रिहाई के बाद

बेतरतीब मूंछों और लंबी दाढ़ी वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया बीती आठ जुलाई को आरा जेल से बाहर निकले तो प्रतिक्रियाएं दो तरह की थीं. एक तरफ हजारों लोगों की भीड़ उन्हें नायक जैसा स्वागत देने के लिए उमड़ रही थी तो दूसरी ओर दलित और शोषित तबके के एक बड़े वर्ग में मायूसी और दहशत थी. गौरतलब है कि 90 के दशक के उत्तरार्द्ध में ब्रह्मेश्वर सिंह, जिन्हें दुनिया ब्रह्मेश्वर मुखिया के नाम से जानती रही है,  और उनकी रणवीर सेना ने कथित रूप से कई नरसंहारों में वंचित और पिछड़े तबके के 277 लोगों की जानें ले ली थीं. फिलहाल ब्रह्मेश्वर अपराध के छोटे-बड़े 17 मामलों में बरी कर दिए गए हैं जबकि हत्या और जनसंहार जैसे आधा दर्जन मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है.

‘हमारी पार्टी ब्रह्मेश्वर मुखिया की रिहाई को समाज के लिए खतरे की एक बड़ी आहट के रूप में देखती है. जिस व्यक्ति ने तीन सौ से ज्यादा दलितों और पिछड़ों के खून से होली खेली थी वह बाहर आ जाए, निर्दोष साबित कर दिया जाए यह नीतीश सरकार के लिए शर्मनाक है.’  

लक्ष्मणपुर बाथे और बथानी टोला समेत 29 जनसंहारों के अभियुक्त ब्रह्मेश्वर मुखिया के जेल से बाहर आने पर कुछ लोगों ने अपनी जीत का जश्न मनाया तो वहीं कुछ लोगों में दहशत और भय का माहौल दिखा. अनेक संगठन इस मामले को अपनी-अपनी दृष्टि से देख रहे हैं. ब्रह्मेश्वर की रिहाई पर कुछ संगठन गंभीर सवाल उठा रहे हैं. आरोप लग रहे हैं कि सरकार ने ब्रह्मेश्वर के प्रति सहानुभूति का रवैया अपनाया जिसकी वजह से अदालत को उनके खिलाफ साक्ष्य नहीं मिले जिसके चलते उन्हें कुछ मामलों में रिहा कर दिया गया और अनेक मामलों में जमानत भी मिल गई. कुछ लोग यह भी आशंका जता रहे हैं कि ब्रह्मेश्वर मुखिया के रिहा किए जाने के बाद समाज में फिर से अशांति फैलने का खतरा है.

ब्रह्मेश्वर के गृहजिले भोजपुर के एक स्थानीय पत्रकार मनीष कुमार सिंह आठ जुलाई को ब्रह्मेश्वर मुखिया के काफिले को कवर कर रहे थे. मनीष बताते हैं, ‘इस काफिले में दस हजार से ज्यादा लोग 60-70 गाड़ियों और सैकड़ों मोटरसाइकिलों के साथ शामिल थे. ये लोग ब्रह्मेश्वर मुखिया की जयकार कर रहे थे. काफिला जिन क्षेत्रों से गुजरा वहां के दलित समुदाय के लोगों में खौफ का माहौल था.’ मनीष तो इस काफिले के साथ कुछ दूर ही चले लेकिन एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अमित कुमार बंटी ब्रह्मेश्वर मुखिया के पैतृक गांव खोपिरा का दृश्य बयान करते हुए बताते हैं,  ‘दर्जनों लोग आसमान में राइफल की गोलियां दागे जा रहे थे जिसकी वजह से दलित समाज के लोग उस रात चैन से नहीं सो सके.’ वे आगे बताते हैं, ‘1997-98 के दौर में जिन सैकड़ों दलित परिवारों ने खोपिरा के आसपास से पलायन किया था उनमें से कई बीते कुछ वर्षों के दौरान वापस भी आ चुके थे. पर कुछ लोग अभी तक नहीं लौटे थे. अब वे आशंकित हैं और लौटना नहीं चाहते.’ हालांकि खोपिरा गांव में ही रहने वाले कुंदन कुमार सिंह, जो ब्रह्मेश्वर मुखिया के करीबी माने जाते हैं, इस बारे में बात करने पर कहते हैं, ‘यह हमें बदनाम करने की कोशिश है. मुखिया जी की रिहाई पर जश्न मनाना स्वाभाविक था. इससे किसी वर्ग में दहशत फैली होगी ऐसा हम नहीं मानते.’

अगर राजनीतिक दलों की बात करें तो लगभग सभी पार्टियां रणवीर सेना के प्रमुख की रिहाई से सकते में हैं. यहां तक कि विपक्षी दलों के साथ-साथ खुद सत्तारूढ़ जनता दल यू के दलित समुदाय से आने वाले नेता भी दबे स्वर में इस मामले में सरकारी रवैये को ही दोषी ठहरा रहे हैं. हालांकि वे राजनीतिक कारणों से खुल कर सामने नहीं आ रहे हैं. जनता दल यू के एक दलित नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘रणवीर सेना अगड़ी जातियों द्वारा संचालित उग्रवादी संगठन है और सरकार अगड़ी जातियों के प्रति वफादारी दिखाती रही है. ऐसी स्थिति में यह सोचा भी नहीं जा सकता कि सरकार ब्रह्मेश्वर के खिलाफ साक्ष्यों को उचित ढंग से अदालत में रखती. नतीजा सामने है.’ दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल के प्रधान महासचिव रामकृपाल यादव  कहते हैं, ‘हमारी पार्टी ब्रह्मेश्वर मुखिया की रिहाई को समाज के लिए खतरे की एक बड़ी आहट के रूप में देखती है. जिस व्यक्ति ने तीन सौ से ज्यादा दलितों और पिछड़ों के खून से होली खेली थी वह बाहर आ जाए, निर्दोष साबित कर दिया जाए यह नीतीश सरकार के लिए शर्मनाक है.’ यादव सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘सरकार ने अमीर दास आयोग को क्यों भंग कर दिया? इस आयोग ने भाजपा के बड़े नेता डॉ सीपी ठाकुर, सुशील कुमार मोदी और शिवानंद तिवारी के बारे में रिपोर्ट दी थी कि रणवीर सेना को इन नेताओं का संरक्षण प्राप्त था. कुछ इसी तरह की बात भाकपा (माले) और सीपीआई जैसी पार्टियां भी कह रही हैं.’

सीपीआई के प्रदेश सचिव बद्री लाल मानते हैं कि नीतीश सरकार ब्रह्मेश्वर सिंह को बचाने का हर संभव प्रयास करती रही है, पर साथ ही उनका यह भी कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों में ब्रह्मेश्वर सिंह हिंसा पर उतारू नहीं हो सकते. जबकि इसी बात पर माले के राज्य समिति के नेता संतोष सहर साफ कहते हैं कि ब्रह्मेश्वर सिंह के बाहर आ जाने के बाद भूमि और बटाईदारी कानून जैसे मुद्दों पर चल रहे उनके आंदोलन को दबाने की कोशिश होगी और यह भी संभव है कि रणवीर सेना इस मुद्दे पर हिंसक रुख अख्तियार कर ले.

सवाल यह है कि सीपीआई माले की आशंका किस हद तक सही साबित हो सकती है. भूमि और बटाईदारी जैसे मुद्दों पर पैनी नजर रखने वाले सत्यनारायण मदन, संतोष सहर की बातों को ब्रह्मेश्वर मुखिया के उस बयान की पृष्ठभूमि में देखने की कोशिश करते हैं जिसमें ब्रह्मेश्वर मुखिया तहलका से कहते हैं कि किसान परिवार को तोड़ने की कोशिश होगी तो वह इसका विरोध करेंगे. सत्यनारायण मदन कहते हैं, ‘ब्रह्मेश्वर मुखिया का कथन भले ही फिलहाल गंभीर न लगे पर आने वाले समय में किसानों और मजदूरों के बीच के संघर्ष की संभावना को नकारा भी नहीं जा सकता.’