लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद लगे झटके से कांग्रेस पार्टी उबर नहीं पा रही है. आम चुनावों के बाद पार्टी को हरियाणा समेत कई राज्यों में पराजय का मुंह देखना पड़ा. इस बात से न केवल आलाकमान का दबदबा कम हुआ है, बल्कि पंजाब जैसे अहम राज्य में क्षत्रपों ने उसे चुनौती देनी भी शुरू कर दी है.
दिल्ली से सटे हरियाणा में हालांकि गुटबाजी अभी सार्वजनिक नहीं हुई है, लेकिन वहां प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर तथा पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के बीच खींचतान चल रही है. वहीं पंजाब में पार्टी अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच आपसी विवाद भी सतह पर आ गया है. यह स्थिति पार्टी को असहज बना रही है.
कांग्रेस पार्टी के लिए हरियाणा और कांग्रेस दोनों ही चिंता का कारण बन गए हैं. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा अपने समर्थक विधायकों का शक्ति प्रदर्शन आलाकमान के सामने कर चुके हैं. लोहड़ी के मौके पर उन्होंने दिल्ली स्थित अपने निवास पर पत्रकारों को भोज पर आमंत्रित किया था जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीज, जनार्दन दिवेदी, आनंद शर्मा तथा गुलाम नबी आजाद मौजूद थे. उल्लेखनीय है कि तंवर को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है. हुड्डा के शक्ति प्रदर्शन के बावजूद उनके कट्टर विरोधी स्वर्गीय बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी को आलाकमान ने विधायक दल का नेता बना दिया.
उधर पंजाब में हालत और खराब है. पार्टी लंबे समय से यहां सत्ता से बाहर है और राज्य के नेता गुटबाजी में व्यस्त हैं. पंजाब विधानसभा में वर्ष 2017 में चुनाव होने हैं इसे देखते हुए यह गुटबाजी कांग्रेस की चिंताओं में सबसे ऊपर है. कांग्रेस वहां दो बार अकाली दल और भाजपा गठबंधन से परास्त हो चुकी है. अकाली-भाजपा गठबंधन के खिलाफ एक स्वाभाविक सत्ता विरोधी लहर पूरे पंजाब में मौजूद है, लेकिन भयंकर गुटबाजी के चलते कांग्रेस पार्टी में जरूरी विश्वास पैदा नहीं हो पा रहा.
प्रदेश पार्टी अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा के नेतृत्व के खिलाफ लोकसभा में पार्टी के उपनेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री (अमृतसर से मौजूदा सांसद) कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुली बगावत कर दी है. न केवल इनके समर्थक, बल्कि ये दोनों नेता भी एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगल रहे हैं. आलाकमान की तमाम नसीहतों के बावजूद दोनों एक-दूसरे के साथ अपने मतभेद सार्वजनिक रूप से जाहिर कर रहे हैं. यह बात जाहिर है कि तंवर की तरह बाजवा को भी राहुल गांधी की पसंद पर अध्यक्ष बनाया गया है.
प्रताप सिंह बाजवा 2009 के लोकसभा चुनाव में गुरदासपुर सीट से भाजपा के नेता विनोद खन्ना को हराकर राहुल गांधी की नजरों में आए थे
उनके खिलाफ बगावत को सीधे राहुल गांधी को दी गई चुनौती माना जा रहा है. इस बीच तीन विधायक पार्टी छोड़कर जा चुके हैं, इनमें से मोगा के जोगिंदर पाल जैन और तलवंडी के मोहिंदर सिंह तो अकाली दल का दामन भी थाम चुके हैं. पार्टी को ताजा झटका लगा है धुरी के विधायक अरविंद खन्ना के इस्तीफे से. हालांकि प्रत्यक्ष तौर पर तो उन्होंने इस्तीफे की वजह सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर परिवार और कारोबार संभालने को बताया है, लेकिन माना जा रहा है कि अमरिंदर सिंह के समर्थन में उन्होंने यह कदम उठाया है. उनके इस्तीफे से अकाली दल को काफी मजबूती मिली है.
पंजाब की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है. इन दिनों अकाली दल और भाजपा गठबंधन की दरारें भी स्पष्ट नजर आ रही हैं. राजनीतिक हल्कों में यह धारणा है कि भाजपा आगामी चुनाव से पहले अकाली दल के साथ अपना गठबंधन तोड़ लेगी. ताजा घटनाक्रम के तहत सूबे में नशीली दवा के धंधे में संलिप्त होने के आरोपी अकाली मंत्री तथा मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के रिश्तेदार विक्रम सिंह मजीठिया का इस्तीफा भाजपा की ओर से मांगा जा रहा है.
पंजाब में नशीली दवाओं का धंधा बड़ा चुनावी मुद्दा है. कांग्रेस और भाजपा दोनों बादल सरकार पर इस धंधे में शामिल लोगों को प्रश्रय देने का आरोप लगाती रही हैं. पंजाब कांग्रेस विधायक दल के नेता सुनील झाखड़ ने तो यहां तक आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने अकाली दल के दबाव में ही मजीठिया से पूछताछ करनेवाले प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों का तबादला किया है.
जाखड़ का यह भी कहना है कि अकाली दल ने भाजपा को धमकी दी थी कि वह दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक दर्जन जगहों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर सकता है. बाजवा समर्थकों का कहना है कि खन्ना ने इसलिए इस्तीफा दिया है ताकि उस सीट से अकाली उम्मीदवार जीत जाए. इससे विधानसभा में समीकरण अकाली दल के पक्ष में हो जाएंगे और वह बिना भाजपा के समर्थन के अपनी सरकार बना सकती है.
पंजाब कांग्रेस में चल रही गुटबाजी पर एक कहावत पूरी तरह से लागू होती है कि दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर रोटी ले भागा. जब अमरिंदर सिंह औ्र बाजवा आपसी लड़ाई में लीन हैं, तब पूर्व मुख्यमंत्री रजिंदर कौर भट्टल भी इसमें अपनी संभावनाएं तलाशने लगी हैं. उन्होंने खन्ना के इस्तीफे पर बयान दिया कि वह कांग्रेस के नहीं, बल्कि अमरिंदर सिंह के वफादार थे. भट्टल ने अपने लिए गुंजाइश देखते हुए तत्काल आलाकमान से यह मांग भी कर दी कि वह पार्टी की गुटबाजी रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए.
भट्टल का आकलन है कि पार्टी मौजूदा हालत में बाजवा को तो पद से हटाएगी, लेकिन उनकी जगह अमरिंदर सिंह को अध्यक्ष नहीं बनाएगी. ऐसे में दो बिल्लियों की लड़ाई वाली कहावत चरितार्थ होने पर वे भी पार्टी अध्यक्ष बन सकती हैं. काबिलेगौर है की भट्टल पंजाब की पहली महिला मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. भट्टल और अमरिंदर सिंह के रिश्ते भी काफी समय से खराब चल रहे हैं. 12 साल पहले उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर सिंह के खिलाफ खुली बगावत की थी. अपने समर्थक विधायकों के साथ उन्हें हटवाने के लिए दिल्ली में डेरा भी डाला था, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई. इस उठापटक में भट्टल अपना पुराना हिसाब चुकाने की संभावना भी देख रही हैं.
पंजाब कांग्रेस विधायक दल के नेता सुनील जाखड़ फिलहाल अमरिंदर सिंह के साथ हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी हालांकि कहते हैं कि अध्यक्ष बदलना पार्टी का विशेषाधिकार है, लेकिन वह यह जोड़ना नहीं भूलते कि अमरिंदर सिंह पार्टी के बहुत कद्दावर नेता हैं.
अमरिंदर सिंह की मांग है कि बाजवा की जगह पार्टी की कमान उन्हें सौंपी जाए. वे अपने गुट की अलग बैठक करके आलाकमान को अपनी ताकत और इरादे का अहसास करा चुके हैं. इस गुटबाजी से निपटना पार्टी के लिए बड़ी दिक्कत बन गया है. बाजवा की नियुक्ति से राहुल गांधी की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई ह,ै लिहाजा उन्हें हटाने की सूरत में राहुल की किरकिरी होनी तय है. यही वजह है कि बाजवा लगातार उनके दरबार में हाजिरी दे रहे हैं.
प्रताप सिंह बाजवा को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दो वर्ष पहले पार्टी का अध्यक्ष बनाया था. युवक कांग्रेस से राजनीति शुरू करनेवाले बाजवा राजनीतिक परिवार से हैं. उनके पिता सतनाम सिंह बाजवा पंजाब में मंत्री रह चुके हैं. वे भी कई बार विधायक रह चुके हैं और उनकी पत्नी भी इस समय विधायक हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में गुरदासपुर सीट से भाजपा के तत्कालीन सांसद विनोद खन्ना को हराकर बाजवा राहुल गांधी की नजरों में आए थे.
लेकिन अब अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेता अमरिंदर सिंह के सामने वे खुद को घिरा हुआ पा रहे हैं. भले ही बाजवा को आलाकमान और राहुल गांधी का वरदहस्त हासिल है, लेकिन ज्यादातर विधायक, राज्य इकाई के नेता और जिलाध्यक्ष आदि अमरिंदर सिंह के साथ हैं. ऐसे में बाजवा की सारी उम्मीदें राहुल गांधी पर ही टिकी हैं.
कलह से परेशान पार्टी के पंजाब प्रभारी और कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने कांग्रेसियों को एक भोज में एकता की नसीहत दी थी, लेकिन वह बेअसर रही
बाजवा के नेतृत्व के खिलाफ बगावत के सुर लोकसभा चुनाव के बाद ही फूटने लगे थे जब वे गुरदासपुर की सीट से चुनाव हार गए थे. जबकि उनके विरोधी अमरिंदर सिंह ने अमृतसर में भाजपा के कद्दावर नेता अरुण जेटली को पराजित कर दिया था. जाहिर है इससे उनका कद और हौसला दोनों बढ़ा है. पंजाब की राजनीति को जाननेवाले बताते हैं कि यहां के लोगों को अमरिंदर सिंह जैसे दबंग छविवाले नेता ही रास आते हैं. राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रमेश मदान का कहना है कि अमरिंदर सिंह में प्रदेश की अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार से टक्कर लेने का माद्दा है. पार्टी ने उन्हें संसद में उपनेता भले बना दिया है, लेकिन उनका मन पंजाब की राजनीति में ही रमा हुआ है.
अकाली दल और भाजपा सरकार के खिलाफ जनता में पैदा हुए रोष को देखते हुए दोनों नेताओं को सूबे की सत्ता अपने करीब आती दिख रही है. इस उम्मीद ने बाजवा और सिंह के बीच तनाव और संघर्ष को हवा दे दी है. अकाली दल के खिलाफ लोगों में भारी रोष है. वरिष्ठ अकाली मंत्री और मुख्यमंत्री बादल के रिश्तेदार विक्रम सिंह मजीठिया पर नशीली दवाओं के धंधे में शामिल होने का आरोप लग चुका है. प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने उनसे पूछताछ भी की है. ऐसे में कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि आगामी चुनाव में जनता उसे सरकार बनाने का मौका देगी. जाहिर है जिस नेता के पास चुनाव की कमान होगी वही मुख्यमंत्री पद का दावेदार होगा. पिछले तीन दशक से पंजाब की राजनीति को परख रहे राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार बलजीत बल्ली कहते हैं, ‘लोकसभा चुनाव में अकाली दल-भाजपा सरकार के खिलाफ रोष का फायदा कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी को मिला और उसके चार सांसद जीते. इस बार फिर से कांग्रेस नेताओं की आपसी लड़ाई देखकर लगता है कि पार्टी विधानसभा चुनाव में किसी तरह का फायदा उठाने की स्थिति में नहीं है.’
कलह से परेशान पार्टी के पंजाब प्रभारी और कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने भी पंजाब के कांग्रेसियों को एक भोज में एकता की नसीहत दी थी, लेकिन वह बेअसर रही. हालांकि इस बीच दिखावे की राजनीति भी खूब हुई. इसने लोगों को हैरान भी किया. राहुल गांधी की उपस्थिति में मंच पर ही बाजवा और अमरिंदर सिंह गले मिलते भी नजर आए.
जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को तो पिछले विधानसभा चुनाव में ही जीत मिलनी चाहिए थी, लेकिन वह सत्ता हासिल करने से चूक गई. उस पराजय में भी गुटबाजी और अंतर्कलह की अहम भूमिका रही. पंजाब में विधानसभा चुनाव अभी कुछ दूर हैं, लेकिन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पर ग्रहण लग चुका है. शकील अहमद द्वारा पार्टी की गुटबाजी को खत्म न कर पाने के बाद पार्टी ने उनकी जगह पी.सी चाको को कमान दी, लेकिन वह भी कोई चमत्कार नहीं दिखा सके.
अंतर्कलह की बात की जाए तो फिलहाल हरियाणा और पंजाब के बीच कमोबेश एक जैसी परिस्थितियां हैं. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में दोनों राज्यों में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा. पंजाब को लेकर आलाकमान की चिंता लगातार बढ़ती जा रही है. अकाली दल और भाजपा गठबंधन लगातार दूसरी बार सत्ता में हैं. इसे देखते हुए होना तो यह चाहिए था कि बेहतर समन्वय के जरिए पार्टी संगठन को मजबूत करती और इसका इस्तेमाल चुनावों में विरोधियों को मात देने के लिए करती.
फिलहाल तो पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता दिल्ली के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं. ऐसे में तत्काल बाजवा को हटाए जाने की कोई सूरत नहीं नजर आती. पिछले दिनों राज्य में दौरे पर आई राज्यसभा सदस्य और सोनिया गांधी के कार्यालय से जुड़ी अंबिका सोनी ने भी साफ कहा था कि किसी के महज शक्ति प्रदर्शन करने भर से प्रदेश अध्यक्ष को पद से नहीं हटाया जाएगा. हालांकि जब उनसे नेतृत्व परिवर्तन की संभावना पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि फिलहाल पार्टी का सदस्यता अभियान जारी है और अप्रैल में इसके खत्म होने के बाद संगठन चुनाव होंगे. चुनाव में कोई भी चुनकर आ सकता है. लेकिन जमीनी हालात अलग हैं. नेताओं और उनके समर्थकों की आपसी बयानबाजी को आलाकमान भी नहीं रोक पा रहा है.
अमरिंदर सिंह जहां पटियाला स्थित मोतीबाग निवास में अपने समर्थकों की बैठक बुलाकर आलाकमान को अपनी ताकत दिखा चुके हैं, वहीं उन्होंने पार्टी द्वारा माघी मेले के मौके पर मुक्तसर में आयोजित कार्यक्रम का बहिष्कार भी किया. उस कार्यक्रम में बाजवा, भट्टल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहिंदर सिंह केपी और युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा शामिल हुए. बाजवा से जब पूछा गया कि पार्टी के इस कार्यक्रम में अमरिंदर सिंह क्यों नहीं आये, तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि क्या अकालियों के कार्यक्रम में सारे अकाली नेता आये थे.
बाजवा, अमरिंदर सिंह के समर्थकों पर कार्रवाई करने में भी पीछे नहीं हैं. उन्होंने अमरिंदर समर्थक माने जानेवाले लुधियाना शहर के पार्टी अध्यक्ष पवन दीवान को पद से हटा दिया. वहीं बाजवा द्वारा विधानसभा उपचुनाव में पार्टी की हार के लिए अमरिंदर सिंह को जिम्मेदार ठहराये जाने की सिंह समर्थकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है. बाजवा के गृह नगर गुरदासपुर के कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष सुखजिंदर सिंह ने कहा कि बाजवा तो खुद लोकसभा चुनाव हार चुके हैं जबकि वे खुद को भावी मुख्यमंत्री बता रहे थे.
उन्होंने यहां तक कहा कि बाजवा को अमरिंदर सिंह की आलोचना करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं क्योंकि अमरिंदर सिंह अरुण जेटली को हराकर अपनी लोकप्रियता साबित कर चुके हैं. इतना ही नहीं पिछले दिनों लुधियाना में अमरिंदर सिंह के समर्थकों ने बाजवा को काले झंडे दिखाए और बाजवा वापस जाओ के नारे भी लगाए. दोनों नेताओं के समर्थकों के बीच हाथापाई की नौबत आ गई थी.
इसी बीच अमरिंदर सिंह द्वारा अपने संसदीय क्षेत्र अमृतसर में ललकार रैली के आयोजन को खुले तौर पर आलाकमान के खिलाफ चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. मौजूदा सरकार द्वारा नशीली दवाओं के कारोबार में लगे लोगों को संरक्षण देने के खिलाफ इस रैली का आयोजन किया गया था. यह वास्तव में अमरिंदर सिंह का शक्ति प्रदर्शन था. रैली में पूरे प्रदेश से काफी तादाद में लोग आए. पंजाब के 43 कांग्रेस विधायकों में से 33 ने यहां अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. यहां तक कि प्रताप सिंह बाजवा के गृह जिले गुरदासपुर के चार विधायक सुखजिंदर सिंह रंधावा, राजिंदर सिंह बाजवा, अश्वनी शेखरी और अरुणा चौधरी भी रैली में शामिल हुए. इसके अलावा कांग्रेस विधायक दल के नेता सुनील जाखड़, पूर्व केंद्रीय मंत्री परनीत कौर, मनीष तिवारी, जालंधर के सांसद चौधरी संतोष सिंह व पूर्व राजयपाल आरएल भाटिया भी रैली में शामिल हुए. जबकि बाजवा और भट्टल समेत विरोधी गुट के नेता इस रैली से दूर रहे. रैली में एक के बाद एक नेताओं ने अमरिंदर सिंह से पार्टी की कमान संभालने का आग्रह किया. चौधरी संतोष सिंह ने तो यहां तक ऐलान कर दिया की आज की रैली ने दो वर्ष बाद कांग्रेस के सत्ता में आने की नींव रख दी है. नेतृत्व परिवर्तन का मुद्दा इतना छाया रहा कि नशे के मुद्दे पर सरकार को घेरने का मुख्य एजेंडा कहीं पीछे छूट गया.
राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि रैली में अमरिंदर सिंह ने अपनी ताकत पार्टी आलाकमान को दिखा दी है. रैली से एक दिन पहले ही प्रताप सिंह बाजवा ने कह दिया था की न तो उन्हें रैली में बुलाया गया है और न ही रैली को आलाकमान का समर्थन है. लेकिन बाजवा ने यह जरूर कहा था की अमरिंदर सिंह अमृतसर से सांसद हैं और अपने क्षेत्र में रैली करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं.
पिछले दिनों लुधियाना में अमरिंदर सिंह के समर्थकों ने बाजवा को काले झंडे दिखए और बाजवा वापस जाओ के नारे तक लगाए गए
पिछले दिनों ऐसी चर्चा भी चली थी कि अमरिंदर सिंह भाजपा नेताओं के सम्पर्क में है तथा वे कांग्रेस पार्टी छोड़ सकते है. सिंह के समर्थक इन अफवाहों के पीछे बाजवा का हाथ होने की बात कह रहे हैं. सिंह साफ कह चुके हैं कि वे पार्टी के निष्ठावान सिपाही हैं और उसे छोड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता.
हालांकि पिछले दिनों लोकसभा के शीतकालीन सत्र में भाग नहीं लेने बारे अमरिंदर सिंह कहते है कि वे पारिवारिक कारणों से वे सत्र में हिस्सा नहीं ले पाए. इसकी पूर्व सूचना उन्होंने आलाकमान को दे दी थी.
वह खुलकर कहते हैं कि बाजवा के नेतृत्व में पार्टी कमजोर हो रही है. जबकि बाजवा का दावा है कि उन्होंने कमान संभालने के बाद पार्टी में नई जान फूंकी है और प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्ववाली गठबंधन सरकार को नशे के कारोबार से जुड़े मुद्दों पर कई बार कठघरे में खींचा है. यहां यह बात ध्यान देनेवाली है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी इसी मुद्दे पर अमृतसर में रैली करनेवाले थे, लेकिन अमरिंदर सिंह द्वारा उसी दिन अमृतसर में रैली करने की चुनौती देने के बाद शाह की रैली रद्द कर दी गई. हालांकि इसकी वजह दिल्ली विधानसभा चुनाव को बताया गया. अब अमरिंदर सिंह के समर्थक इसे अपनी जीत के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं.
फिलहाल बाजवा और अमरिंदर सिंह दोनों के समर्थक दिल्ली में जमे हुए हैं और एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी का सिलसिला जारी है. बाजवा का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से अपनी मुलाकात के बारे में अमरिंदर सिंह मीडिया में बयानबाजी कर रहे हैं. वहीं सिंह ने पार्टी अध्यक्ष को साफ बता दिया है कि वह प्रदेश में पार्टी की कमान अपने हाथ में चाहते हैं. इन तमाम बातों के बीच एक बात तो तय है कि प्रदेश के इन दोनों नेताओं की आपसी लड़ाई ने जनाक्रोश का सामना कर रही अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार को मुस्कराने का अवसर दे दिया है.