डा. चैतन्य प्रकाश की पुस्तक ‘विषयांतर’ पिछले 10 वर्षों में विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेखों का संकलन है जिसमें सामाजिक, राजनीतिक, कला, साहित्य, आध्यात्म आदि पर लिखे लेख शामिल हैं. यह संग्रह साहित्यिक पत्रकारिता की दिशा में महत्वपूर्ण पड़ाव है. पुस्तक आध्यात्म की जमीन से उपजे विचारों की बात करती है. परंतु इसको आधुनिक संदर्भों से भी खूब समर्थन प्राप्त है. पुस्तक उलटबांसियों में बात करती हुई अपने समय, व्यक्तित्वों और घटनाओं की चीरफाड़ करती है. संकलन की विशेषता इसकी देशज पृष्ठभूमि है. भाषा और विचारों को जिस कलम से लेखक ने छुआ है वह अज्ञेय, विद्यानिवास मिश्र और निर्मल वर्मा की सहज याद दिलाती है. यहां पुस्तक में वर्णित दो-एक विषयों की चर्चा करना समीचीन होगा. अन्ना हजारे के आंदोलन के अंतरविरोध और उसके मूल महत्वाकांक्षी राजनीतिक स्वरूप पर डॉ. चैतन्य प्रकाश ने सितंबर 2011 में जो लिखा है वह आज के समाज और राजनीति पर गहरी टिप्पणी है और उससे अरविंद केजरीवाल फिनोमिना को समझने में मदद मिल सकती है. ‘क्या सचमुच यह व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई की धमाकेदार शुरुआत है? क्या यह जनसक्रियता का शानदार आगाज है या उत्तर आधुनिक समाज की तमाशाई प्रवृत्ति का नमूनाभर है? क्या यह एनजीओ बिरादरी के कुशल प्रबंधन का एक उदाहरण है या राजनीतिक दलों, नेताओं के प्रति जनता के मन में उपज रहे विकर्षण, विरोध, रोष और अविश्वास की सशक्त सार्वजनिक अभिव्यक्ति है? इन सवालों के बीच में भारत की सार्वजनिकता के एक नए पड़ाव की आहट सुनी जा सकती है।
‘क्या स्कूल जाना जरूरी है लेख राजेश जोशी की कविता के इस पाठ से शुरू होता है- बच्चे काम पर जा रहे हैं. वे लिखते हैं– “एक शताब्दी पहले विचारक-लेखक अज्ञेय के उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी की एक पंक्ति बरबस याद आती है- शेखर स्कूल नहीं गया, इसलिए वह व्यक्ति बना, टाइप नहीं बना. आपने कभी बच्चों की नजर से स्कूल देखा है. मध्यांतर में या पूरी छुट्टी के बाद स्कूल के गेट के बाहर पूरी ताकत से दौड़ते बच्चों को देखा है? सुबह, सवेरे स्कूल जाते बच्चों के सूने, सपाट और सहमे चेहरे को देखा है? अगर इन सवालों का जवाब आपके भीतर हां के रूप में आ रहा है तो नादानी की मिसाल कहे जा सकने वाले इस सवाल को आप शिद्दत से महसूस कर सकते हैं- क्या स्कूल जाना जरूरी है? पुस्तक अपनी मौलिकता, दर्शन की जमीन, आध्यात्म की खाद, समय की धड़कन को समझने के लिए महत्वपूर्ण है.