विकल्प तो और भी हैं

एन चंद्र बाबू नायडू ने हाल में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से मिले। इस मुलाकात से उत्साहित नायडू ने कहा, ‘कोई भी नरेंद्र मोदी से कहीं बेहतर तरीके से देश को संभाल सकता है।’ इस आत्मविश्वास के साथ नायडू विपक्ष को एक करने की भूमिका में हैं।

देश की आज की स्थिति को भांपते हुए विपक्षी दल तालमेल की ज़मीन तैयार करने में एक अर्से से जुटे हुए हैं। पत्रकार और पिछली एनडीए सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी ने कहा कि बदलाव कि यह नई फिजां है। पुराने दुश्मन एक साथ हो रहे हैं। इससे पता चलता है हवा के रुख का। इससे उनकी बुद्धिमत्ता का अनुमान होता है। विपक्षी दलों को लगता है कि यह ज़रूरत है और उपयुक्त मौका भी। नायडू आज विपक्षी एकता के सूत्रधार हैं। हालांकि वे और उनकी पार्टी तेलुगु देशम अब तक कांग्रेस विरोधी राजनीति में सक्रिय रही है। लेकिन अब नायडू ने राहुल से उनके घर पर जाकर बातचीत की। नायडू ने कहा कि नरेंद्र मोदी को जनता ने बहुत बड़ा जनादेश दिया था लेकिन उन्होंने देश को नीचा दिखाया, देश के साथ धोखाधड़ी की। इस मुलाकात के बाद राहुल ने ट्वीट किया ,’मैं देखूंगा कि आज हमारी जो बातचीत हुई है वह आगे भी होती रहे यह हमारी कोशिश होगी। इस बातचीत को हम जारी रखेंगे। मिलकर काम करेंगे।’

तकरीबन साढ़े चार साल तक नायडू और मोदी में परस्पर सहयोग रहा। लेकिन मोदी ने वादा करके भी राज्य को स्पेशल आर्थिक पैकेज नहीं दिया। आखिर दोनों घनिष्ठ अलग-अलग हुए।

इससे अब यह बात भी पुष्ट होती है कि मोदी के अलावा और भी विकल्प हैं। नायडू जब यह कहते हैं कि मोदी नही ंतो कोई भी और देश का नेतृत्व कर सकता है तो मोदी का महत्व घटता है। भाजपा बार-बार विपक्ष पर टीना फैक्टर यानी कोई विकल्प नहीं जैसे नारे को उछालती रहती है उसमें भी अब दम नहीं है। भाजपा लगातार कहती रही है कि मोदी -शाह नाम के चुनावी तीरदंाजों के पास कई तरह की रणनीति है।

नायडू का एक ही सप्ताह में दूसरी बार देश की राजधानी में आगमन हुआ था। उन्होंने एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार के साथ लंच भी किया और नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख अब्दुल्ला से भी मुलाकात की। तीनों में इस बात पर सहमति बनी कि तीनों गैर भाजपा नेता एक रफ्तार बनाते हुए देश और लोकतंत्र को बचाने की मुहिम छेड़ेंगे।

समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष अजित सिंह और माकपा के सीताराम येचुरी से भी नायडू की मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि आज यह देश में लोकतंत्रिक ज़रूरत है कि उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर संघर्ष करे जिससे देश को बचाया जा सके।

तेलुगु देशम ने देश को ‘विकल्प देने में हमेशा अह्म भूमिका निभाई है। कभी देश ने ऐसी हालत नहीं देखी कि जहां हर किसी को भय और आतंक में रहना पड़ रहा हो। देश की अर्थव्यवस्था चैपट हो गई है। बेरोजग़ारी, मंहगाई बढ़ी हो और लोकतंत्र के तमाम संस्थान खत्म किए जा रहे हों।

अरुण शौरी ने भी नायडू से दिन में मुलाकात की। दोनों ने बातचीत के दौरान महसूस किया कि प्रधानमंत्री की पकड़ से कहीं दूर है प्रशासन। यह उनके हाथ से छिटक कर पार्टी अध्यक्ष के पास पहुंच गया है। सवाल यह है कि क्या चंद्रबाबू नायडू अपनी मुहिम में सफल होंगे। फिर इसमें भी महत्वपूर्ण यह है कि क्या मतदाता इसे हाथों-हाथ लेगा? पहले 1996 में भी उन्होंने ऐसी कोशिश की भी थी। दूसरी बात है कि यदि विपक्षी एका हुआ तो क्या कांग्रेस भी इसमें शामिल होगी। तेलंगाना में जानकारों के अनुसार जो चुनावी समीकरण बन रहा है उसके तहत दोनों में तालमेल लगभग हो गया है।

पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने फेडरल फ्रंट बनाने की पहल की थी। इसमें उन्होंने भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी रखने की बात कही थी। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने उसमें रुचि ली लेकिन बाद में जब यह पता चला कि इस फ्रंट को बाद में भाजपा से ही मेल-मिलाप बढ़ाना था तो वे वापस लौट आई। फ्रंट भी बीते दिन की बात बन गया।

नायडू की सक्रियता का असर छह प्रदेशों पर साफ दिख रहा है। एक तो उत्तरप्रदेश जहां मायावती और अखिलेश यादव का आपसी तालमेल महत्वपूर्ण होगा। बिहार, जहां विपक्षी दल लगभग एकजुट हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी का बड़ा खेल संभव है। झारखंड, कर्नाटक और आंध्र में विपक्षी एका का असर प्रभावी हो सकता है। यदि इन राज्यों में सीधी चुनावी टक्कर हुई तो खासा प्रभाव मतदाताओं पर पड़ेगा।

मीडिया की सबसे बड़ी पीड़ा विपक्ष में किसी एक नेता का उभार न दिखना है। भाजपा समर्थित मीडिया बार-बार यह सवाल उठा कर मतदाताओं को भ्रम में डालता है जबकि बार-बार विपक्षी दल के नेता यही कहते रहे हैं कि चुनाव में विपक्षी दलों को जीत हासिल होगी। उसके आधार पर नेता का चुनाव कर लिया जाएगा। विपक्ष के पास मंहगाई, बेरोजग़ारी, सीबीआई, रिजर्व बैंक, राफेल, नोटबंदी, भ्रष्टाचार और किसानों के विभिन्न मुद्दे हैं। विपक्षी दलों में यदि एका रहता है तो उनके कार्यकर्ताओं और नेताओं की बदौलत अच्छी स्थिति बनेगी। बस शर्त यह है कि मतदान मशीनें मतों के साथ खिलवाड़ न करें। इसके लिए उनके कार्यकर्ताओं और नेताओं को लगातार चैकस रहना पड़ेगा। दूसरी तरफ भाजपा और संघ परिवार रात-दिन एक करके देश का ध्रुवीकरण करने में जुटा है। उत्तरपद्रेश में रामजन्म भूमि निर्माण और दक्षिण में सबरीमाला मंदिर में युवा महिलाओं के प्रवेश पर उनकी जि़द से समुदायों में ही नहीं बल्कि जेंडर में भी खासी अलगाव दिखने लगा है।

अब देश की जनता को देखना है कि उसे बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी और समाज में भय, आतंक चाहिए या नही।