सारी दुनिया कितनी पागल लगती है।
ईश्वर की रक्षा का दावा करती है।।
मेरे इस मतले का मतलब बहुत सीधा-सा है। अब लोग ईश्वर (अपने-अपने मज़हब के हिसाब से बताये गये ईश्वर) की रक्षा का दावा करते हैं। वाकई ये कितने पागल लोग हैं! आज के आधुनिक दौर में भी करोड़ों लोग अपने-अपने मज़हबों के नाम पर, अपने-अपने ईश्वर के नाम पर न केवल ङ्क्षहसा करने को तैयार रहते हैं, बल्कि उनमें अनेक तो ङ्क्षहसा करते भी हैं। इसके पीछे कम-से-कम मरने-मारने पर उतारू लोगों में से किसी की भी अक्ल का कोई रोल नहीं होता, बल्कि केवल पागलपन होता है। अपनी-अपनी मान्यताओं और अपने-अपने ईश्वर यानी अपने मज़हब के द्वारा बताये गये ईश्वर के स्वरूप, नाम आदि की रक्षा के दम्भ का पागलपन! सीधे-सीधे कहें, तो वे इस नश्वर और कोमल शरीर के बल-बूते उस अनादि, अनश्वर, अतुलित, अखण्डित और सर्वशक्तिमान की रक्षा का दम्भ भरते हैं, जिसके ब्रह्माण्ड के एक छोटे-से पिण्ड की छोटी-सी जगह पर बने छोटे-छोटे से घर में रहते हैं।
कोई हैसियत नहीं होने पर भी इतना दम्भ! क्या यह सब आपको हैरानी में नहीं डालता? दम नहीं है, लेकिन दम्भ कूट-कूटकर भरा पड़ा है। यही इंसान की विडम्बना है कि वह खुद को ही सृष्टि का सबसे शक्तिशाली जीव समझ लेता है और इसी भ्रम में वह उस ईश्वर की रक्षा करने का भी दम्भ भरने लगता है, जिसने उसे पैदा किया।
ऐसे मूर्ख लोगों का यह दम्भ ईश्वर की रक्षा तो खैर क्या करेगा, लेकिन उनकी रक्षा ज़रूर करता है, जो इसके सहारे ऐश-ओ-आराम करते हैं। सुख की सत्ताओं पर काबिज़ रहते हैं। ऐसे ही लोगों का शैतानी दिमाग इस सबके पीछे काम कर रहा होता है। क्योंकि उनकी सत्ताएँ लोगों के इसी पागलपन पर टिकी होती हैं; चाहे वह मज़हबी सत्ता हो या सियासी सत्ता। हैरानी होती है कि लोग मज़हबों में बतायी गयी बातों को न मानकर मज़हबों को तख्ती गले में लटकाकर घूमने में विश्वास करते हैं। इसी वजह से आज बिना सोचे-समझे लोग एक-दूसरे को मज़हब को पाखण्ड और तुच्छ समझते हैं। यहाँ तक कि उस एक ही ईश्वर को, जो सबका मालिक है; दूसरे मज़हब में अलग नाम से पुकारे जाने के कारण गालियाँ देते हैं। उसे नष्ट करना चाहते हैं और उसी ईश्वर को अपने मज़हब में दिये गये नाम के आधार पर श्रेष्ठ और सच्चा मानकर उसकी रक्षा का दम्भ भरते हैं। कितनी अजीब बात है? यह तो ऐसे ही हुआ, जैसे कोई अपने पिता को पिता कहे और उन्हें पूजे, लेकिन उसी का दूसरा भाई या बहिन अगर उन्हें पिता की जगह पापा या बापा या अब्बा कहे, तो वह व्यक्ति उन लोगों से झगड़ा करे और कहे कि तुम्हारे पापा-बापा-अब्बा तुच्छ हैं, नीच हैं, वो पिता नहीं हो सकते और अपने ही पिता को गालियाँ दे और अपने भाई-बहिन पर हमला करे।
ऐसे मूर्खों का क्या किया जाए? कबीरदास, साईं बाबा, गुरु नानक देव, संत रैदास, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और न जाने कितने ही संत-फकीर दुनिया को यही समझाते-समझाते संसार से चले गये; पर लोग नहीं सुधरे। कह सकते हैं कि संसार को जोडऩे वालों से, संसार का भला चाहने वालों से ज़्यादा कामयाब वो लोग रहे, जो संसार को तोडऩा चाहते थे। यही वजह है कि हम आज तक दु:खी हैं। हमें आज तक अत्याचार देखने-सहने पड़ रहे हैं। हम पर आज तक बुरे लोग शासन कर रहे हैं। हम आज तक आज़ाद नहीं हो सके हैं। कुछ लोगों को भले ही लगता है कि वे आज़ाद हैं, दुनिया का हर देश आज़ाद है। पर मैं ऐसा नहीं मानता। क्योंकि न तो मनुष्य कभी आज़ाद रहा है और न रह सकता है। इसका कारण यह है कि उसकी अपनी को स्वतंत्र सोच या तो होती नहीं है और अगर होती है, तो उस पर दूसरों की सोच या दूसरों का विरोध या दूसरों का हस्तक्षेप या दूसरों के प्रतिबन्ध हावी होते हैं। इसी के चलते हम सबको कुछ मज़हबी किताबों और कुछ सत्ता के नियमों से बाँध दिया गया है। क्योंकि जो लोग मज़हबी किताबों या सत्ता के नियमों से बाँधकर रखते हैं, उनकी सत्ता इसी पर टिकी है। क्योंकि वे जानते हैं कि अगर सबको स्वतंत्र कर दिया जाएगा, तो उनके ऐश-ओ-आराम का अन्त हो जाएगा; उनकी सत्ता का अन्त हो जाएगा।
इसलिए वे हमें भ्रमजालों में फाँसे रहते हैं और उन बुरे लोगों की क्रूर सत्ता खत्म नहीं हो पाती। दुनिया में अमन-चैन कायम नहीं हो पाता। लोग एक-दूसरे के हितों की रक्षा नहीं कर पाते। लेकिन अगर ऐसा करना है, तो सबसे पहले तो हम सबको यह सत्य पूरे मन से स्वीकार करना होगा कि ईश्वर एक ही है, जो हम सबका पिता है और पूरे ब्रह्माण्ड का वही एक मालिक है। यकीन मानिए, दुनिया भर के तमाम झगड़े, ज़िन्दगी के तमाम दु:ख, तमाम ङ्क्षहसक वारदात, डर, वैमनस्य, घृणा, युद्ध, अभद्रता, शोषण सब खत्म हो जाएँगे और अमन, चैन, सुख कायम हो जाएगा। फिर कोई दु:खी नहीं होगा। फिर कोई किसी से शिकायत नहीं करेगा। फिर कोई किसी की हत्या नहीं करेगा। फिर कोई किसी पर अत्याचार नहीं करेगा। और अगर कोई अत्याचारी होगा भी, तो उसका लोगों द्वारा इतना विरोध हो सकेगा कि उसे अपनी बुराइयों को छोडऩा ही पड़ेगा। इसके लिए सबसे पहला काम यही करना होगा कि हमें ईश्वर की रक्षा का दम्भ छोड़कर अपनी औकात में रहकर उसे एक और सर्वव्यापी मानकर अच्छाई के रास्ते पर चलना होगा।
हमें मानना होगा कि पूरी दुनिया में हर प्राणी उसी की संतान है और धरती की प्रत्येक वस्तु पर जितना हमारा अधिकार है, उतना ही दूसरों का भी है। हमें इस बात को हमेशा मन में रखकर चलना होगा कि कल हम नहीं होंगे, इसलिए जिस तरह हमारे बुजुर्गों ने हमें धरती और उसकी प्राकृतिक सम्पदा सौंपी है, हमें भी उसे सुरक्षित भावी पीढिय़ों को सौंपकर जाना होगा। यह हमारा उत्तरदायित्व है। ऐसा करने से शायद ईश्वर हम सबकी रक्षा करे। तमाम विपत्तियों से, कोरोना और उस जैसी तमाम महामारियों से।