तौर पर पांच साल अपनी

आईएएस अधिकारी कहते हैं, ‘मलयालियों को अनुपात से ज्यादा फायदा मिला है. यहां तक कि जब महालेखा नियंत्रक (कैग) की नियुक्ति होनी थी तो नायर को विनोद राय मिले जो मलयाली नहीं हैं मगर केरल कैडर से जरूर हैं.’ लेकिन पंजाब से नायर का ताल्लुक खत्म नहीं हुआ. मनमोहन के पीएमओ में आने के लिए उन्हें चंडीगढ़ में मौजूद अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करना पड़ा. बताया जाता है कि वोरा के साथ अब उनका उतना संपर्क नहीं है. उनके एक जानकार कहते हैं, ‘दिल्ली में जैसा चलन है, उन्होंने भी उस सीढ़ी को लात मारना सीख लिया है जिससे वे ऊपर गए हैं.’ हालांकि मल्होत्रा से उनका अपनापा बरकरार है. मल्होत्रा का प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री आवास में आना-जाना है और वे प्रधानमंत्री के पसंदीदा हैं. पंजाब यूनिवर्सिटी में बतौर जूनियर अधिकारी करियर शुरू करने वाले मल्होत्रा कभी मनमोहन के चंडीगढ़ स्थित घर में किराएदार हुआ करते थे जो उनके ही एक परिचित के शब्दों में कारोबारी और खुफिया समुदाय के साथ अपने विकसित कए गए संबंधों के जरिए राजनीतिक उद्यमी और इंदिरा गांधी के आंख-कान बन गए. मल्होत्रा की अहम उपलब्धि रही क्रिड की स्थापना. आज यह सरकार से अच्छी-खासी रकम पाने वाला संस्थान है जिसे कांग्रेस सरकारों के शासनकाल में खूब फायदा होता रहा है. उर्दू में बीए और सियोल की सूकम्यूंग विमंस यूनिवर्सिटी से डॉक्टर की मानद उपाधि प्राप्त मल्होत्रा समाज विज्ञानी से ज्यादा राजनीति के खिलाड़ी हैं. उन्होंने मनमोहन और नायर, दोनों को ही क्रिड की गवर्निंग बॉडी में आमंत्रित किया (दोनों अब भी यहां हैं) और इस तरह दोनों को नजदीक लाए.

मल्होत्रा के दामाद डीपीएस संधू हैं. रेलवे सर्विस के अधिकारी संधू पीएमओ में निदेशक हैं. बिना अपने मूल कैडर में वापस आए सरकार के सबसे अहम दफ्तर में उन्होंने सात साल गुजार लिए हैं. और उनके ससुर के अलावा नायर का भी इसमें योगदान है. हाल के महीनों में संधू ने मीडिया को साधने का काम शुरू किया है और वे प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार हरीश खरे को बाइपास कर रहे हैं. एक ऐसा पीएमओ जिसका असमंजस लगातार बढ़ता दिखाई दे रहा है, के इस दोहरे रवैये का श्रेय भी नायर को ही जाता है.
नौकरशाह के रूप में नायर न तो राजनीतिक रूप से इतने वजनदार हैं जितने बृजेश मिश्रा थे या एमके

मजबूरी का मौन