नूह दंगा और राजनीतिक लुका-छिपी

हरियाणा में नूह (मेवात) दंगे में अब तक 100 से ज़्यादा मामलों में 595 लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है। इनमें ज़्यादातर आरोपी दंगों में सीधे तौर पर शामिल रहे हैं। वहीं कुछ की अपरोक्ष रूप से भागीदारी रही है। दंगों की भूमिका तैयार करने, लोगों को उकसाने और सोशल मीडिया पर भडक़ाऊ बयानबाज़ी के आरोप में बजरंग दल के बिट्टू बजरंगी और गौरक्षक मोहित यादव उर्फ़ मोनू मानेसर की गिरफ़्तारी के बाद पुलिस की विशेष जाँच दल (एसआईटी) ने कांग्रेस विधायक मामन ख़ान को गिरफ़्तार कर लिया है।

मामन ख़ान मेवात के फ़िरोज़पुर झिरका से कांग्रेस विधायक हैं। वह चार मामलों में आरोपी हैं। दंगों में उनकी भूमिका की बातें शुरू से चल रही थीं; लेकिन बिना सुबूत पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पा रही थी। पुलिस के पास अब उनके ख़िलाफ़ कुछ सुबूत हैं, जिनके आधार पर कार्रवाई की गयी है। मामन को अपनी गिरफ़्तारी का डर सताने लगा था। उन्होंने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत की अर्जी लगायी थी। उच्च न्यायालय ने उन्हें तुरन्त कोई राहत देने की बजाय निचली अदालत में जाने को कहा था। वह निचली अदालत में जाते उससे पहले पुलिस ने उन्हें अजमेर (राजस्थान) से गिरफ़्तार कर लिया।

दंगों की विस्तृत जाँच कर रही एसआईटी ने दो बार नोटिस देकर मामन ख़ान को पूछताछ के लिए बुलाया भी; लेकिन वह पेश नहीं हुए। उन्हें पूछताछ के बहाने गिरफ़्तारी का डर था; इसलिए वह पहले अग्रिम जमानत लेना चाहते थे। एसआईटी का दावा है कि मामन ख़ान की दंगों में अपरोक्ष तौर पर भूमिका रही है, उसके पास इसे साबित करने के लिए काफ़ी तथ्य हैं। भडक़ाऊ वीडियो से लोगों को उकसाने के आरोप में एसआईटी ने बजरंग दल के बिट्टू बजरंगी को तो गिरफ़्तार कर लिया; लेकिन गौरक्षक मोनू मानेसर पर कोई कार्रवाई न होने से एक विशेष समुदाय में काफ़ी रोष था। मेवात में मोनू इस विशेष समुदाय में खलनायक जैसा है।

गौरक्षा के नाम पर भरतपुर (राजस्थान) के दो चचेरे भाइयों नासिर और जुनैद की हत्या के मामले में भी मोनू आरोपी है। राजस्थान पुलिस क़रीब सात माह से उसकी तलाश में है; लेकिन वह पकड़ से बाहर है। राजस्थान पुलिस उससे इस मामले में पूछताछ करना चाहती है और कई बार उसके ठिकानों पर दबिश भी दी; लेकिन उसे पकड़ नहीं सकी। अब एसआईटी ने नूह दंगों के आरोप में उसे मानेसर ही बड़ी आसानी से क़ाबू कर लिया।

मोनू को राजस्थान पुलिस नासिर और जुनैद हत्याकांड मामले में ट्रांजिट रिमांड पर भरतपुर ले गयी है। राजस्थान पुलिस के मुताबिक, मोनू से दोहरे हत्याकांड में पूछताछ की जानी है। राजस्थान के पुलिस महानिदेशक उमेश मिश्रा के अनुसार, नासिर-जुनैद हत्याकांड में मोनू की सीधी संलिप्तता के अभी कोई सुबूत नहीं है; लेकिन इसमें उसकी भूमिका क्या थी? यह स्पष्ट होना बा$की है। मोनू मानेसर की गिरफ़्तारी के बाद हिन्दू संगठनों की तरफ़ से फ़िरोज़पुर झिरका के कांग्रेस विधायक मामन ख़ान को भडक़ाऊ बयानों के आधार पर गिरफ़्तार करने की माँग शुरू कर दी गयी। इसे संयोग कहें या फिर बैलेंस करने वाली कार्रवाई, दो दिन बाद मामन ख़ान की गिरफ़्तारी हो गयी। हरियाणा के पुलिस महानिदेशक शत्रुजीत कपूर के मुताबिक, एसआईटी कार्रवाई तथ्यों और सुबूतों के आधार पर कर रही है। दंगों के लगभग डेढ़ महीने के बाद गिरफ़्तारी इसी बात का सुबूत है।

विधायक मामन ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उदय भान से साझा बयान जारी कर कहा कि एसआईटी पक्षपातपूर्ण कार्रवाई कर रही है। सरकार को दंगों की जाँच न्यायिक आयोग से करानी चाहिए। उच्च न्यायालय के मौज़ूदा न्यायाधीश की अध्यक्षता में विस्तृत जाँच होनी चाहिए, तभी सच सामने आ सकेगा। मामन ने ख़ुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि सरकार अपनी नाकामी को छिपाने के लिए दंगों में उनकी भूमिका को साबित करने में लगी है। दंगों के एक आरोपी तौफ़ीक़ की मामन ख़ान से दंगे भडक़ने से पहले मोबाइल की काल डिटेल बहुत कुछ संकेत करती है। पुलिस का मानना है कि मामन ख़ान के जिस मोबाइल नंबर से बातचीत हुई है, उसे फारमेट किया गया है। तथ्य और सुबूत मिटाने का एक तरह से प्रयास किया गया है। तकनीक के माध्यम से इसे फिर से जुटाया जा सकता है।

दंगों के बाद पुलिस अधीक्षक के तौर पर तैनात नरेंद्र बिजारणिया स्पष्ट कहते हैं कि मामन ख़ान की गिरफ़्तारी ठोस साक्ष्य के आधार पर हुई है। एसआईटी पुलिस हिरासत के दौरान मामन ख़ान के असहयोगी रुख़ की बात कहती है। पूछताछ में वह किसी सवाल का स्पष्ट जवाब न देकर यही कहते रहे कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं या उन्हें ध्यान नहीं है। पाँच दिन की पुलिस हिरासत के बाद मामन ख़ान की न्यायिक हिरासत में पूछताछ होगी।

दंगा पूर्व नियोजित था, इसमें कोई संशय नहीं है। विश्व हिन्दू परिषद् की बृजमंडल यात्रा के रास्ते में जगह-जगह हथियारबंद हमले की तैयारी एकाएक नहीं हो सकती। बिना राजनीतिक संरक्षण दंगा इतने बड़े स्तर पर हो ही नहीं सकता। एसआईटी जब तक दंगों के मास्टर माइंड तक नहीं पहुँच जाती, तब तक जाँच का कोई अर्थ नहीं है। सोशल मीडिया, वीडियो फुटेज और चश्मदीदों के बयानों के आधार पर कमोबेश गिरफ़्तारियाँ हुई हैं। दंगों के तुरन्त बाद बहुत से आरोपी भाग चुके हैं, ये भी देर-सबेर पुलिस गिरफ़्तार में आएँगे। नूह दंगा हरियाणा सरकार की नाकामी से हुआ। दंगों से पहले एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट (सीआईडी) सरकार तक पहुँची थी; लेकिन उसे गम्भीरता से नहीं लिया गया। हरियाणा में सीआईडी विभाग गृहमंत्री अनिल विज की अपेक्षा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के पास है। विभाग को लेकर एक दौर में दोनों में तनातनी भी रही थी। अक्सर सीआईडी विभाग गृहमंत्री को ही रिपोर्ट करता है और मंत्री ज़रूरी होने पर मुख्यमंत्री से इसे साझा करता है। दंगों के बाद गृहमंत्री की भूमिका एकाध बयानबाज़ी के अलावा कुछ ज़्यादा नहीं रही। मोर्चा मुख्यमंत्री ने ही सँभाला; लेकिन वह स्थिति को सँभाल नहीं सके। पुलिस हर व्यक्ति की सुरक्षा न करने जैसे बयान पर मनोहर लाल खट्टर की चौतर$फा आलोचना भी हुई। लोगों की सुरक्षा सरकार का दायित्व है और मुख्यमंत्री होने के नाते उनका ऐसा बयान नेतृत्व पर ही सवालिया निशान लगाने जैसा है।

उनकी ही पार्टी के उत्तर प्रदेश के मुख्यमत्री योगी आदित्य नाथ सार्वजनिक मंचों से बेधडक़ बोलते हैं कि राज्य की 22 करोड़ लोगों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनकी है। इससे लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा होती है और हरियाणा के मुख्यमंत्री के बयान से लोगों में असुरक्षा घर करती है। दंगा पीडि़तों ने लाइसेंसी हथियार मुहैया कराने की बात ऐसे ही नहीं कही थी।

मेवात में शासन-प्रशासन पूरी तरह से फेल रहा। दंगा सुनियोजित था और शासन-प्रशासन स्थिति को भाँपने में पूरी तरह विफल रहा। मेवात के पुलिस अधीक्षक का छुट्टी पर जाना, गुडग़ाँव के पुलिस अधीक्षक को अतिरिक्ति ज़िम्मेदारी देना और वह भी ऐसी स्थिति में जब हालात ख़राब होने की ख़ुफ़िया रिपोर्ट पहले से थी। ऐसे तमाम कारण है, जिनके चलते दंगा हुआ। कांग्रेस विधायक मामन ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद मेवात में स्थिति असमान्य न हो इसके लिए सरकार ने इंटरनेट सेवा बन्द कर दी। धारा-144 लगा दी और पूरे क्षेत्र को पुलिस छावनी में बदल दिया। इसका नतीजा यह रहा कि कहीं कुछ गड़बड़ी नहीं हुई।

हरियाणा का मेवात इलाक़ा हमेशा से संवेदनशील रहा है। बाबरी ढाँचे विध्वंस के बाद यहाँ बड़े स्तर पर आगजनी हुई थी। अल्पसंख्यक समुदाय में तभी से असुरक्षा की भावना ज़्यादा घर कर गयी है। दंगे के बाद अब स्थिति कमोबेश सामान्य है; लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय में अब असुरक्षा की भावना और ज़्यादा घर कर गयी है। दंगे में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया। बन्द दुकानों के शटर तोडक़र लूटपाट कर वहाँ आग लगी दी गयी।

ऐसा ही बड़ा मामला नगीना थाना क्षेत्र का है। भाजपा ज़िला इकाई के सचिव शिवकुमार आर्य की तेल मिल को दंगाइयों ने तहस-नहस कर दिया। बडक़ली चौक पर जब 31 जुलाई को लोगों का जमाव होने लगा, तो उन्हें कुछ अनहोनी की आशंका हुई। मिल बंद कर दी गयी। इसके बाद दंगाइयों ने उसे निशाना बनाया। आर्य का सवा करोड़ रुपये से ज़्यादा का नुक़सान हुआ। इस संदर्भ में प्राथमिकी नंबर 137 के आरोपियों में कांग्रेस विधायक मामन ख़ान का नाम भी है। इसमें पाँच आरोपी गिरफ़्तार हो चुके हैं।

नूह दंगे को राजनीतिक संरक्षण ज़रूर हासिल था। अब तक की जाँच में इसे साबित नहीं किया जा सका है। एसआईटी की जाँच का दायरा अब उन्हीं मास्टरमाइंड लोगों पर है, जिनकी वजह से सुनियोजित दंगा हुआ।

नूह दंगे के आरोपी बचने नहीं चाहिए और निर्दोष फँसें नहीं। इसके लिए मामले की न्यायिक जाँच हो। इसमें किसी पक्ष को कोई एतराज़ नहीं होगा। उच्च न्यायालय के मौज़ूदा न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग ही इसकी सही जाँच करने में सक्षम होगा।’’

भूपेंद्र सिंह हुड्डा

पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा

नूह दंगे में आरोपियों की धरपकड़ तथ्यों और सुबूतों के आधार पर हो रही है। इसमें तुष्टिकरण नीति का सवाल नहीं है। जाँच सही दिशा में चल रही है। एसआईटी तथ्यपरक जाँच करने और निष्कर्ष तक पहुँचने में सक्षम है।’’

शत्रुजीत कपूर

पुलिस महानिदेशक, हरियाणा