मिज़ोरम में चुनाव सिर पर होते हुए भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त को बदल दिया। राज्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ आवाज उठाने वालों की मांग को एक सप्ताह पहले राज्य के मुख्य सचिव ने माना और संभावित चुनाव अधिकारियों की सूची मुख्य चुनाव आयुक्त को भेज दी।
राज्य की 12वीं विधानसभा के लिए इसी महीने के आखिर में चुनाव होने हैं। मिज़ोरम इस समय कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार का आखिरी राज्य है। मिज़ोरम के मुख्य सचिव अरविंद रे ने कुछ दिनों पहले राज्य सरकार की ओर से बुलाई गई बैठक की अध्यक्षता की थी। इस बैठक में गैर सरकारी संगठनों के समन्वयकों ने हिस्सेदारी की।
इस बैठक में प्रमुख सचिव (गृह) लालनन-माविया चुआंगो के खिलाफ शिकायत की गई कि राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी शशांक ने कुछ चीजें मुख्य चुनाव आयुक्त को भेजी हंै। शशांक ने लिखा था कि चुआंगों ने चुनावी प्रक्रिया में दखलंदाजी की है। ऐसी हालत में ज़रूरी है कि चुनाव के दौरान अतिरिक्त सुरक्षा कुमुक भेजी जाए। साथ ही ब्रू मतदाताओं के पहचान पत्रों पर भी आपत्ति जताई। मिज़ो संगठनों का मानना था कि चुआंगों को चुनाव आयोग द्वारा हटाया जाना अनुचित था। चुआंगो मिज़ो आइएएस अधिकारी हैं। इसके साथ ही ‘विशेष व्यवस्था’ ब्रू मतदाताओं के लिए की गई जो त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में हैं। उनके विरोध का भी असर हुआ है। ब्रू शरणार्थियों को मतदान का अधिकार है या नहीं यह भी मिज़ोरम में एक मुद्दा है। इस पर अब नए चुनाव अधिकारी के साथ बातचीत करनी होगी।
चुनाव आयोग से चार दिनों में दो बार चुनाव अधिकारियों की टीमों ने मिज़ोरम का दौरा किया। पहली टीम के खिलाफ काफी प्रदर्शन हुए। दूसरी टीम जब आई तो इसने प्रदर्शनकारियों से बातचीत की जिन्होंने यह साफ तौर पर कहा कि यदि चुनाव आयोग उनकी मांगे नहीं मानता तो मिज़ोरम में चुनाव नहीं होंगे।
भाजपा पूरी कोशिश में है कि इस बार मिज़ोरम उसके कब्जे में रहे। मिजो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष जोरामथंगा इस कोशिश में हैं कि इस बार वे सत्ता में आ जाएंगे। वे 1998 से 2008 तक मुख्यमंत्री थे। लेकिन राज्य में जो सत्ता विरोधी लहर हुई, उसमें उनकी सरकार भी गई और दो
सीटों पर वे उम्मीदवार थे, वहां भी उन्हें हार मिली। भाजपा ने चुनाव बाद उन्हें समर्थन देने का संकेत दिया है।