धार्मिक परिसर, राजनीतिक स्मारक!

पंजाब के अमृतसर स्थित हरमंदिर साहिब अर्थात स्वर्ण मंदिर के शांत, शीतल, आध्यात्मिक और जीवंतता से भरे पवित्र माहौल में घूमते हुए विश्वास नहीं होता कि कभी यह जगह गोली, बम, हथियार और विस्फोटकों से पटी पड़ी थी. पवित्र अमृत सरोवर, जिसके एक छोर पर कुछ लोग स्नान कर रहे हैं और दूसरे छोर पर श्रद्धालु जिसके किनारे बैठकर ध्यान लगा रहे हैं, उसका पानी कभी विस्फोटकों से पूरी तरह दूषित हो चुका था. 5-6 जून, 1984 को यह जगह एक रणभूमि में तब्दील हो गई थी. एक तरफ भारतीय सेना थी तो दूसरी तरफ कुछ हथियारबंद लोग. ऑपरेशन ब्लू स्टार के नाम से जाने जाने वाले इस ऑपरेशन के जरिए सेना मंदिर में शरण लिए हुए हथियारबंद जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके साथियों को बाहर निकालना चाहती थी. सेना के मुताबिक ये लोग मंदिर से अपने आतंक का नेटवर्क चलाते हुए पूरे पंजाब में अलगाववाद और आतंक फैला रहे थे. सरकारी रिकॉर्ड में यह एक ऐसी घटना के रूप में दर्ज है, जिसमें तत्कालीन केंद्र सरकार ने सेना के माध्यम से आतंक और आतंकवादियों के खात्मे के लिए एक ऑपरेशन चलाया जो सफल रहा. लेकिन तस्वीर का दूसरा पक्ष भी है. जरनैल सिंह भिंडरावाले सहित इस ऑपरेशन में मारे गए जिन लोगों को भारत सरकार आतंकवादी मानती है, उन्हें सिखों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त ने शहीद का दर्जा दिया हुआ है. जब इतिहास की एक त्रासद घटना को लेकर दो एकदम विपरीत दृष्टिकोण हों तो फिर स्थितियां बेहद जटिल हो जाती हैं.

आगामी 6 जून को उस घटना को पूरे 28 साल हो जाएंगे. इस दौरान बड़ी मुश्किल से राज्य में अमन-चैन की स्थापना हुई और अलगाववाद का दौर समाप्त हुआ. धीरे-धीरे पंजाब के बाकी देश से संबंध सामान्य हो चुके हैं. राज्य में अलगाववाद का बीज बोने वाले या तो खत्म हो गए या फिर उनकी संख्या उंगलियों पर गिने जाने लायक रह गई. प्रदेश की जनता ने हर उस प्रयास को नकारा जो उसे किसी तरह से पूरे देश से अलग-थलग करने की कोशिश करता हो. धीरे-धीरे स्वर्ण मंदिर में घटा वह दुखद वाकया भी लोगों के जेहन से मिटने लगा था. लेकिन शायद राजनीति को यह मंजूर नहीं. 2002 में एसजीपीसी, जो सिखों के धार्मिक मामलों की देखरेख करती है, उसने एक प्रस्ताव पास करते हुए कहा कि गोल्डन टेंपल परिसर में उन लोगों की याद में एक स्मारक बनाया जाएगा जो ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए थे. ये वही लोग थे जिन्हें भारत सरकार आतंकवादी मानती है. 2002 से शुरू हुई यह कहानी आज अपने अंतिम चरण में है. 20 मई को स्वर्ण मंदिर के परिसर में स्मारक बनाए जाने के काम की औपचारिक शुरुआत हो गई. स्थितियां अब और जटिल हो जाती हैं क्योंकि जिस एसजीपीसी ने इस काम को शुरू करवाया है उस पर राज्य में सत्तारूढ़ शिरोमणी अकाली दल का ही शासन है.

 यानी भारत सरकार जिन लोगों को आतंकवादी मानती है राज्य में सत्तारूढ़ दल और एक तरह से राज्य सरकार उनकी याद में स्मारक बनवा रहे हैं.

इस काम को करने की जिम्मेदारी उसने जिस संस्था दमदमी टकसाल को सौंपी है उसके प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरावाले की ही ऑपरेशन ब्लूस्टार में मौत हुई थी. स्थितियां इतनी जटिल हैं शायद इसीलिए अकाली दल का कोई भी छोटा-बड़ा नेता इस मसले पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं. ऑपरेशन के दौरान मारे गए लोगों की याद में बन रहे इस स्मारक में सभी मृतकों के नाम दीवारों पर लिखे जाएंगे. इनमें शहीद का दर्जा प्राप्त भिंडरावाले का नाम सबसे ऊपर होगा. इनकी तस्वीरें भी इस स्मारक में लगाई जाएंगी. ऑपरेशन के दौरान जिन प्रमुख चीजों को नुकसान पहुंचा उनको भी इसमें प्रदर्शित और संरक्षित किया जाएगा. इसमें वे सोने की प्लेटें और वह पवित्र गुरु गंथ साहिब भी होंगे जिनपर गोली लगने के निशान मौजूद हैं.

स्मारक बनाने की जगह, जरूरत और उसको बनाने के पीछे की मंशा पर तमाम तरह के गंभीर सवाल उठ रहे हैं. जानकारों का एक वर्ग मानता है कि यह सब कुछ संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है. नहीं तो क्यों ऐसा विवादास्पद स्मारक बनाने के लिए अकाली दल और सरकार तैयार हो जाते जिसको लेकर प्रदेश की जनता में कोई मांग ही नहीं है? जैसा कि पंजाब विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर मंजीत सिंह कहते हैं, ‘देखिए जितना मुझे पता है, समाज की तरफ से ऐसा कोई स्मारक बनाने को लेकर न कोई आंदोलन था और न ही कोई मांग थी.’ मगर कुछ जानकारों के अनुसार स्मारक बनाने को लेकर आम जनता का भले कोई दबाव नहीं हो लेकिन कट्टरपंथी सिख संगठनों ने लगातार इसके लिए दबाव बना रखा था, परिणामस्वरूप सरकार ने इसके लिए रजामंदी दे दी.

विभिन्न जानकारों का यह भी मानना है कि इस स्मारक के बनने से भविष्य में किस तरह का प्रभाव पड़ेगा यह तो देखने वाली बात होगी लेकिन इसके दुरुपयोग की संभावना हमेशा बनी रहेगी. मंजीत कहते हैं, ‘देखिए स्मारक बनाकर उसमें जिन लोगों के नाम और तस्वीरें लगाए जाएंगे और जिन्हें उस स्मारक में शहीद का दर्जा दिया जाएगा, वे संभव है, कई लोगों को उसी रास्ते पर जाने के लिए प्रेरित करें जिस रास्ते पर वे खुद गए थे.’ हर हालत में अपना नाम न छापने की शर्त पर प्रदेश कांग्रेस के एक बहुत बड़े नेता कहते हैं, ‘देखिए हमारे यहां शहीदों को जो दर्जा दिया जाता है उसका मतलब होता है कि लोगों को उनका अनुसरण करना चाहिए. कल्पना कीजिए अगर इस मामले में लोगों ने अनुसरण करना शुरू कर दिया तो कैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है.’ इस बात को आगे बढ़ाते हुए मंजीत कहते हैं, ‘अभी इस स्मारक को बनाने वाले इसे बनाने के पीछे कुछ और कारणों का हवाला दे रहे हैं लेकिन इस बात की गारंटी कौन लेगा कि इस स्मारक का प्रयोग राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए नहीं किया जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो फिर एक भयावह तस्वीर हमारे सामने होगी.’

एक प्रश्न यह भी बहुत पहले से उठता रहा है जिसकी प्रासंगिकता आज और बढ़ गई है कि आखिर ऑपरेशन ब्लूस्टार को पंजाब के लोगों को कैसे देखना चाहिए? ‘पहले ये फैसला होना चाहिए कि इतिहास में इसका क्या स्थान है. भिंडरावाले और उनके साथियों ने जो किया, सरकार के खिलाफ बगावत की, आवाज उठाई, दरबार साहब के अंदर हथियार और गोला बारूद ले आए, दरबार साहब के अंदर किलेबंदी की, लड़ाई की, ये क्या था. क्या उन्होंने जो किया वो सही था’ ब्रिगेडियर ओएस गोरैया, जो इस ऑपरेशन के दौरान स्वर्ण मंदिर में मौजूद थे, कहते हैं, ‘भिंडरावाले और उसके साथी ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए थे, शहीद नहीं हुए थे. ऐसे में उन्हें शहीद का दर्जा देकर उनकी याद में स्मारक बनाना बिलकुल गलत है.’

लोगों में इस बात का डर भी है कि भविष्य में यह स्मारक अलगाववादियों और भारत विरोधी तत्वों के लिए प्रेरणास्थली न बन जाएं. इस बात की भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि आगे चलकर अस्थिरता फैलाने के इरादे से भारत विरोधी तत्व इस स्मारक का दुरुपयोग कर सकते हैं. प्रदेश के एक वरिष्ठ राजनेता कहते हैं, ‘इस तरह अगर हम आतंक का महिमामंडन करने लगे तो कल देश के हर कोने से ऐसे स्मारक बनाए जाने की आवाज उठने लगेगी. हर गलत काम करने वाले की पूजा शुरू हो जाएगी. हत्यारे हीरो बन जाएंगे. उस समय आपके पास ऐसे लोगों को रोकने का कोई आधार नहीं होगा क्योंकि एक जगह पर अगर आपने गलत परंपरा की नींव डाली तो यह एक श्रृंखला बन जाएगी.’ एक विचार और भी सामने आ रहा है कि अगर स्मारक बनाना ही है तो फिर क्यों न उस दौरान मारे गए सभी लोगों की याद में बनाया जाए जिससे कि आने वाली पीढ़ियां और सरकारें इससे सबक लें. सिर्फ उनके लिए स्मारक बनाना जो भारतीय सेना से लड़ते हुए मरे बाकी अन्य लोग, जो सरकारी या फिर गैर-सरकारी आतंक का शिकार हुए, उनका अपमान होगा.

इस पूरे मामले पर कोई भी राजनीतिक दल खुलकर कुछ भी बोलने से बच रहा है. कांग्रेस की हालत तो और खराब है. वह न तो इस स्मारक का समर्थन कर पा रही है और न ही खुलकर विरोध.

नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘देखिए यही शिरोमणी अकाली दल की दोगली नीति है. चुनाव से पहले उसने कैसे अपने आपको एक सेक्युलर दल के रूप में प्रचारित किया. विकास के नारे लगाते रहे. कोई पंथिक मुद्दा नहीं उठाया. लेकिन अब जब सत्ता में आ गए तो अपना असली चेहरा उजागर कर दिया. अब ये फिर से धर्म और पंथ की राजनीति करने लगे. कट्टरपंथियों के तुष्टीकरण की राजनीति शुरू कर दी. फिर से इन्होंने लोगों की भावनाओं के साथ खेलना शरू कर दिया. इन्हें डर था कि ऐसा न हो कि विकास और सुशासन की चर्चा में ये अपने असली वोट बैंक को ही खो दें. इसी कारण से इन्होंने वापस अपनी पुरानी संकीर्ण राजनीति शुरू कर दी. राजौना के मामले में इन्होंने क्या किया सबके सामने है. अब यह नया मामला सामने है.’ मंजीत कहते हैं, ‘अकाली दल की ये कल्पना हो सकती है कि उसके इस निर्णय से उसका पारंपरिक वोट बैंक मजबूत होगा. शायद इसीलिए वो ऐसा कर रहे हैं. भारत के लगभग सभी राजनीतिक दल कुछ इसी तरह से संकीर्ण राजनीति करते रहे हैं यही कारण है कि कोई ऐसा दल नहीं है जो अकाली दल को ये कह सके कि ये गलत हो रहा है.’    

भाजपा जो राज्य में अकाली दल के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार चला रही है वह भी इसे लेकर बड़ी पसोपेश की स्थिति में है. इसीलिए तहलका से राज्य भाजपा का कोई भी नेता इस मसले पर बात करने को तैयार नहीं हुआ. मगर भाजपा के वरिष्ठ नेता और पंजाब के प्रभारी शांता कुमार इस मामले पर आश्चर्यजनक रूप से बड़ी बेबाकी से अपनी राय रखते हैं, ‘हम आतंकवाद और उसमें लिप्त लोगों को किसी तरह का समर्थन देने या फिर उनका महिमामांडन करने के सख्त खिलाफ है. इस स्मारक के हम विरोध में है. ये नहीं होना चाहिए क्योंकि बहुत कीमत देकर पंजाब में शांति और स्थिरता आई है. ऐसे में इस तरह के कृत्यों से बचा जाना चाहिए.’ इस प्रश्न के जवाब में कि क्या भाजपा अकाली दल के सामने इस विषय पर अपना विरोध दर्ज कराएगी. शांता कुमार कहते हैं, ‘हम मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से इस विषय पर बात करेंगे कि वे स्मारक के बनने पर जल्द से जल्द रोक लगवाएं.’­