पूरी दुनिया में विभिन्न देशों में लाखों $गरीब बच्चे गरीबी, भूख और कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। गरीबी का दायरा बढ़ रहा है। भूखे लोगों की तादाद भी बढ़ती जा रही है। आपको याद है पिछले ही महीने अपने देश के एक प्रदेश झारखंड में ग्यारह साल की संतोष कुमारी प्रदेश में थोपी गई भुखमरी के चलते पांच दिन से भात-भात की गुहार लगाती आखिरकार मर गई। क्या आपको याद हैं वे तस्वीरें जो 30 दिन के सीरियाई शिशु की थीं। उसका नाम था सहर दोफ्ता वह युद्ध में तबाह सीरिया में कुपोषण (दूध न मिलने से) के कारण मरी। उसके शरीर में कुछ भी नहीं था। उसके कंकालनुमा शरीर में सिर्फ हड्डियां थीं। उसकी पसलियां किस तरह बाहर को आ रही थीं। आप ने चित्रों में हज़ारों रोहिंग्या शरणार्थियों को बांग्लादेश में भोजन और पानी के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े देखा होगा। उनकी बेबसी और उनकी असहायता से आपके मन में क्या कोई बेचैनी कभी नहीं हुई। क्या आपको तनिक भी भय नहीं लगा। आज तो ये हैं, कल को हम या हमारा कोई हो सकता है।
यदि हम देश के अंदर ही विस्थापित हुए लोगों के आंकड़े देखें तो वर्ष 2016 में यह संख्या सर्वाधिक है। एक जगह से दूसरी जगह जाने का नतीजा यह है कि विस्थापित हुए लोगों के सिर पर छत नहीं होती। वे किसी कोने में गठरी बने दुबके रहते हैं। इन पर शरणार्थी होने का तमगा टंग जाता है।
दरअसल एक के बाद दूसरी खबर भूख से मरने की आई। मैं एकदम असहाय सी बैठ गई। मुझे बेहद परेशानी हुई। उस रात मैंने टेलीविज़न चलाया और देखा बांग्लादेश की सीमा पर रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को सिख कार्यकर्ता आहार देते हैं। मुझे धक्का सा लगा क्योंकि जिस अंधेरे दौर से हम गुज़र रहे हैं उसमें ऐसा कुछ दिखना वाकई दुर्लभ है।
उत्सुकता में मैंने ऐसे दुर्लभ लोगों के बारे में छानबीन शुरू की। मुझे जानकारी मिली कि ये खालसा एड के कार्यकर्ता हैं जो मानव धर्म निभाने में कभी किसी जाति, रंग या देश की परवाह नहीं करते। जैसे ही उन्हें पता चलता है कि अमुक जगह मानव खाना, छत, दवा, कपड़ों से वंचित है और सहयोग चाहता है, वे तुरंत राहत का सामान लेकर वहां पहुंच जाते हैं और कमज़ोर, दुखी, भूखे लोगों की मदद करने लगते हैं।
नई दिल्ली में खालसा एड वालंटियर मनप्रीत सिंह ने कहा, ‘जब भी हमें कहीं, किसी भी संकट का पता चलता है। जहां तरह-तरह की विपदा में लोग खुद को असहाय महसूस करने लगते हैं, परिवार, बच्चे भूख से पीडि़त होते हैं, कपड़ों से लाचार होते हैं, दवा की उन्हें ज़रूरत होती है। वहां हमारे लोग उनकी हर तरह से मदद करते हैं। मदद की गुहार किसी भी जाति, समुदाय, देश से हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे पवित्र धार्मिक ग्रंथ, गुरू ग्रंथ साहिब में लिखा है कि सबसे बड़ा धर्म मानवता की सेवा है। मानवीय होना ही ईश्वर सेवा है।
उसकी बात सुन कर मैं तो हतप्रभ रह गई। आज के समय में भारत के युवा सिखों का एक समूह इस तरह का भी है जो ज़रूरतमंदों की मदद करने को आतुर रहता है। बांग्लादेश से लौटे मनप्रीत ने बताया यदि सरकारी आंकड़ों पर भरोसा करें तो करीब 50 हज़ार रोहिंग्या लोगों में अनाथ बच्चे और गर्भवती महिलाएं हैं जो शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। मैं और खालसा एड के मेरे सहयोगी कुलबीर सिंह, जीवन ज्योत और अमरप्रीत सिंह, सीमा पर उन शिविरों के लोगों के लिए मदद का काम कर रहे हैं। उन बेघर, बेसहारों की छोटी-छोटी ज़रूरतों को हम पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं।
कोई यह नहीं सोच सकता कि कितनी तकलीफदेह जि़ंदगी ये लोग शरणार्थी शिविरों में जी रहे हैं। इन शिविरों में कुछ दिनों पहले सात साल की एक बच्ची अपने दो साल के भाई को लेकर पहुंची। उसका भाई आधा जला हुआ था। उसकी मां के साथ सामुहिक दुष्कर्म हुआ फिर उसे गोली मार दी गई। पिता को उसके सामने ही मार दिया गया था और बच्चे को जलती भट्टी में फेंक दिया गया। उसे बच्ची ने किसी तरह वहां से निकाला। मनप्रीत ने कहा, उसकी तस्वीर मेरीे आंखों के सामने आ जाती है। जो मेरे मानस पटल पर ठहरी रहती है।
ऐसी ही तकलीफदेह कई घटनाओं का मनप्रीत ने किस्सा सुनाया। उसने कहा, नई दिल्ली के एक हिंदू परिवार से उसे मदद की गुहार मिली थी। उनकी छोटी बच्ची की तबीयत बहुत खराब थी और उसे चिकित्सा की ज़रूरत थी। खालसा दल के कार्यकर्ताओं ने उसकी तबियत का पूरा ब्यौरा फेसबुक साइट पर डाला। उसकी मदद को आगे आए हरभजन सिंह सिद्धू। वे नई दिल्ली के उस अस्पताल में पहुंचे जहां बच्ची दाखिल थीं। उन्होंने उसकी चिकित्सा के पूरे बिल अदा किए।
खालसा एड की यह एक टीम है जो विपदा से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए हमेशा सक्रिय रहती है। इसके पहले वे मुजफ्फरनगर हिंसा में शिकार बेघर हुए लोगों तक पहुंचे। श्रीनगर में जब बाढ़ आई तो ये वहां भी पहुंचे। इस समर्पित टीम के अध्यक्ष है रवि सिंह जो यूके के हैं। अमरप्रीत सिंह एशिया देखते हैं और दिल्ली में ही रहते है। इनकी टीम में कई सौ वालंटियर (स्वयंसेवक) हैं जो इनकी अपील पर कहीं भी जाकर सहयोग देने को हर पल तैयार रहते हैं।
यह बड़ी राहत की बात है कि आज जब हर कहीं अंधे युग का माहौल हैं उसमें भी कुछ सहायता करने और मदद करने वाले हैं। विभिन्न राजनीतिक विचार धाराओं के चलते समाज में विभाजन कराने वाली ताकतों को याद कीजिए पहले अंग्रेजों ने यह किया फिर सत्ता पार्टी ने, पर हमें सजग रहते हुए इन सहयोगी संगठनों को बढ़ावा देना चाहिए।
मशहूर लेखक खुशवंत सिह ने मुझसे बातचीत करते हुए कई बार कहा था कि इन फासीवादी ताकतों से मुकाबले के लिए सिख और मुसलमानों में एकता होनी चाहिए। विभाजन से जो दूरियां बनी हंै वे पाटी जानी चाहिए। मुझे जब रॉकफेलर स्कालरशिप, ‘हिस्ट्री ऑफ सिखÓ लिखने के लिए मिली तो मैं दिल्ली विश्वविद्यालय की बजाए अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय गया। वजह थी कि दोनों समुदायों में आई दूरी मिटाई जाए। जो कुछ भी घट रहा है उस पर बुद्धिजीवियों को बिना डरे लिखना-बोलना चाहिए। इन समुदायों को एक-दूजे का साथ देते हुए फासीवादी ताकतों को हराना चाहिए।