गांधीनगर के महात्मा मंदिर परिसर में प्रवासी सम्मेलन से लेकर वाइब्रेंट गुजरात के भव्य समारोह में घोषणाएं तो ढेरों हुईं, लेकिन इस सवाल का जवाब वक्त ही देगा कि इनमें से कितनी घोषणाएं जमीन पर उतर पाएंगी. इनमें निवेश कितना आएगा, यह सवाल जस का तस बना हुआ है.
वैसे तो पिछले कई सालों से प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन किया जाता रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रवासियों के बीच अलग ही आकर्षण है. यह बात उनको भी भली-भांति मालूम है. इसीलिए उन्होंने महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत वापसी के 100 साल पूरे होने के मौके पर अपने गृह राज्य गुजरात में प्रवासी दिवस के आयोजन का निर्णय लिया. सात से नौ जनवरी के बीच गांधीनगर के महात्मा मंदिर परिसर में तीन दिवसीय प्रवासी सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसके बाद इसी परिसर में 11 से 13 जनवरी के बीच वाइब्रेंट गुजरात का आयोजन भी हुआ.
यह वही मंदिर परिसर है जिसे नरेन्द्र मोदी ने कभी अपनी मार्केटिंग के लिए 250 करोड़ रुपये से भी अधिक खर्चकर बनवाया था, यह बात और है कि विश्व की अनमोल धरोहर साबरमती आश्रम को अपने मुख्यमंत्रित्व के 12 साल में वह मात्र 4.64 लाख रुपये ही आवंटित कर पाए. दक्षिण अफ्रीका से आने के बाद महात्मा गांधी ने जिस कोचरब आश्रम से सत्याग्रह का आह्वान कर सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की थी, उस आश्रम को भी रखरखाव के लिए प्रतिवर्ष मात्र सवा लाख रुपये का अनुदान राज्य से मिलता है.
गुजरात में निवेश आकर्षित करने के लिए मोदी द्वारा शुरू किया गया ‘वाइब्रेंट गुजरात’ अब वैश्विक निवेशक सम्मेलन का रूप ले चुका है. यही कारण है कि इसमें सभी अहम केंद्रीय मंत्रियों का तो जमावड़ा था ही, साथ ही इसमें देश-विदेश के जाने-माने उद्योगपतियों के अलावा अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी, संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून, विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम और भूटान के प्रधानमंत्री भी शामिल हुए. सभी ने मुक्त कंठ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गुणगान किया और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए ‘मेक इन इंडिया और ‘मेड इन इंडिया’ के नारे भी लगाए गए, इस पूरे तामझाम के बावजूद वास्तविक निवेश को लेकर दुविधा जस की तस बनी हुई है.
दरअसल इस बात को लेकर बार-बार विवाद उठता रहा है कि ऐसे सम्मेलनों और इनमें की जानेवाली घोषणाओं के बाद असल में कितना निवेश आता है. पिछले वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में भी आंकड़ों को लेकर विवाद उठा था, इस विवाद को लेकर स्वयं प्रधानमंत्री भी उलझन में पड़ गए थे. शायद इसी विवाद के चलते प्रधानमंत्री को इस सम्मेलन के बारे में कहना पड़े कि ‘लोग मुझे कहते हैं कि मैं ‘हाइप क्रिएट’ करता हूं, लेकिन मैं ‘हाइप’ न करूं तो लोग काम न करें.’ आंकड़ों के विवाद से खुद को और सरकार को दूर रखने की गरज से ही राज्य के वित्त मंत्री सौरभ पटेल को भी एक प्रेस सम्मेलन के दौरान यह कहना पड़ा कि इस बार वाइब्रेंट के आंकड़े जारी नहीं किए जाएंगे, बल्कि ‘एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट’ की घोषणा की जाएगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, और इस सम्मेलन में 21,000 से अधिक निवेश करारों के साथ 25 लाख करोड़ रुपये के निवेश के आंकड़े घोषित किए गए.
साल 1997-98 में गुजरात राज्य पर कर्ज 17,900 करोड़ रुपये था, जो भाजपा के शासन में बढ़कर साल 2013-14 में 1,69,538 करोड़ रुपये हो गया
साल 2003 से ही हर दो साल बाद वाइब्रेंट गुजरात का आयोजन होता रहा है. अब तक कुल सात वाइब्रेंट महोत्सव का आयोजन हो चुका है. ऐसे में स्थिति को परखने के लिए यह जरूरी है कि आंकड़ों की बात एक बार कर ली जाए और यह देखने की कोशिश की जाए कि अब तक के आयोजनों का नतीजा क्या रहा है. अर्थशास्त्र के प्राध्यापक हेमंत शाह इस सम्मेलन को भव्य मेले के रूप में देखते हैं. उनका कहना है, ‘साल 2003 से साल 2011 के दौरान हुए सम्मेलनों में राज्य सरकार ने 39,60,146 करोड़ रुपये के करार किए थे, लेकिन निवेश आया सिर्फ 3,10,985 करोड़ रुपये, जो अनुमानों का सिर्फ 7.85 फीसदी ही है.
गुजरात के उद्योग कमिश्नर की वेबसाइट का हवाला देते हुए शाह कहते हैं कि एक जनवरी 1983 से 31 अक्टूबर 2014 तक 2,61,411 करोड़ रुपये के 6135 सहमति पत्रों पर अमल हुआ और 8,62,166 करोड़ रुपये की 3584 परियोजनाएं क्रियान्वयन की दिशा में हैं यानी पिछले 30 वर्षों में गुजरात राज्य में 11,23,577 करोड़ रुपये निवेश हुआ है. वह कहते हैं, ‘जब वाइब्रेंट के बिना इतना निवेश आया है, तो ऐसे में वाइब्रेंट सम्मेलन का महत्व क्या हैै?’
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, गुजरात वाइब्रेंट 2015 के आयोजन पर 350 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई. गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि अपनी प्रसिद्धि के लिए सरकार करोड़ों रुपये फूंक रही है, वाइब्रेंट गुजरात में अब तक कितना खर्च हुआ, इसके आंकड़े तो राज्य की सरकार अभी तक सामने नहीं ला पाई. सूचना अधिकार के तहत भी वाइब्रेंट गुजरात के आंकड़ों की जानकारी नहीं दी जाती. कांग्रेस का दावा है कि अब तक के वाइब्रेंट सम्मेलनों में भाजपा सरकार ने 65 लाख करोड़ रुपये के निवेश के जो दावे किए हैं, उनमें से 3.6 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं ही क्रियान्वयन की दिशा में हैं. अभी तक इनकी वजह से केवल 2.68 लाख लोगों को ही रोजगार मिल सका है. कांग्रेस का कहना है कि इस दौरान राज्य पर कर्ज कई गुना बढ़ गया है. साल 1997-98 में गुजरात पर कर्ज 17,900 करोड़ रुपये था, जो भाजपा के शासन में बढ़कर साल 2013-14 में 1,69,538 करोड़ रुपये हो गया.
डिपार्टमेंट ऑफ इंड्रस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2000 से मार्च 2013 के बीच भारत में 9.1 लाख करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आया. जहां तक गुजरात का सवाल है, यहां इस दौरान महज 39,000 करोड़ रुपये का एफडीआई आया. यहां विदेशी निवेश में ही नहीं, बल्कि घरेलू निवेश में भी कमी आई है. साल 2011 के वाइब्रेंट समिट के 544 सहमति पत्रों में से साल 2013 में मात्र 354 पर सहमति बन पाई है और प्रस्तावित निवेश 1.42 लाख करोड़ रुपये से घटकर 2013 में 94,259 करोड़ रुपये रह गया है. कांग्रेस विधानदल की महिला प्रवक्ता तेजश्री बेन पटेल का कहना है कि पिछले वर्ष ही विधानसभा में उन्होंने छह वाइब्रेंट सम्मेलनों में हुए निवेश करारों का आंकड़ा मांगा था और उन्हें जो आंकड़े मिले हैं, वे बेहद चौंकानेवाले हैं. शुरुआती छह वाइब्रेंट सम्मेलनों में कुल 30,115 निवेश करार हुए हैं, लेकिन अमल में लाई गई योजनाएं मात्र 1,512 ही हैं. ऐसे में ऐसी आशंका बढ़ती जा रही है कि यह निवेशक सम्मेलन जनता के करोड़ों रुपयों के खर्च से आयोजित होनेवाला भव्य मेला मात्र बनकर ही न रह जाए.