तहलका ब्यूरो
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख ज्यों –ज्यों
नजदीक आती जा रही है। त्यों-त्यों चुनावी माहौल का
मिजाज कुछ और ही बता रहा है। बताते चलें ये कि
चुनाव में जो एक माहौल ऐसा भी बनाया गया है कि सपा
और भाजपा के बीच ही कड़ा मुकाबला है। जबकि छोटे
–छोटे दल के नेताओं का मानना है। कि चुनाव परिणाम
कुछ भी हो, लेकिन वे निर्णायक भूमिका शामिल
होगे।चुनाव में कांग्रेस, बसपा, सपा और भाजपा भले ही
बड़ी पार्टियां है। लेकिन जो छोटी –छोटी पार्टियां जो इस
बार उभर कर सामने आयी है। और उन्होंने गठबंधन कर
चुनावी ताल ठोंकी है। उसके सीधे मायने साफ निकालें जा
सकते है। कि सत्ता में भागीदारी चाहती है। महानदल
के नेता केशव देव मोर्य, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी
के नेता ओमप्रकाश राजभर, निषाद पार्टी के अध्यक्ष
संजय निषाद और अपना दल जो दो भांगों में बंट गया
है। जिनमें से एक है पल्लवी पटेल के हाथ में है जिन्होंने
अपना दल (कमेरावादी )का गठन कर समाजवादी के साथ
गठबंधन किया है। जबकि उसकी सगी बहन अनुप्रिया
पटेल ने अपना दल (एस) का गठबंधन भाजपा के साथ
किया है।वहीं अन्य छोटे दल गठबंधन कर चुनावी समर
में हर हाल में जीत का दावा कर रहे है।
उत्तर प्रदेश की सियासत के जानकार सचिन सिंह का
कहना है कि उत्तर प्रदेश चुनाव सदैव से महत्वपूर्ण रहा है।
क्योंकि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही गुजरता है।
इसलिहाज से बड़े दलों के साथ जो छोटे दल चुनावी भंवर
में है कड़ी मेहनत कर वे हर हाल में चुनाव जीतना चाहते
है। उनको इस बात का भी अंदाजा है कि कई बार बड़े
दल सरकार बना पाने लायक बहुमत नहीं ला पाते है। तो
ऐसे में दो-चार विधायकों वाली पार्टी भी सरकार बनाने में
अहम् रोल ही नहीं निभाती है। बल्कि सरकार में अपनी
दखल के साथ मनमाफिक मंत्रालय हासिल भी करती है।