चार धाम यात्रा के लिए लाखों श्रद्घालुओं के उत्तराखंड पहुंचने की उम्मीद है. लेकिन पिछले साल की भीषण आपदा से बर्बाद सड़कों पर अब भी कई जगहें ऐसी हैं जो तीर्थयात्रियों के जीवन को संकट में डाल सकती हैं. महिपाल कुंवर की रिपोर्ट
उत्तराखंड में भले ही अब यात्रियों को चार धाम की यात्रा पहले की तरह पैदल चलकर नहीं करनी पड़ती हो लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे उनकी मुश्किलें खत्म हो गई हैं. सड़कों और परिवहन व्यवस्था की जो हालत है उससे इन यात्रियों को तो परेशानी हो ही रही है स्थानीय लोग भी बेहाल हैं.
रास्ता चौड़ा करने के लिए डायनामाइट से किए जा रहे विस्फोटों और पिछले साल भारी बारिश से हुए भूस्खलन के कारण चार धाम यात्रा मार्ग का हाल खस्ता है. दिल्ली से माणा तक जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 58 हो या रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 109 या फिर गंगोत्री तक जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 94 व 108, सबकी हालत कमोबेश एक जैसी है. आपदा के नौ महीने बाद भी इन मार्गों पर सुधार कार्य ठीक से नहीं हुए हैं. इसके चलते चार धाम यात्रा मार्ग में कई स्थानों पर स्थिति खतरनाक बनी हुई है. हालत यह है कि एक भी यात्रा मार्ग के बारे में सरकारी मशीनरी यह दावा नहीं कर सकती कि उसकी व्यवस्था चाक-चौबंद है और वह पूरे यात्रा काल के लिए सुरक्षित है.
राज्य के पर्वतीय जिलों में सड़कों का 23,673 किलोमीटर लंबा जाल फैला है. इनमें से लगभग 3,000 किमी लंबे सड़क मार्गों से होकर चार धाम यात्रा गुजरती है. इन सड़कों के निर्माण व रखरखाव की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के साथ-साथ सीमा सड़क संगठन की भी है. वर्ष 2008 में एक जनहित याचिका के जवाब में पीडब्ल्यूडी ने नैनीताल हाई कोर्ट को बताया कि यात्रा के दौरान चार धाम जाने वाले श्रद्धालुओं के वाहनों को करीब 551 खतरनाक मोड़ों से होकर गुजरना पड़ता है. उस समय पीडब्ल्यूूडी ने हाई कोर्ट को आश्वस्त किया था कि विभाग 227 खतरनाक जगहों पर सुरक्षा के कार्य स्वयं करेगा. बाकी बचे हुए 324 स्थानों पर इस काम की जिम्मेदारी सीमा सड़क संगठन की शिवालिक परियोजना की थी. सीमा सड़क संगठन के अधिशासी अभियंता जीएस राणा के अनुसार शिवालिक परियोजना ने इन मोड़ों पर सुरक्षात्मक उपाय कर लिए थे परंतु बीते साल आपदा के कहर ने इन सुरक्षात्मक कार्यों को फिर से धराशायी कर दिया.
इनके अलावा सीमा सड़क संगठन बल द्वारा बदरीनाथ-केदारनाथ व यमुनोत्री-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग में कई जगहों पर निमार्ण कार्य जारी हैं. राणा बताते हैं कि ऋषिकेश से बदरीनाथ तक जाने वाला 300 किमी लंबा, रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड तक 76 किमी लंबा व ऋषिकेश से गंगोत्री तक 124 किमी मार्ग फिलहाल वाहनों के आवागमन के लिए साफ है. वे बताते हैं कि राजमार्ग को चौड़ा करके डबल लेन बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है जिस कारण यात्रियों को फौरी परेशानी हो रही है. वे स्वीकार करते हैं कि भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें टूट जाने के कारण कहीं-कहीं पर मार्ग ऊबड़-खाबड़ हो रखे हैं परंतु सुधार कार्य भी
तेजी से चल रहा है.
कई किलोमीटर तक सड़कें टूटी पड़ी हैं. सरकारी मशीनरी ने इन्हें बिना डामरीकरण के कामचलाऊ बना दिया है.
सीमा सड़क संगठन की 66 आरसीसी के ओसी पीके आजाद बताते हैं, ‘पिछले साल की आपदा और भारी बरसात से जर्जर ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग को सुधारा जा रहा है जिसमें देवप्रयाग से कीर्तिगर व गौचर से नगरासू के बीच चट्टानें तोड़कर सड़क चौड़ीकरण का काम चल रहा है. इस चौड़ीकरण के कारण जाम की स्थिति बन रही है.’ यात्रा सीजन के दौरान सड़क चौड़ीकरण के चलते तीर्थ यात्री जाम में फंसकर घंटों तक आने-जाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करने को मजबूर हो रहे हैं. राणा बताते हैं, ‘अब इस काम को भी रात में शुरू करने की योजना बनाई जा रही है ताकि यात्रा बाधित न हो और चार धाम यात्रा के दौरान सड़क पर लगने वाले घंटों के जाम की स्थिति न बने.’
रुद्रप्रयाग के व्यवसायी उपेंद्र बिष्ट कहते हैं कि पिछले साल आई विनाशकारी आपदा के कारण सड़कों की स्थिति बेहद खस्ताहाल है. उनके अनुसार कई किलोमीटर तक यात्रा मार्ग की सड़कें टूटी पड़ी हैं. सरकारी मशीनरी ने यात्रा मार्ग को बिना डामरीकरण के कामचलाऊ बना दिया है. ऊबड़-खाबड़ मार्गों पर धूल उड़ने से यात्रियों को ही नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों को भी खासी परेशानियां हो रही हैं.
उत्तरकाशी जिले के निवासी लोकेंद्र बिष्ट बताते हैं कि चिन्यालीसौड़ से डूंडा, भटवाड़ी-गंगनाली, गंगनाली-सूखीखाल और भैरोंघाटी से गंगोत्री के बीच कई किलोमीटर तक गंगोत्री यात्रा मार्ग की बेहद जर्जर स्थिति बनी हुई है. ऐसे ऊबड़-खाबड़ यात्रा मार्ग में यात्री जोखिम से भरी यात्रा करने के लिए मजबूर हैं. वे बताते हैं कि यमुनोत्री मार्ग पर भी धरासू बैंड से ब्रह्मखाल, बड़कोट के बीच कई किलोमीटर की दूरी पर सड़क खस्ताहाल हो रखी है. उत्तरकाशी के पत्रकार संतोष भट्ट बताते हैं , ‘यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा मार्ग बेहद खराब स्थिति में है. इस मार्ग पर से केवल आपदा के समय आए हुए मलबे को हटाया गया है. बाकी सड़कों के पुस्ते व भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में राष्ट्रीय राजमार्ग के बुरे हाल हैं. इस सड़क पर जान का जोखिम उठाकर यात्री आजकल यात्रा कर रहे हैं.’ लोक निर्माण विभाग के अलावा परिवहन विभाग ने भी चार धाम यात्रा मार्ग पर 315 खतरनाक स्थान चिह्नित किए हैं. इसे सरकारी मशीनरी की बदइंतजामी ही कहें कि यात्रा शुरू होने के बाद भी इन स्थानों पर सावधानी प्रदर्शित करने के लिए बोर्ड भी अभी तक नहीं लग पाए हैं.
यात्रा मार्गों पर चलने के बाद यह बात आसानी से समझ में आ जाती है कि हर साल सरकारी महकमों की कई दौर की बैठकों के बाद भी यात्रा व्यवस्थाएं अभी तक चाक-चौबंद नहीं हो पाई हैं. यात्रा शुरू होने के महीनों पहले से हर साल विभिन्न विभागों की बैठकें होती हैं ताकि चार धामों के दर्शन करने आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए उचित व्यवस्था हो सके, लेकिन यात्रा शुरू होने के बाद सड़क मार्ग पर ही नहीं यात्रा में पड़ने वाले पैदल मार्ग पर भी कदम-कदम पर अव्यवस्थाएं ही नजर आ रही हैं. गौरीकुंड से श्री केदारनाथ मंदिर तक 14 किमी लंबे पैदल मार्ग पर अभी तक स्ट्रीट लाइटों की भी व्यवस्था नहीं हो पाई है. 14 किमी लंबे इस पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चर मालिकों की जमकर मनमानी चल रही है. गुजरात से आए यात्री मनसुख भाई शाह का आरोप है कि मार्ग पर यात्रियों से निर्धारित शुल्क से अधिक किराया वसूला जा रहा है. नियमों के अनुसार दो घोड़ों के साथ एक मजदूर रखने की व्यवस्था है, लेकिन वास्तव में घोड़े-खच्चरों के मालिक कई घोड़ों के साथ एक ही मजदूर को भेज रहे हैं. जिसके कारण पैदल पहाड़ी मार्ग पर भगदड़ मचने की आशंका बनी रहती है. इन अव्यवस्थाओं को लेकर जिला पंचायत, रुद्रप्रयाग को जिम्मेदार माना जा रहा है. जिला पंचायत ही यात्रा के दौरान घोड़े-खच्चर व मजदूरों का पंजीकरण करती है. रुद्रप्रयाग जिला पंचायत के अध्यक्ष चंडी प्रसाद भट्ट भी स्वीकार करते हैं कि केदारनाथ मंदिर जाने के लिए रास्ता बेहद दुर्गम है और यात्रियों को पहले ही इस मार्ग पर कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में घोड़े-खच्चरों और पालकी वालों द्वारा यात्रियों को परेशान करने की किसी भी घटना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. वे आश्वस्त करते हुए कहते हैं, ‘तय नियमों के विरुद्ध यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चर व डोली-पालकी चलाने वालों का पंजीकरण ही निरस्त कर दिया जाएगा.’
चार धाम यात्रा में केवल यात्री ही परिवहन व्यवस्था और खराब सड़कों से परेशान नहीं होते हैं बल्कि यात्रा स्थानीय लोगों के लिए भी परेशानी लेकर आती है. उत्तराखंड में यात्रा सीजन भले ही वाहन मालिकों के लिए लाखों रुपये का लाभ कमाने का जरिया हो, परंतु स्थानीय लोगों के लिए यह आवागमन की मुसीबतें लेकर आता है. पिछले साल चार धामों की यात्रा पर देश के विभिन्न हिस्सों से 15 लाख से अिधक श्रद्घालु आए थे. हर साल यात्रा में अधिकांश बसों के लगने से उत्तराखंड के मुख्य राजमार्गों से जुड़ने वाले संपर्क मार्गों पर चलने वाली बसों की संख्या कम हो जाती है जिसके कारण स्थानीय लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
यात्रा के शुरू होने के समय ही गर्मियों की छुट्टियां भी पड़ती हैं. इस समय उत्तराखंड के अधिकांश प्रवासी अपने बच्चों के साथ छुट्टियांे में अपने गांव-घर आते हैं. इसलिए संपर्क मार्गों पर जाने वाले स्थानीय लोगों की भीड़ और भी बढ़ जाती है. यात्रा काल में प्रशासन की प्राथमिकता देश भर से आने वाले यात्रियों के लिए बसों को उपलब्ध कराने की होती है. यात्रियों को बसों की कमी न हो इसके लिए प्रशासन संपर्क मार्गों पर चलने वाली अधिकांश बसों को चार धाम यात्रा में झोंक देता है. शीतकाल में जिन संपर्क मार्गों पर दसियों वाहन चलते हैं उन पर यात्रा काल में दिन भर में मुश्किल से एकाध वाहन ही चल पाते हैं. नतीजतन स्थानीय लोगों को चिलचिलाती धूप में कई घंटों तक बसों के इंतजार में पसीना बहाना पड़ता है. तिलवाड़ा के सामाजिक कार्यकर्ता बीर सिंह रावत कहते हैं, ‘प्रशासन अभी भी यात्रा व्यवस्था और स्थानीय लोगों की सुविधाओं में समन्वय नहीं बैठा पाया है जिससे हर साल लिंक रोडों पर यातायात व्यवस्था गड़बड़ा जाती है.’ उनका आरोप है कि बसों की अनुपलब्धता के कारण रोज इन सड़कों पर चलने वाली स्थानीय जनता को अपनी रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी के लिए भी कई किलोमीटर तक पैदल ही आना-जाना पड़ता है या फिर घंटों टैक्सियों का इंतजार करना पड़ता है.
यात्रा सीजन भले ही वाहन मालिकों के लिए लाखों रुपये कमाने का जरिया हो, स्थानीय लोगों के लिए यह आवागमन की मुसीबतें लेकर आता है
इस संबंध में पूछने पर संयुक्त रोटेशन यात्रा व्यवस्था समिति ऋषिकेश, के अध्यक्ष महावीर सिंह रावत बताते हैं , ‘यात्रा काल के दौरान सभी कंपनियों की 40 प्रतिशत बसें स्थानीय लोगों के लिए सेवाएं देती हैं.’ टिहरी गढ़वाल मोटर ओनर्स एसोसिएशन के जनरल मैनेजर जितेंद्र सिंह नेगी बताते हैं कि लिंक मार्गों पर जीएमओयू व उनकी कंपनी की ही बसें चलती हैं. वे भी दावा करते हैं कि यात्रा सीजन में इन मार्गों पर चलने वाली 40 प्रतिशत बसें स्थानीय लोगों की परिवहन व्यवस्था के लिए छोड़ दी जाती है. वे बताते हैं कि संपर्क मार्गों पर चलने वाली 1,200 बसों में से यात्रा शुरू होते ही 400 बसें स्थानीय लोगों के लिए रह जाती हैं.
उधर गढ़वाल मोटर ओनर्स यूनियन के अध्यक्ष जीत सिंह पटवाल बताते हैं कि कोटद्वार, हरिद्वार, ऋषिकेश, पौड़ी, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग व गोपेश्वर डिपो में करीब 200 बसें चलती हैं. सीजन शुरू होने पर इनमें से 150 बसों को यात्रा मार्गों पर लगा दिया जाता है. मुख्यालय कोटद्वार में जीएमओयू कंपनी के पास 550 बसें हैं. पटवाल बताते हैं कि इस बार चार धाम यात्रा के लिए 350 बसें भेजी गई हैं.
यात्रा के लिए बसों का रजिस्ट्रेशन लॉटरी के माध्यम से किया जाता है. टीजीएमओ के जीएम जितेंद्र नेगी बताते हैं कि यात्रा के शुरू होने से पहले ही उनके पास संयुक्त रोटेशन यात्रा व्यवस्था समिति से बुकिंग आ जाती है. इस साल 9 मई तक उनकी 310 बसों से लगभग 12,40 यात्री चार धाम के लिए रवाना हो चुके हैं.
स्थानीय लोगों के लिए यात्रा काल में बसों की कम संख्या के विषय में पूछने पर बताते हैं, ‘यह समय ही हमारे कमाने का होता है’. उनका आरोप है कि वर्षों से यात्रा चलने के बाद भी अभी तक यात्रा प्रशासन ने यात्रियों की संख्या को नियंत्रित करना नहीं सीखा है जिस कारण कुछ दिनों तो बसों की संख्या कम पड़ जाती है और बाकी दिनों बसें खाली खड़ी रहती हैं. उनका आरोप है कि बिना ग्रीन कार्ड या इजाजत के राज्य से बाहर की सैकड़ों बसें भी बाहरी राज्यों से आकर गैरकानूनी ढंग से यात्रियों को ढोती हैं.
सरकार ने चार धाम यात्रा की जिम्मेदारी गढ़वाल के आयुक्त अजय सिंह नबियाल को दी है. यातायात की व्यवस्थाओं के विषय में पूछने पर नबियाल बताते हैं, ‘फिलहाल पिछले साल आपदा से आए मलबे को सड़कों से हटाकर उन्हें वाहन चलने योग्य बना दिया गया है. नया मलबा सड़कों पर न आए इसके लिए सीमा सड़क संगठन और लोक निर्माण विभाग को विस्फोट न करने के लिए कहा गया है.’ स्थानीय लोगों को वाहनों की उपलब्धता के विषय में नबियाल बताते हैं, ‘अभी यात्रा का दबाव कम है. यात्रा के बढ़ने पर कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन (केमू) से 50 गािड़यां संपर्क मार्गों के लिए मांगी जाएंगी ताकि संपर्क मार्गों पर चलने वाले यात्रियों को असुविधा न हो. दावे कुछ भी हों यात्रा के गति पकड़ते ही हर साल परिवहन व्यवस्था चरमरा जाती है और परेशानी यात्रियों के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी भुगतनी होती है.