे पर भी कई चुनौतियों का सामना चीन कर रहा है। इसमें प्रमुख वजह वहाँ जनसंख्या वृद्धि दर का कम होना है।

चीन अब आबादी के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर आ गया है और भारत पहले नंबर पर। चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने इस साल के शुरुआत में एक जानकारी साझा की थी। इसमें कहा गया है कि पिछले छ: दशक में पहली बार जनसंख्या में गिरावट आयी है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि देश की आबादी बड़ी तेज़ी से बूढ़ी होती जा रही है। ग़ौरतलब है कि चीन ने पहले जो एक बच्चा नीति अपनायी और सख़्ती से उस पर अमल किया, उससे इस देश में कई जनसांख्यिकीय बदलाव आये। चीन ने सन् 2016 में दो बच्चा नीति लागू की। लेकिन बहुत कम समय में इसके विपरीत नतीजे उसके सामने आने लगे। इस योजना के अपेक्षित नतीजे सामने नहीं आने पर सन् 2021 में चीन तीन बच्चा नीति की पैरवी करने पर उतर आया।

इन दो वर्षों में चीन ने बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई क़दम उठाये; पर सफलता नहीं मिली। इस असफलता से चीन प्रमुख शी जिनपिंग व सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की मौज़ूदा चिन्ता में हैं। लेकिन क्या यह किसी तरह महिलाओं को बच्चे पैदा करने व उनके पालन-पोषण की ओर धकेलना नहीं है? इसमें महिलाओं की मर्ज़ी के बिना भी उनका शोषण होगा व उन्हें जबरदस्ती बच्चे पैदा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। शी जिनपिंग ने नेशनल वीमेन काग्रेंस में महिला नेताओं को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वे महिलाओं को परिवार से जुड़ी अच्छी कहानियाँ सुनाएँ और उनका मार्गदर्शन करें कि वे चीन के पारंपरिक गुणों को किस तरह आगे लेकर जा सकती हैं।’

यह हक़ीक़त है कि चीन में महिलाएँ बच्चे पैदा करने से बच रही हैं और ऐसे में बच्चे भी कम पैदा हो रहे हैं। इस देश में बच्चों को पालना व उन्हें अच्छी शिक्षा देना बहुत महँगा है। इसके साथ ही लैंगिक भेदभाव व युवा पीढ़ी में शादी न करने का रुझान भी कारण हैं। ऐसे में शी जिनपिंग को महिलाओं से अपील करने के बजाय पारिवारिक संस्कृति पर ज़ोर देना चाहिए और महिलाओं को इसके लिए सम्मानित व पुरस्कृत करना चाहिए।

दरअसल चीन में महिलाएँ घर से बाहर निकल काम करने पर फोकस कर रही हैं। लेकिन वहाँ सत्ताधारी सरकार व पितृप्रधान समाज, दोनों ही उनके दमन में खड़े हो जाते हैं। लेकिन महिलाओं का एक वर्ग ऐसा है, जो इस तरह के दमन के ख़िलाफ़ संघर्षरत है। बहरहाल सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी, खासकर शी जिनपिंग और चीन की नारियाँ व नारीवादी एक बार फिर आमने-सामने हैं।