तिरुवनंतपुरम में सदियों पुराने श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर के हाल ही में खुले तहखानों में से ‘खोजा’ गया सोने, चांदी, हीरे और अनमोल सिक्कों से मिलकर बना खजाना लोगों को रोमांचित भी कर रहा है और उत्तेजित भी. आगे क्या हो, इसे लेकर हर कोई अपना सुझाव दे रहा है. केरल सरकार ने तो सीधे तौर पर कह दिया है कि यह पूरी संपत्ति मंदिर की है और उसको कहीं और ले जाने का सवाल ही नहीं उठता. हालांकि सरकार ने यह भी कहा है कि संपत्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य की है और इसलिए उसने मंदिर की सुरक्षा भी बढ़ा दी है.
इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की पड़ताल को लेकर मीडिया में जिस तरह के उन्मादी अनुमान देखने को मिले उसकी कई लोगों ने आलोचना की है. आलोचना मीडिया की भी हुई है और कमेटी की भी. सवाल कई हैं. आखिर किसने बढ़ा-चढ़ा कर ये कहानियां लीक कीं? क्या मीडिया को यह बात इतनी सनसनीखेज बना कर दिखानी चाहिए थी? रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखने से पहले उसके बारे में मीडिया से बात करने का अधिकार कमेटी को किसने दिया?
पूरा देश भले ही मंदिर में रखे खजाने का आंकड़ा सुनकर हैरान हो मगर शहर के पुराने लोगों और मंदिर के भक्तों के लिए यह रहस्योद्घाटन कोई हैरान कर देने वाली घटना नहीं है. वे पहले से ही जानते थे कि इस तरह के तहखाने (थिरू-अरस) वजूद में हैं और उनमें सोने, चांदी और अनमोल पत्थरों का बहुमूल्य खजाना है, जो तकरीबन 8वीं सदी से भगवान को चढ़ाया जाता रहा है. इन छह तहखानों को ए, बी, सी, डी, ई, एफ नाम से चिह्नित किया गया है. यह भी कहा गया है कि ए और बी नाम के तहखाने पिछले 150 साल से भी ज्यादा समय से नहीं खुले हैं. वहीं दूसरे तहखाने जहां भगवान के सोने के आभूषण, रत्न जड़ित श्रृंगार सामग्री और बर्तन रखे हैं, पूजा के खास मौकों पर खोले जाते रहे हैं.
यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि इस खजाने में से तकरीबन 95 फीसदी संपत्ति त्रावणकोर के राजाओं और उनके शाही परिवार के लोगों ने अपने देवता श्री पद्मनाभ स्वामी को समर्पित की थी. यह बात माथीलकम् दस्तावेजों (पत्तों पर लिखी पांडुलिपि जिसमें मंदिरों से जुड़ी जरूरी जानकारियां उपलब्ध हैं और जो केरल के राज्य लेखागार में सुरक्षित है) से भी साबित होती है. अनिझम थिरूनाल मार्तंड वर्मा (1729-58) के शासनकाल में इस मंदिर में मरम्मत का भारी-भरकम कार्य हुआ जिसमें भव्य पूर्वी प्रवेशद्वार और शेवली पुरा या मंदिर के चारों तरफ़ से ग्रेनाइट पत्थरों की छतरियों से ढका गलियारा प्रमुख निर्माण था.
आधुनिक त्रावणकोर के संस्थापक कहे जाने वाले मार्तंड वर्मा ने अपने कई पड़ोसी राज्यों को जीतने के बाद अपना राज्य और उसकी सत्ता भगवान श्री पद्मनाभ स्वामी को समर्पित कर दी थी. उनका ऐसा आत्मसमर्पण इतिहास में त्रिपदीदानम (बिना शर्त आत्मसमर्पण) के नाम से जाना गया और इस तरह श्री पद्मनाभ स्वामी त्रावणकोर राज्य के महाराजा माने गए. इसके बाद से ही सभी शासकों को पद्मनाभ भगवान का दास माना गया जो उनकी तरफ से राज्य का शासन संभाल रहे थे. मार्तंड वर्मा लगातार मंदिर को सोना और अनमोल पत्थर समर्पित करते गए और यह परंपरा उनके बाद के शासकों ने भी जारी रखी. इन शासकों में महान संगीतज्ञ राजा स्वाति थिरूनाल राम वर्मा और आखिरी राजा श्री चिथिरा थिरूनाल बाला राम वर्मा भी शामिल थे. कहा जा रहा है कि तहखाने में मौजूद अमूल्य संपत्ति में ऐतिहासिक महत्व के सिक्कों का ढेर भी शामिल है. इन सिक्कों में त्रावणकोर शासकों के जमाने के सिक्कों के अलावा ग्रीक और रोमन सिक्के, विजयनागर और नायक सिक्के, वेनिस, हॅालैंड, फ्रांस और ईस्ट इंडिया कंपनी के भी सिक्के मौजू्द हैं.
राज्य के बाधारहित इतिहास और लू्ट-मार करने वाली सेनाओं से राज्य के अजेय रहने की वजह से ही मंदिर का यह खजाना सुरक्षित रह पाया है. पुराने दिनों में यह शहर इस संपदा को बड़ा सम्मान देता था. हालांकि आज हर कोई बिना इसका इतिहास जाने अपनी सलाह दे रहा है. कुछ लोग चाहते हैं कि इस खजाने को देश के लाखों भूखे लोगों में बांट दिया जाये, कुछ चाहते हैं कि संग्रहालय में इसकी प्रदर्शनी लगे और कुछ चाहते हैं कि रिजर्व बैंक इसको कुर्क कर ले. दुर्भाग्य से, ये सारी बातें मंदिर के संरक्षकों यानी त्रावणकोर शाही परिवार के उस समर्पण को नजरअंदाज करके कही जा रही हैं जो उन्होंने इस खजाने को संरक्षित करने में दिखाया था. इस राज्य के शासकों ने औपनिवेशिक भारत में कई क्रांतिकारी फसले भी लिए थे. यह पहला राज्य था जिसने फांसी की सजा को बंद किया और साथ ही 1936 में ऐसा कानून बहाल किया जिससे अछूतों को मंदिर में प्रवेश की इजाजत मिली.
अचानक से पड़ी मीडिया की यह तीखी नजर बिल्कुल ही असहनीय है. इसी का परिणाम है कि मंदिर के प्रांगण में अब खुफिया कैमरे भी भेजे जाने लगे हैं. सवाल यह उठता है कि खजाने के लिए श्री पद्मनाभ स्वामी की ‘योग निद्रा’ में विघ्न डालने की क्या जरूरत है.