क्या कुलभूषण को भूल गयी सरकार?

पाकिस्तानी सुरक्षाबलों द्वारा जासूसी के मामले में 3 मार्च, 2016 को बलूचिस्तान से गिरफ्तार किये गये भारतीय नागरिक और पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव का मामला भारतीय मीडिया ने एक समय में ज़ोर-शोर से उठाया। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, इस मामले को ठण्डे बस्ते में डालती जा रही केंद्र सरकार की तरह ही मीडिया भी इसे भूलता जा रहा है। हाल ही में पाकिस्तान ने दावा किया है कि भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव ने रिव्यू पिटीशन दाखिल करने से इन्कार कर दिया है। विदित हो कि कुलभूषण जाधव जासूसी के आरोप में पाकिस्तान की जेल में बन्द हैं। उनके बारे में पाकिस्तान ने कहा है कि उसने जासूसी के आरोप में गिरफ्तार जाधव को दूसरा अतिरिक्त काउंसलर देने की पेशकश की, मगर जाधव ने ही मना कर दिया। पाकिस्तान के एडीशनल अटॉर्नी जनरल ने इस बारे में कहा है कि 17 जून, 2020 को कुलभूषण जाधव को आमंत्रित किया गया कि वह अपनी सज़ा पर पुनर्विचार करने के लिए एक याचिका दायर कर सकते हैं, लेकिन उन्होंने खुद ही याचिका दायर करने से इन्कार कर दिया। समाचार एजेंसी एएनआई की 8 जुलाई, 2020 की खबर के अनुसार, पाकिस्तानी मीडिया के हवाले से जानकारी दी गयी है कि कुलभूषण ने पुनर्विचार याचिका के बजाय अपनी लम्बित दया याचिका का पालन करने की बात कही। सवाल यह है कि क्या भारत के उदासीन रवैये के चलते कुलभूषण जाधव का मनोबल टूट गया है? क्योंकि काफी समय से भारत सरकार कुलभूषण जाधव के मामले में कोई खास दिलचस्पी लेती नहीं दिख रही है। इस बार भी जब पाकिस्तान सरकार ने यह बयान जारी किया है, तब भी भारत सरकार की तरफ से इस मामले में कोई बयान नहीं दिया गया था।

विदित हो कि कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान ने गिरफ्तार करके दावा किया था कि कुलभूषण ईरान की तरफ से पाकिस्तान में जासूसी के लिए घुसे थे। उस समय भारत ने दावा किया था कि कुलभूषण व्यापार के सिलसिले में ईरान गये थे और पाकिस्तान ने उन्हें वहीं से अगवा किया था और पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने कुलभूषण जाधव को अप्रैल, 2017 में कथित तौर पर जासूसी और आतंकवाद के आरोप में मौत की सज़ा भी सुना डाली थी। लेकिन कुलभूषण की इस सज़ा के खिलाफ भारत सरकार द्वारा हेग (नीदरलैंड) स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में अपील पर पाकिस्तान को हार का मुँह देखना पड़ा था।

कहीं यह पाकिस्तान की चाल तो नहीं

भारत ने इंटरनेशन कोर्ट में कहा था कि भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान ने विएना सन्धि का पूरी तरह उल्लंघन किया है। अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाधव की का केस वकील हरीश साल्वे लड़े थे, जिसके बदले उन्होंने भारत सरकार से फीस लेने से इन्कार कर दिया था। भारत सरकार के आग्रह पर उन्होंने महज़ एक रुपये फीस ली। आईसीजे में यह मामला लगभग दो साल दो माह तक चला और 18 जुलाई, 2019 को कोर्ट के न्यायाधीशों की 16 सदस्यीय पीठ ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाया था। उस समय आईसीजे ने जाधव की सज़ा की प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार करने के लिए पाकिस्तान से कहा था। साथ ही कुलभूषण जाधव को बिना देरी किये अतिरिक्त काउंसलर देने को भी कहा था। अब पाकिस्तान सरकार यह दावा कर रही है कि वह जाधव के सामने अतिरिक्त काउंसलर देने का प्रस्ताव रख चुकी है; लेकिन उन्होंने खुद मना कर दिया है। सवाल यह है कि ऐसे समय में जब भारत सरकार देश में अनेक समस्याओं और कोरोना वायरस पर ध्यान केंद्रित किये हुए है; ऐसा तो नहीं कि पाकिस्तान जाधव को अतिरिक्त काउंसलर देने की झूठी खबर फैलाकर यह साबित करने की कोशिश में लगा है कि वह आईसीजे के आदेश का पालन कर रहा है? क्या इस समय भारत सरकार को आगे बढ़कर कुलभूषण जाधव के लिए अतिरिक्त काउंसलर देने के पाकिस्तान के दावे पर इसे मानने के लिए जाधव को नहीं मनाना चाहिए था? क्योंकि कुलभूषण की रिहाई से न केवल पाकिस्तान के हौसले पस्त होंगे, बल्कि भारत का पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव भी बनेगा।

गम्भीर और संदेहास्पद आरोप

पाकिस्तान ने आईसीजे में जाधव पर गम्भीर आरोप लगाये थे। उसने कहा था कि जाधव ने एक नकली पासपोर्ट पर वीजा लेकर चहबार में घुसपैठ की थी। पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि चहबार से 2003 में जाधव को एल 9630722 के नाम से हुसैन मुबारक पटेल नाम से नयी पहचान मिली थी, जिनका जन्म 30 अगस्त, 1968 को महाराष्ट्र (भारत) में जन्मे थे। आईसीजे में पाकिस्तानी अधिकारियों ने दावा किया कि जाधव 2013 से एक अभियान चला रहे थे, जिसके तहत वह बलूचिस्तान और कराची में एक अलगाववादी आन्दोलन को मज़बूत करके पाकिस्तान में हालात बिगाडऩा चाहते थे।

अधिकारियों ने दावा किया कि जाधव ऐसा कर पाने में सफल हो जाते, क्योंकि वह नौसेना से लडऩे की तकनीक में एक विशेषज्ञ थे। उन्होंने आईसीजे में कुलभूषण जाधव के द्वारा एक कुबूलनामा भी पेश किया, जिसमें जाधव की तरफ से कहलावाया गया कि वह वाध में हाजी बलूच के सम्पर्क में थे, जिन्होंने कराची में बलूच अलगाववादियों और आईएस नेटवर्क को वित्तीय और तर्कसंगत समर्थन प्रदान किया था। वहीं असीम बाजवा (पाकिस्तान के तत्कालीन डीजी आईएसपीआर) ने कहा था कि जाधव का लक्ष्य विशेष रूप से ग्वादर बंदरगाह के अलावा बलूच राष्ट्रवादी राजनीतिक दलों के बीच फूट पैदा करना और उन्हें भड़काकर चीन और पाकिस्तान आॢथक सम्बन्धों की खिलाफत करवाना था। उन्होंने यह भी कहा था कि जाधव ने चबहार में ईरान के बंदरगाह से एक नौका खरीदी थी और उनका लक्ष्य एक आतंकवादी साज़िश में कराची और ग्वादर बंदरगाहों को निशाना बनाना था।

इस तरह के अनेक आरोप पाकिस्तानी सैन्य और खुफिया अधिकारियों ने आईसीजे में दिये। लेकिन फिर भी भारत इस मामले में जीत सका; क्योंकि पाकिस्तान की ओर से कुलभूषण जाधव पर लगाये गये आरोपों में तथ्य नहीं थे।

क्या था जाधव का इकबालिया बयान

जाधव के खिलाफ सबूत जुटाने की कोशिश में पाकिस्तान ने उनका इकबालिया बयान रिकॉर्ड किया था, जो उन्हें प्रताडि़त करने के बाद रिकॉर्ड किया गया था। जाधव ने वीडियो के ज़रिये कराये गये इस कु़बूलनामे में कहा था कि भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ पाकिस्तान को अस्थिर करने में शामिल थी। वह भी रॉ के इशारे पर पाकिस्तान में काम कर रहे थे और भारतीय नौसेना के एक अधिकारी थे। इस वीडियो में उनका बयान इस तरह से है, जैसे कोई एक साधारण आदमी पुलिस के डर से सब कुछ आसानी से बता देता है। सवाल यह उठता है कि कोई सैन्य अधिकारी, वो भी तब जब वह किसी खुफिया एजेंसी के लिए काम करता हो, इतनी आसानी से इतना बड़ा आरोप अपने सिर पर नहीं ले सकता। इससे साबित होता है कि यह जबरन कहलवाया गया बयान है, जिसकी स्क्रिप्ट पाकिस्तानी अधिकारियों ने ही लिखी थी। भारत ने साफ कह दिया कि कुलभूषण जाधव भारतीय नागरिक हैं और वह व्यापार के सिलसिले में विदेश यात्राएँ करते थे।

ईरान का खेल

इस मामले में ईरान न तो पाकिस्तान को नाराज़ कर सकता और न ही भारत को नाराज़ करना चाहता। ईरान ने कहा था कि जाधव के पाकिस्तान-ईरान सीमा को अवैध रूप से पार करने की वह जाँच कर रहा है। इस मामले में भारत में ईरान के राजदूत गुलाम रज़ा अंसारी ने उस समय कहा था कि ईरान जाधव मामले की जाँच कर रहा है। ईरान जब जाँच पूरी कर लेगा, तो इसकी रिपोर्ट मित्र देशों के साथ साझा करेगी। बता दें कि पाकिस्तान तथा ईरान एक-दूसरे के पड़ोसी देश व विश्वसनीय साथी हैं और दोनों में अच्छे सम्बन्ध हैं, जिन्हें दोनों ही देश खराब करना नहीं चाहते। भारत सरकार ने तथ्यों के आधार पर दावा किया था कि कुलभूषण को ईरान से उठाया गया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि ईरान ने इसमें पाकिस्तान का सहयोग किया हो?

भारत ने किया हर सम्भव प्रयास

भारत सरकार ने कुलभूषण जाधव को बचाने का हर सम्भव प्रयास किया है। कुलभूषण जाधव के साथ पाकिस्तान सरबजीत सिंह जैसा बर्ताव न करे, इसके लिए भारत ने हर सम्भव प्रयास किया। इस मामले में भारत की ओर से आईसीजे में जाधव का मुकदमा लड़ रहे ख्याति प्राप्त वकील हरीश साल्वे ने कहा कि भारत कुलभूषण जाधव को बचाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा है और उनके मामले में पाकिस्तान की हर गतिविधि पर लगातार नज़र रखे हुए है। उन्होंने कहा कि हम लगातार प्रयास कर रहे हैं कि पाकिस्तान की जेल से कुलभूषण जाधव को रिहा कराया जाए।

उस समय विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज ने भी इस मामले में बेहतर प्रयास किये। लेकिन हाल के दिनों में भारत सरकार इस मामले में कोई खास दिलचस्पी लेती दिखायी नहीं दे रही है। अन्यथा जब पाकिस्तान ने दावा किया कि उसके प्रस्ताव के बावजूद जाधव ने अपना बचाव पक्ष रखने के लिए अतिरिक्त काउंसलर नियुक्त करने से मना कर दिया, भारत सरकार को तुरन्त इसका जवाब देना चाहिए था और पाकिस्तान के इस प्रस्ताव में कहना चाहिए था कि अतिरिक्त काउंसलर भारत सरकार मुहैया करायेगी।

इससे पाकिस्तान की चाल का पोल खुलती और उसे इसे ठुकराना आसान नहीं होता। कुल मिलाकर भारत सरकार को कुलभूषण जाधव की रिहाई के लिए फिर से सार्थक और प्रभावी प्रयास करने चाहिए, ताकि भारत माता का एक सपूत अपने वतन वापस हो सके।