इस बार छह पदक हासिल करके भले ही भारत ने ओलंपिक में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया हो लेकिन तकरीबन सवा अरब आबादी वाले इस देश में बहुतों को यह बात भी अखर रही है कि भारत एक भी स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया. एक-एक पदक के लिए भारत के संघर्ष को यहां के खेल संघों के खराब प्रशासन से जोड़कर देखने वालों की संख्या भी कम नहीं है. इस कमी को दूर करने के लिए पिछले तकरीबन दो साल से राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक लाने की कोशिश चल रही है लेकिन खेल संघों की राजनीति इसे आगे नहीं बढ़ने दे रही.
हालांकि, खेल संगठनों के कामकाज में सुधार के लिए 1989 में भी संविधान संशोधन विधेयक संसद में पेश किया गया था. इसमें कहा गया था कि खेलों को राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में लाना चाहिए ताकि केंद्र सरकार खेलों को सही ढंग से चलाने का काम कर सके. 2007 में अटॉर्नी जनरल ने यह राय दी थी कि हम खेलों को समवर्ती सूची में लाए बगैर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रतिनिधित्व को आधार बनाकर राष्ट्रीय खेल संघों के लिए कानून बना सकते हैं. इसके बाद 1989 का प्रस्ताव वापस लिया गया और उस समय से खेल मंत्रालय इस नए विधेयक का मसौदा तैयार करने में लगा है. नया कानून लाने की कोशिश पिछले साल की शुरुआत में तब तेज हुई जब अजय माकन को खेल मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया.
- पिछले साल राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक का मसौदा जारी हुआ था
- कानून बनने पर सभी संगठन आएंगे आरटीआई के दायरे में
- खेल प्रशासन में खिलाड़ियों की 25 फीसदी हिस्सेदारी सुनिश्चित होगी
खेलों के विकास के मकसद से आने वाली इस प्रस्तावित नीति में यह प्रावधान किया गया है कि देश के सभी खेल संगठनों को राष्ट्रीय खेल संगठन के तौर पर नए सिरे से मान्यता लेनी होगी. सभी खेल संगठन सूचना के अधिकार के तहत आएंगे. उन्हें अपने आय-व्यय का ब्योरा देना होगा. यह नीति कई स्तर पर पारदर्शिता बढ़ाने की बात करती है. खेल संघों के प्रशासन में खिलाड़ियों की 25 फीसदी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी. खेल संगठनों के पदाधिकारियों की चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की बात भी प्रस्तावित विधेयक में की गई है. पदाधिकारियों के लिए 70 साल की उम्र सीमा तय करने की बात भी प्रस्तावित नीति में है. एक स्पोर्ट्स ट्रिब्यूनल बनेगा जहां न सिर्फ खेल संघों के झगड़ों का निपटारा होगा बल्कि खिलाड़ी भी अपनी समस्याएं उठा पाएंगे.
इस विधेयक का पहला मसौदा पिछले साल फरवरी में जारी किया गया. इसके बाद विभिन्न पक्षों के सुझावों को शामिल करने के बाद एक और मसौदा तैयार हुआ. इसी मसौदे को पिछले साल अगस्त में केंद्रीय कैबिनेट के सामने पेश किया गया. लेकिन वहां से इसे संसद में पेश करने के प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिली और इसे वापस खेल मंत्रालय भेज दिया गया. कैबिनेट ने कहा कि इसमें अभी और सुधार की जरूरत है. जानकार बताते हैं कि खेल संघों से संबद्ध नेताओं के दबाव में ऐसा हुआ. कानून का रूप लेने के लिए इस विधेयक के मसौदे को बरास्ते केंद्रीय कैबिनेट संसद के दोनों सदनों से होकर गुजरना होगा.
-हिमांशु शेखर