बाघ अभयारण्यों में प्रतिबंधित पर्यटन

भारत के बाघ अभयारण्यों में पर्यटन को प्रतिबंधित करने से संबंधित सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या है?   

अक्टूबर 2010 के दौरान वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के खिलाफ सभी बाघ अभयारण्यों में जारी पर्यटन पर रोक लगाने की मांग मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से की थी. हाई कोर्ट ने जब अपील खारिज कर दी तब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2012 में मध्य प्रदेश के साथ-साथ देश के सभी बाघ अभयारण्यों में कोर और बफर क्षेत्र के नोटिफिकेशन से जुड़ी जानकारी मंगवाई. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उन अभ्यारण्यों को तीन महीने के भीतर कोर और बफर क्षेत्र नोटिफाई करने के आदेश दिए जहां अब तक नोटिफिकेशन नहीं हुआ था. 24 जुलाई, 2012 सुप्रीम कोर्ट ने अभयारण्यों में कोर क्षेत्र नोटिफाई नहीं करने वाले राज्यों पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए सभी बाघ अभयारण्यों में तत्काल प्रभाव से पर्यटन प्रतिबंधित करने का आदेश दिया. मध्य प्रदेश के अलावा आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड पर जुर्माना लगाया गया.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मध्य प्रदेश का पन्ना राष्ट्रीय बाघ अभयारण्य क्यों चर्चा में आया?

मध्य प्रदेश में कान्हा, सतपुड़ा, बांधवगढ़, पेंच और संजय टाइगर रिजर्व पहले से ही नोटिफाई हैं. लेकिन मध्य प्रदेश सरकार सिर्फ पन्ना में कोर क्षेत्र घोषित करने से कतरा रही थी. वन्यजीव कार्यकर्ताओं और सुप्रीम कोर्ट के दबाव में नौ अगस्त, 2012 को पन्ना को भी नोटिफाई कर दिया गया. कोर क्षेत्र को चिह्नित किए जाने की धीमी प्रक्रिया पर वन्यजीव कार्यकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार खनन माफिया और रेसोर्ट मालिकों को लाभ पहुंचाने के लिए पन्ना में बफर क्षेत्र नोटिफाई करने से बचती आ रही थी. 

आगे इस मामले से जुड़े अहम मुद्दे क्या होंगे?

22 अगस्त, 2012 को होने वाली इस अगली सुनवाई तक सभी राज्य अपने-अपने प्रदेशों में संचालित वन्य पर्यटन का विस्तृत ब््योरा देने के साथ ही राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण द्वारा निर्धारित गाइड लाइन पर अपनी आपत्तियां दाखिल करेंगे.

-प्रियंका दुबे