अभी तक पर्यटन और सेब के लिए मशहूर रहे हिमाचल में नशे का कारोबार खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है। एनसीआरबी की नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है कि हिमाचल नशे के लिए दर्ज मामलों में तीसरे स्थान पर है। यहाँ प्रति लाख आबादी के हिसाब से दजऱ् घटनाओं का आंकड़ा 13.1 है जो देश में तीसरा सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में एनडीपीएस अधिनियम 1985 में विशेष और स्थानीय कानूनों (एसएलएल) अपराधों के तहत पिछले साल संज्ञेय अपराधों के 929 मामले दर्ज किये गए जो बेहद डरावनी तस्वीर पेश करते हैं।
प्रदेश में नशे के इन आंकड़ों के प्रति सरकारें कितनी गंभीर हैं यह इस तथ्य से साबित हो जाता है कि प्रदेश की राजधानी शिमला में नशा निवारण मुक्ति का एक भी केंद्र नहीं। न सरकारी न निजी। ऊपर से तुर्रा यह है कि हिमाचल में नशे के व्यापार में पकड़े गए आरोपियों को सजा मिलने का आंकड़ा बहुत कमजोर रहा है।
इसी साल 31 मार्च को प्रदेश के ऊना जिले के डांगोली गांव के 17 साल के युवा सुभाष (परिवर्तित नाम) की चिट्टा (हेरोइन) की ओवरडोज से मृत्यु हो गई। स्थानीय लोगों ने मौत के खिलाफ सड़कों पर जोरदार प्रदर्शन किया और क्षेत्र में नशे के कारोबार के अपराधियों के खिलाफ पुलिस की निष्क्रियता पर गहरा रोष जताया। कुछ महीने पहले हारोली में भी एक युवा ने इसी कारण अपना जीवन खो दिया था। पिछले एक साल में राज्य में नशीले पदार्थों के सेवन के कारण कम से कम चार लोगों की जान गयी है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक 2003 में राज्य में एनडीपीएस के तहत केवल 310 मामले दर्ज किए गए थे जो 2014 में 644 पर जा पहुंचे। यही आंकड़ा नवीनतम रिपोर्ट में 929 पहुँच गया है। उमंग फॉउण्डेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि प्रदेश में विभिन्न सरकारें नशे का कारोबार रोकने में नाकाम रहीं हैं। यहाँ नशे की धड़ल्ले से बिक्री होती है, स्कूलों के बाहर नशे की पुडिय़ाँ बिकती हैं और सरकारी तंत्र हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है। “सरकारों के अभियान भी कागज़ी साबित हुए हैं। इनमें गंभीरता और नीति की बेहद कमी दिखती है”।
हाल ही में एक पूर्व विधायक के नाबालिग बेटे को अपने तीन दोस्तों के साथ चरस के साथ हिरासत में लिया गया था। जिस वाहन में वे यात्रा कर रहे थे वह पूर्व विधायक के नाम पर थी
और उसमें ही 500 ग्राम चरस पकड़ी गयी थी। सभी चार को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया था। बाद में उन्हें उनके माता-पिता को सौंप दिया गया।
‘हिमाचल वॉचर’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमाचल में पिछले दस साल में एनडीपीएस मामले तीन गुना बढ़ गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘हिमाचल में बढ़ते नशीले पदार्थों के व्यापार का सबसे बड़े केंद्र कुल्लू, मनाली, मंडी, सिरमौर और शिमला हैं जहाँ बड़ी संख्या में युवा इसकी जकड़ में हैं। चरस का व्यापार कुल्लू में एक भयानक आकार ग्रहण कर रहा है जहां पर्यटकों की बड़ी संख्या रहती है। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक विदेशियों में ज़्यादातर इज़राइली नागरिक इस धंधे से जुड़े हैं। नशे की खेती के जरिये स्थानीय किसानों को त्वरित कमाई के लिए “प्रेरित” किया जाता है।
“तहलका” की छानबीन के मुताबिक कुल्लू जिलों में मनाली, कासोल, मालाणा अभी भी नशीले पदार्थों के व्यापार के केंद्र हैं। विदेशी नागरिकों और स्थानीय निवासियों की तरफ से मलाणा और आसपास रेव पार्टियां आयोजित करना आम बात है। यहां तक आरोप हैं कि कुछ विदेशी नागरिक अवैध रूप (भारत सरकार से वैध अनुमति के बिना) मालाणा क्षेत्र में रह रहे हैं और वे स्थानीय लोगों की मदद से नशा व्यापार में शामिल हैं। पिछले सात सालों में 82 से अधिक विदेशी नागरिक, मुख्य रूप से ब्रिटिश, इस्राईली, डच, जर्मन, जापानी और इटालियन राज्य में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किये गए हैं।
कुल्लू जिला नशे से सर्वाधिक प्रभावित है। एक अनुमान के अनुसार, यहां सालाना 2000 करोड़ के नशे का कारोबार होता है। इसके अलावा हिमाचली युवाओं में रासायनिक पदार्थों से बनाए गए नशे के उपयोग की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।
इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (आईजीएमसी) की एक अध्ययन रिपोर्ट का हवाला देते हुए कुछ साल पहले न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की अध्यक्षता वाली हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की एक खंड पीठ ने एक फैसले में कहा था कि राज्य में 40 प्रतिशत युवा नशीली दवाओं के जाल में फंसे हैं। यह भी दिलचस्प तथ्य है कि उच्च न्यायालय ने हाल ही में इस मुद्दे पर राज्य सरकार की खिंचाई की थी। राज्य के डीजीपी के अदालत में यह बताने पर कि सरकार ने बड़े पैमाने पर भांग उखाड़ो अभियान चलाया है, कोर्ट ने इसे कागजों तक सीमित बताया था। पुलिस अधिकारी ने बताया था कि राज्य के करीब 400 गांव में भांग की खेती होती हैं। राज्य सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक अकेली कुल्लू घाटी में 51,500 एकड़ जमीन में भांग की खेती की जाती और इस जिले में सालाना 2000 करोड़ रूपये के नशे का कारोबार होता है।
राज्य के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने स्वीकार किया कि हिमाचल प्रदेश में लगभग 27 प्रतिशत युवा नशीली दवाओं की गिरफ्त में हैं। उन्होंने कहा – ‘नशा एक सामाजिक समस्या है जिसे लोगों की भागीदारी के साथ ही रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि दवाइयों के खिलाफ प्रभावी ढंग से अभियान के लिए एक विशेष टास्क फोर्स (एसटीएफ) गठित की गयी है और शिमला, कांगड़ा और कुल्लू में तीन राज्य मादक पदार्थ अपराध नियंत्रण इकाइयां स्थापित की गई हैं।
लोगों का मानना है कि पड़ोसी राज्य (पंजाब) नशे से बुरी तरह प्रभावित है और हमारे राज्य में भी इसका खतरा एक गंभीर चुनौती है। मनाली निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्य केबिनेट मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने कहा, ‘हमारी सरकार ने नशीले पदार्थों के प्रति शून्य सहनशीलता अपनाई है। चाहे वह मलाणा हो या कोई अन्य क्षेत्र। जय राम सरकार वर्तमान में नशे की खेती को नष्ट कर रही है।’ राज्य पुलिस अभियान के दौरान 19 जनवरी से 1 फरवरी तक, 27.515 किलोग्राम चरस, 215 ग्राम अफीम, 55.868 किलोग्राम गांजा, 37.175 ग्राम हेरोइन और 19 .83 ग्राम कोकीन पुलिस ने पकड़ी और 66 भारतीय और 7 नेपाली पुलिस ने गिरफ्तार किये थे।
यह भी एक चौंकाने वाला तथ्य है कि हिमाचल में नशे का बढ़ता खतरा विधानसभा चुनावों में कभी भी प्रमुख और गंभीर मुद्दा नहीं बना। राजनेता इस मुद्दे को विधानसभा में और बाहर कभी गंभीर रूप से नहीं उठाते हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और इंजीनियरिंग स्नातक राजेश धर्मानी इस बात से सहमत हैं कि राजनेताओं द्वारा उनके भाषणों में इस मुद्दे को शामिल करने की अत्यधिक आवश्यकता है। ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह का मुद्दा गंभीरता से नहीं लिया जाता है। समय आ गया है कि हमें अपने युवाओं को इस खतरे से बचाने के लिए बड़ी और गंभीर पहल करें।’
पश्चिमी हिमालय में दूरस्थ घाटियां और ऊंचे पर्वत भांग और अफीम की खेती के बड़े क्षेत्र हैं। यहाँ का नशा बड़ी मात्रा में यूरोप पहुंच रहा है। दवाओं और एकदम पैसा कमाने की लालसा भी इन क्षेत्रों में विदेशियों को आकर्षित करती है जहां वे असंगठित दवा खेती का हिस्सा बन गए हैं। यह आरोप है कि उनमें से कुछ कभी भी अपने घरों को वापस नहीं लौटते और वहीं रह रहे हैं। कुछ ने तो स्थानीय औरतों से “विवाह” तक कर लिए हैं। कुल्लू, चंबा, मंडी, शिमला और सिरमौर जिलों में दुर्गम क्षेत्र के 2,480 से अधिक गांवों में भांग और अफीम की खेती का धंधा फैला हुआ है।
पंजाब और हरियाणा की सीमा के साथ लगते राज्य के क्षेत्र नशीली दवाओं के केंद्र बन गए हैं। नशा व्यापार के खतरे ने धार्मिक तीर्थ केंद्रों और पर्यटन स्थलों में भी खतरनाक अनुपात में अपने पाँव पसार लिए हैं। पूर्व एडीजीपी केसी सड्याल ने इस संवाददाता से बात करते हुए खुलासा किया कि हिमाचल प्रदेश में 58 प्रतिशत से ज़्यादा नशे का उत्पादन इज़रायल, इटली, हॉलैंड और कुछ अन्य यूरोपीय देशों में तस्करी के जरिये पहुँच रहा है। ‘बाकी नेपाल, गोवा, पंजाब और दिल्ली, नेपाल या अन्य भारतीय राज्यों में पहुँच जाता है।’
काँगड़ा जिले में मैक्लोडगंज और आसपास के इलाके भी अवैध नशीले पदार्थों के केंद्र हैं। सड्याल ने कहा – ‘वैकल्पिक खेती (सब्जियों और फूलों की खेती) ही अफीम और भांग की खेती को नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका है’।
हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘राज्य पहले भांग के लिए जाना जाता था जो पहाडिय़ों में उगाया जाता था और विदेशियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि अब सिंथेटिक नशा दवाओं की उपलब्धता और कुख्यात चिट्टा (हेरोइन) आ चुके हैं। युवाओं में खांसी सिरप, एंटी-ड्रिंपेंट्स और नींद वाली गोलियों का भी इस्तेमाल होता है जो सस्ती हैं”। ड्रग तस्करी अब राज्य में विदेशी, स्थानीय और देश के अन्य राज्यों के तस्करी करने वालों के रूप में राज्य में बहु-आयामी समस्या बन गई है। यह अब रहस्य की बात नहीं रही भांग और हशीश दशकों से हिमाचल में उगाए जाती रहे हैं और उपभोग के अलावा तस्करी में इस्तेमाल की जाती रही है।
हालिया रिपोर्ट में राज्य में काम कर रहे एक एनजीओ “हिमाचल वॉचर” ने बताया है कि बॉम्बे हेम्प कंपनी के प्रतिनिधियों ने अक्टूबर 2017 में राजभवन में गवर्नर देवव्रत से मुलाकात की और औद्योगिक हेमप को कृषि के सुधार के लिए समर्पित सामरिक संपत्ति के रूप में उपयोग करने और स्थानीय किसानों के सामाजिक-आर्थिक मानकों को ऊपर उठाने के साथ अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका को बढ़ावा देने के लिए एक प्रस्तुति दी। । ‘आनुवांशिक रूप से संशोधित भांग में .3 से 1 की ही मारक क्षमता होगी जो वर्तमान में उगा कर इस्तेमाल की जाने वाली भांग के 3 से 4 फीसद से कहीं कम है। “लिहाजा नशा करने वालों के लिए इसका उपयोग एक तरह से बेकार की चीज़ हो जाएगा”।
सांसद और वरिष्ठ भाजपा नेता शांता कुमार ने हाल ही में राज्य में नशे के बढ़ते खतरे के बारे में राज्य के मुख्यमंत्री को चेताया है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस समय प्रभावी उपाय नहीं करती है तो राज्य की युवा पीढ़ी गंभीर परेशानी में फंसने वाली है। उन्होंने कहा कि राज्य में बेरोज़गारी की बढ़ती संख्या नशे के खतरे में योगदान देने के प्रमुख कारणों में से एक है। उन्होंने कहा, ‘हमारे युवाओं में निराशा बढ़ रही है और वे नशीले पदार्थों की ओर जा रहे हैं।’
पुलिस की कार्य योजना
नशे, खासकर भांग की खेती के खिलाफ एक व्यापक अभियान 15 अप्रैल से राज्य के सभी जिलों में शुरू किया गया था। अभियान के दौरान किए जा रहे कार्य का विवरण देते हुए, पुलिस महानिदेशक, सीता राम मढऱ्ी ने बताया कि पुलिस, एनसीबी, एसएनसीबी, सीआईडी और वन, राजस्व, पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभागों जैसे प्रवर्तन एजेंसियों को शामिल करके ऐसी खेती को नष्ट करने के लिए एक संयुक्त अभियान शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘ये एजेंसियां 15 अगस्त, 2018 से पहले अफीम, अफीम और भांग विनाश पर प्रगति रिपोर्ट जमा करेंगी। सभी एसपी, महिला मंडल, युवक मंडल और अन्य गैर सरकारी संगठनों को जोड़ देंगे जबकि अफीम पोस्त और भांग की फसलों का विनाश किया जा रहा है।Ó उन्होंने कहा कि ग्रामीण विकास विभाग के समन्वय में कृषि और बागवानी विभाग संयुक्त रूप से अफीम पोस्त और भांग की खेती वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त वैकल्पिक नकद फसलों को अपनाने का प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे। नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर छात्रों को संवेदनशील बनाने के लिए शिक्षा विभाग के नोडल प्रशिक्षण अधिकारी के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया जाएगा। पीटीए और एसएमसी बैठकों के दौरान, छात्रों के माता-पिता भी इस मुद्दे पर चर्चा में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि दवाओं के दुरुपयोग पर शैक्षणिक संस्थानों में एक सप्ताह में परामर्श सत्र भी आयोजित किए जा रहे हैं। ‘इस तरह के परामर्श का मुख्य उद्देश्य छात्रों के माध्यम से दवाओं के आपूर्तिकर्ता तक पहुंचना है।’
राज्य पुलिस प्रमुख ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों के पास स्थित सभी दुकानों, ढाबों में सख्त निगरानी में रखी जा रही हैं और उनका निरीक्षण समय-समय पर किया जाता है और इन संस्थानों के आसपास संदिग्ध गतिविधियों को पुलिस को सूचित किया जाएगा। जनसंपर्क विभाग नशीली दवाओं के दुरुपयोग के दुष्प्रभावों पर नुक्कड़ नाटकों समेत विभिन्न तरीकों से बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम चलाएगा। हालांकि, आईएसटी, आईआरबीएन बनगढ़, ऊना की सड़क प्ले टीम पहले से ही कार्रवाई कर चुकी है। स्वास्थ्य विभाग जनता के बीच अपने प्रसार के लिए शिक्षा और जनसंपर्क विभागों के साथ 104 हेल्पलाइनों पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग की प्रचार सामग्री साझा करेगा।
महिलाओं का योगदान
हिमाचल में महिलाओं ने भांग उखाड़ो अभियान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस अभियान में राज्य में 80 से ज्यादा माहिला मंडल शामिल हैं। कुल्लू जिले में माहिला मंडल की सदस्य कमला देवी ने कहा कि पुरुषों और युवाओं में नशीले पदार्थों की आदत से महिलाएं ही सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि एक बार नशे की चपेट में आये पुरुष अपने परिवार की जि़क्र करना बंद कर देते हैं और नशे के जुगाड़ में रहते हैं और परिवारों की देखभाल करना बंद कर देते हैं। ” नशे से उनकी सेहत का भी सत्यानाश हो गया है और घर चलाने का जिम्मा भी हम महिलाओं पर आन पड़ा है”। सिरमौर जिले के एक ऐसी ही सदस्य सत्यवती ने कहा कि महिलाएं सक्रिय रूप से भांग उखाडो का अभियान में प्रशासन और पुलिस की मदद कर रही हैं। कुल्लू और सिरमौर में बहुत से इतने दुर्गम इलाके हैं जहाँ पुलिस की भी पहुँच नहीं हो पाती। युवक मंडल भी इस काम में हाथ बटा रहे हैं।