‘आम आदमी’ के रचयिता विश्वविख्यात कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण ने पुणे के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली. छह दशक तक लगातार, हर सुबह आम आदमी को अपनी पेंसिल से गुदगुदाने, छेड़ने और कुछ लोगों को नाराज करने के बाद अब यह लंबी यात्रा थम गई है. 93 बसंत, पतझड़ और सावन देख चुके आरके लक्ष्मण की जीवनयात्रा जितनी लंबी रही, उनकी कार्टून यात्रा भी उतनी ही विस्तृत रही. उनका जीवन अभिव्यक्ति के बंधनों को लगातार तोड़ता रहा और साथ ही आजाद भारत की लोकतांत्रिक यात्रा के तमाम उजास भरे पहलुओं का गवाह भी बनता रहा. दशकों तक बेनागा आदमी टाइम्स ऑफ इंडिया के पन्नों पर आनेवाला उनका आम आदमी आम भारतीयों की जीवनचर्या का एक तरह से हिस्सा ही बन चुका था.
आरके लक्ष्मण राजनीति, समाज, खेल, चिकित्सा, कानून व्यवस्था यानी आम आदमी से जुड़े हर उस मुद्दे पर हर रोज कटाक्ष करते थे जिसका सरोकार देश की आम जनता से होता था. उनके कार्टून देश के उस आम आदमी को भरोसा देते थे, जिसे आमतौर पर व्यवस्था के हाशिए पर रखा जाता है. शुरुआत से ही लक्ष्मण अपने समकालीनों के विपरीत गहरे राजनीतिक कार्टूनिस्ट नहीं थे. उनकी कूची कॉमन मैन के इर्द-गिर्द ही घूमती थी. उनके प्रिय विषय महंगाई, भ्रष्टाचार, बिजली, सड़क और पानी हुआ करते थे. और इन विषयों पर वे पूरी बेबाकी से अपनी कूची फेरते थे. उनकी कूची के निशाने पर अपने समय के लगभग सभी बड़े राजनेता और उद्योगपति रहे. इस निडरता की वजह से उन्हें चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा. आपातकाल में सत्तारूढ़ इंदिरा सरकार ने उन्हें मनमुताबिक काम न करने पर देश छोड़कर चले जाने को कहा. उन्होंने सरकार की शर्तों पर काम करने की बजाय देश छोड़ना पसंद किया. इस तरह देश का यह प्रखर कार्टूनिस्ट आपातकाल के खत्म होने तक मॉरिशस में निर्वासित जीवन जीता रहा. कहना गलत नहीं होगा कि वह एक ‘पिक्चर परफेक्ट’ कार्टूनिस्ट थे. उनके ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के पॉकेट कार्टून ‘यु सेड इट’ की खास बात यही थी, जैसा दृश्य किसी कैमरे से दिखाई पड़ता है, वैसा हूबहू लक्ष्मण वर्षों तक लगातार कागज पर उतारते रहे. उनके बनाये नेहरू, इंदिरा, राजीव, लालू प्रसाद यादव, डॉ. अब्दुल कलाम जैसी तमाम मशहूर हस्तियों के कैरीकेचर अद्भुत हैं.
मेरे अपने कार्टूनिस्ट जीवन के ऊपर भी उनका कुछ असर है, जिसे यहां बताना चाहूंगा. वे अपने कार्टून ब्रश से ही बनाते थे. उनकी देखा-देखी ही मैं भी अपने कैरियर के शुरुआती सालों में ब्रश का इस्तेमाल किया करता था. वह बड़ा ही मुश्किल काम था, मगर लक्ष्मण तो लक्ष्मण थे. उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि वे अपना दस्तखत भी ब्रश से ही करते थे. तकनीक चाहे जितनी आगे निकल गई हो, उन्होंने ब्लैक एंड व्हाइट कार्टून ही बनाये, यानी आखिर तक उनका ब्रश किसी तकनीक का मोहताज नहीं हुआ. दुख की बात यह है कि आज जब लक्ष्मण हमारे बीच से चले गए हैं तब भ्रष्टाचार, अपराध और बेईमानी का माहौल पहले से ज्यादा घना हुआ है, ऐसे में लक्ष्मण की जरूरत किसी भी समय से ज्यादा इस समय है.