क्या दलितों को रिझा पाएगी भाजपा?

अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने कमर कस ली है। वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पिछले दोनों लोकसभा चुनावों के परिणामों को दोहराना चाहती है और केंद्र की सत्ता में बने रहने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपना रही है।

भाजपा के दृष्टिकोण से देखें, तो उत्तर प्रदेश राज्य उसके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं, जो केंद्र की सत्ता पर क़ाबिज़ होने में काफ़ी मददगार साबित होती हैं। यदि 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें, तो भाजपा को 62 सीटें मिली थीं, जबकि उसके सहयोगी अपना दल (एस) को दो सीटें मिली थीं। वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 10, समाजवादी पार्टी को पाँच और कांग्रेस को एक सीट मिली थी। जबकि भाजपा गठबंधन एनडीए का वोट शेयर 51.19 प्रतिशत था।

भाजपा के इस वोट शेयर को देखें, तो इसमें एक बड़ा हिस्सा दलित वोटों का भी है। पिछले कुछ वर्षों में दलितों की उत्पीडऩ की अनेक घटनाएँ सामने आने और आरोपियों में भाजपा से जुड़े लोगों के नाम आने से भाजपा को अपने दलितों वोटों के छिटकने का डर सताने लगा है। यही कारण है कि दलित वोटों का गणित दुरुस्त करने के अभियान में भाजपा अभी से लग गयी है। इसके अलावा भाजपा की रणनीति का सबसे मुख्य मुद्दा है- बसपा के आधार वोटरों में सेंधमारी करना। भाजपा के इस अभियान के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविदास मंदिर में भजन कीर्तन करने से लेकर दलितों के पाँव तक पखार चुके हैं, तो वहीं आगामी आम चुनाव को ध्यान में रखकर भाजपा एक पूरी रणनीति के तहत पूरे उत्तर प्रदेश में जगह-जगह दलित सम्मेलनों के आयोजन कर रही है। साथ ही उत्तर प्रदेश के प्रत्येक विधानसभा सीटों पर भाजपा समर्पित 2,000 दलित प्रतिनिधियों को तैयार करने की भी रणनीति है, जिसमें ख़ासतौर से वकील, इंजीनियर, डॉक्टर व शिक्षाविदों सहित प्रबुद्ध राजनीतिकर्मियों को जोड़ा जाएगा।

भाजपा के सभी विधायकों को यह ज़िम्मेदारी दी गयी है कि वे अपने विधानसभा क्षेत्र में 2,000 दलित प्रतिनिधियों को तैयार करें। हालाँकि इस ज़िम्मेदारी से अधिकतर भाजपा विधायकों के हालत ख़राब हैं, क्योंकि भाजपा से दलित समुदायों के लोग काफ़ी नाराज़ हैं। ऐसे में भाजपा विधायकों को न सिर्फ़ दलितों के नाराज़गी का शिकार होना पड़ रहा है, बल्कि दलित प्रतिनिधियों को तैयार करने का काम भी असंभव-सा प्रतीत होने लगा है।

विगत दो माह में हापुड़, अलीगढ़, लखनऊ और गोरखपुर में दलित सम्मेलन हो चुके हैं, जबकि ऐसे सम्मेलन प्रयागराज और कानपुर में भी आयोजित होने हैं। विदित हो कि बीते 17 अक्टूबर को हापुड़ में आयोजित दलित महासम्मेलन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे बड़ा दलित हितैषी बताया। जिस पर विपक्ष के नेताओं और कई दलित बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाये। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि भाजपा वोटों के लालच में पाखण्ड करती है। वह दलित चेहरे तो नेता के तौर पर पेश करती है; लेकिन किसी को भी ताक़त नहीं देती। सभी को नंबर चार या पाँच पर ही रखती है। लेकिन कांग्रेस में ऐसा नहीं है। कांग्रेस ने दलित वर्ग से आने वाले मल्लिकार्जुन खडग़े को न सिर्फ़ राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया, बल्कि उन्हें शक्ति भी दी।

उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी व ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस.आर. दारापुरी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार आजकल जगह-जगह दलितों का सम्मेलन करके उनका कल्याण करने तथा दलित हितैषी होने का दावा कर रही है। उसके इस दावे की पोल गोरखपुर में गत 10-11 अक्टूबर, 2023 को सरकार द्वारा दलितों के लिए ज़मीन माँगने पर दलित नेताओं को जेल में डालने की घटना से पूरी तरह से खुल जाती है। इस गिरफ़्तारी से भाजपा ने उत्तर प्रदेश के दलितों को यह संदेश दिया कि अगर दलित भविष्य में कोई भी अधिकार की माँग उठाएँगे, तो उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा। एनसीआरबी के वर्ष 2020 के आँकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार के मामले राष्ट्रीय दर से काफ़ी ऊँचा है। उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी प्रदेश की कुल आबादी का 21 प्रतिशत है, जबकि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार का दर 30.7 प्रतिशत है। जो राज्य के कुल अपराध के लगभग एक-तिहाई के आसपास है।

यह भी क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि दलितों पर अपराध के जो सरकारी आँकड़े हैं, उससे भी अधिक अपराध दलितों के प्रति होने के दावे दलित बुद्धिजीवियों द्वारा किये जाते हैं। दलित बुद्धिजीवी कहते हैं कि बहुत सारे अपराधों के शिकार लोग या तो थाने तक नहीं जाते हैं, या उनकी एफआईआर दर्ज नहीं होती। वहीं पुलिस का दलित विरोधी नज़रिया भी काफ़ी आड़े आता है। इस हिसाब से देखा जाए, तो प्रदेश में दलितों पर अपराध आँकड़ों से ज़्यादा हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश में दलितों की दयनीय स्थिति योगी सरकार के दलित विरोधी होने का प्रमाण देते हैं।

योगी सरकार ने पिछले दिनों एससी / एसटी की ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख्त से जुड़े नियमों में बदलाव कर उसे शिथिल कर दिया। अब एससी / एसटी की ज़मीन डीएम की अनुमति के बिना ही ख़रीदी जा सकेगी। माना जा रहा है नियम में इस बदलाव से दबंगों द्वारा डरा-धमका कर अथवा बहला-फुसलाकर दलितों की भूमि लेना अब आसान हो गया है, क्योंकि डीएम की अनुमति की बाध्यता को हटा दिया गया है।