आप जन लोकपाल आंदोलन में शामिल हैं. फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ सत्याग्रह करने की क्या जरूरत है?
इस मामले पर मीडिया में कुछ भ्रम रहा है जिसे दूर किया जाना जरूरी है. हम पिछले पांच साल से काम कर रहे हैं. दिल्ली में हुए एक अनशन को आंदोलन नहीं माना जा सकता. मैं हर रोज दो लाख लोगों को संबोधित करता हूं. मेरे रोजाना शिविर भी भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान के हिस्से हैं.
आप किन मांगों को लेकर चार जून से अनशन पर बैठने जा रहे हैं?
पहली मांग तो यह है कि विदेशों में जमा भारत के पैसे को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए. विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने को राष्ट्र के खिलाफ अपराध की श्रेणी में डाला जाए. वहीं विदेशों में जमा पैसे को भारत वापस लाया जाए. इन मांगों के साथ मैं अनशन पर बैठने वाला हूं.
क्या आपने ये मांगे पहले सरकार के सामने उठाई हैं?
जी हां, मैंने 27 फरवरी को दस करोड़ लोगों के दस्तखत वाली चिट्ठी प्रधानमंत्री को भेजी थी. मैंने कहा था कि इन मांगों को माना जाना चाहिए नहीं तो बड़े स्तर पर देशव्यापी आंदोलन होगा. मुझे इसका कोई जवाब नहीं मिला.
आपने कहा है कि आपका भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान अहिंसक सत्याग्रह के रूप में होगा?
हां
पर दूसरी तरफ आप भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने वाले लोगों को फांसी पर लटकाने की मांग करते हैं. क्या यह अहिंसा के खिलाफ नहीं है?
देखिए, ये वे लोग हैं जो भारत में हर घंटे हो रहे दो किसानों की खुदकुशी के लिए जिम्मेदार हैं. भारत में हर साल 20,000 किसान आत्महत्या कर रहे हैं. यानी पिछले दस साल में भारत में तकरीबन दो लाख किसानों ने आत्महत्या की है. हर साल 70 लाख लोग भूख और कुपोषण जैसी समस्याओं से काल के गाल में समा जाते हैं. इसके लिए कहीं न कहीं भ्रष्टाचार ही जिम्मेदार है और इसके जरिए उगाहा जाने वाले पैसा विदेशी बैंकों में जमा किया जा रहा है. मैं इस बदहाली के लिए भ्रष्ट अधिकारियों को जिम्मेदार मानता हूं.
मौत की सजा के खिलाफ तर्क दिया जाता है कि आमतौर पर किसी को दोषी ठहराने के लिए शत प्रतिशत साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते. अगर किसी निर्दोष व्यक्ति को सजा मिल जाती है तो इस गलती को सुधारने का कोई अवसर नहीं बचता.
भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में हम लोग कुछ ज्यादा ही सावधानी दिखा रहे हैं. मैं यह कहां कह रहा हूं कि जो दोषी नहीं हैं, उन्हें भी मौत की सजा दे दो? हर साल देश के 70 लाख लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार और भ्रष्ट लोगों के खिलाफ हम कुछ ज्यादा ही उदारता दिखा रहे हैं.
आपके ये सारे बयान राजनीतिक हैं. इसके बावजूद आप लगातार कह रहे हैं कि आप गैर राजनीतिक हैं. आखिर ऐसा कैसे हो सकता है?
मेरी राजनीतिक दृष्टि साफ है. न तो मैं दो तरह की बात कर रहा हूं और न ही मैं गोलमोल जवाब दे रहा हूं. व्यवस्था बदलने के दो रास्ते हैं. एक तो यह है कि आप राजनीति में सीधे उतरें. वहीं दूसरा रास्ता यह है कि आपके द्वारा बनाए गए माहौल से सरकार पर लोगों का इतना दबाव बढ़े कि व्यवस्था जिम्मेदारी से काम करने लगे.
राजीव दीक्षित और गोविंदाचार्य जैसे लोगों से आप जुड़े रहे हैं. ये संघ परिवार के नजदीकी रहे हैं. ऐसे में संघ परिवार की राजनीति के बारे में आप क्या सोचते हैं?
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब मैं देवबंद जाता हूं तो मीडिया में इसके बारे में खबर नहीं आती. मनमोहन सिंह से मैं कई बार मिला लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. जब मैंने राहुल गांधी से घंटों बातचीत की तो भी किसी ने ध्यान नहीं दिया. प्रियंका गांधी और मौलान महमूद मदनी से मेरी मुलाकात को भी भाव नहीं दिया गया. मेरी समझ में यह नहीं आता कि आखिर मुझे क्यों संघ परिवार का नजदीकी माना जाता है. मैं आध्यात्मिक गुरू हूं लेकिन सांप्रदायिक नहीं.
हर राजनीतिक दल में अच्छे और बुरे लोग हैं. वैसे, मोटे तौर पर मैं यह कहूंगा कि भ्रष्टाचार के लिए कांग्रेस सबसे अधिक जिम्मेदार है. क्योंकि इस पार्टी ने सबसे अधिक राज किया है.
क्या आप संघ परिवार को सांप्रदायिक कह रहे हैं?
मैं किसी को सांप्रदायिक नहीं कह रहा. मैं अपने बारे में बात कर रहा हूं और मैं सांप्रदायिक नहीं हूं.
अभी की राजनीति में आपकी विचारधारा के करीब कौन है? आपके हिसाब से भ्रष्टाचार के लिए सबसे अधिक कौन जिम्मेदार है?
हर राजनीतिक दल में अच्छे और बुरे लोग हैं. वैसे, मोटे तौर पर मैं यह कहूंगा कि भ्रष्टाचार के लिए कांग्रेस सबसे अधिक जिम्मेदार है. क्योंकि इस पार्टी ने सबसे अधिक राज किया है.
अगर विदेशों में जमा काला धन इसी भ्रष्ट व्यवस्था में वापस आता है तो यह लोगों तक आखिर कैसे पहुंचेगा?
इसी वजह से व्यवस्था बदलने की जरूरत है. इसका सबसे बड़ा समाधान तो यही है कि हर व्यक्ति सुबह-सुबह योग करे और ध्यान लगाए. अगर कोई हर रोज अपने शरीर और दिमाग पर काम करता है तो उसके विचारों में इतनी शुद्धता आएगी कि वह किसी और को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहेगा. समाज के आध्यात्मिक स्तर को सुधारना बदलाव का अहम जरिया है.
क्या आपको यह नहीं लगता कि व्यवस्था को साफ करने का आपका ढंग कुछ ज्यादा ही सरल है?
योग तो बदलाव की प्रक्रिया का एक हिस्सा है. दूसरा काम है आध्यात्मिक शिक्षा का. अभी हमारे साथ एक करोड़ कार्यकर्ता काम कर रहे हैं.
ये कार्यकर्ता कर क्या रहे हैं?
ये गांव-गांव जाकर योग का प्रशिक्षण दे रहे हैं और लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग बना रहे हैं. इसके जरिये हमारी कोशिश है कि लोग आत्म अनुशासन, आत्म विश्वास और ईमानदारी पर काम करें.
अगर आप देश को समस्यामुक्त बनाने की लड़ाई लड़ रहे हैं तो फिर आप राजनीति में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल होने से इनकार क्यों करते हैं? इसमें आखिर क्या बुराई है?
इसमें कोई बुराई नहीं है. पर व्यवस्था को साफ करने के दो तरीके हैं. या तो राजनीति में सीधे शामिल हों या लोगों के बीच काम कर सामाजिक बदलाव लाएं. अगर मेरे पास जनता का समर्थन है तो फिर में कम क्षमता वाला रास्ता क्यों अपनाऊं.
क्या बाबा रामदेव कभी भी सक्रिय राजनीति में नहीं उतरेंगे?
स्वामी रामदेव कभी भी सक्रिय राजनीति में नहीं उतरेगा. यह मेरा संकल्प है.
क्या आप किसी राजनीतिक दल को समर्थन देने के करीब हैं?
यह अनसुलझा सवाल है. मैं अपनी मांगें रख रहा हूं. जो भी इनका समर्थन करेगा या इसके लिए काम करेगा उसे फायदा मिलेगा.
देश में हो रहे धर्मांतरण पर आपकी क्या राय है?
यह बेहद पेचीदा मामला है. मैं धर्मांतरण के पक्ष में नहीं हूं. मैं लोगों के विचार और उनकी जिंदगी बदलने में यकीन करता हूं. लोगों का धर्म बदलने में मैं यकीन नहीं करता.
पर धर्मांतरण के नाम पर देश में काफी हिंसा हुई है. ग्राहम स्टेंस को उड़ीसा में जिंदा इसलिए जला दिया गया क्योंकि कुछ लोगों को लगता था कि वे धर्मांतरण में शामिल थे.
मैंने कहा न कि मैं धर्मांतरण के पक्ष में नहीं हूं. इसके साथ ही मैं धर्मांतरण के नाम पर होने वाली हिंसा को भी सही नहीं मानता.
आपने कहा कि आप धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा के खिलाफ हैं तो आयोध्य में बाबरी मस्जिद को तोड़े जाने को आप क्या कहेंगे? क्या वहां राम मंदिर बनना चाहिए?
अदालत ने इस मामले में फैसला दिया है और इस फैसले पर कुछ नहीं कहूंगा. पर अदालत ने यह भी कहा कि एक मंदिर बनना चाहिए. मैं भी ऐसा मानता हूं. मैंने देश भर के मुसलमानों से बात की है. इनमें आम से लेकर खास तक और धर्म गुरू भी शामिल हैं. इन सभी का कहना है कि मंदिर बनने से इन्हें कोई समस्या नहीं है. इन लोगों का कहना है कि इन्हें सिर्फ समस्या उन लोगों से है जो मंदिर के नाम पर हिंसा फैला रहे हैं.
मुसलमान यह भी कहते हैं कि भले ही वे भगवान राम की पूजा नहीं करते हों लेकिन राम उनके भी पूर्वज हैं. जिस तरह से इस देश के हिंदू भगवान राम को अपना मानते हैं, उसी तरह मुसलमान भी मानते हैं.
क्या आप कह रहे हैं कि मंदिर बनाए जाने से मुसलमानों को कोई समस्या नहीं है?
इस देश के मुसलमान भी इस बात पर सहमत हैं कि बाबर का जन्म अयोध्या में नहीं हुआ था जबकि राम का जन्म यहीं हुआ था. मुसलमान यह भी कहते हैं कि भले ही वे भगवान राम की पूजा नहीं करते हों लेकिन राम उनके भी पूर्वज हैं. जिस तरह से इस देश के हिंदू भगवान राम को अपना मानते हैं, उसी तरह मुसलमान भी मानते हैं. अगर हिंदू और मुसलमान दोनों मंदिर चाहते हैं तो अंततः ऐसा ही होगा. हिंदू और मुसलमान दोनों ही हिंसा के खिलाफ हैं.
पर मंदिर बनाने का रास्ता साफ करने के लिए बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी?
मुझे इस मसले पर जो भी कहना था, मैंने कह दिया. अब मैं इस पर कुछ और नहीं कहूंगा.
समलैंगिकता पर अपने विचारों के लिए भी आप विवाद में रहे हैं.
मैं समलैंगिकता को अप्राकृतिक और मानसिक विकार मानता हूं. यह एक बुरी आदत है. कई लोगों को बुरी चीजों की लत लग जाती है. मैंने इस मसले पर सारे वैज्ञानिक शोध पढ़े हैं और इसके बाद ही मैं इस विषय पर आपसे बात कर रहा हूं.
एक बार फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ आपके अभियान पर लौटते हैं. आपने कहा कि संतोष हेगड़े आपके अनशन का समर्थन कर रहे हैं और उन्होंने कहा कि वे अनशन नहीं करेंगे. आखिर मामला क्या है?
संतोष हेगड़े मेरा समर्थन कर रहे हैं और वे हमारे साथ रहेंगे. मैंने अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे से भी बात की है और इन लोगों ने भी कहा है कि वे पूरी तरह से मेरे साथ हैं.
आपने योग का प्रशिक्षण लिया है. आपने सामाजिक और राजनीति सुधारों में दिलचस्पी लेना कब शुरू किया?
मैं बचपन से ही सुधारों में दिलचस्पी लेता था. पर उस वक्त मुझे यह पता नहीं था कि इसका स्वरूप क्या होगा. जब मैं नौ साल का था तब से ही मुझे यह लगता रहा है कि शिक्षा व्यवस्था को बदले जाने की जरूरत है. उसी समय मैं घर से भागा था, औपचारिक स्कूली शिक्षा छोड़ी थी और गुरूकुल में आ गया था. सामाजिक और राजनीतिक बदलाव का विचार पिछले पांच साल में मेरे अंदर काफी गहरा हुआ.