सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अगर लड़का बालिग है तो वह बालिग लड़की के साथ बिना शादी के लिव इन रिलेशन में रह सकता है।
अदालत ने यह व्यवस्था केरल की एक दंपत्ति की याचिका पर दी।
जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, याचिकाकर्ता नंदकुमार के विवाह को शादी के समय 21 साल से कम उम्र होने के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है।
पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि नंदकुमार और उससे विवाह करने वाली लड़की तुषारा हिंदू है। ऐसे में हिंदू विवाह अधिनियम 1995 के तहत ऐसी शादियां अमान्य नहीं हो सकती। जैसा कि अधिनियम की धारा 12 में प्रावधान में है।
शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि शादी के लिए निर्धारित उम्र नहीं होने के बावजूद यह पर्याप्त है कि याचिकाकर्ता बालिग हैं और बिना शादी के साथ रहने का अधिकार रखते हैं। पीठ ने कहा, यहां तक कि अब विधायिका में भी लिव इन रिलेशन को मान्यता मिली है। ऐसे संबंध में रह रही महिलाओं को भी घरेलू हिंसा कानून 2005 में संरक्षण दिया गया है।
इसके साथ ही अदालत ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें तुषारा की कस्टडी उसके पिता को दी गई थी। पीठ ने कहा, हस स्पष्ट करते हैं कि तुषारा को यह पूरी स्वतंत्रता है कि वह किसके साथ रहना चाहती है।