बुन्देलखण्ड में कोरोना का कहर ,  सगे संम्बधियों तक को कांधा देने से बच रहे है

कोरोना काल में लोगों में सोशल डिस्टेंसिग के कारण या कोरोना के डर की वजह अब आपस में इस कहर दूरियां बढ रही है कि रोग -शोक तक के बारे में कोई किसी के बारे में जानना नहीं चाह रहा है। आलम ये है कि कोरोना रोगियों के परिजनों तक से मिलना और संपर्क नहीं रख रहे है। जिस भी व्यक्ति की कोरोना से मौत हो जाने पर इस शोक की घडी में  उसके परिजनों तक से लोग सारे रिश्ते नाते तक को भुलाने को तैयार है।बुन्देलखण्ड में कोरोना का कहर दिन व दिन  बढता ही जा रहा है। बुन्देलखण्ड के मध्य- प्रदेश और उत्तर –देश के हिस्से वाले जिलों में हर रोज कोरोना के मामले बढ रहे है और मौतें भी हो रही है। मौजूदा हालात को देखकर यहां के लोगों में डर सता रहा है कि अगर ऐसा ही रहा तो यहां पर कोरोना को काबू पाने में दिकक्त हो सकती है।मध्य-प्रदेश के हिस्से वाले सागर , टीकमगढ , पन्ना, दमोह, छतरपुर और दतिया में कोरोना का कहर इस कदर है कि यहां पर रूक –रूक कर बाजार खुल रहे है। यहीं हाल उत्तर –प्रदेश के झांसी, ललितपुर, बांदा, महोबा, जालौन, हमीरपुर और चित्रकूट का है।अब बात करते है कोरोना से हुई मौत की दुखद घटना की जिसके कारण आपसी सौहार्द और रिश्ते नातों को तार –तार कर दिया है। झांसी की पुरानी वस्ती के 70 वर्षीय आदमी की मौत  कोरोना  से हो गई थी । मृतक के बेटे ने इस दुख की घडी में अपने सभी संगे सम्बधियों ,रिश्तेदारों और यहां तक की परिजनों को सूचित किया । लेकिन कोई भी कांधा देने तक नहीं आया फिर बडी मुश्किल में मजदूरों के सहारे शव को श्मशान घाट तक पहुचांया गया। मजदूरों को पीपीई किट दी गई थी। यहीं हाल सागर और टीकमगढ का है यहां पर तो चार पहिया के ढेले तक से शव को लोग बडे डर के साथ श्मशान घाट तक ले जाते है।बुन्देलखण्ड के सामाजिक कार्यकर्ता  हरिश्चंद्र पाठक का कहना है कि  कोरोना  के कहर से लोगों में डर इस कदर बढ गया है कि रिश्तों नातों तक को भूल रहा है । क्या करें  उसे भी डर लगता है कि कहीं वो और उसके परिजन भी कोरोना के चपेट में ना आ जाये।लेकिन उन्होंने अपील की है कि वे पीपीई किट के माध्यम से मृतक परिजनों का सहयोग करें । अमानवीय व्यवहार ना करें । क्योंकि ये बीमारी किसी ने बुलाई नहीं है। रोग- शोक तो सामाजिक हिस्सा है। इसलिये दुख की घडीं में सभी को सावधानी के साथ एक दूसरे का सहयोग करना चाहिये ।

मृतक के परिजनों  का कहना है, कि सदियों पुरानी परम्परा को तोडा जा रहा है । दाह संस्कार तक अपने परिजन नहीं कर रहे और बेगानों से अंतिम संस्कार करवाये जा रहे है।