महागठबंधन की नज़र लक्ष्य पर

अब अगले महीने बेंगलूरु में मंथन करेंगे विपक्ष के नेता

पटना में महागठबंधन के लिए 15 विपक्षी दलों की बैठक के बाद जो उत्साह और तेज़ी विपक्ष में दिख रही है, उसे धरातल पर कितनी सफलता मिलती है, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन गठबंधन की इस क़वायद ने भाजपा को भी सक्रिय कर दिया है, जो मान रही है कि विपक्ष गठबंधन के लिए ज़्यादा गंभीरता से काम कर रहा है। बेशक एक वृहद् गठबंधन के विपक्ष के रास्ते में अभी काफ़ी तीखे मोड़ और ढलानें हैं। बावजूद इसके विपक्ष एकजुट होता है, तो भाजपा के लिए यह निश्चित ही बड़ी चुनौती होगी। विपक्षी दलों की भाजपा के ख़िलाफ़ गठबंधन पर मंथन के लिए अगली बैठक 12 जुलाई को बेंगलूरु में है। इसमें सीटों के तालमेल और साझा न्यूनतम कार्यक्रम पर बात हो सकती है।

विपक्षी गठबंधन से पहले ही जद(यू) नेता के.सी. त्यागी का यह दावा बहुत अहम है कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी और कांग्रेस का और उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस का गठबंधन लगभग तय है। उनके मुताबिक, 450 सीटों पर भाजपा के ख़िलाफ़ एक उम्मीदवार की रणनीति बन चुकी है। उनके मुताबिक इन राज्यों में बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, असम, पूरा पूर्वोत्तर, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश समेत लगभग एक दर्ज़न से ज़्यादा राज्य शामिल हैं।

इधर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह श्रेय दिया जा सकता है कि पटना में 15 दलों को वह एक छतरी के नीचे बैठाने में सफल रहे। इन 15 दलों के छ: मुख्यमंत्री और पाँच पूर्व मुख्यमंत्री बैठक में शामिल थे। इनमें से कुछ अपने दलों में अध्यक्ष की हैसियत रखते हैं, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े तो बैठक में आये ही थे। ‘तहलका’ की जानकारी बताती है कि विपक्ष के इन दलों ने मतभेद वाले मुद्दों को पीछे रखकर पहले सहमति बन सकने वाले मुद्दों को सिरे चढ़ाने का फ़ैसला किया है। टकराव वाले मुद्दों में सबसे पेचीदा मुद्दा नेतृत्व का है, जबकि सीटों के बँटवारे पर भी तलवारें कम नहीं चलेंगी। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच सहमति में भी पेंच फँसा हुआ है। कांग्रेस पंजाब और दिल्ली में किसी भी सूरत में अपनी लोकसभा सीटें आम आदमी पार्टी के साथ साझा नहीं करना चाहेगी। आम आदमी पार्टी को लगता है कि चूँकि दिल्ली और पंजाब में उसकी सरकारें हैं। लिहाज़ा उसे लोग वोट देंगे। जबकि कांग्रेस का मानना है कि 2014 और 2019 से पहले 2009 में दिल्ली में उसने सभी सात, जबकि 2019 में पंजाब में 13 में से आठ सीटें जीती थीं। आम आदमी पार्टी का अध्यादेश के समर्थन के मामले में कांग्रेस से टकराव सीटों का दबाव बनाने के लिए ही है, क्योंकि कांग्रेस पहले ही कह चुकी है कि राज्य सभा में वह दिल्ली वाला अध्यादेश आने पर उसका विरोध करेगी।

आँकड़े देखें, तो साल 2019 में दिल्ली में कांग्रेस को क़रीब 23 फ़ीसदी वोट मिले थे, जबकि आम आदमी पार्टी को 18 फ़ीसदी। उस चुनाव में भी कांग्रेस-आम आदमी पार्टी में समझौता नहीं था। पिछले साल पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को हराकर बड़ी जीत हासिल की थी। पंजाब में 2019 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को पंजाब में आठ फ़ीसदी से कुछ ज़्यादा और एक सीट मिली थी। कांग्रेस को इसके विपरीत 40 फ़ीसदी से कुछ ज़्यादा वोट और 13 में 8 सीटें मिली थीं। पंजाब में कांग्रेस और आप के लिए लोकसभा सीटों का समझौता सबसे टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।

बेंगलूरु की बैठक में विपक्षी दल सीटों को लेकर शुरुआती बात कर सकते हैं। कांग्रेस के लिए नेतृत्व के मसले पर बात करना उसकी रणनीति में फिट नहीं बैठता लिहाज़ा वह सीटों पर बात शुरू कर सकती है। कांग्रेस इस साल होने वाले अन्य विधानसभाओं के चुनाव के नतीजे देखना चाहती है। उसे लगता है कि यदि नतीजे उसके पक्ष में रहते हैं, तो इससे देश में जनता के मूड का पता चलेगा। बेहतर नतीजों की स्थिति में मोल-भाव उसके लिए आसान हो जाएगा। कांग्रेस पटना की बैठक के बाद आपस में सीटों का गुना-भाग कर रही है कि दिल्ली, पंजाब जैसे अपने पकड़ वाले राज्यों में आप के साथ किस स्तर तक समझौता करना है। आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का टकराव बढ़ा तो पेंच भी फँस सकता है। पटना में कांग्रेस को लेकर विरोध दिखाने के लिए ही आप नेता अरविन्द केजरीवाल प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हुए थे। यह तय है कि कांग्रेस सीटों को लेकर एक सीमा तक ही समझौता करेगी। कांग्रेस के रुख़ के आधार पर केजरीवाल विपक्षी गठबंधन से अलग होने का रिस्क नहीं ले सकते। गठबन्धन में ऐसे कई दल हैं, जो केजरीवाल के जम्मू-कश्मीर में धारा-370 हटाने के मामले में भाजपा के साथ खड़े होने से ख़ुश नहीं हैं।

केजरीवाल के लिए भी कठिनाइयाँ कम नहीं हैं। विपक्ष के बीच वे सभी चीज़ें अपने हिसाब से नहीं चला पाएँगे। यदि ज़्यादा सख़्त रुख़ रखते हैं, तो विपक्षी ख़ेमे में अलग-थलग पड़ सकते हैं। केजरीवाल ये सब चीज़ें जानते हैं। लिहाज़ा एक सीमा तक ही विरोधी स्वर उठाएँगे। आप नेता सौरभ भारद्वाज का यह तर्क भी बहुत बेहतर नहीं था कि कांग्रेस दिल्ली और पंजाब उसके लिए छोड़ दे, तो आप मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उम्मीदवार नहीं उतारेगी। सभी को पता है कि इन तीन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के ज़्यादा गुंजाइश नहीं है। जबकि भविष्य में दिल्ली और पंजाब दोनों में कांग्रेस सीटें जीत सकती है। हाँ, गुजरात एक ऐसा राज्य है, जहाँ आम आदमी पाटी ने हाल के विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था और वह कांग्रेस को नुक़सान कर सकती है। हालाँकि कांग्रेस यह मानती है कि देश में भाजपा विरोधी माहौल बने तब भी 2024 में शायद गुजरात में भाजपा से ज़्यादा सीटें छीनना आसान नहीं होगा।

पटना की बैठक में एक चीज़ और दिखी कि अरविंद केजरीवाल को लेकर नीतीश समेत किसी और नेता ने खुलकर पत्रकारों को कोई जवाब नहीं दिया। राहुल गाँधी ने अपनी टिप्पणी में भाजपा और आरएसएस पर देश की नींव पर हमला करने का आरोप लगाया। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि जो कश्मीर से शुरू हुआ, वो अब पूरे देश में हो रहा है। उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि वह और महबूबा मुफ़्ती ऐसे बदनसीब इलाक़े से ताल्लुक़ रखते हैं, जहाँ गणतंत्र का गला दबाया जा रहा है। कश्मीर में पाँच साल से राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। हालाँकि ममता की टिप्पणी उत्साह से भरी थी। उनकी बातों का सार यही थी कि विपक्षी दलों की गाड़ी सही दिशा में जा रही है। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सकारात्मक दिखे। ममता का यह कहना मायने रखता है कि ‘हमें विरोधी कहकर सम्बोधित न करें। हम भी इसी देश के नागरिक और देशभक्त हैं।’ उनके मुताबिक, विपक्षी दल तीन बातों पर सहमत हुए हैं। इनमें पहली यह है कि हम एकजुट हैं। दूसरी, हम एक होकर लड़ेंगे। तीसरी, भाजपा के एजेंडे के ख़िलाफ़ विपक्षी गठबंधन एकजुट होकर विरोध करेगा। ममता ने जब यह कहा कि विपक्षी नेताओं ईडी और सीबीआई के अलावा वकीलों से कोर्ट में उनके ख़िलाफ़ केस दर्ज करवाकर भी परेशान किया जा रहा है। उनका संकेत राहुल गाँधी को कोर्ट की तरफ़ से मानहानि मामले में दोषी ठहराने पर था। जहाँ तक बैठक की बात है, उसमें अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार के अधिकारों की रक्षा के लिए सभी उनका साथ दें और बिल राज्यसभा में न पास होने दें।

कुल मिलाकर विपक्ष की बेंगलूरु की जुलाई बैठक काफ़ी अहम होगी। उसमें गठबंधन के शुरुआती; लेकिन महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा होगी, जिस पर सहमति का आधार बनानी की कोशिश की जाएगी। इसका मक़सद भाजपा पर दबाव बनाना भी होगा; जो गठबन्धन को लेकर सवाल उठा रही है।

राहुल किसके दूल्हा?

लालू यादव राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। वह मज़ाक़ की आड़ लेकर ढके-छिपे अंदाज़ में बहुत बातें कह जाते हैं। पटना की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब उनके बोलने की बारी आयी, तो उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गाँधी से काफ़ी दिलचस्प बातें कहीं। इनमें एक उनकी शादी को लेकर भी थी। लालू ने कहा- ‘आप दूल्हा बनिए, हम सब आपके बाराती बनेंगे।’ लालू उनसे विवाह करने पर ज़ोर दे रहे थे। राजनीतिक रूप से इसे किसी और रूप में भी लिया जा सकता है।

लालू ने राहुल गाँधी को क्या ‘विपक्ष का दूल्हा’ बनने के लिए यह कहा? अर्थात् क्या लालू ने सीधे न कहकर यह कहा कि विपक्ष का आप नेतृत्व करो; बा$की दल आपके साथ (बाराती) होंगे। अभी तो राहुल गाँधी का ‘सभी मोदी चोर क्यों होते हैं?’ वाली टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में कोई अंतिम फ़ैसला नहीं हुआ है। उनकी सदस्यता का मामला भी 2024 तक सुलटेगा या नहीं, यह भी अभी साफ़ नहीं है। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में लालू ने उनकी राजनीति की भी तारीफ़ की, जबकि ममता बनर्जी ने भी नीतीश के बाद राहुल गाँधी का नाम लेकर अपना सम्बोधन शुरू किया।