कोविड-19 महामारी के बीच कृषि क्षेत्र ने भारतीय अर्थ-व्यव्यवस्था के लिए एक उम्मीद की किरण दिखायी है। इससे देश को कुछ रफ्तार मिल सकती है; साथ ही खाद्यान्न की ज़रूरत को भी सुनिश्चित किया जा सकता है। हालाँकि सभी क्षेत्रों में नकारात्मक रुख के बीच 2020 में हुई रिकॉर्ड गेहूँ खरीद ने शुभ संकेत दिये हैं। कोविड-19 प्रकोप के प्रसार को रोकने के लिए लगाये गये प्रतिबन्धों के बावजूद मण्डियों में गेहूँ की खरीद चालू विपणन वर्ष में 382 लाख मीट्रिक टन से अधिक हुई; जो अब तक हुई सर्वाधिक खरीद का रिकॉर्ड है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, सरकारी एजेंसियों द्वारा किसानों से 16 जून, 2020 तक गेहूँ की खरीद ने सर्वकालिक रिकॉर्ड आँकड़े को छू लिया; जब केंद्रीय भण्डार के लिए कुल खरीद 382 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) तक पहुँच गयी थी। 2012-13 के दौरान 381.48 एलएमटी के पुराने रिकॉर्ड (कीॢतमान) को पीछे छोड़ दिया। खास बात यह है कि पूरे देश में लॉकडाउन के बीच कोविड-19 महामारी के समय किसानों से फसल की खरीदारी की गयी।
लॉकडाउन के कारण खरीद शुरू होने में एक पखवाड़े की देरी हुई थी और 01 अप्रैल की बजाय 15 अप्रैल से इसकी इसे शुरू किया जा सका। इसकी वह यह थी कि लॉकडाउन के चलते राज्य सरकारों, एजेंसियों और खरीद के लिए मानक तय नहीं किये गये थे और सरकारी आदेशों का इंतज़ार और तालमेल भी करना था। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने यह सुनिश्चित करने को कहा कि किसानों से बिना किसी देरी के और सुरक्षित तरीके से गेहूँ की खरीद की जाए।
पारम्परिक केंद्रों के अलावा सभी सम्भावित स्थानों में खरीद केंद्र खोलकर खरीद केंद्रों की संख्या 14,838 से बढ़ाकर 21,869 कर दी गयी। इससे मण्डियों में किसानों की भीड़ कम करने में मदद मिली और ज़रूरी सामाजिक दूरी का पालन करना भी सुनिश्चित हो सका। टोकन सिस्टम (पर्ची प्रणाली) के माध्यम से मण्डियों में दैनिक प्रवाह को विनियमित करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया गया। ये उपाय नियमित सफाई और कोरोना से बचने के तरीकों के साथ-साथ प्रत्येक किसान के लिए डम्पिंग क्षेत्र को चिह्नित करना आदि सुनिश्चित किया। इससे देश में कहीं भी खाद्यान्न खरीद केंद्रों में से कोई भी कोविड-19 हॉटस्पॉट (कोरोना संक्रमण केंद्र) नहीं बना।
सरकारी एजेंसियों द्वारा गेहूँ की खरीद पिछले साल के आँकड़े 341.31 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) को पार करते हुए 24 मई 2020 को 341.56 एलएमटी की खरीद तक पहुँच गया। कोविड-19 वायरस के प्रसार और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण उत्पन्न सभी बाधाओं के बीच यह खरीदारी की गयी। गेहूँ की कटाई आम तौर पर मार्च के अन्त में शुरू होती है और हर साल अप्रैल के पहले सप्ताह में खरीद शुरू होती है। हालाँकि 25 मार्च से राष्ट्रीय लॉकडाउन लागू होने के साथ देश में हर जगह सब कुछ ठप-सा हो गया। फसल तब तक पक चुकी थी और कटाई के लिए तैयार थी। इस पर विचार करते हुए भारत सरकार को लॉकडाउन अवधि के दौरान कृषि और सम्बन्धित गतिविधियों को शुरू करने की छूट दी गयी और अधिकांश खरीद वाले राज्यों में खरीद 15 अप्रैल, 2020 से शुरू भी गयी। हरियाणा ने खरीद की शुरुआत 20 अप्रैल से की।
सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना था कि महामारी के दौरान खरीद सुरक्षित तरीके से की जा सके। इसे जागरूकता फैलाकर, सामाजिक दूरी को अपनाकर और प्रौद्योगिकी के ज़रिये बहुस्तरीय रणनीति के माध्यम से हासिल किया गया। व्यक्तिगत क्रय केंद्रों पर किसानों की भीड़ को कम करते हुए खरीद केंद्रों की संख्या में काफी वृद्धि की गयी। ग्राम पंचायत स्तर पर उपलब्ध हर सुविधा का उपयोग करके नये केंद्र स्थापित किये गये और पंजाब जैसे प्रमुख खरीद वाले राज्यों में संख्या काफी बढ़ायी गयी। यहाँ पर यह संख्या 1836 से 3681 व हरियाणा में 599 से 1800 तक की गयी। मध्य प्रदेश में 3545 से 4494 तक की गयी। प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए किसानों को अपनी उपज लाने के लिए विशिष्ट तिथियाँ और अलग-अलग खाँचे (खड़े होने के स्थान) प्रदान किये गये; जिससे भीड़भाड़ से बचने में मदद मिली। इस दौरान सामाजिक दूरी का सख्ती से पालन करने के लिए ज़रूरी मानदण्ड अपनाये गये साथ ही नियमित रूप से साफ सफाई का ध्यान रखा गया।
पंजाब में प्रत्येक किसान को अपने अनाज जमा कराने के लिए विशिष्ट स्थान आवंटित किये गये और किसी अन्य को उन निर्धारित क्षेत्रों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गयी। केवल वे लोग जो सीधे खरीद फरोख्त से जुड़े हुए थे, उन्हें ही इस दौरान उपस्थित रहने की अनुमति दी गयी।
कोरोना वायरस के फैलने के खतरे के अलावा गेहूँ की खरीद में एजेंसियों के सामने तीन बड़ी चुनौतियाँ थीं। इस दौरान सभी जूट मिलों को बन्द कर दिया गया था, खरीदे गये गेहूँ को भरने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले जूट के थैलों का उत्पादन एक बड़ा संकट सामने पैदा हो गया। अच्छी गुणवत्ता वाले बोरों का इस्तेमाल करने की बजाय, इस दौरान ज़रूरी मानकों वाले प्लास्टिक बैग का उपयोग करके इस समस्या से निपटा गया। निरंतर निगरानी और समय पर कार्रवाई के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया कि देश में कहीं भी पैकेङ्क्षजग सामग्री की कमी के कारण खरीद बन्द न हो।
दूसरी चुनौती सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों में बे-मौसम बारिश हुई, जिससे गेहूँ भीग भी गया। इसने किसानों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर दिया; क्योंकि सामान्य विशिष्टताओं के तहत ऐसे गेहूँ की खरीद नहीं की जा सकती थी। भारत सरकार और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने इस पर तत्काल हस्तक्षेप करते हुए विस्तृत वैज्ञानिक विश्लेषण करने के बाद यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिये। इसमें तय गया कि कोई भी किसान इस संकट में न पड़ें कि खरीदी गयी उपज न्यूनतम गुणवत्ता आवश्यकताओं को पूरा करती है या नहीं। तीसरी चुनौती तंग श्रमिकों की कमी के साथ-साथ कोरोना वायरस के बारे में आम लोगों में खौफ पैदा हो गया था। इसके लिए राज्य प्रशासन ने स्थानीय स्तर पर विश्वास पैदा किया और इसके लिए ज़रूरी उपायों को अपनाया गया। श्रमिकों को पर्याप्त सुरक्षा और उपाय जैसे मास्क, सैनिटाइजर आदि प्रदान किये गये और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अन्य एहतियाती तौर पर उपाय भी अपना गये।
इस वर्ष एक और अहम बदलाव यह देखने को मिला कि मध्य प्रदेश में 129 एलएमटी गेहूँ के साथ केंद्रीय भण्डारण का सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया है, जो पंजाब के 127 एलएमटी की खरीद से ज़्यादा है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान ने भी गेहूँ की राष्ट्रीय खरीद में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पूरे भारत में 42 लाख गेहूँ किसानों को लाभान्वित किया गया जिनसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर पर 73,500 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। केंद्रीय भण्डार में खाद्यान्न की भारी आमद ने सुनिश्चित किया कि एफसीआई आने वाले महीनों में देश के लोगों के लिए ज़रूरी खाद्यान्न ज़रूरत में किसी भी तरह की कमी नहीं होने वाली है।
पिछले सभी कीॢतमानों (रिकॉड्र्स) को तोड़ते हुए मध्य प्रदेश वर्ष 2020 में गेहूँ की खरीद के मामले में देश में अग्रणी राज्य के रूप में उभरा है। मध्य प्रदेश ने समर्थन मूल्य पर गेहूँ खरीद में देश के शीर्ष राज्य को 1.27 करोड़ टन से अधिक की खरीद की। यह देशभर के किसानों से गेहूँ खरीद का 33 फीसदी हिस्सा है। इससे पता चला है कि मध्य प्रदेश खरीद का एक विकेन्द्रीकृत मॉडल का पालन करता है, जिसके तहत राज्य सरकार केंद्र की ओर से गेहूँ की खरीद करती है और राज्य के सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को चलाने के लिए आवश्यक मात्रा को बरकरार रखती है, जबकि शेष स्टॉक को केंद्र सरकार द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
8 जून तक मध्य प्रदेश ने रिकॉर्ड 1,28,69,553 टन (128 लाख टन) गेहूँ की खरीद दर्ज की; जबकि इसी दौरान पंजाब ने 1,27,67,473 टन (127 लाख टन) ही गेहूँ खरीदा। पंजाब में खरीद 31 मई को बन्द कर दी गयी; जबकि मध्य प्रदेश के चार ज़िलों- इंदौर, भोपाल, उज्जैन और देवास में खरीद जारी थी। 73.98 लाख टन के साथ हरियाणा देश में गेहूँ का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार रहा। केंद्र द्वारा 440.66 लाख टन के अनुमान के मुकाबले देश में कुल गेहूँ खरीद ने 386 लाख टन के आँकड़े को छुआ। देश में कुल खरीद में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 33 फीसदी है। 2019 में देश में कुल खरीद 368 लाख टन थी।
गेहूँ की खरीद में मध्य प्रदेश का पिछला रिकॉर्ड वर्ष 2012- 2013 में था, जब राज्य ने 84.89 लाख टन की खरीद की थी। 2019 में गेहूँ की खरीद 73.69 लाख टन रही। मौज़ूदा खरीद पिछले साल के मुकाबले 74 फीसदी अधिक है और यह अब भी जारी है। कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण लगाये गये लॉकडाउन के कारण मध्य प्रदेश में गेहूँ की खरीद 15 अप्रैल को शुरू हुई, जबकि आमतौर पर 25 मार्च को होती है। जहाँ पंजाब वर्षों से गेहूँ की खरीद में अग्रणी राज्य रहा है, वहीं पिछले कुछ वर्षों में सरकारी खरीद केवल मध्य प्रदेश में बढ़ी है। इसी अवधि के दौरान 13,606 खरीद केंद्रों के माध्यम से सरकारी एजेंसियों द्वारा 119 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की गयी। अधिकतम खरीद तेलंगाना द्वारा 64 एलएमटी की गयी, इसके बाद 31 एलएमटी के साथ आंध्र प्रदेश दूसरे नम्बर पर रहा।
गेहूँ
क्र.सं. राज्यवार खरीदारी (एलएमटी में)
1 मध्य प्रदेश 129
2 पंजाब 127
3 हरियाणा 74
4 उत्तर प्रदेश 32
5 राजस्थान 19
6 अन्य 01
कुल 382
धान
क्र.सं. राज्यवार खरीदारी (एलएमटी में)
1 तेलंगाना 64
2 आंध्र प्रदेश 31
3 ओडिशा 14
4 तमिलनाडु 04
5 केरल 04
6 अन्य 02
कुल 119