ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में स्थापित की दलित साहित्य अकादमी, विपक्ष बेचैन

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार देश की ऐसी पहली सरकार बन गयी है जिसने अपने राज्य में दलित साहित्य अकादमी का गठन किया है। ममता बनर्जी ने सड़क से साहित्य के शिखर तक पहुंचने वाले मशहूर दलित लेखक मनोरंजन ब्यापारी को इस 14 सदस्यीय अकादमी का अध्यक्ष बनाया है। अगले विधानसभा चुनाव से पहले ममता के इस फैसले को राजनीतिक रूप से एक बड़ा फैसला माना जा रहा है।

मनोरंजन ब्यापारी ने अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद कहा कि आदिवासियों, पिछड़ों और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों की भाषा को बढ़ावा देना ही इस अकादमी के गठन का मकसद है। बांग्ला भाषा पर दलित भाषाओं का काफी असर है। बहुत लोगों ने सरकार की इस पहल का स्वागत किया है।

खुद ममता बनर्जी का कहना है कि दलित साहित्य भी बांग्ला साहित्य का हिस्सा है। पहले राज्य में एक आदिवासी अकादमी थी लेकिन दलित साहित्य को समुचित स्वरूप में बढ़ावा देने के लिए ही सरकार ने इस अकादमी के गठन का फैसला किया।

उनके मुताबिक नई अकादमी के तहत दलित के अलावा आदिवासी, नमोशुद्र, डोम, बागदी, बाउरी और मांझी समेत अनुसूचित जनजाति में शामिल तमाम जातियों के साहित्य को बढ़ावा दिया जाएगा। साथ ही एक लाइब्रेरी भी स्थापित की जाएगी।

इससे पहले ममता हिंदी अकादेमी का भी गठन कर चुकी हैं। अब देश की पहली दलित अकादमी की घोषणा ममता ने की है। बहुत से राजनीतिक जानकार इस फैसले को सूबे में चुनाव से पहले दलितों में अपनी पैठ और मजबूत करने की ममता की कोशिश मान रहे हैं। देश में अभी तक किसी भी राज्य ने दलित अकादमी का गठन नहीं किया है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ममता ने दलित अकादमी गठित कर जंगलमहल इलाके में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के करीब 40 प्रतिशत मतदाताओं को साधने की दूरगामी रणनीति बुनी है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वहां भाजपा को अच्छे वोट मिले थे। निश्चित ही ममता ने इनमें अब इसमें सेंध लगा दी है।

अकेले बांकुड़ा जिले में ही विधानसभा की 12 सीटें हैं और जिले में एससी और एसटी आबादी 38.5 फीसदी है। जानकारों के मुताबिक यदि ममता ने बांकुड़ा जिले में आदिवासियो का भरोसा जीत लिया तो उसका असर पुरुलिया, पश्चिम मेदिनीपुर और झाड़ग्राम जिलों पर पड़ना तय है जहाँ विधानसभा की 32 सीटें आती हैं। उधर ममता के इस फैसले से विपक्ष, खासकर भाजपा, में जबरदस्त खलबली है। भाजपा पश्चिम बंगाल में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है लेकिन ममता के फैसले उसे बेचैन कर रहे हैं।