प्रदूषित क्यों होते जा रहे हमारे शहर?

भारत दुनिया का आठवाँ सर्वाधिक प्रदूषित देश बन चुका है। दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रदूषित 50 शहरों में से 39 शहर भारत के हैं। रैंकिंग स्विस फर्म की वल्र्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट में ख़ुलासा हुआ है कि देश की हवा में पीएम2.5 लेवल 53.3 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक गिर गया है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से 10 गुना भी ज़्यादा है। यह 2022 की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें 131 देशों के 7,300 से ज़्यादा शहरों के 30,000 से ज़्यादा ग्राउंड बेसड सरकारी, ग़ैर-सरकारी मॉनिटरों से प्रदूषण जाँच के आँकड़े जुटाये गये थे। 2021 में भारत प्रदूषण के मामले में दुनिया में पाँचवें पायदान पर था। पीएम2.5 अति प्रदूषण वाली स्थिति है। वल्र्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट के अनुसार, टॉप 100 प्रदूषित शहरों में भी भारत के शहर बहुत ज़्यादा हैं।

देश की राजधानी दिल्ली दुनिया की दूसरी सबसे ज़्यादा प्रदूषित राजधानी रही है। दिल्ली के पड़ोसी शहर गुडग़ाँव, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद और फ़रीदाबाद में प्रदूषण स्तर में गिरावट आयी है। हालाँकि दिल्ली में आठ फ़ीसदी की गिरावट की गयी है। और  पिछली बार के नंबर एक से दूसरे नंबर पर है। लेकिन दुनिया 50 शहरों में सबसे ज़्यादा भारतीय शहर हैं, जो कि चिन्ता का विषय है। सवाल यह है कि भारत के शहरों में प्रदूषण लगातार बढ़ क्यों रहा है? भारत में दिल्ली के अलावा राजस्थान का भिवाड़ी सबसे प्रदूषित शहर है। वहीं दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर चाड की राजधानी नदजामेना है। भारत में सबसे तेज़ी से प्रदूषण में गिरावट ताजनगरी आगरा में दर्ज की गयी है।

हालाँकि दुनिया में सबसे प्रदूषित शहर पाकिस्तान का लाहौर है। दूसरा सबसे प्रदूषित शहर चीन का होटन, तीसरा भारत का भिवाड़ी है। ज़ाहिर है बढ़ते वाहनों, तरल ईंधन के उपयोग, कंस्ट्रक्शन, कार्बन, बढ़ती आबादी, घटता वन क्षेत्र और बढ़ती गंदगी इसके मुख्य कारण हैं। अगर अभी से प्रदूषण को कम करने की कोशिश नहीं की गयी, तो भारत के घनी आबादी वाले बड़े शहर आने वाले 40 वर्षों में रहने लायक नहीं बचेंगे। पिछले साल दुनिया में पीएम2.5 की वजह से हर साल 20 लाख से ज़्यादा असामयिक मौतें हुई हैं।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने प्रदूषण को नियंत्रण में लाने के लिए हाल ही में दिल्ली और एनसीआर में सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी थी। एनजीटी ने दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान को प्रदूषण से निपटने के लिए साथ आने को कहा है। आख़िर देश में कब तक किसानों को पराली जलाकर प्रदूषण फैलाने की राजनीति होती रहेगी? क्यों न सरकारें अपने स्तर पर प्रदूषण से निपटने के बारे में सोचती हैं? दिल्ली सरकार सडक़ों पर पानी छिडक़कर प्रदूषण कम करने की जो कोशिश कर रही है, उससे प्रदूषण की समस्या कुछ देर के लिए कम तो हो सकती है; लेकिन हमेशा के लिए हल नहीं होने वाली। इसके लिए सभी तरह के प्रदूषणों से निपटने के लिए ज़मीनी स्तर पर काम करना होगा। वाहनों की संख्या घटानी होगी। लोगों से सार्वजनिक वाहनों में चलने की अपील करनी होगी। पेट्रोल, डीजल और सीएनजी वाहनों का सही विकल्प इलेक्ट्रिक वाहन हैं, उनका इस्तेमाल बढ़ाना होगा। धूम्रपान और धुआँ पैदा करने वाले अन्य संसाधनों पर रोक लगानी होगी। लोगों को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करना होगा।

पिछले 30 वर्षों में जिस तेज़ी से भारत में वन क्षेत्र कम हुए हैं और शहरों का क्षेत्रफल बढ़ा है, उसने प्रदूषण तेज़ी से बढ़ाया है। यह डिजिटलाइजेशन का दौर है, इस दौर में जब हर काम करने के लिए इलेक्ट्रानिक उपकरण हैं, इलैक्ट्रिक वाहन भी बन चुके हैं, प्रदूषण को आसानी से कम किया जा सकता है। लेकिन कुछ पूँजीपतियों के स्वार्थ के चलते यह सम्भव नहीं हो पा रहा है, जिसके पीछे सरकारों में इच्छाशक्ति का अभाव भी बड़ा कारण है। पर पूँजीपतियों के मुनाफ़ा कमाने के लालच को सरकारें इसी तरह समर्थन देती रहीं, तो इसके घातक परिणाम सभी को झेलने होंगे।