दिल्ली दंगों में दहशत, वहशत और अफवाह

राजधानी दिल्ली में कभी किसी ने सोचा तक नहीं था कि एक समाज में रहने वाले वे लोग, जो दशकों से एक साथ मिलकर रह रहे हैं, रातोंरात दो भागों मेें बँटकर एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाएँगे। कई बार आपस में हिसंक झड़पें होती रही हैं, लेकिन इस तरह कत्लेआम, लूटपाट और आगजनी जैसी हिंसक वारदात होने की किसी को भी ज़रा भी आशंका नहीं थी। 23 से 25 फरवरी तक, तीन दिनों के भीतर जाफराबाद, ब्रह्मपुरी, चाँद बाग, करावल नगर, शिव विहार, मौजपुर सहित तमाम वे गलियाँ जहाँ पर हिन्दू-मुस्लिम साथ रहते थे, एक-दूसरे के सुख-दु:ख में मिलकर हमेशा साथ खड़े रहते थे, वहाँ पर भीषण दंगों की आग की लपटों ने सब कुछ जलाकर राख कर दिया। सबसे दु:खद पहलू यह है कि लोगों में जो प्यार और विश्वास था, वह अब नफरत में बदल-सा गया है। दंगे के भीषण नरसंहार में दिल्ली पुलिस के हेडकांस्टेबल रतन लाल सहित 50 से अधिक लोगों की मौत हो गयी और 300 से अधिक लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये। वहीं, इस दंगे में दर्ज़नों लोग लापता हैं, जिनकी तलाश जारी है। दंगा प्रभावित क्षेत्र में तहलका संवाददाता ने मृतकों, घायलों के परिजनों से बात की, तो उन्होंने बताया कि यह तो एक दिन होना ही था; क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान और शाहीन बाग में जो कुछ धरना-प्रदर्शन को लेकर सियासी बयानबाज़ी चल रही थी, वह पूरी तरह से विभाजन वाली और आपसी सौहार्द बिगाडऩे वाली रही है। आिखरकार यह बयानबाज़ी 23 फरवरी को दंगे के रूप में सामने आ ही गयी। यहाँ पर भले ही शान्ति की बात कही जा रही है, पर दहशत और तनाव की स्थिति जल्द खत्म होने वाली नहीं है। एक-दूसरे को शक की नज़र से देखा जा रहा है।

अब बात करते हैं कि आिखर क्यों इतने भीषण दंगे हुए? इसकी मुख्य वजह दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान सियासी दलों द्वारा एक-दूसरे पर तंज भरे बयान देने के साथ-साथ दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए के विरोध मेंं एक बड़ा धरना बताया जा रहा है। इस धरने को दिल्ली में दो समुदाय के कुछ लोग अपनी प्रतिष्ठा और हीन भावना के तौर पर देखते रहे हैं। ऐसे में उत्तेजक बातों का होना भी एक कारण है। दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले यहाँ पर एक पार्टी के कार्यकर्ता ने 10 जनवरी को साफतौर पर कहा था कि केंद्र सरकार की नीतियों को नहीं, बल्कि उसकी पार्टी को हराना है; तबसे यहाँ पर ये बातें होने लगी थीं कि विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद देखा जाएगा।

वैसे, जाफराबाद में सीएए के विरोध में लम्बे समय से शान्तिपूर्वक धरना चल रहा था। किसी को धरने से कोई आपत्ति भी नहीं थी। 23 फरवरी को एक सोची-समझी साज़िश के तहत सीएए के विरोध में एक समुदाय की महिलाओं ने सडक़ के बीचोंबीच धरने का विस्तार करके केंद्र विरोधी नारेबाज़ी शुरू कर दी। उधर, उसी समय भाजपा के नेता कपिल मिश्रा ने वहाँ आकर सीएए का समर्थन करते हुए चेतावनी दी कि अगर यह धरना ऐसे ही चलता रहा, तो हम मेहमान के रूप में भारत दौरे पर आये अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के जाने तक का इंतज़ार करेंगे, उसके बाद हम पुलिस की भी नहीं सुनेंगे। यह कहकर कपिल मिश्रा तो वहाँ से चले गये, लेकिन अगले दिन ही दंगे भडक़ गये। कपिल का कहना था कि कुछ अराजक तत्त्वों ने हमलेबाज़ी, गाली-गलौज शुरू कर दी। इसके अगले दिन ही अचानक ऐसा खूनी तांडव हुआ, जो सबके सामने है।

चाँद बाग और शिव विहार में सबसे ज़्यादा हत्या, लूटपाट और आगजनी की घटनाओं को भयानक अंजाम दिया गया। यहाँ के नाले में इंटेलिजेंस ब्यूरो में सहायक अंकित शर्मा का शव मिला। अंकित के भाई अंकुर ने तहलका संवाददाता को बताया कि उनके भाई की हत्या में ‘आप’ के पार्षद ताहिर हुसैन का हाथ है; क्योंकि उनके भाई को कुछ लोग खींचकर ताहिर के घर पर ले गये थे; बाद में उसका जो शव मिला।

बता दें कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अंकित के शरीर पर 400 बार चाकुओं से वार होने की पुष्टि हुई है। यहाँ के निवासी विनोद सिंह ने कहा कि चाँद बाग के नाले को सरकार को सही तरीके से साफ करवाकर देखना चाहिए, ताकि पता चल सके कि अभी और कितने शव वहाँ पर हैं। क्योंकि कई परिवार वाले आज भी अपने परिजनों की तलाश कर रहे हैं। शिव विहार में एक गली तो पूरी तरह से जला दी गयी है। वहाँ सन्नाटा चीत्कार करता महसूस हो रहा है। यहाँ के निवासी रमेश कुमार ने  बताया कि जब हिंसक दंगा करने वाले उनके घर की तरफ जब आ रहे थे, तब वह बड़ी मुश्किल से अपनी बहू को लेकर जान बचाकर भागे थे। चाँद बाग निवासी फरहत ने बताया कि उनके पति सोनू दिलशाद का चाँद बाग में बवाल के बाद से कुछ पता नहीं है। फरहत ने बताया कि ऐसे दंगे सामने से देखने पर उनके मन में डर समा गया है। पुलिस में लापता होने की शिकायत की है।

इसी तरह का हाल मोहनीश की माँ का है। रो-रोकर उनका हाल बेहाल है। उनका कहना है कि वह शव जीटीबी अस्पताल में देख चुकी हैं, पर उनके परिजनों का कोई अता-पता नहीं है। 25 फरवरी को जान बचाकर भागने वाली फरहीन ने बताया उनके पति और भाई को कुछ लोगों ने घर से निकालकर मारा, जिसमें उन्होंने अपने पति आरिफ को तो बचा लिया, पर उग्र भीड़ के सामने वह अपने भाई मुशर्रफ को नहीं बचा सकीं। 24 फरवरी की रात शिव विहार स्थित होटल में दिलवर काम करता था। जब शोरशराबा हुआ कि होटल में आग लग गयी है, तभी भागती भीड़ को देखकर दिलवर जान बचाकर भाग रहा था, लेकिन भीड़ ने दिलवर को पकडक़र जलते कमरे में फेंक दिया; जिससे उसकी दर्दनाक मौत हो गयी। दिलवर के परिजनों ने बताया कि दिलवर होटल में काम करने के साथ-साथ पढ़ाई और सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था। इसी तरह उन तमाम लोगों की तमाम दर्द भरी कहानियाँ हैं, जिन्होंने अपने परिजनों को इस हिंसक दंगे में खो दिया।

दिल्ली का जब एक हिस्सा जल रहा था, तब पुलिस और सियासतदाँ कहाँ थे? इस बात को लेकर यहाँ के लोगों ने जमकर दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार और पुलिस पर गुस्सा व्यक्त किया। लोगों का कहना है कि सियासत करनेे वाले अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वेलकम निवासी परवेज़ बताया कि चुनाव के दौरान नेताओं को जनता अपना हितैषी समझकर इनका साथ देती है और वोट देती है; लेकिन जैसे ही इनका भला-बुरा हो जाता है, ये आग लगाने से नहीं चूकते हैं।

परवेज़ का कहना है कि अब जनता समझ चुकी है कि हिंसा की जड़ में शाहीन बाग है। अगर दिल्ली सरकार का या केंद्र सरकार का कोई नेता चाहता, तो शाहीन बाग का धरना समाप्त करवा सकता था; लेकिन ऐसा नहीं हुआ है, जो पूर्वी दिल्ली वालों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ रहा है। सरदार इंद्रजीत सिंह ने बताया कि 1984 के बाद दिल्ली में पहली बार बड़े पैमाने पर कत्लेआम और लूटपाट हुई है, तब भी सियासत के लोग थे, आज भी सियासत के लोग हैं। क्योंकि दिल्ली में जो खूनी खेल खेला गया है, वह एक दिन का नतीजा नहीं है। यह सब सुनियोजित और मारपीट तथा लोगों की जान लेने के लिए साज़िशन किया गया है। घरों में पेट्रोल बम, गुलेलों और पत्थरों का मिलना इस बात का प्रतीक है कि दंगे की तैयारी पहले से ही की जा चुकी थी; बस मौके की तलाश थी और यह मौका उनको 23, 24 और 25 फरवरी को मिला।

दिल्ली और देश की राजनीति में दो समुदायों के बीच जो शब्दों के बाण चलाये जा रहे हैं, उसमें समाज एक तीसरा समुदाय गुपचुप तरीके से आगजनी और मौतों के ‘खेल’ को अंजाम दे रहा है। बतातें चलें कि जो तीसरा समुदाय है, वह किसी राजनीतिक दल से पैसा लेकर सियासत में अपनी धाक ज़माने के लिए काम कर रहा है, उसमें कुछ धर्म के कथित ठेकेदार भी हैं, जो मौका मिलते ही एक धर्म से दूसरे को लड़ाने ने की िफराक में रहते हैं। कहीं लाउडस्पीकर से, तो कहीं मजमा लगाकर उत्तेजक बातें करके दंगों का रास्ता बना रहे हैं। धर्म के नाम पर घोषित रूप से दुकानें चलाने वालों पर अगर सरकार कार्रवाई करे, तो काफी हद तक दंगों को रोका जा सकता है।

हालाँकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने जिस अंदाज़ में दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा करके मरने वाले और घायलों के परिजनों से मिलकर सुरक्षा का भरोसा दिया और पुलिस व्यवस्था को चौकस करने का आदेश दिया है, तबसे यहाँ प्रकार किसी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं घटी है। दिन-ब-दिन कफ्र्यू में भी ढील दी जा रही है और बाज़ारों में फिर से आहिस्ता-आहिस्ता रौनक लौटने लगी है। सुरेश भगत ने बताया कि पुलिस के साथ अद्र्धसैनिक बलों की तैनाती के बाद भले ही अभी शान्ति है, पर ये शान्ति स्थायी रूप से कायम रहनी चाहिए। मौजपुर में अध्यापक राम कौशिक ने बताया कि केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार जब तक मिलकर स्थायी समाधान नहीं निकालती हैं, तब तक यहाँ पर तनाव रहेगा। क्योंकि जिस तरह से सुनियोजित तरीके से दंगों को अंजाम दिया गया है, वह इतनी आसानी से शान्त होने की उम्मीद नहीं है। लोग अब भी  दहशत में हैं। यहाँ निवासियों का कहना है कि दंगे में जो लोग भी गिरफ्तार किये गये हैं, उन सबके मोबाइल फोन की डिटेल देखी जाए, तो बहुत-सी बातों का खुलासा हो जाएगा। जैसे- दंगे करने का मंसूबा क्या था? कितने लोग देश को आग में झोंकना चाहते हैं?

दिल्ली की राजनीति के जानकार व वकील पीयूष जैन का कहना कि नफरत का जो नंगा नाच खेला जा रहा है, उसमें पुलिस को दोष देना ठीक नहीं है। क्योंकि दिल्ली में खुले तौर पर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान वाली राजनीति हो रही है। ऐसी राजनीति एक दिन हर हाल में भयंकर व घातक घटनाओं को अंजाम देती है और यहाँ यही हुआ भी। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को एक शपथ लेनी होगी कि वे भारतीय राजनीति में भारत से जुड़े मामलों को ही महत्त्व देंगे, न कि पड़ोसी देश को; खासतौर सो दो धर्मों से जुड़ी बात के मामले में तो बिल्कुल नहीं।

भले ही आज दिल्ली का एक हिस्सा जला है, लेकिन इसकी सियासी लपटों से कहीं-न-कहीं पूरा देश झुलसा है और एक तरह से नयी राजनीति को जन्म दे रहा है। अगर समय रहते इस तरह की घटनाओं को गहराई से न परखा गया और उनसे सख्ती से नहीं निपटा गया, तो आगे भी ऐसी घटनाओं की आशंका बनी रहेगी।