राजनीति के शिकार खिलाड़ी

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’   

खिलाडिय़ों पर इन दिनों राजनीति भी हो रही है और खिलाड़ी राजनीति का शिकार भी हैं। महिला खिलाडिय़ों की दशा पर कोई आँसू बहा रहा है, तो कोई उनके ख़िलाफ़ अनर्गल भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। परन्तु खिलाडिय़ों को न्याय दिलाने के लिए न तो हरियाणा सरकार ने अभी तक कोई क़दम उठाया है तथा न ही केंद्र सरकार ने अभी तक खिलाडिय़ों को न्याय दिलाने की कोई बात कही है। यह भाजपा की ढीठता का एक और ऐसा प्रमाण है, जिस पर उसे लोगों की निंदा को बिना तिलमिलाये स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बृजभूषण शरण सिंह पर एफआईआर तो हो गयी; परन्तु जाँच में क्या होगा? इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। इसकी वजह दिल्ली पुलिस पर कोई शक नहीं, बल्कि भाजपा नेताओं के ख़िलाफ़ अब तक कार्रवाइयाँ न होना है। अपने लोगों के ख़िलाफ़ अपराध के तमाम आरोप और सुबूत होने के बावजूद ज़िन्दा मक्खी निगल जाना भाजापा का चरित्र रहा है। इसके कई उदाहरण हैं, जिसमें ताज़ा उदाहरण है- लखीमपुर खीरी में अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के द्वारा किसानों की हत्या, जिसमें दोषसिद्धि के बावजूद उसे ज़मानत मिल गयी और आज भी वह आज़ाद घूम रहा है।

इस बार मामला महिला खिलाडिय़ों से दुष्कर्म का है। सोचिए, इन महिला खिलाडिय़ों को न्याय दिलाने के लिए जिस तरह संघर्ष करना पड़ रहा है, जिस तरह इनके पक्ष में लोगों को खड़ा होना पड़ रहा है, न्याय माँगने के लिए इसकी ज़रूरत ही क्यों पड़ी? इसका अर्थ तो यह हुआ कि अगर सुप्रीम कोर्ट दख़ल नहीं देता, तो आरोपी के ख़िलाफ़ कुछ नहीं होता। अब जिस प्रकार बृजभूषण सिंह की तिलमिलाहट दिख रही है, वह पहले क्यों नहीं दिखी? क्योंकि आरोपी को पता था कि उसका कुछ नहीं होगा। वास्तव में भाजपा अपने आपराधिक प्रवृत्ति के क़द्दावर नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में जिस तरह बचती है, उसे कौन उचित कहेगा? बात सिर्फ़ उन महिला खिलाडिय़ों के शारीरिक शोषण की ही नहीं है, जो कि अब भाजपा के सांसद के ख़िलाफ़ जंतर-मंतर पर बैठी हैं, बल्कि भारत के उन सभी खिलाडिय़ों के शोषण, विशेषकर महिला खिलाडिय़ों के शारीरिक शोषण की भी है, जो जिनका शिकार राजनीतिक लोग कर रहे हैं। इस राजनीति का शिकार होकर न जाने कितनी ही भारतीय प्रतिभाएँ मर जाती हैं।

आज भारत में ऐसी खिलाडिय़ों की कोई कमी नहीं है, जो खेल प्रदर्शन से अपनी प्रतिभा का लोहा विश्व भर में मनवा सकते हैं, परन्तु उन्हें जातिवाद, धर्मवाद, अवसरवाद, धन का अभाव तथा संसाधनों की कमी पीछे धकेल देती है। जो आगे निकलना चाहते हैं, उनमें से अधिकतर को अपमान या शोषण का शिकार होना पड़ता है। अधिकतर महिला खिलाडिय़ों को शारीरिक शोषण का शिकार बना दिया जाता है। महिला खिलाडिय़ों के साथ हुए शोषण के ऐसे बहुत से मामले सामने आये हैं, जिन्हें या तो दबा दिया गया या फिर उनमें ठीक से न्याय नहीं मिला। कुश्ती महिला खिलाडिय़ों की ही एफआईआर कितनी मुश्किल से सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद दर्ज हुई है?

क्रिकेट की महिला खिलाडिय़ों के मामले में भी शोषण की ख़बरें पहले भी आती रही हैं। आरोप रहे हैं कि बड़ी प्रतिभा के होते हुए भी शारीरिक शोषण न कराने पर कई महिला खिलाड़ी पदक जीतकर भी आगे नहीं बढ़ सकीं; क्योंकि ऐसी महिलाओं को मौक़े ही नहीं मिलते। अगर भारत की सभी खेल प्रतिभाओं को सही और बिना भेदभाव के मौक़े दिए जाएँ, तो भारत से हर खेल क्षेत्र में स्वर्ण से लेकर अन्य पदक लाने वाली प्रतिभाओं की कमी न हो; परन्तु भेदभाव, ग़रीबी, खेल संसाधनों की कमी तथा राजनीति लोगों और पूँजीपतियों का हस्तक्षेप के चलते भारतीय खेल प्रतिभाएँ आगे नहीं बढ़ पातीं। भारत खेल प्रतिभा में पूरे विश्व से आगे हो सकता है; परन्तु राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाले तथा पैसा कमाने के लालची लोग अपने ही देश के युवाओं की प्रतिभा को दबाकर देश का बड़ा भारी नुक़सान करने में लगे हैं।

ये भारत का दुर्भाग्य ही है कि आज हर ऐसे क्षेत्र में राजनीतिक और पूँजीपति लोग कुंडली मारकर बैठे हैं, जिस क्षेत्र में पैसा है। खेल में अथाह पैसे की बरसात के चलते राजनीतिक लोग तथा चंद पूँजीपति इस क्षेत्र में दख़लंदाज़ी करने को आतुर हैं। ये लोग केवल खेल क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि दूसरे ऐसे सभी क्षेत्रों पर कुंडली मारे बैठे हैं, जिनमें विकट कमायी है। इसलिए खेल, फ़िल्म, कला और राजनीति जैसे क्षेत्रों को पूरी तरह प्रतिभा प्रदर्शन के आधार पर चयन के लिए स्वतंत्र कर देना चाहिए, जिसमें किसी भी तरह के भेदभाव और भाई-भतीजावाद के लिए कोई जगह न हो। जब तक ऐसा नहीं होगा, भारत में न तो इन क्षेत्रों में सबसे बेहतरीन प्रतिभाएँ अपनी पहचान बना पाएँगी तथा न निष्पक्ष रूप से बेहतरीन प्रतिभाओं को मौक़े मिल सकेंगे।

यह सीख हमें इंडियन आइडल और डांस इंडिया डांस जैसे टीवी कार्यक्रमों से लेनी चाहिए, जहाँ ग़रीब-अमीर, सभी को बिना किसी की जाति या धर्म देखे मौक़ा दिया जाता है। भारत में ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें किसी कला में महारत हासिल है, परन्तु उन्हें मौक़े नहीं मिलते। उनमें कमी है, तो फ़क़त इतनी कि वे किसी ऐसी आवश्यकता को पूरा नहीं कर पाते, जो इन क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा जमाये बैठे हैं। अर्थात् या तो ग़रीब हैं या उनकी पहुँच ऊपर तक नहीं है या जातिगत-धर्मगत आधार पर फिट नहीं बैठते या समझौता नहीं करते या किसी को गिराकर आगे नहीं निकलना चाहते। इसके साथ ही जो भी खिलाड़ी पदक जीतकर आएँ, तो बिना किसी भेदभाव के सभी को एक समान सम्मान एवं पुरस्कार प्रदान किये जाने चाहिए। अब तक देखा जाता है कि जब कोई सवर्ण खिलाड़ी कोई पदक जीतकर लाता है, तो उसे करोड़ों रुपये पुरस्कार स्वरूप दिये जाते हैं, परन्तु जब कोई निम्न या ग़रीब वर्ग का खिलाड़ी वही पदक जीतकर लाता है, तो उसे न तो उतनी पुरस्कार राशि दी जाती है, जितनी सवर्ण खिलाड़ी को मिलती है तथा न ही वो सम्मान दिया जाता है, जो सवर्ण खिलाड़ी को दिया जाता है। यह भेदभाव खिलाडिय़ों के ही नहीं, बल्कि देशवासियों के बीच भी भेदभाव की एक और खाई बना रहा है।

आज खेल जगत में ताक़तवर लोग कितने हावी हो चुके हैं, इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि जो खिलाड़ी जंतर-मंतर पर न्याय के लिए बैठे हैं, उनके घरों की बिजली और पानी की सप्लाई रोक दी गयी। जबकि होना तो यह उसके साथ चाहिए था, जो आरोपी है। इससे पता चलता है कि आज के दौर में हम भारतीय सत्ताओं से तब तक नहीं लड़ सकते, जब तक अधिकतर लोग एकजुट होकर इनके विरोध में खड़े न हो जाएँ। हरियाणा की महिला पहलवानों के साथ जिस प्रकार का कथित शोषण का मामला सामने आया है, उसे लेकर सत्ता पक्ष के एक भी नेता ने यह नहीं कहा है कि यह ग़लत है और इसमें निष्पक्ष जाँच होगी। बृजभूषण सिंह ने भी चुप्पी तब तोड़ी है, जब उनके सामने एफआईआर और जाँच की प्रक्रिया दिखायी दे रही है। महिला खिलाडिय़ों का आरोप है कि उन्हें धमकियाँ दी जी रही हैं।

अब दिल्ली पुलिस की जाँच टीम की जाँच सामने आने पर पता चलेगा कि सच्चाई क्या है? बशर्ते जाँच टीम पर किसी प्रकार का राजनीतिक दबाव नहीं होना चाहिए। परन्तु सवाल यह है कि क्या यह मुमकिन है? जिस पार्टी का रिकॉर्ड हमेशा अपने नेताओं को बचाने का रहा है, उस पार्टी के बड़े नेता अपने मातहतों को न बचाएँ, इस पर तब तक भरोसा नहीं किया जा सकता, जब तक अब तक दा$गी इस पार्टी के सभी नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई न हो। रही बृजभूषण सिंह की बात, तो इस मामले में भी खिलाडिय़ों को अभी पूरा भरोसा नहीं है कि उन्हें न्याय मिल सकेगा, यही वजह है कि महिला खिलाड़ी खाप पंचायतों से अपने साथ आने की गुज़ारिश कर रही हैं।

हालाँकि सुप्रीम कोर्ट की वजह से खिलाडिय़ों को भरोसा है कि उन्हें न्याय मिल सकता है। देश की माँग है कि राजनीतिक ताक़त की शिकार हो चुकी महिला खिलाड़ी अब राजनीति की शिकार नहीं होनी चाहिए। अब उन्हें न्याय मिलने में राजनीति हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। क्योंकि अभी तक पार्टी द्वारा अपनी ओर से न भारतीय कुश्ती संग के अध्यक्ष पद से बृजभूषण सिंह का इस्ती$फा माँगा गया है तथा न ही अपने इस नेता की संसदीय सदस्या छीनी है। अपने पार्टी नेता के ख़िलाफ़ कोई क़दम न उठाना आरोपी के बचाव की तस्वीर को साफ़-साफ़ दर्शा रहा है। अगर नहीं, तो सवाल उठता है कि आख़िर अभी तक पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अपने आरोपी नेता को अभी तक पार्टी से क्यों नहीं निकाला। जबकि इसी पार्टी के नेता तथा कार्यकर्ता किसी दूसरी पार्टी के नेता पर मामूली-सा आरोप लगने पर उसका इस्ती$फा माँगने लगते हैं, हंगामा खड़ा कर देते हैं तथा उसे जेल भेजने की माँग करने लगते हैं। फिर अब इतनी $खामोशी किसलिए? जबकि बृजभूषण शरण सिंह के दाऊद से रिश्तों की चर्चा भी है। आरोपी नेता की हिम्मत देखिए कि वह उन नेताओं पर भडक़ रहा है, जो खिलाडिय़ों के साथ खड़े हो रहे हैं। यह वही बृजभूषण सिंह हैं, जिन्होंने अपनी परेशानी बताने पर एक किशोर कुश्ती खिलाड़ी पर थप्पड़ों की बरसात कर दी थी।

खिलाडिय़ों के पक्ष में उतरे लोगों का कहना है कि ईमानदारी और इंसाफ़ की त$ख्ती गले में लटकाकर घूमने वाले बृजभूषण सिंह की पार्टी के नेता ऐसे मामलों पर कभी नहीं बोलते, जो उनकी पार्टी के किसी नेता के ख़िलाफ़ हों। ऐसे में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को जनता के सामने आना चाहिए तथा कहना चाहिए कि बृजभूषण सिंह को कम-से-कम तब तक पार्टी से निष्कासित किया जाता है, जब तक कि वह निर्दोष साबित नहीं हो जाते। पार्टी को यह भी सार्वजनिक रूप से कहना चाहिए कि पुलिस निष्पक्ष जाँच करे, उसमें सत्ता या पार्टी की कोई दख़लंदाज़ी नहीं होगी। इसके अतिरिक्त पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को नैतिकता दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट के $फैसले की सराहना भी करनी चाहिए। साथ ही ऐलान कर देना चाहिए कि जो भी भाजपा या कार्यकर्ता बृजभूषण सिंह का साथ देगा, उसे भी पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा। क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ऐसा करने की हिम्मत दिखाएगा? इसके लिए उसे निष्पक्ष तथा ईमानदार होना पड़ेगा।