धृतराष्ट्र की आज्ञा पाकर संजय ने आंखों देखा हाल बताना शुरू किया-
‘महाराज, कदाचित देश के गौरव की रक्षा हेतु एक लाडो ने निर्वस्त्र होने की घोषणा कर दी है. बस शर्त यह है कि भारत विश्वकप जीत जाए. ‘फिर!’ धृतराष्ट्र ने उत्सुकता से पूछा. ‘महाराज, उस लाडो के त्याग-समर्पण के प्रताप से भारत विश्वकप जीत भी गया.’
धृतराष्ट्र बोले, ‘उस लाडो के विषय में बताओ.’ ‘उसके बारे में क्या बताऊं? कल तक तो उसे कोई जानता भी न था.’ धृतराष्ट्र गुस्से से बोले, ‘अरे मूर्ख, क्या वह निर्वस्त्र हुई?’ ‘नहीं महाराज.’ संजय के बोल में उदासी के स्वर थे. ‘फिर उसने ऐसा क्यों कहा?’ ‘क्योंकि महाराज, भारतवर्ष इस समय में नंगई जोरो पर है. नंगई को देशभक्ति का पर्याय बना दिया जा रहा है. इस समय दृश्य यह है कि चमकने के लिए अच्छे से अच्छे नंगे होने को तैयार बैठे हैं. और मजे की बात यह कि नंगे होने की वे भी घोषणा कर रहे है जिनका वस्त्र पहनना न पहनना एक बराबर ही है.’ इतना कह कर संजय हंसने लगे. घृतराष्ट्र को बात पूरी तरह से समझ में नहीं आई. बोले, ‘संजय वह सब तो ठीक है, परंतु कोई इस प्रकार से ऐसे खुल्लमखुल्ला निर्वस्त्र होने की घोषणा क्यों करेगा?’ ‘महाराज, इसके दो प्रमुख कारण हैं. पहला, नंगई इतनी बढ़ गई है कि अब कइयों को लगता है कि यह फैशन नहीं अपनी संस्कृति है. दूसरा, मीडिया को अपने हाथों का खिलौना बनाकर खेलने के लिए.’ ‘तुम्हारा दूसरा कारण मैं समझा नहीं! सविस्तार बताओ संजय’, घृतराष्ट्र ने अपनी दाढ़ी खुजलाते हुए कहा.
‘महाराज, आज भारत में टीआरपी नाम का एक जीव पैदा हो गया है. यह जो न करवाए कम है.’ धृतराष्ट्र को संजय की बात रोचक लगी, बोले, ‘संजय, उदाहरण सहित व्याख्या करो.’ संजय चहकते हुए बोले, ‘महाराज, जैसे आप कहिए कि अर्जुन ने तो मछली की आंख की पुतली पर निशाना लगया था, जबकि आप चींटी या मक्खी के आंख की पुतली का निशाना लगा सकते हंै.’ ‘संजय वाणी पर संयम रखो. तुम जानते हो कि मैं देख नहीं सकता हूं.’ धृतराष्ट्र ने संजय को डांट लगाई. संजय अपनी सफाई में बोले, ‘महाराज, मैं तो एक दृष्टांत दे रहा था बस. महाराज, यही मीडिया फिर आपकी बात को यह कहते हुए चौबीसों घंटा दिखाएगा कि महाराज सुर्खियों में आने के लिए ऐसा कह रहे है.’ ‘कमाल है, मालूम है तब भी दिखाएगा!’ धृतराष्ट्र ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा. ‘जी महाराज, यह है कमाल टीआरपी के कीड़े का.’
धृतराष्ट्र ने जम्हाई लेते हुए बोले, ‘इस प्रकरण को यहीं छोड़ो. कुछ और बताओ!’ संजय थोड़ी देर सोचने के बाद बोले, ‘महाराज, जिस लाडो ने सरेआम स्वयं को निर्वस्त्र करने को कहा था, अब उसका करियर सफलता की राह पर कुलांचें भर रहा है.’ धृतराष्ट्र चौंक कर बोले, ‘संजय, ऐसे कैसे सिर्फ नंगे होने की बात करके कोई रातो-रात ही पूनम की चांद की तरह इस देश के आसमान पर चमक सकता है?’ संजय मुस्कुराते हुए बोले, ‘नेत्र पा जाने भर से क्या दृष्टि भी मिल जाती है महाराज?’ धृतराष्ट्र ने संजय की पीठ थपथपाई और शयनकक्ष की ओर चल पडे़. जाते-जाते बोले, ‘तुम्हारा आंखों देखा हाल सुनकर, सच कहूं तो आज जीवन में पहली बार मुझे अपने न देख पाने पर अफसोस नहीं हो रहा है. प्रतीत होता है कि देश में दिनों-दिन आंखवाले तो बढ़ते जा रहे है, पंरतु दृष्टिवालों का लोप होता जा रहा है.’
– अनूप मणि त्रिपाठी