नाप लो पैदल, ले लो जमीन…

sddw बनारस के काशी हिंदू विश्वविद्यालय, जो बीएचयू के नाम से जनमानस में स्थापित है, वहां पढ़ने जानेवाले अनजान या नवहर विद्यार्थियों का कई मिथकों से सामना होता है, उसमें से एक बीएचयू के जमीन को लेकर भी है. यह कहानी बनारस और उसके आस-पास के इलाकों में चटखारे ले-लेकर सुनाई जाती है. कथा यूं है कि जो बीएचयू है, उस जमीन को काशी नरेश ने दान दिया था और दान भी इस तरह कि उन्होंने कह दिया था कि जितनी जमीन नाप सकते हैं पैदल नाप लीजिए, वह जमीन बीएचयू की हो जाएगी. यह बात सिर्फ बीएचयू में पढ़ने जानेवाले विद्यार्थियों को ही चटखारे ले-लेकर गंभीरता के साथ नहीं सुनाई/बताई जाती रही है बल्कि बीएचयू के अस्पताल में इलाज कराने-जानेवाले लोग भी इसके बड़े कैंपस के बारे में ऐसे किस्से सुनते रहे हैं या बतियाते रहे हैं.

बात इतनी ही हो तो भी बात हो. बतानेवाले किस्सागो सच की तरह यह भी बताने लगते हैं कि कैसे पहले जहां जगह मिली, वहां बाढ़ आ गयी. बाढ़ आने पर दुबारा जमीन दान मांगने मालवीयजी गये और उस दिन काशी नरेश उपवास में थे. उपवास खोलने के पहले उनके पास दान मांगनेवाला पहुंच गया था और वे जान गये थे कि दान मांगने मालवीयजी ही आये हैं तो राजा ने देखते ही कह दिया कि मैं दान दूंगा. मालवीयजी ने कहा कि आप कैसे जान गये कि मैं दान मांगने ही आया हूं. ऐसे ही कई किस्से, न जाने कितने तरीके से गपोड़िये वर्षों से सुना-सुनाकर उसे हकीकत जैसा स्थान दिला चुके हैं.


गौर फरमाएं

बेशक बीएचयू के लिए जो जमीन दान में मिली, वह काशी नरेश ने ही दी लेकिन पैदल चलकर नाप लेनेवाले फॉर्मूले पर नहीं बल्कि उसके लिए बजाप्ता एक कमिटी बनी थी. बीएचयू की गतिविधियां बनारस के सेंट्रल हिंदू कॉलेज से चल रहीं थी. जमीन की बात आयी तो काशी नरेश से मांगने की बात हुई. तब बीएचयू की स्थापना के लिए 57 लोगों की एक प्रबंध समिति बनी थी. काशी नरेश तक बात गयी. काशी नरेश ने हामी भरी. तब मैनेजिंग कमिटी में से पांच लोगों की एक समिति जमीन देखने और तय करने के लिए बनाई गई. काशी नरेश ने जमीन के लिए तीन जगहों का विकल्प दिया और कहा कि जो भी उपयुक्त हो, उसे लिया जा सकता है. अंत में वही जमीन तय की गयी, जहां आज विश्वविद्यालय स्थापित है. ये बातें बीएचयू के दस्तावेजों में अब भी दर्ज हैं. संभव है कि यह बात आज नई पीढ़ी को बताई जाए तो वे मान भी जाएं लेकिन बीएचयू के किस्से सिर्फ बनारस में ही नहीं तैरते. बिहार के सीमावर्ती इलाके, जो बनारस के पास हैं, वहां के लोगों का बनारस शहर और बीएचयू से पुराना रिश्ता रहा है और आज भी वहां जाने पर पुरनिये लोग इस किस्से को इसी तरह से सुनाते हैं.