शादियाँ क्यों रद्द हो रही हैं? इसमें सोशल मीडिया की क्या भूमिका है

एक ऐसे देश में जहाँ शादी केवल दो व्यक्तियों का बंधन नहीं होती, बल्कि पूरे परिवार, समाज और कई बार पूरे क्षेत्र का उत्सव होती है—वहाँ एक चिंताजनक प्रवृत्ति उभरकर सामने आ रही है: शादियों का अचानक, अक्सर आख़िरी समय में रद्द होना।

हालिया चर्चित मामला भारतीय महिला क्रिकेट टीम की उपकप्तान स्मृति मंधाना और इंदौर स्थित संगीतकार पलाश मुच्छल की शादी के अचानक रद्द होने का है। बहुप्रतीक्षित विवाह समारोह से कुछ ही दिन पहले यह रिश्ता टूट गया, जिससे प्रशंसक और मीडिया दोनों स्तब्ध रह गए। भारतीय संस्कृति में जहाँ आख़िरी समय पर शादी टूटना कभी दुर्लभ माना जाता था, अब यह घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं।

हर मामले के कारण अलग हो सकते हैं, लेकिन एक साझा कड़ी स्पष्ट रूप से सामने आई है—निजी रिश्तों और सार्वजनिक जीवन पर सोशल मीडिया का गहरा प्रभाव। यह लेख भारत और विदेशों में शादियाँ रद्द होने के कारणों की पड़ताल करता है और बताता है कि सोशल मीडिया, बदलते सामाजिक मूल्य और व्यक्तिगत आकांक्षाएँ इस बढ़ती प्रवृत्ति को कैसे आकार दे रही हैं।

सेलेब्रिटी रिश्ते और सोशल मीडिया का दबाव

किम कार्दशियन और कान्ये वेस्ट का तलाक़ इस बात का बड़ा उदाहरण है कि सोशल मीडिया किसी सेलेब्रिटी विवाह को किस तरह प्रभावित कर सकता है। कान्ये के विवादास्पद ट्वीट्स—जिनमें उनके वैवाहिक जीवन से जुड़ी निजी बातें भी शामिल थीं—ने रिश्ते पर सार्वजनिक दबाव बढ़ाया। किम के परिवार पर हमले और निजी मुद्दों का सार्वजनिक मंच पर आना, उनके अलगाव की वजहों में शामिल माना जाता है। सोशल मीडिया द्वारा पोषित निरंतर मीडिया कवरेज ने इस तनाव को और गहरा किया।

इसी तरह एंबर हर्ड और जॉनी डेप का तलाक़ सार्वजनिक आरोप-प्रत्यारोपों से भरा रहा। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर दोनों पक्षों ने अपनी बात रखने और समर्थन जुटाने की कोशिश की। #MeToo आंदोलन भी इस विवाद का हिस्सा बना। सोशल मीडिया और मीडिया ट्रायल ने रिश्ते की विषाक्तता को और बढ़ाया और विवाह टूटने में अहम भूमिका निभाई।

जस्टिन बीबर और हैली बाल्डविन का रिश्ता भी बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया के ज़रिये सार्वजनिक हुआ। जल्दबाज़ी में हुई सगाई और शादी के बाद उन्हें भारी आलोचना और अटकलों का सामना करना पड़ा। हर छोटी बात पर ऑनलाइन टिप्पणियाँ और अफ़वाहें उनके रिश्ते पर दबाव बनाती रहीं। हालाँकि दोनों ने सोशल मीडिया पर अपने रिश्ते का बचाव किया, लेकिन सार्वजनिक निगरानी ने उनके वैवाहिक जीवन पर तनाव ज़रूर डाला।

इसी तरह, ब्रैड पिट और जेनिफ़र एनिस्टन का अलगाव भी मीडिया की अत्यधिक दिलचस्पी से आंशिक रूप से प्रभावित माना गया। 2000 के दशक में “परफ़ेक्ट कपल” कहे जाने वाले इस जोड़े पर हर कदम पर नज़र रखी जाती थी, जिसने रिश्ते पर भारी दबाव डाला।

सोशल मीडिया की भूमिका

सोशल मीडिया ने लोगों के संवाद, जीवन साझा करने और रिश्ते बनाने के तरीकों को पूरी तरह बदल दिया है। इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक, ट्विटर और अब टिकटॉक जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स ने निजी जीवन को सार्वजनिक प्रदर्शन में बदल दिया है। संवाद आसान हुआ है, लेकिन रिश्तों पर दबाव भी कई गुना बढ़ गया है।

आज कई लोग ऑनलाइन “परफ़ेक्ट लाइफ़” दिखाने की होड़ में अवास्तविक अपेक्षाएँ पाल लेते हैं—ख़ासकर रिश्तों और शादियों को लेकर। शादी, जो परंपरागत रूप से जीवन का सबसे निजी और महत्वपूर्ण क्षण होती थी, अब एक सोशल मीडिया स्पेक्टेकल बन गई है—जहाँ हर रस्म, हर पोशाक और हर पल सार्वजनिक मूल्यांकन के दायरे में आ जाता है।

स्मृति मंधाना और पलाश मुच्छल के मामले में भी सोशल मीडिया पर मतभेदों और असंगति की अफ़वाहें फैलती रहीं। एक बार कुछ ऑनलाइन आ गया, तो वह तेज़ी से नियंत्रण से बाहर हो सकता है। नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ तनाव बढ़ाती हैं, जो कभी-कभी रिश्ता टूटने या शादी रद्द होने का कारण बन जाती हैं।

सार्वजनिक आलोचना का डर और आदर्श विवाह की छवि में फिट होने का दबाव आज शादियाँ टूटने की बड़ी वजह बन चुका है।

इसके अलावा, सोशल मीडिया तुलना की प्रवृत्ति को भी बढ़ाता है। लोग अपनी ज़िंदगी की तुलना दूसरों की फ़िल्टर-लगी, सजाई हुई ज़िंदगी से करने लगते हैं। जहाँ परिवार और समाज की भूमिका पहले से ही अहम होती है, वहाँ ऑनलाइन राय और टिप्पणियाँ चिंता और असमंजस को और गहरा कर देती हैं।

शादी को लेकर बदलती सोच और अपेक्षाएँ

ऐतिहासिक रूप से भारत में विवाह को एक पवित्र संस्था माना गया है। लंबे समय तक अरेंज मैरिज प्रमुख मॉडल रहा, जहाँ परिवार जीवनसाथी चुनने में मुख्य भूमिका निभाता था। लेकिन समय के साथ लव मैरिज, डेटिंग ऐप्स और व्यक्तिगत पसंद को सामाजिक स्वीकृति मिलने लगी है।

आज कई युवा जाति, धर्म या पारिवारिक पृष्ठभूमि से ज़्यादा अनुकूलता, समान सोच और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व देते हैं। इस बदलाव के कारण कई लोग आख़िरी समय पर यह महसूस करते हैं कि वे सही निर्णय नहीं ले रहे हैं।

इसके साथ ही “ज़िंदगी भर का साथ” जैसी अवधारणा पर भी सवाल उठ रहे हैं। बदलते करियर, महत्वाकांक्षाएँ और व्यक्तिगत लक्ष्य लोगों को विवाह पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर रहे हैं। ख़ासकर युवा महिलाएँ अब शिक्षा, करियर और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दे रही हैं। ऐसे में शादी कई बार स्वाभाविक पड़ाव की बजाय बंधन लगने लगती है।

रियलिटी टीवी और सेलेब्रिटी संस्कृति का प्रभाव

भारत में सेलेब्रिटी शादियाँ अब राष्ट्रीय तमाशा बन चुकी हैं। बॉलीवुड सितारों से लेकर क्रिकेटरों तक, हर शादी मीडिया इवेंट बन जाती है। इससे आम लोगों पर भी “परिकथा जैसी शादी” का दबाव बनता है।

लेकिन वही सेलेब्रिटी संस्कृति यह भी दिखाती है कि चमकदार शादियों के पीछे रिश्ते कितने नाज़ुक हो सकते हैं। कई चर्चित शादियाँ तलाक़ या अलगाव में बदल चुकी हैं, जिससे “परफ़ेक्ट वेडिंग” की धारणा टूटती है।

सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोगों के लिए मीडिया कवरेज और सोशल मीडिया निगरानी शादी को भारी मानसिक बोझ बना सकती है, जिससे वे आख़िरी समय पर पीछे हटने का फ़ैसला लेते हैं।

आर्थिक दबाव

भारत में शादियों का ख़र्च आसमान छू चुका है। डेस्टिनेशन वेडिंग, महंगे वेन्यू, सजावट और रस्मों का दबाव कई परिवारों के लिए असहनीय हो जाता है। आर्थिक तनाव के कारण भी कई जोड़े शादी रद्द या स्थगित करने का निर्णय लेते हैं।

जब आर्थिक बोझ, पारिवारिक अपेक्षाएँ और सोशल मीडिया पर “परफ़ेक्ट शादी” का दबाव एक साथ पड़ता है, तो भावनात्मक रूप से तैयार न होने वाले जोड़ों के लिए पीछे हटना ही बेहतर विकल्प लगने लगता है।

तलाक़ की बढ़ती संस्कृति

शहरी भारत में तलाक़ के मामले बढ़ रहे हैं। इससे लोग विवाह को लेकर अधिक सतर्क हो गए हैं। असफल विवाह का डर कई लोगों को शादी से पहले ही पीछे हटने पर मजबूर करता है—ख़ासकर वे लोग जो पहले रिश्तों में असफल रहे हैं।

कुछ के लिए शादी रद्द करना, असफल विवाह से बचने का सुरक्षित रास्ता बन जाता है।

सांस्कृतिक और पारिवारिक दबाव

भारतीय शादियों में परिवार की भूमिका बेहद प्रभावशाली होती है। कई बार सांस्कृतिक मानदंड, सामाजिक प्रतिष्ठा और पारिवारिक अपेक्षाएँ जोड़े पर भारी पड़ जाती हैं। जब किसी को ज़बरदस्ती या दबाव में शादी करनी पड़ती है, तो आख़िरी समय पर शादी रद्द करना आत्मरक्षा या विद्रोह का रूप ले लेता है।