70 के दशक में चंबल के सबसे बड़े गैंग के दुर्दांत सरगना के तौर पर कुख्यात रहे मलखान सिंह अब किसान बन चुके हैं. मध्य प्रदेश के गुना जिले की आरोन तहसील में रहने वाले मलखान घाटी में रोजाना पनपने वाले छोटे-छोटे डाकू गिरोहों को एक खतरनाक ट्रेंड बताते हुए कहते हैं, ‘अगर आज चंबल में असली बागी जिंदा होते तो यहां कभी इतनी अराजकता नहीं होती. अब आए दिन अखबारों में पढता हूं कि डाकुओं ने डकैती डालने के बाद घर की लड़कियों का बलात्कार कर दिया. बहुत अफसोस होता है. ये आजकल के नए लड़के हमारा नाम खराब कर रहे हैं. अगर आज हम बीहड़ में होते तो ऐसे गिरोहों के सरगनाओं को जिंदा नहीं छोड़ते.’
मलखान सिंह का जन्म भिंड जिले के बिलाव नामक गांव में हुआ था और वे भी जमीन के एक विवाद के चलते 1970 में ‘बागी’ बन गए थे. लगभग 12 साल तक पुलिस और प्रशासन को चकमा देने वाला मलखान सिंह का गैंग भिंड, मुरैना के साथ-साथ शिवपुरी के जंगलों में भी सक्रिय था. सन 1982 में हथियार डालने के बाद से स्थानीय राजनीति में सक्रिय मलखान चंबल घाटी में जारी डकैतों के आतंक के पीछे राजनेताओं को जिम्मेदार मानते हैं. बीहड़ और डकैतों के कभी न खत्म होने वाले संबंधों पर वे कहते हैं, ‘ हमने भी अपने महाराजा सा (माधव राव सिंधिया) के कहने पर हथियार डाले थे. पर मैं यह साफ कहना चाहता हूं कि दरअसल पुलिस और नेता ही कभी नहीं चाहते कि बागी खत्म हों. पहले तो पुलिस गरीबों की सुनवाई नहीं करती, लोगों पर अत्याचार होते हैं और फिर जब हम विद्रोह कर बागी बन जाते हैं तो नेता हमारा इस्तेमाल करते हैं. इस दुष्चक्र में सबके अपने-अपने हित छिपे हुए हैं, इसलिए चंबल से डाकू कभी खत्म नहीं हो सकते.’