शशिकला की कलाकारी

राजनीतिक मित्रताएं अचानक नहीं टूटतीं. वे भी ऐसी मित्रताएं जिनकी जड़ें बहुत गहरी हों. लेकिन तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और दो दशक से भी ज्यादा वक्त से उनकी सबसे करीबी मित्र रही शशिकला नटराजन के बीच अचानक उतनी ही गाढ़ी दुश्मनी देखने को मिल रही है. करीब डेढ़ महीने पहले 17 दिसंबर, 2011 को अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयललिता ने अचानक शशिकला और उनके रिश्तेदारों की फौज को अपने घर, 36 पॉस गार्डन हाउस से बाहर निकाल दिया था. इसके बाद से जो हो रहा है और जो जानकारियां सामने आ रही हैं उनसे एक ऐसी तस्वीर उभर रही है जिसमें नाकाम दोस्ती, असीमित महत्वाकांक्षा और राजनीतिक प्रतिशोध जैसे कई रंग हैं.

1987 में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और अपने गुरु एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) की मृत्यु के बाद से कोई भी जयललिता के उतना करीब नहीं रहा है जितना शशिकला रहीं. वे जयललिता की सब कुछ थीं- घर का जिम्मा संभालने वाली, आत्मीय साथी और राजनीतिक विश्वासपात्र भी. दूसरे शब्दों में वे एक ऐसा सत्ताकेंद्र थीं जिसे जनता ने नहीं, सिर्फ जयललिता ने चुना था.

इन दोनों हस्तियों की दोस्ती के दौरान शशिकला का परिवार बहुत विवादास्पद और प्रभावशाली बन चुका है.  इस परिवार को तमिलनाडु में मन्नारगुड़ी माफिया कहा जाता है. मन्नारगुड़ी तिरुवरुर जिले में स्थित एक छोटा-सा कस्बा है जहां से शशिकला ताल्लुक रखती हैं और माफिया शब्द इस परिवार के साथ उसके कारनामों की वजह से जुड़ा है. इस परिवार में शशिकला के पति एम नटराजन, शशिकला के भाई, भतीजे-भतीजियां और देवर-जेठ हैं. जयललिता और शशिकला की दोस्ती का सबसे बड़ा प्रदर्शन 1995 में शशिकला के भतीजे वी सुधाकरन की भव्य शादी थी जिसमें जयललिता खास मेहमान थीं.  पानी की तरह पैसा बहाकर किया गया शादी का यह आयोजन अगले साल चुनावी मुद्दा भी बना. उस चुनाव में जयललिता हार गई थीं. लेकिन शशिकला से उनकी दोस्ती ऐसी हर हार के बावजूद बरकरार रही. 2011 में जयललिता फिर सत्ता में आईं तो लगा कि शशिकला और उनके परिवार के सुहाने दिन लौट आए हैं. लेकिन छह महीने में ही स्थिति बिल्कुल उलट गई. स्वाभाविक है कि कई लोग इससे हैरान हैं. उन्हें इस अटूट दोस्ती में अचानक आई इस दरार का ठीक-ठाक कारण समझ में नहीं आ रहा.

फिर भी चेन्नई के राजनीतिक गलियारों में कुछ लोग हैं जो कहानी या कम से कम इसकी कुछ लाइनें जानते हैं. तहलका ने उनसे बात करके इस कहानी की कड़ियां जोड़ने की कोशिश की. नतीजा सच, कल्पना, षड्यंत्र, अपुष्ट तथ्यों और राजनीतिक अफवाहों के एक रोमांचक मेल के रूप में सामने आया.

जयललिता द्वारा 17 दिसंबर को निकाले जाने के बाद से शशिकला – जो कभी वफादारों के बीच चिनम्मा या छोटी मां के नाम से जानी जाती थीं – के दरवाजे पर पुलिस खड़ी है. उनके भाई वीके दिवाकरन उर्फ दि बॉस के खिलाफ एक केस दर्ज हो गया है और गिरफ्तारी से बचने के लिए वह फरार है. लेकिन ऐसी अफवाहें भी हैं कि वह गैरकानूनी रूप से पुलिस की हिरासत में है. बताया जा रहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक जांच-पड़ताल में पुलिस ने शशिकला की चचेरी बहन के पति रावनन आरपी को भी प्रताड़नाएं दी हैं. तमिलनाडु सतर्कता निदेशालय शशिकला के खानदान के कई सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार बताया जा रहा है. यानी जयललिता अब मन्नारगुड़ी माफिया को रौंदने पर आमादा हैं.

लेकिन सवाल उठता है कि यह सब हुआ क्यों. जानकारों के मुताबिक वजहें बहुत सारी हैं. एक चर्चा यह है कि 55 वर्षीया शशिकला और उनका मन्नारगुड़ी माफिया अम्मा (जयललिता) की कुर्सी पर चिनम्मा को बिठाने का षड्यंत्र रच रहे थे. कहा जा रहा है कि जयललिता पर बेंगलुरु विशेष ट्रायल कोर्ट में चल रहे आय से अधिक संपत्ति वाले मामले ने मन्नारगुड़ी माफिया को सपने दिखाने शुरू किए. यह तय किया गया कि यदि अदालत कोई प्रतिकूल फैसला दे दे या जयललिता के खिलाफ अप्रत्यक्ष रूप से कोई राजनीतिक अभियान चलवाया जाए तो जयललिता कुर्सी छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगी और तब वे अपनी गद्दी पर किसी ऐसे व्यक्ति को ही बैठाएंगी जिस पर वे सबसे ज्यादा भरोसा करती हों.

दवाओं के जरिए जयललिता को नशीला पदार्थ और धीमा जहर दिया जा रहा था. जो नर्स ये दवाइयां दे रही थी उसे शशिकला ने रखा था

यह सब काफी नाटकीय लगता है, लेकिन तमिलनाडु की राजनीति में इससे भी ज्यादा नाटकीय चीजें हो चुकी हैं. पिछले कई वर्षों से जयललिता शशिकला पर बहुत निर्भर रही हैं. एक महीने पहले तक उनका पॉस गार्डन घर शशिकला के आदमियों से भरा हुआ था. 1989 में जब शशिकला उनके साथ रहने आई थीं, तब वे जयललिता का घर चलाने के लिए मन्नारगुड़ी से 40 नौकर लाई थीं. जयललिता के घर की नौकरानियां, रसोइये, चौकीदार, ड्राइवर सब उनके ही चुने हुए लोग थे.

हालत  यह थी कि जयललिता से कोई भी शशिकला की अनुमति के बिना नहीं मिल सकता था. मंत्री सरकार की नीतियों की चर्चा भी शशिकला से करते और नौकरशाह जब मुख्यमंत्री से मुलाकात करते तो इस दौरान शशिकला भी वहां मौजूद होतीं. शशिकला के शब्द जयललिता के आदेश की तरह समझे जाते थे. अप्रत्यक्ष रूप से वे उपमुख्यमंत्री थीं. पार्टी पर भी उनका नियंत्रण था. अन्नाद्रमुक का संगठन क्षेत्रों में विभाजित है और अधिकतर क्षेत्रीय मुखिया शशिकला के रिश्तेदार ही थे. विधायक या तो मन्नारगुड़ी माफिया चुनता था या विधायक उनके कृपापात्र होने की कोशिश करते थे.

दरअसल शशिकला को भस्मासुर जयललिता ने ही बनाया. उन्होंने ही शुरू में पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि अपनी बात उन तक पहुंचाने के लिए वे शशिकला से मिलें. शशिकला ने इसी मौके का फायदा उठाया. वे मुख्यमंत्री तक अपनी सुविधा के हिसाब से सूचनाएं भेजने लगीं. और इस तरह जयललिता एक तरह से शशिकला की कैद में रहने लगीं.

अब सवाल उठता है इसके बावजूद जयललिता को पूरे मामले की भनक कैसे लगी. अन्नाद्रमुक के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक इसमें पहली भूमिका गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की रही. उन्होंने ही जयललिता को मन्नारगुड़ी माफिया के बारे में सावधान किया किया. सूत्रों के मुताबिक मोदी ने जयललिता से कहा कि वे अपने करीबी लोगों पर निगाह रखें. उन्होंने कहा कि शशिकला और उनके परिवार द्वारा की जा रही वसूली की भारी मांगों की वजह से बड़े निवेशक तमिलनाडु में पैसा लगाने से कतराने लगे हैं. जयललिता के लिए यह थोड़ा बड़ा झटका था. मन्नारगुड़ी माफिया तबादलों और नियुक्तियों के लिए और स्थानीय औद्योगिक समूहों से पैसा लेता है, इसकी खबर तो उन्हें रही ही होगी, लेकिन मोदी ने जिस दर्जे के भ्रष्टाचार के बारे में जयललिता को बताया उसका अंदाजा उन्हें दूर-दूर तक नहीं था.

दूसरी चेतावनी उन्हें चेन्नई मोनोरेल प्रोजेक्ट ने दी. दरअसल वे चाहती थीं कि इसका काम सिंगापुर की एक अच्छी कंपनी को दिया जाए. उन्होंने मुख्य सचिव देवेंद्रनाथ सारंगी से कागजी काम शुरू करने को कहा. प्रक्रिया के अंत में जब फाइल उन तक पहुंची तो मलेशिया की एक कंपनी सबसे ऊपर थी और सिंगापुर वाली कंपनी नीचे. उन्होंने सारंगी को बुलाया और जवाब मांगा. अब चौंकने की बारी सारंगी की थी. उन्होंने कहा कि उन्हें तो फाइल के साथ मुख्यमंत्री का लिखा एक नोट मिला था, जिसमें लिखा था कि मलेशिया की कंपनी ही सबसे अच्छी है. जयललिता ने इस प्रोजेक्ट से जुड़ा अपना सारा पत्र-व्यवहार मंगवाया. इसमें उन्हें मलेशिया की कंपनी को बेहतर बताने वाला एक नोट मिला. इस पर उनके दस्तखत थे मगर जाली. गुस्साई जयललिता ने शशिकला को बुलवाया, लेकिन उन्होंने इस बारे में किसी भी जानकारी से इनकार कर दिया.

जयललिता को पहली चेतावनी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी थी. सूत्रों के मुताबिक मोदी ने जयललिता से कहा कि वे अपने करीबी लोगों से सावधान रहें

तीसरी चेतावनी ने तो जयललिता के पांवों तले जमीन खिसका दी. बताया जाता है कि वे शशिकला को बताए बिना एक नामी डॉक्टर से मिलने गईं. जो दवाइयां वे ले रही थीं, उन पर वे उस डॉक्टर की राय जानना चाहती थीं. सूत्रों के मुताबिक डॉक्टर से उन्हें पता चला कि दवाओं के जरिए उन्हें नशीला पदार्थ और धीमा जहर दिया जा रहा था. घर में जो नर्स उन्हें नियमित अंतराल पर फल और दवाएं देती थी उसे शशिकला ने काम पर रखा था.

अब जयललिता समझ गई थीं कि सब कुछ बहुत जल्दी करना होगा. वे नौकरशाही में मन्नारगुड़ी माफिया के प्रति पनप रहे गुस्से को भी समझ रही थीं. उदाहरण के लिए, चुनाव के बाद वे जमीन अधिग्रहण के मामलों में द्रमुक के वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारियां चाहती थीं. कई वरिष्ठ द्रमुक नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं भी और पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के बेटे एमके स्टालिन पर भी एक मामला दर्ज किया गया. जयललिता ने सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशक से कह रखा था कि करुणानिधि परिवार को तभी लपेटा जाए जब पुख्ता सबूत हों. इसके बावजूद स्टालिन वाला मुकदमा बहुत कमजोर था. जब जयललिता ने तत्कालीन आईजी पॉन मैनिकवेल से पूछा तो उन्होंने कहा कि यह केस शशिकला की सहमति के बाद दर्ज किया गया था. अब जयललिता को मन्नारगुड़ी माफिया और द्रमुक परिवार के बीच चल रहे किसी षड्यंत्र की बू आने लगी.

और बची-खुची कसर तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक के रामानुजम ने पूरी कर दी. रामानुजम को कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक शंकर बिदारी ने आगाह किया था कि दिसंबर के पहले हफ्ते में शशिकला परिवार की बेंगलुरु में कोई गुप्त बैठक होने जा रही है. कहा जाता है कि जहां यह बैठक होनी थी वहां कर्नाटक पुलिस के खुफिया अधिकारियों ने माइक्रोफोन लगा दिए. बैठक की रिकॉर्डिंग के टेप पहले बेंगलुरु में पुलिस मुख्यालय पहुंचे और फिर चेन्नई में रामानुजम के पास. पुलिस सूत्र बताते हैं कि उन टेपों से जयललिता के खिलाफ चल रही साजिश पर से परदा उठा. सूत्रों की मानें तो उस बैठक में शशिकला, उनके पति नटराजन, शशिकला की चचेरी बहन के पति सुधाकरन, शशिकला का भतीजा टीटीवी दिनकरन और नटराजन का भाई एम रामचंद्रन मौजूद थे. उस बैठक में आय से अधिक संपत्ति वाले मामले में जयललिता की परेशानियों की चर्चा की गई और सब उनके बाद बनने वाले संभावित मुख्यमंत्रियों के नाम सुझाते रहे.

टेप सुनने के बाद कुछ बाकी नहीं बचा था. पांच दिन तक राज्य पुलिस मन्नारगुड़ी माफिया के सभी सदस्यों की निगरानी करती रही. रावनन का सिंगापुर में भी पीछा किया गया जहां वह एक बिजनेस मीटिंग के लिए गया था. पुलिस महानिदेशक को शशिकला और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ सबूत जुटाने का काम दिया गया. एक प्राइवेट जासूस एजेंसी की भी मदद ली गई. शशिकला के परिवार के सदस्यों और उनके नजदीकी सहायकों की फोन कॉलें टेप की गईं. इस सब की रिपोर्ट रोजाना मुख्यमंत्री को भेजी गई.

इस कवायद के आखिर में जयललिता के पास मन्नारगुड़ी माफिया की करतूतों का पूरा ग्रंथ था. लेकिन उन्हें यह भी पता चल गया था कि इस माफिया की दीमक उनकी पार्टी और सरकार के भीतर तक घुसी हुई है और उसके पास इतना पैसा और संसाधन हैं कि उन्हें सीधी चुनौती भी मिल सकती है. इस दीमक को खत्म करना आसान नहीं था. इसके लिए राज्य पुलिस की खुफिया शाखा में बड़े बदलाव किए गए क्योंकि उसमें शशिकला के विश्वासपात्र भरे पड़े थे. जयललिता ने थमाराई कानन को खुफिया शाखा का आईजी बनाया क्योंकि वे इस पद पर ऐसा व्यक्ति चाहती थीं जिसका मन्नारगुड़ी माफिया से कोई संबंध न हो.

इसके बाद मुख्यमंत्री ने अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा में बदलाव किए. तिरुमलाई स्वामी 2001 से उनके व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी थे. यह माना जा रहा है कि शशिकला स्वामी का इस्तेमाल मुख्यमंत्री की गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए कर रही थीं. स्वामी का भी तबादला कर दिया गया.

और आखिर में, एक कैबिनेट मीटिंग में जयललिता ने मंत्रियों से साफ कहा कि वे सीधे उनके द्वारा कही गई बातें ही सुनें, शशिकला या किसी और द्वारा पहुंचाई गई बातें नहीं. बहुत-से मंत्रियों ने इसे हल्के में ही लिया. उन्हें लगा कि शशिकला और जयललिता में कोई छोटी-मोटी अनबन हुई होगी. हालांकि मन्नारगुड़ी माफिया इससे सतर्क हो गया. उसे अहसास हो गया था कि हालात बदल रहे हैं. हालांकि फिर भी शशिकला को अपनी इमोशनल ब्लैकमेलिंग की प्रतिभा पर पूरा भरोसा था. उन्हें लग रहा था कि बस उनके पॉस गार्डन के घर में पहुंचने की देर है और मुख्यमंत्री फिर से उनकी हो जाएंगी. लेकिन उनका यही अनुमान उनके लिए खतरनाक साबित हुआ. हालात वाकई स्थायी रूप से बदल गए थे.

तमिलनाडु में दो मंत्री होते हैं, एक धोती वाला और एक पैंट वाला यानी उसका सहायक. और पैंट वाला मंत्री पहले वाले मंत्री से ज्यादा ताकतवर होता है

इसकी आखिरी पुष्टि 17 दिसंबर को तब हो गई जब जयललिता ने शशिकला और उनके लोगों की फौज को घर से दफा होने को कहा. इनमें से कुछ 1989 से ही पॉस गार्डन में रह रहे थे, जब जयललिता विपक्ष की नेता बनी थीं. किसी के भी गिड़गिड़ाने का जयललिता पर कोई असर नहीं हुआ. इसी बीच पुलिस, कानूनी टीमों और चार्टेड अकाउंटेंटों ने शशिकला परिवार के निवेशों का हिसाब लगाना और पैसा वसूलना शुरू कर दिया था.

सिंगापुर से लौटते ही रावनन को धर लिया गया. उसके घर पर छापे में 50 करोड़ की नकदी मिली. रावनन कोयंबटूर स्थित मिडास गोल्डन डिस्टलरीज का मालिक है जो राज्य विपणन निगम को शराब की आपूर्ति करती है. शशिकला ने यह संयंत्र 2002 में तब स्थापित किया था जब जयललिता सत्ता में थीं, लेकिन माना जाता है कि द्रमुक की सत्ता में भी कंपनी को अच्छे कॉंट्रेक्ट मिलते रहे हैं.

रावनन के पास शशिकला के व्यापारिक साम्राज्य की चाबी है. यह साम्राज्य लगभग 5000 करोड़ रुपये का है. एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘असल में मुख्यमंत्री के पास ज्यादा पैसा नहीं है. उनका घर, सरकार और पार्टी तो मन्नारगुड़ी समूह ही चला रहा था.’ और तो और, 2011 के विधानसभा चुनावों के टिकट भी बेचे गए और तथाकथित रूप से शशिकला ने इस पूरी प्रक्रिया से 300 करोड़ रुपये कमाए. खास बात यह भी थी कि ये टिकट मन्नारगुड़ी समूह के चहेतों को ही बेचे गए.

अन्नाद्रमुक के शासन के इन छह महीनों में मन्नारगुड़ी माफिया बहुत व्यस्त रहा है. कुछ जानकारों की मानें तो अब तक उसने कम से कम 1000 करोड़ रुपये तो कमा ही लिए होंगे. इसमें बड़ी कमाई बसों के किरायों में बढ़ोतरी और शराब के दामों में बढ़ोतरी से आई है. शराब के दाम बढ़ने से खुद शशिकला की कंपनियों को फायदा पहुंचा और बसों के किराये बढ़ने से प्राइवेट ऑपरेटरों को, जिन्होंने मन्नारगुड़ी माफिया को मोटा कमीशन दिया.

अन्नाद्रमुक के एक कार्यकर्ता कहते हैं, ‘मन्नारगुड़ी माफिया बहुत अच्छी तरह से संगठित था. उन्होंने मंत्रियों और महत्वपूर्ण अधिकारियों की निगरानी के लिए आदमी रखे हुए थे. हर मंत्री के साथ एक निजी सहायक रहता था. तमिलनाडु में कहा जाता है कि मंत्री दो होते हैं, एक धोती वाला (असल मंत्री) और दूसरा पैंट वाला (उसका सहायक). और पैंट वाला मंत्री अक्सर धोती वाले मंत्री से ज्यादा शक्तिशाली होता है.’

18 दिसंबर को जयललिता ने मन्नारगुड़ी माफिया के मुख्य सदस्यों को पार्टी से निकाल दिया. उन्होंने मंत्रियों के 38 निजी सुरक्षा अधिकारियों के तबादले भी किए. निकाले गए लोगों में शशिकला और उनके पति नटराजन, दिवाकरन, शशिकला की भतीजी और जया टीवी की प्रबंध निदेशक एस अनुराधा, रावनन और कभी जयललिता का दत्तक पुत्र कहा जाने वाला सुधाकरन शामिल हैं. हालांकि जयललिता ने अभी अपने कैबिनेट मंत्रियों को नहीं छुआ है. उन्हें भी नहीं, जो शशिकला और उनके भाई के करीबी समझे जाते हैं. लेकिन बताया जाता है कि वे उन्हें यूं ही छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. बताते हैं कि दिसंबर में जब पीडब्ल्यूडी मंत्री केवी रामालिंगम जयललिता से मिले तो वे उन्हें देखकर शांत ढंग से मुस्कुराईं और बोलीं, ‘तमिलनाडु के भावी मुख्यमंत्री का स्वागत है.’ सूत्रों के मुताबिक यह सुनते ही रामालिंगम का चेहरा पीला पड़ गया था.

54 वर्षीय रामालिंगम भूतपूर्व राज्यसभा सदस्य हैं. 2011 के विधानसभा चुनावों में उन्हें शशिकला के जोर देने पर इरोड पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया गया था. रामालिंगम को अपने ज्योतिष के ज्ञान और तंत्र-मंत्र के लिए जाना जाता है. कहा जाता है कि 2011 की शुरूआत में उन्होंने विधानसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक की जीत के लिए कर्मकांड किए थे. जयललिता का मानना है कि पिछले कुछ महीनों से शशिकला के कहने पर रामालिंगम केरल के एक ज्योतिषी से तांत्रिक साधना करवा रहे थे जिससे जयललिता को हटाकर शशिकला के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो जाए. बताया जाता है कि रामालिंगम ने शशिकला के साथ भी धोखा किया और सारी पूजा और कर्मकांड अपने मुख्यमंत्री बनने के लिए किए. अब रामालिंगम पर किसी को भरोसा नहीं है और संभावना है कि जल्दी ही वे अपनी कैबिनेट की कुर्सी खोकर तंत्र-मंत्र करने के लिए लंबी छुट्टी पा सकते हैं.

बताया जा रहा है कि 13 मंत्रियों पर भी गाज गिरने वाली है. पहले ही व्यावसायिक कर मंत्री एसएस कृष्णमूर्ति को हटाकर उन्हें स्कूली शिक्षा विभाग दे दिया भी जा चुका है. इसके बाद उद्योग, बिजली, परिवहन, लोकनिर्माण, राजस्व, उत्पाद शुल्क और वन विभाग के मंत्रियों के जाने की भी बात कही जा रही है. भूतपूर्व मुख्यमंत्री, वयोवृद्ध नेता और वर्तमान वित्तमंत्री ओ पनीरसेल्वम भी घबराए हुए हैं.  राजस्व, अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक विभागों और पुलिस स्तर में शीर्ष स्तर पर फेरबदल का काम शुरू भी हो चुका है. सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री कानून विभाग में भी बड़े बदलाव लाने वाली हैं.

साफ है कि मन्नारगुड़ी माफिया के सिर पर अब मुसीबतों का पहाड़ है. कोयंबटूर जमीन अधिग्रहण मामले में शशिकला की भी गिरफ्तारी कभी भी हो सकती है. जया टीवी में बहुत अनियमितताएं मिली हैं और इस मामले में अनुराधा भी गिरफ्तार की जा सकती हैं. शशिकला की भाभी इलावरासी जयरमन को तमिलनाडु पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है और उनसे पूछताछ कर रही है.

लेकिन मन्नारगुड़ी माफिया का निवेश सिर्फ तमिलनाडु और पड़ोसी राज्यों में ही नहीं बल्कि सिंगापुर, मलेशिया और दुबई तक है. शायद इसीलिए एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘मन्नारगुड़ी माफिया ने जो पैसा लूटा था वह वसूलना टेढी खीर हो सकता है.’ बताया जा रहा है कि शशिकला के परिवार के कुछ लोग करुणानिधि परिवार की शरण में भी चले गए हैं.

शशिकला और जयललिता की दोस्ती की कहानी भी दिलचस्प है. शशिकला एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थीं और वह भी एक ऐसा परिवार जिसका झुकाव डीएमके की तरफ था. आज तंजावुर से 34 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटा-सा कस्बा तिरुवरूर शशिकला के घर के रूप में प्रसिद्ध है. हालांकि शशिकला वहां नहीं जन्मी थीं. उनका परिवार मन्नारगुड़ी से 28 किलोमीटर दूर स्थित तिरुतुरईपुंडी से आया था जहां शशिकला के दादा चंद्रशेखरन का मेडिकल स्टोर हुआ करता था. फिर वह स्टोर उनके बेटे विवेकानंदन का हुआ. 1950 के दशक में विवेकानंदन के बड़े बेटे और बैंक कर्मचारी सुंदरवदनम का तबादला मन्नारगुड़ी में हुआ. उसने वहां एक घर बनवाया और अपने भाई-बहनों की बेहतर शिक्षा के लिए उन्हें अपने साथ ले आया. शशिकला अपने भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर थीं. पूरे परिवार का झुकाव द्रमुक की तरफ था, लेकिन यह तब खत्म हो गया जब सुंदरवदनम को गरीब परिवारों के लिए आने वाले लोन को अपनी मां के खाते में डालते हुए पकड़ा गया.

1974 में एक द्रमुक युवा नेता नटराजन ने शशिकला से शादी करने की इच्छा जताई. सुंदरवदनम को आपत्ति थी क्योंकि नटराजन की सरकारी नौकरी राजनीतिक और अस्थायी थी. अब नटराजन ने शशिकला के जीजा विवेकानंदन को मनाया और आखिर में अनुमति मिल ही गई. विडंबना देखिए कि शशिकला को उनकी शादी में द्रमुक अध्यक्ष करुणानिधि से आशीर्वाद मिला जो युवा नटराजन की भाषणकला से बहुत प्रभावित थे. तब कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि यही शशिकला एक दिन करुणानिधि की सबसे बड़ी राजनीतिक दुश्मन की सबसे भरोसेमंद साथी बनेंगी.

आपातकाल के दौरान नटराजन बेरोजगार हो गए. वे अपने निलंबन के मामले को अदालत में ले गए. इस दौरान शशिकला ने वकीलों की फीस भरने के लिए अपने गहने तक बेच दिए. वे मुश्किल दिन थे. घर चलाने के लिए शशिकला ने चेन्नई में एक वीडियो किराये पर देने की दुकान खोली. उन्होंने एक वीडियो कैमरा खरीदा और सामाजिक समारोहों और स्थानीय शादियों के वीडियो बनाने लगीं. उन दिनों तक जयललिता सत्ताधारी अन्नाद्रमुक में काफी शक्तिशाली स्थिति में पहुंच गई थीं. अर्कोट की जिला कलेक्टर वी चंद्रलेखा को नटराजन जानते थे. उन्होंने चंद्रलेखा से प्रार्थना की कि वे उनकी पत्नी को जयललिता से मिलवा दें ताकि वह उनके सार्वजनिक समारोहों के वीडियो बना सके. चंद्रलेखा ने बात मान ली. इस परिचय ने शशिकला और उनके खानदान की किस्मत पलट दी. जयललिता शशिकला के काम से प्रभावित हुईं. चंद्रलेखा शशिकला को एक ‘चतुर, परिश्रमी और दृढ़’ महिला के रूप में याद करती हैं. वे ऐसी ही थीं भी.

शशिकला को उनकी शादी में आशीर्वाद देते हुए करुणानिधि ने सोचा भी नहीं होगा कि वे एक दिन उनकी राजनीतिक दुश्मन की सबसे विश्वासपात्र होंगी

80 के दशक के आखिर में एमजीआर कमजोर होने लगे और फिर गुजर गए. तब अन्नाद्रमुक में सत्ता का संघर्ष चला. जयललिता के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री आरएम वीरप्पन का व्यवहार अच्छा नहीं रहा. जयललिता गहरे एकांत में चली गईं. उसी दौर में शशिकला उनके करीब आईं और फिर उनके घर में दाखिल हो गईं. शशिकला ने जयललिता को भावनात्मक और प्रबंधकीय सहारा दिया. नटराजन राजनीति के पुराने खिलाड़ी थे और उन्होंने जयललिता की वापसी की स्क्रिप्ट लिखी. बाकी तो इतिहास है.

हालांकि मन्नारगुड़ी माफिया ने अभी पूरी तरह से घुटने नहीं टेके हैं. 17 जनवरी को तंजावुर में एक पोंगल समारोह को संबोधित करते हुए जयललिता को चेतावनी देते हुए नटराजन का कहना था, ‘अब मैं पूरा नेता बन गया हूं. मुझ पर कोई बंधन नहीं रहा. कुछ लोग किसी निर्णायक घोषणा की उम्मीद में मुझे सुनने आए हैं, लेकिन मैं सही वक्त पर ही फैसला लूंगा. मैंने ही तमिलनाडु की सरकार बदली थी और अब बहुत-से लोगों का मानना है कि उसकी फसल कोई और काट रहा है. मैं चुप हूं क्योंकि मैं तमिलनाडु की शांति और सौहार्द्र को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता.’ उन्होंने श्रीलंका के ‘तमिल ईलम युद्ध के शहीदों’ के लिए एक स्मारक बनवाने की घोषणा करते हुए उसी सभा में 50 लाख रु भी इकट्ठा किए.

साफ है कि वित्तीय संसाधनों, राजनीतिक ताकत, सामुदायिक एकजुटता और ईलम कार्ड (द्रमुक के साथ  स्पष्ट तालमेल का संकेत) के साथ नटराजन ने जयललिता को इशारों ही इशारों में काफी चेतावनियां दे दी हैं. देखना दिलचस्प होगा कि वे इनका जवाब कैसे देंगी.