पंजाब में राजनीतिक गतिरोध तेज़

वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बनाम कांग्रेस नीत द इंडियन नेशनल डवलपमेंटल इंक्लूसिव अलांयस (इंडिया) के बीच होगा। देश के समानर्थी इंडिया शब्द पर राजनीतिक तूफ़ान अभी जारी रहेगा। इसी दौरान केंद्र सरकार के भारत शब्द पर ज़्यादा ज़ोर देने की वजह से विपक्ष लगा कि नरेंद्र मोदी सरकार गठबंधन के इंडिया नाम से डर गयी है। रणनीति के तहत गठबंधन ने नाम और स्लोगन- ‘जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया’ रखा गया है। गठबंधन इसे लेकर बहुत उत्साहित भी है; लेकिन केवल नाम से उसे सफलता मिलेगी, इसमें संदेह है। सबसे बड़ी बात एकता को क़ायम रखने की होगी, यह बहुत आसान नहीं होगा इसे गठबंधन में शामिल नेता मानते भी हैं।

2024 के लोकसभा चुनाव देश विरोधी और देशहित पार्टियों के बीच नहीं, बल्कि दो महागठबंधनों के बीच होगा। एनडीए नेता जनमानस में शब्द का भ्रम दूर करने में सफल रहे तो फिर यह तूफ़ान शान्त हो जाएगा। सन् 1977 के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल अलग-अलग नहीं, बल्कि साझे तौर मुक़ाबला करने की भूमिका में होंगे। वैचारिक मतभेदों के बावजूद अगर विपक्षी गठबंधन अंतिम समय तक एकता को क़ायम रख सका, तो वोट प्रतिशत के हिसाब से कड़ी टक्कर देने में सक्षम साबित हो सकता है। पर क्या यह सम्भव और इतनी आसान बात है?

अभी बहुत कुछ होना बा$की है। प्रस्तावित प्रधानमंत्री की दावेदारी का मुद्दा चुनाव से पहले निश्चित तौर पर ही उठेगा। गठबंधन के लिए यह किसी भँवर से कम नहीं होगा और इससे निकलना इतना आसान भी नहीं होगा। अभी इंडिया गठबंधन दलों का केवल एक ही मक़सद एनडीए को सत्ता से बाहर करना। सीधे अर्थ में कहें, तो मोदी राज की वापसी किसी भी हालत में न होने देने की है। अभी कुछ दल सीटों के बँटवारे में घाटा उठाने की बात कह रहे हैं; लेकिन मौक़े पर वे कितने खरे उतरते हैं, यह देखने की बात रहेगी। पंजाब में इंडिया महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) अभी से ही खींचतान नज़र आने लगी है। ऐसा कई राज्यों में होने वाला है। पंजाब में इसलिए सबसे पहले मुद्दा उठा, क्योंकि यहाँ सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही गठबंधन में हैं। दोनों एक दूसरे के धुर-विरोधी हैं; लेकिन अब गठबंधन की वजह से एक मंच पर आना मजबूरी है।

दोनों ही दलों के कुछ नेता अब अलग-अलग सभी 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव लडऩे की बात और खुलकर बयानबाज़ी करने लगे है। कुछ दिन पहले पंजाब के वित्तमंत्री हरपाल सिंह चीमा ने घोषणा की बताया कि वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव आप और कांग्रेस मिलकर लड़ेंगे। यह फ़ैसला बाद में होगा कि कौन-सी सीट किस पार्टी के पास रहेगी। कांग्रेस की प्रतिक्रिया तुरन्त आयी, जिसमें कहा गया कि कांग्रेस आलाकमान का अभी उन्हें किसी तरह का कोई निर्देश नहीं है। पार्टी इकाई को तो सभी 13 सीटों पर सर्वे कराने और सम्भावित प्रत्याशियों की सूची पर काम करने का निर्देश है।

कांग्रेस और आप दोनों ही मिलकर चुनाव लडऩे के ज़रा भी इच्छुक नहीं है। इसकी एक वजह यह है कि राज्य विधानसभा चुनाव में आप को प्रचंड बहुमत कांग्रेस के ख़िलाफ़ ही मिला था। ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस के साथ मिलकर मैदान में आती है, तो मतदाता को सोचना पड़ेगा। ऐसी आशंका मंत्री अनमोल गगन मान भी जता चुकी है। आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता मालविंदर सिंह कंग तो सभी 13 सीटों पर चुनाव लडऩे और जीतने का दम भरते हैं। वह भगवंत मान का कुशल नेतृत्व और राज्य सरकार की उपलब्धियाँ बताते हुए पार्टी का आधार पहले से ज़्यादा मज़बूत होने का दावा करते हैं। प्रवक्ता होने के नाते उन्हें ऐसा कहना ही पड़ेगा; लेकिन दावे में ज़्यादा दम नहीं है। यह अलग बात है कि जालंधर लोकसभा उपचुनाव के अलावा आप के पास कोई सीट नहीं है। उधर कांग्रेस के पास सात सीटें हैं। उनका ज़्यादा सीटों का दावा तो वैसे भी बनता है, जबकि आम आदमी पार्टी छ: सीटों से कम पर राज़ी होने वाली नहीं है। सम्भव है सीटों पर तालमेल की बात बन जाए। कांग्रेस की राज्य इकाई के मौज़ूदा रुख़ को देखते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने स्पष्ट कह दिया है कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लडऩा और जीतना जानती है। इसके बाद अपने बूते सरकार चलाना भी उसे आता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर राजा वडि़ंग ने पिछले दिनों कांग्रेस विधायकों और सांसदों की बैठक बुलायी, जिसमें सभी 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव लडऩे मुद्दे पर चर्चा हुई। बैठक में दो पूर्व मंत्रियों गठबंधन के तहत चुनाव होने पर पार्टी छोडऩे की अपरोक्ष चेतावनी भी दी है। कांग्रेस राज्य इकाई ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर भरोसा जताते हुए अपनी इच्छा भी जता दी है।

कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू राज्य इकाई से अलग राय रखते हैं। वह मानते हैं कि देश को एनडीए राज से मुक्त करने के लिए गठबंधन सही रास्ते पर चल रहा है। सिद्धू अभी ज़्यादा मुखर नहीं हैं। इसकी एक वजह उनकी पत्नी नवजोत कौर का उपचारधीन होना है। जब तक उन्हें कोई बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं दी जाती, वह ज़्यादा सक्रिय नहीं होंगे। भाजपा का केंद्रीय पंजाब में पार्टी का आधार मज़बूत करना चाहता है। कांग्रेस के दो दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और प्रदेशाध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं।

इनके अलावा दो पूर्व मंत्री भी कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आ चुके हैं। इसके बावजूद पंजाब में भाजपा का असर ज़्यादा नहीं दिख रहा है। अमरिंदर सिंह तो ज़्यादा सक्रिय नहीं हैं; लेकिन जाखड़ चुनाव से पहले पार्टी को कितनी मज़बूती दे पाएँगे? यह देखना होगा। तीन कृषि क़ानूनों के मुद्दे पर एनडीएस से अलग हुए शिरोमणि अकाली दल की भूमिका क्या रहेगी? यह देखने वाली बात है। भाजपा का फ़िलहाल तो शिअद (संयुक्त) के साथ ही गठबंधन है, जिसका बहुत ज़्यादा असर नहीं है। शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल क्या पंजाब में अपने बूते ही चुनाव लड़ेंगे या फिर पहले की तरह भाजपा से कोई तालमेल हो सकता है?

राजनीति में कुछ भी सम्भव है। जब एक दूसरे के धुर-विरोधी दल मोदी राज ख़त्म करने के लिए वैचारिक मतभेदों को भुलाकर एक मंच पर आ गये हैं, तो फिर सुखबीर बादल भी सत्ता में भागीदारी के लिए पाले में आ सकते हैं। सुखबीर के इंडिया गठबंधन में जाने की सम्भावना फ़िलहाल ज़रा भी नज़र नहीं आती। पड़ोसी राज्य हरियाणा, हिमाचल, राजस्थान और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में ज़्यादा दिक़्क़त नहीं होगी। जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और आधार मज़बूत है, वहाँ तो ज़्यादा मुश्किल नहीं है; लेकिन जहाँ भाजपा कमज़ोर है और उसकी सरकार नहीं है, वहाँ इंडिया गठबंधन को फ़ायदा मिलेगा। इन राज्यों में पहले भी आमने-सामने की टक्कर होती रही है और अब भी वही रहेगा।

जाँच के घेरे में कई नेता

पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, पूर्व उप मुख्यमंत्री ओ.पी. सोनी, पूर्व मंत्री भारत भूषण आशू, साधू सिंह धर्मसोत, ब्रहम महेंद्रा, संगत सिंह गिल्जियां, बलबीर सिंह सिद्धू, विजय इंदर सिंगला के ख़िलाफ़ विभिन्न मामलों में जाँच चल रही है। इनके अलावा गुरप्रीत सिंह कांगड़, एसएस अरोड़ा, राणा के.पी. सिंह, दलबीर सिंह गोल्डी और कुलदीप सिंह भी आरोपों से घिर हुए हैं। गठबंधन के बाद भी राज्य सरकार ने अपना रुख़ स्पष्ट कर दिया है। मुख्यमंत्री भगवंत मान के मुताबिक, गठबंधन अपना काम करेगा; लेकिन कार्रवाई बदस्तूर जारी रहेगी।

सीटों का ब्योरा

पंजाब में अमृतसर, खडूर साहिब, आनंदपुर साहिब, लुधियाना, फ़रीदकोट, फ़तेहगढ़ साहिब और पटियाला लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के सांसद हैं। कांग्रेस इन सीटों पर तो दावा निश्चित ही करेगी। आप सरकार के पाँच राज्यसभा सदस्य भी हैं। इस नाते वह छ: से ज़्यादा सीटों पर अपना दावा जताएगी, जबकि उसके पास जलंधर की सीट ही है, जो उपचुनाव में कांग्रेस से उसने हासिल की। फ़िरोज़पुर और बठिंडा सीटें शिरोमणि अकाली दल के, गुरदासपुर और होशियार पुर सीटें भाजपा के पास हैं और संगरूर सीट शिअद (मान) के पास है। सीटों के बँटवारे पर आप और कांग्रेस में कुछ खींचतान हो सकती है; लेकिन ज़्यादा मुश्किल की आशंका नहीं है।

विपक्ष और लोकतंत्र होंगे ज़्यादा मज़बूत

विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निरंकुश और तानाशाह प्रवृत्ति का मानते हैं। इसे देखते वो वर्ष 2024 में एनडीए की जीत से भारत में लोकतंत्र ख़त्म होने की बात भी कहते हैं। हालाँकि भारत का लोकतंत्र में विश्व में सबसे ज़्यादा मज़बूत हैं, इसे कोई ख़तरा न पहले था और न अब है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों से कोई भी जीते देश का लोकतंत्र और ज़्यादा मज़बूत ही होगा। वर्ष 2014 के क़रीब 10 साल बाद विपक्ष भी मज़बूत स्थिति में होगा। लोकतंत्र में मज़बूत विपक्ष की भूमिका अहम होती है। लोगों के पास वोट की ताक़त है और इसे कोई छीन नहीं सकता।