बीएचयू से ही जुड़ा एक और किस्सा बहुत मशहूर है, जो अब कम सुनाया जाता है लेकिन कुछ बरस पहले तक खूब सुनाया जाता था. किस्सा यह है कि जब मालवीयजी बीएचयू के लिए दान मांगने निकले तो वे हैदराबाद के निजाम के पास भी गये थे. हैदराबाद के निजाम ने कहा आपको देने के लिए मेरे पास सिर्फ मेरा जूता ही है. मालवीयजी ने निजाम से जूता ले लिया और उस जूते की निलामी की और फिर उससे मिले पैसे को दान खाते में डाल दिया. चटखारे ले-लेकर बताया-सुनाया जाता है कि हैदराबाद के निजाम ने हिंदू विश्वविद्यालय के नाम पर दान मांगने पहुंचने पर अपमान के लिए यह किया था लेकिन उस अपमान को ही वरदान में बदलते हुए मालवीयजी ने जूते की बड़ी नीलामी कर दी. इससे हैदराबाद का निजाम शर्मसार भी हुआ. कहानी में आगे जोड़ दिया गया है कि बीएचयू में जो हैदराबाद कॉलोनी है, वह उसी नीलामी के पैसे से बनी है. कुछ तो इसमें यह भी जोड़ देते हैं कि इतना ही नहीं, जब हैदराबाद के निजाम ने जूते को दान में दिया तो उसकी निलामी का इश्तेहार छपा. फिर जूते की बोली लगाने देशभर के बड़े लोग जुटे. और उसके बाद हैदराबाद के निजाम ने भी अपने आदमी को भेजा कि जूता नहीं बल्कि उनकी इज्जत की नीलामी की जा रही है.
गौर फरमाएं
इस कहानी को पुख्ता करनेवाला कोई दस्तावेज आजतक उपलब्ध नहीं हो सका है. ज्यादातर कहानियों की तरह ही यह भी काल्पनिक किस्सा ही है. बीएचयू के दानकर्ताओं की पूरी सूची उपलब्ध है और पूरी प्रक्रिया भी दस्तावेजों में दर्ज है. उसमें हैदराबाद के निजाम से जुड़ी ऐसी बातों का कोई जिक्र नहीं है.