अमेरिकी बैंकिंग संकट से हडक़ंप

जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की कि अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली सुरक्षित थी और कठोर बैंक विनियमन की बात कही थी, उस समय अमेरिकी नियामकों को सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक के पतन के बाद उपायों की एक शृंखला के साथ क़दम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जिससे  व्यापक संकट पैदा होने का ख़तरा था। संदेश स्पष्ट था कि यह अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता और विश्वसनीयता के बारे में शेख़ी बघारने का एक अति उत्साही प्रयास था।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह संकट सावधानी और उचित परिश्रम की क़ीमत पर लालच और अतिभोग की सीमा लाँघने का एक उदाहरण है। अमेरिकी बैंकों ने कथित तौर पर वित्तीय नियमों की धज्जियाँ उड़ायीं और बाज़ारों के चढऩे, ऋण का अत्यधिक लाभ उठाने, क्रेडिट बूम, जोखिमों का ग़लत अनुमान लगाने, बैंकों द्वारा ऑफ-बैलेंस शीट संचालन से एक बड़ा संकट उत्पन्न हुआ। विनियमन का पालन नहीं करना, मुद्रास्फीति को कम करने के लिए जोखिम भरी मौद्रिक नीति दोषी थे। बाइडेन ने कहा- ‘अमेरिकी भरोसा कर सकते हैं कि अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली सुरक्षित है। आपकी जमा राशि आपके लिए हर समय उपलब्ध होगी, जब भी आपको इसकी ज़रूरत होगी।’

बाइडेन ने कहा- ‘इस गड़बड़ी के लिए ज़िम्मेदार लोगों को पूरी तरह से जवाबदेह ठहराने और बड़े बैंकों की निगरानी को मज़बूत करने के हमारे प्रयासों को जारी रखने के लिए वे प्रतिबद्ध हैं, ताकि हम फिर से इस स्थिति में न जाएँ। उन्होंने कहा- ‘मैं बैंकिंग नियामकों को कहने जा रहा हूँ कि बैंकों के लिए नियम मज़बूत किये जाएँ, ताकि इस तरह की नाकामी की दोबारा गुंजाइश न बचे और अमेरिकियों की छोटे व्यापार में रोज़गार की रक्षा हो सके।’ 

भारत पर प्रभाव

अब यह भारत जैसे अन्य देशों के लिए है कि वे इसका आकलन करें कि इसका उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? सिलिकॉन वैली बैंक पिछले साल तक शीर्ष 20 अमेरिकी वाणिज्यिक बैंकों में से एक था। यह सन् 2008 के वित्तीय संकट के बाद से अमेरिका में बन्द होने वाला सबसे बड़ा बैंक है, जिसने अर्थव्यवस्था को लगभग पंगु बना दिया था।

मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस के अनुसार, अमेरिका में सिग्नेचर बैंक और सिलिकॉन वैली बैंक की विफलताएँ, जो क्रिप्टो क्षेत्र के प्रमुख ऋणदाता थे; संरचनात्मक कारकों के कारण भारत और एशिया-प्रशांत पर सीमित प्रभाव पडऩे की सम्भावना थी। हालाँकि एक तेज़ी से अन्योन्याश्रित वित्तीय दुनिया में वैश्विक वित्तीय संकट का राष्ट्रों में अर्थव्यवस्थाओं और वित्त पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। वैश्वीकरण के आगमन और बाहरी वित्त पोषण के लिए भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र की पहुँच के साथ यह संकट की चपेट में आ सकता है।

अमेरिका और अन्य विकसित देशों की तुलना में संकट का भारतीय अर्थव्यवस्था पर मामूली प्रभाव पड़ सकता है। भारतीय बैंकिंग प्रणाली में सबप्राइम मोर्टगेज सम्पत्तियों या विफल संस्थानों का कोई प्रत्यक्ष जोखिम नहीं है। इसका बहुत सीमित ऑफ बैलेंस शीट एक्सपोजर है। भारत का विकास मुख्य रूप से घरेलू खपत और निवेश से प्रेरित है। भारतीय वित्तीय प्रणाली भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से काफ़ी हद तक बच सकती है। बैंकिंग प्रणाली सुरक्षित और लचीली है, उच्च पूँजीकरण और सिकुड़ते अंतर-बैंक लिंकेज के कारण; लेकिन चिन्ता का एकमात्र कारण ग़ैर-निष्पादित सम्पत्ति (एनपीए) है।

कुल मिलाकर भारतीय बैंकिंग और ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों ने कई झटकों के लिए लचीलापन प्रदर्शित किया है। अर्थव्यवस्था के लक्षित क्षेत्रों के लिए महामारी के बाद के सार्वजनिक नीति उपायों के प्रभावी वितरण की सुविधा प्रदान की है और भारतीय अर्थव्यवस्था की व्यापक-आधारित वसूली का समर्थन करते हुए वित्तीय सुदृढ़ता को संरक्षित किया है। आरबीआई ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि वित्त के क्षेत्र में तकनीकी नवाचारों की वर्तमान लहर और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत 14 उद्योगों को आपूर्ति शृंखलाओं और घरेलू समर्थन के वैश्विक पुनर्सन्तुलन से उत्पन्न होने वाले नये विकास के अवसर नये व्यापार के रास्ते खोलते हैं। तकनीक के नेतृत्व वाले जटिल नेटवर्क, वैकल्पिक वित्त विकल्प और भू-राजनीतिक विकास से उभरते जोखिमों के प्रति सचेत रहना महत्त्वपूर्ण है।

वित्तीय क्षेत्र को भी जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों और अनिश्चितताओं के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। रिजर्व बैंक की विनियामक और पर्यवेक्षी नीतियाँ वित्तीय स्थिरता को बनाये रखते हुए एक गतिशील, मज़बूत, लचीला और प्रतिस्पर्धी वित्तीय प्रणाली को बढ़ावा देने का प्रयास करेंगी। हालाँकि भारत के लिए महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मज़बूत नियामक प्रणाली के बावजूद कोई भी चेतावनी के संकेतों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है।