राम भरोसे अवाम

पटना में छठ पूजा के दौरान हुए हादसे के बाद उठी चीत्कार गंगा किनारे अदालतगंज घाट से लेकर पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल तक का रास्ता तय करते हुए मृतकों के घरों में सिमटने लगी है. अब 20 से अधिक लोगों की मौत पर सियासत का दायरा बढ़ता जा रहा है. लेकिन इस सबके बीच जरूरी सवाल दफन होने की राह पर हैं.

 19 नवंबर को छठ पूजा के अस्ताचलगामी अर्घ्य के दौरान घटना हुई. पहले कहा गया कि कि लकड़ी के बने अस्थायी पुल के टूट जाने से भगदड़ मची और ज्यादातर बच्चे तथा महिलाएं इसकी चपेट में आकर जान गंवा बैठीं. फिर तुरंत कहा गया कि नहीं, ऐसा नहीं है, बिजली के तार के टूट कर गिर जाने से भगदड़ मची. यह भी कहने की कोशिश हुई कि लोग तो बेमतलब डरकर जान-प्राण गंवा बैठे. भीड़ के चाल-चरित्र को दुनिया जानती है. बिहार में उस चाल-चरित्र को ही जिम्मेदार मानने की कवायद हुई, लेकिन सरकार के खिलाफ मुर्दाबाद की नारेबाजी और शासन-प्रशासन के खिलाफ उभरे त्वरित आक्रोश ने ऐसा कहने-करने से रोक दिया. प्रशासन ने कहा 14 मरे, देखनेवालों ने देखा कि 18 मरे. पटना मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर अपने पुराने अंदाज में सेवा देते रहे. पांच जो जिंदा थे, उन्हें मरा हुआ कहकर इलाज से बेदखल कर लाश की श्रेणी में रख दिया गया. बाद में जिंदा मान इलाज शुरू हो सका. घटना के फौरन बाद राजद के मुखिया लालू प्रसाद ने बयान दिया कि सरकार इस्तीफा दे. उनके सहयोगी व राज्यसभा सांसद रामकृपाल यादव ने कहा कि सरकार की लापरवाही की वजह से हादसा हुआ, मुख्यमंत्री इस्तीफा दें. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रात करीब 11 बजे प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि पुल टूटने से हादसा नहीं हुआ, गृह सचिव जांच कर रहे हैं, उचित कार्रवाई होगी. मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख का मुआवजा देने की भी बात कही.

 19 नवंबर की रात यह सब होता रहा, 20 की सुबह अदालतगंज घाट में पुलिस की पहरेदारी के बीच मातमी सन्नाटा पसरा रहा. पटना के दूसरे हिस्सों में अहले सुबह छठव्रतियों ने पूजा संपन्न की. जो पटनावासी हैं, उनका कहना है कि छठ के दौरान लाखों की भीड़ हर साल जुटती है लेकिन ऐसी घटना पहली बार हुई है.

छठ पूजा के दौरान मची भगदड़ में 18 जानें जा चुकी हैं. फोटो:आफताब आलम सिद्दकी

संभव है कि गृह सचिव की जांच से यह बात सामने आ जाये कि हादसा हुआ कैसे. बिजली का तार गिरने से या पुल के टूटने से. यह भी संभव है कि कुछ लोगों पर कार्रवाई हो भी जाए. संभव है, कुछ यह भी समझाने लगें कि भीड़ और भगदड़ का पुराना संबंध रहा है और मेले-रेले में ऐसे हादसे देशभर में होते रहते हैं, सो इसमें सरकार-प्रशासन क्या कर सकता था? लेकिन इस हादसे के इर्द-गिर्द मूल सवाल दूसरे किस्म के हैं जिन पर गौर किया जाना चाहिए. जिनका जवाब मांगा जाना चाहिए और दिया जाना चाहिए. यह जवाब सरकार को भी देना चाहिए और सरकार के इस्तीफे की मांग से लेकर तमाम तरह की तोहमतें मढ़ रहे लालू प्रसाद जैसे नेताओं को भी, जिनकी कमान में करीब 15 साल तक सत्ता चलती रही है.

यह हर कोई जानता है कि आज छठ ही बिहार का सबसे बड़ा लोकपर्व-महापर्व है. छोटे-बड़े शहरों में छठ के दौरान नागरिक समुदाय अपने स्तर पर इसके लिए खास इंतजाम करता है. बिहार की सरकारें जानती रही हैं कि दिन-ब-दिन इस महापर्व से लोगों का जुड़ाव बढ़ता जा रहा है. सवाल उठता है कि इस महापर्व के बढते दायरे को देखते हुए नीतीश सरकार या पूर्ववर्ती सरकारों ने क्या ऐसे खास इंतजाम करने की कोशिश की. पटना में गंगा पिछले एक दशक से ज्यादा समय से चार-पांच किलोमीटर दूर खिसक चुकी है. तमाम किस्म की मुश्किलों के बावजूद जीवट छठव्रत्ती लाखों की संख्या में गंगाघाट पहुंचकर ही पर्व करते हैं. तो फिर उचित इंतजाम के नाम पर गंगा तक पहुंचने के लिए कुछ जगमगाती बत्तियां लगा देना और मिटटी की भराई कर देना या लकड़ियों का पुल बना देना ही काफी है? ऐसा तो हर इलाके में कुछ नौजवान भी स्थानीय चंदे से कर लेते हैं. पटना को छोड़ भी दें तो बिहार के औरंगाबाद जिले में देव सूर्य मंदिर छठ का एक महत्वपूर्ण और चर्चित स्थल है. वहां भी भारी भीड़ में जुटती है छठ के मौके पर. क्या वहां की व्यवस्था और वहां पहुंचनेवाले लोगों की सुविधाओं का खयाल उस तरीके से या उस स्तर पर जाकर कभी किसी सरकार ने रखा, जिसकी जरूरत वहां सालों से महसूस की जाती है.

छठ को छोड़ भी दें तो बिहार में दो और धार्मिक आयोजन बेहद खास होते हैं, जिसमें लाखों की आबादी हर साल जुटती है. पहला है गया का पितृपक्ष मेला. गया में पिंडदान के लिए हर साल करीब 15 लाख लोग पहुंचते हैं लेकिन वहां की बदइंतजामी से हर कोई वाकिफ है. दूसरा महत्वपूर्ण आयोजन पटना के उस पार सोनपुर के सालाना मेले का भी है. छठ, पितृपक्ष और सोनपुर का माघी मेला, बिहार के तीन ऐसे महत्वपूर्ण आयोजन हैं जिनसे भले ही सरकारी खजाने में बड़े राजस्व की प्राप्ति नहीं होती हो पर ये दुनिया भर में बिहार की ब्रांडिंग बड़े फलक पर करते हैं. लेकिन इन तीनों आयोजनों में सरकारों की रुचि उस कदर कभी नहीं रही, जैसी रुचि बोधगया में रहती है, या अभी चंपारण के केसरिया में अंकोरवाट मंदिर का रेप्लिका बनाने में है. बाकी  राजद और जदयू को छोड़ दें तो भाजपा जैसी पार्टी के नेता, जो रोज बयानों के बाण चलाते हैं, उनकी भी जितनी रुचि पिछले साल सिमरिया में लगाये गये जबरिया कुंभ में रही, वैसी कभी छठ, माघी मेला या पितृपक्ष को लेकर नहीं रही.