वोट पड़ने से पहले ही पराजित घोषित की जा चुकी कांग्रेस के लिए यह मुश्किल वक्त है. पार्टी के कई बड़े नेता लोकसभा चुनाव में नहीं उतरना चाहते और कैडर में निराशा का माहौल है. विडंबना यह भी है कि कांग्रेस के जो वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ने तक से घबरा रहे हैं उन्हें आलाकमान इसके लिए तैयार करने की कोशिशों में लगा हुआ है और दूसरी तरफ जो नेता चुनाव लड़ने को तैयार हैं उन्हें संदेह की नजर से देखा जा रहा है.
दिल्ली का ही उदाहरण लें. देश के अन्य राज्यों के विपरीत दिल्ली के सातों मौजूदा सांसद फिर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र से चुनावी समर में उतरना चाहते हैं लेकिन पार्टी नेतृत्व अभी इस पर असमंजस में है. कांग्रेस के कई नेताओं को समझ में नहीं आ रहा कि आखिर क्या सोचकर पार्टी ने दिल्ली में प्राइमरीज आयोजित करवाने का फैसला किया. प्राइमरीज यानी लोकसभा प्रत्याशी चुनने के लिए लोकसभा के स्तर पर चुनाव कराके व्यवस्था विकेंद्रित करने की कवायद जो पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी का सपना है.
दिल्ली में सबसे पहले प्राइमरीज की घोषणा चांदनी चौक और उत्तर-पश्चिम दिल्ली सीट के लिए की गई थी. लेकिन जब पार्टी में ही इसके आधार को लेकर सवाल होने लगे तो इसके बाद इसे नई दिल्ली और उत्तर-पूर्व दिल्ली की सीट पर स्थानांतरित कर दिया गया. लेकिन इन दोनों सीटों के चयन के लिए भी कोई वजह नहीं बताई गई. अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक ये दोनों सीटें प्राइमरीज के लिए सबसे अनुपयुक्त थीं और इन पर इस प्रक्रिया को विफल होना ही था. नई दिल्ली में मौजूदा सांसद अजय माकन के अलावा किसी ने भी प्राइमरीज में अपनी दावेदारी ही पेश नहीं की. वहीं उत्तर-पूर्व दिल्ली सीट पर प्राइमरीज में विवादास्पद नेता जगदीश टाइटलर ने मौजूदा सांसद जेपी अग्रवाल को चुनौती दी. पूर्व विधायक और कांग्रेस के दलित नेता राजेश लिलोठिया ने भी यहां से दावेदारी पेश की. दिल्ली कांग्रेस का पूर्व अध्यक्ष होने के नाते अग्रवाल ने प्राइमरीज में अपनी जीत सुनिश्चित कर ली, लेकिन उस पूरी प्रक्रिया का महत्व ही खत्म हो गया.
हैरानी इस बात पर भी जताई जा रही है कि कांग्रेस नेतृत्व दिल्ली से अपने दो मौजूदा सांसदों को चुनाव ही नहीं लड़ाना चाहता. ये सांसद हैं दक्षिण दिल्ली से रमेश कुमार और पश्चिम दिल्ली से महाबल मिश्र. उधर, आम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को समझ में नहीं आ रहा कि क्यों पार्टी नेतृत्व ऐसा करने पर अड़ा हुआ है. यह तय हो चुका है कि पार्टी इन दोनों सीटों पर बदलाव का मन बना चुकी है लेकिन यह काम कब और कैसे होगा, इस पर फैसला होना अभी बाकी है.
कांग्रेस ने 194 प्रत्याशियों की जो पहली सूची जारी की उसमें दो बड़े नामों की अनुपस्थिति ने कइयों का ध्यान खींचा. सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी और पंजाब कांग्रेस के प्रमुख प्रताप सिंह बाजवा के नाम पंजाब के उम्मीदवारों की सूची से नदारद थे.
सूत्रों के मुताबिक तिवारी चंडीगढ़ से टिकट हासिल करने के लिए लामबंदी कर रहे हैं, लेकिन मौजूदा सांसद पवन कुमार बंसल यह सीट छोड़ने को तैयार नहीं हैं. इसलिए जब तिवारी ने केंद्रीय निर्वाचन समिति की एक बैठक में कहा कि दागी नेताओं को टिकट नहीं दिया जाना चाहिए तो साफ हो गया था कि उनका संकेत बंसल की ओर है. बंसल को रेलवे बोर्ड में नियुक्तियों से जुड़े घोटाले में कथित रूप से शामिल होने के कारण पिछले साल मंत्री पद छोड़ना पड़ा था. उधर, बाजवा ने हालांकि खुद चुनाव न लड़ने की इच्छा जताई थी लेकिन सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व उनसे अमृतसर से चुनाव लड़ने को कह सकता है.
इस दौरान कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी किरकिरी की वजह मध्य प्रदेश से आई. पार्टी ने पूर्व आईएएस अधिकारी भगीरथ प्रसाद को भिंड से उम्मीदवार घोषित ही किया था कि अगले ही दिन उन्होंने घोषणा कर दी कि वे भाजपा में शामिल हो रहे हैं. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने प्रसाद से फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन उठाना तक गवारा न किया. इसके बाद एक अन्य वरिष्ठ महासचिव तथा पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य का बयान आया कि अगर नामों की छंटनी करने वाली समिति और प्रभारी महासचिव भिंड से एक ही नाम भेजेंगे तो यही होगा. बीते दिसंबर विधानसभा चुनाव में जबरदस्त पराजय के बाद राज्य में कांग्रेस के प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश पहले ही सदस्यों के निशाने पर थे.
राजस्थान में जहां विधानसभा चुनाव में पार्टी का सफाया हो गया था वहां भी उसे लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी तय करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. राज्य कांग्रेस के प्रमुख सचिन पायलट इस बार अपनी मौजूदा सीट अजमेर से चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे, हालांकि बाद में उन्हें अपना मन बदलना पड़ा.
राज्य में प्रत्याशियों की जो पहली सूची जारी की गई है उसमें नागौर की मौजूदा सांसद ज्योति मिर्धा का नाम भी शामिल नहीं है. दिलचस्प यह है कि मिर्धा की सास कृष्णा गहलोत पहले ही भाजपा में शामिल हो चुकी हैं. एक और बड़ा नाम सीपी जोशी का है. मौजूदा लोकसभा में वे भीलवाड़ा से सांसद हैं. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक जोशी इस बार चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते और पार्टी महासचिव बनकर ही काम करते रहना चाहते हैं. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान की 25 में से 21 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. लेकिन सूत्रों के मुताबिक इस बार पार्टी के उस आंकड़े के आस-पास पहुंचने की भी संभावना नहीं है.
बिहार में कांग्रेस ने लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ चुनावपूर्व गठजोड़ किया है. समझौते के तहत मधुबनी संसदीय सीट राजद को दे दी गई है. इससे कांग्रेस के मौजूदा सांसद और कांग्रेस महासचिव शकील अहमद को बच निकलने का रास्ता मिल गया है क्योंकि सूत्रों के मुताबिक वे चुनाव लड़ने के इच्छुक ही नहीं हैं. अहमद पार्टी महासचिवों की उस बढ़ती जमात की ही एक कड़ी हैं जिसमें प्रकाश, जोशी, सिंह और मधुसूदन मिस्त्री जैसे लोग हैं जो चुनावी समर में नहीं उतरना चाहते. हाल ही में मिस्त्री ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि वे गुजरात में साबरकांठा से चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने उस वक्त चुटकी लेते हुए यह भी पूछा था कि मोदी कहां से चुनाव लड़ेंगे लेकिन दो दिन के भीतर ही उन्हें राज्य सभा भेज दिया गया. जब उनसे इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने खास कांग्रेसी अंदाज में कहा कि उन्हें आलाकमान के आदेश का पालन करना ही था.
झारखंड से इकलौते कांग्रेस सांसद सुबोधकांत सहाय को टिकट मिलने में मुश्किल हो रही है. जब से उनके परिजनों का नाम कोयला घोटाले में उछला है पार्टी उन्हें फिर से लोकसभा टिकट देने के प्रति सशंकित है. हालांकि एक वर्ग है जिसका मानना है कि कोई दमदार उम्मीदवार नहीं मिलने की वजह से रांची से सहाय को टिकट मिल भी सकता है. महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद वर्ष 2010 में पद छोड़ना पड़ा था, एक बार फिर नांदेड़ से पार्टी टिकट के दावेदार हैं. कांग्रेस के एक अन्य दागी नेता हैं सुरेश कलमाड़ी, जिन पर वर्ष 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे. उन्हें आशा है कि पुणे की उनकी सीट से उनकी पत्नी को पार्टी का टिकट मिल जाएगा, हालांकि अभी इस बारे में कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका है.
वरिष्ठ मंत्रियों में एके एंटनी ने जहां चुनाव लड़ने से ही मना कर दिया है वहीं चिदंबरम के बारे में अभी कुछ निश्चित नहीं है. कर्नाटक में दक्षिण कन्नड़ सीट के लिए प्राइमरीज में पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली के बेटे हर्ष मोइली को रिटर्निंग अधिकारी ने यह कहते हुए अयोग्य घोषित कर दिया था कि उन्होंने अपने आवेदन में खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताया है जबकि ऐसा है नहीं. अब उस सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री जनार्दन पुजारी चुनाव लड़ेंगे.
कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेताओं ने पहले ही यह बात स्वीकार कर ली है कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 100 से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी. शायद यही वजह है कि वे जोखिम उठाने से बच रहे हैं. पार्टी में ऊपर से माहौल ठंडा नजर आ रहा हो, लेकिन सतह के नीचे तनाव उबल रहा है. कई-कई स्क्रीनिंग कमेटियों और राज्य प्रभारी महासचिवों से पार्टी का कैडर निराश है. हालांकि पार्टी को होने वाले नुकसान के वास्तविक आकलन के लिए चुनाव तक प्रतीक्षा करनी होगी.