ताजा हुए सवाल

‘ऐसा लग रहा था जैसे अचानक मैं किसी फिल्म की शूटिंग का हिस्सा बन गया हूं. वे मुझे जाड़ों में नंगा करके बर्फ के ठंडे पानी से भिगोते थे और रबड़ के टुकड़े से तब तक मारते थे जब तक मुझमें बोलने की ताकत बची रहती थी. वे मुझसे बुलवाना चाहते थे कि मैं मुख्तार उर्फ राजू हूं, जिसने 2007 में बनारस, फैजाबाद और लखनऊ कचहरी में हुए धमाकों की साजिश रची है. फिल्मों का शौकीन होने की वजह से मुझे ऐसे सीन वाली कई फिल्में याद हैं, लेकिन मेरे साथ जो हुआ वह उन सभी फिल्मों के सारे दृश्यों से ज्यादा भयावह था.’

कोलकाता की कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लायर्स कंपनी में टेक्नीशियन 29 साल के आफताब आलम अंसारी के ये शब्द आतंकवाद से लड़ाई का दावा करने वाली उत्तर प्रदेश एसटीएफ को कटघरे में खड़ा करते हैं. गोरखपुर के रहने वाले आफताब को उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने नवंबर, 2007 में सूबे के अलग-अलग शहरों की कचहरी में हुए ब्लास्ट का मास्टरमाइंड मुख्तार उर्फ राजू होने के आरोप में दिसंबर, 2007 में गिरफ्तार किया था. उसे बांग्लादेश निवासी और हूजी का आतंकवादी बताया गया था. अंसारी को मुख्तार उर्फ राजू साबित करने के लिए एसटीएफ ने सारे हथकंडे अपना डाले थे, लेकिन आखिर में 16 जनवरी, 2008 को कोर्ट ने एसटीएफ की सारी कहानी को फर्जी बताते हुए आफताब को बाइज्जत बरी कर दिया था.

हूजी का आतंकवादी करार दिए गए आफताब को 22 दिन बाद ही कोर्ट के आदेश पर बरी कर दिया गया था

कुछ इसी तर्ज पर पिछले महीने की 14 तारीख को कचहरी ब्लास्ट के मामले में उत्तर प्रदेश एसटीएफ को एक बार फिर कोर्ट में शर्मसार होना पड़ा. इस मामले में कश्मीर से गिरफ्तार किए गए सज्जादुर्रहमान वानी, जिस पर कचहरी में विस्फोटक रखने का आरोप था, को अदालत ने लखनऊ वाले मामले में बाइज्जत बरी कर दिया. फैजाबाद मामले में सज्जादुर्रहमान की संलिप्तता को लेकर सुनवाई जारी है.

सज्जादुर्रहमान के बरी होने के बाद कचहरी ब्लास्ट मामले में यूपीएसटीएफ की तरफ से की गई गिरफ्तारियों पर फिर सवाल उठ रहे हैं. मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल सहित कई संगठनों ने एसटीएफ की निष्पक्षता और कार्यशैली पर कड़ा ऐतराज जताया है.

गौरतलब है कि 2007 में लखनऊ, फैजाबाद और बनारस की कचहरी में हुए धमाकों के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने देश के अलग-अलग हिस्से से पांच मुसलिम युवकों की गिरफ्तारी की थी. ये थे तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद, आफताब आलम, मो. अख्तर और सज्जादुर्रहमान वानी. शुरुआत से ही ये गिरफ्तारियां संदेह के घेरे में रही थीं. आफताब को हूजी का आतंकवादी मुख्तार उर्फ राजू बताते हुए कोलकाता से गिरफ्तार किया गया, लेकिन 22 दिन बाद ही कोर्ट के आदेश पर उसे बरी कर दिया गया. इसके अलावा मो. अख्तर और सज्जादुर्रहमान वानी को कश्मीर से गिरफ्तार किया गया था. सज्जादुर्रहमान दारुलउलूम देवबंद में पढ़ाई कर रहा था और जब उसे गिरफ्तार किया गया तब वह बकरीद की छुट्टियों में घर गया हुआ था. इस बात को न सिर्फ दारुलउलूम ने माना बल्कि उपस्थिति रजिस्टर के आधार पर इस बात की पुष्टि भी की कि सज्जाद 17 नवंबर से 30 नवंबर तक दारुलउलूम में ही था. दारुलउलूम की तरफ से इससे एक प्रमाण पत्र भी जारी किया गया. इसके बाद सज्जाद की गिरफ्तारी का भी चौतरफा विरोध होने लगा. सज्जाद के पिता गुलाम कादिर वानी ने लखनऊ आकर बेटे की गिरफ्तारी के विरोध में धरना शुरू किया. दो अन्य आरोपितों तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी पर तो इतने सवाल उठे कि सरकार को इसकी जांच के लिए जस्टिस निमेष आयोग का गठन करना पड़ा.

तारिक और खालिद को एसटीएफ ने 22 दिसंबर, 2007 को बाराबंकी रेलवे स्टेशन से भारी मात्रा में विस्फोटक के साथ गिरफ्तार करने का दावा किया था. लेकिन इस गिरफ्तारी को लेकर भी तुरंत ही सवालिया निशान खड़े हो गए क्योंकि तारिक को 12 दिसंबर को ही कथित तौर पर एसटीएफ के लोगों ने आजमगढ़ से ही उठा लिया था. 14 तारीख को ही तारिक की गुमशुदगी की रिपोर्ट थाना रानी की सराय में भी दर्ज हो गई थी. तारिक के घरवालों ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, प्रमुख सचिव (गृह), मानवाधिकार आयोग आदि को पत्र लिखकर इस मामले में पुलिस कार्रवाई को संदिग्ध बताते हुए तारिक का पता जल्द लगाए जाने की मांग की थी. दूसरे अभियुक्त खालिद को भी एसटीएफ ने इसी तरह 16 दिसंबर को ही उठा लिया था. इस बात की पुष्टि खालिद के चाचा मोहम्मद जहीर आलम फलाही की तरफ से सूचना के अधिकार के तहत क्षेत्राधिकारी मड़ियाहू से मांगी गई जानकारी के जवाब से हुई. इसमें उन्होंने माना है कि खालिद को 16 तारीख को उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने गिरफ्तार किया था. ऐसे में बाराबंकी स्टेशन वाली पुलिस की कहानी खुद ही सवालों के घेरे में आ गई.

उधर, जस्टिस निमेष आयोग को गठन के छह महीने के अंदर ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी लेकिन तीन साल बाद भी आयोग किसी अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंचा है. जांच आज भी पूरी नहीं हुई है.

सज्जादुर्रहमान के बरी होने के बाद मानवाधिकार संगठन एक बार फिर से उत्तर प्रदेश एसटीएफ के गिरफ्तारी के तरीके और इकबालिया बयान पर सवाल उठाने लगे हैं. सज्जादुर्रहमान वानी को बरी करने के अपने फैसले में अदालत ने साफ कहा कि पुलिस के सामने दिए गए इकबालिया बयान के अतिरिक्त दूसरा कोई भी साक्ष्य ऐसा नहीं है जिससे सज्जाद पर लगाए गए आरोप साबित होते हों.

कचहरीधमाकों के आरोपितों के लिए लंबी लड़ाई लड़ रहे पीयूसीएल से जुड़े वकील मो. शोएब कहते हैं, ‘लखनऊ के मामले में सज्जादुर्रहमान को बरी कर दिया गया है. हमें उम्मीद है कि जल्द ही फैजाबाद वाले मामले में भी उसे बरी कर दिया जाएगा. एसटीएफ के इकबालिया बयान की सच्चाई पहले आफताब आलम और अब सज्जाद के मामले से जगजाहिर हो चुकी है.’ शोएब कचहरी ब्लास्ट के आरोपितों का केस लड़ने की वजह से खासे चर्चित रहे हैं. उस दौर में जब उत्तर प्रदेश के अलग अलग बार एसोसिएशन आतंकी घटनाओं के आरोपितों का केस न लड़ने का प्रस्ताव पास कर रही थीं, शोएब अकेले ऐसे वकील थे जिन्होंने आफताब के परिजनों की गुहार पर उसका केस बिना फीस के लड़ने की हिम्मत दिखाई थी और आफताब को बाइज्जत बरी भी करवाया था. यही नहीं आतंकी घटनाओं के आरोपितों का केस लड़ने की वजह से उन पर अगस्त, 2008 में लखनऊ न्यायालय परिसर के अंदर ही वकीलों ने जानलेवा हमला भी किया था और उन पर पाकिस्तान का समर्थक होने जैसी टिप्पणियां भी की गई थीं.

इस बारे में बात करने पर शोएब कहते हैं,  ‘उस समय तक आतंकी घटनाओं के बारे में पुलिस के वर्जन को सच मान लेने का चलन था. यूपीकोका के लिए भी माहौल तैयार किया जा रहा था ताकि पुलिस के सामने दिए गए इकबालिया बयान से ही अभियुक्तों को मुजरिम साबित किया जा सके. ऐसे में अगर अभियुक्त का केस कोई न लड़े तो पुलिस की राह आसान हो जाती. इसलिए यह हमला एक सोची-समझी रणनीति के तहत हुआ था.’ शोएब आशंका जताते हैं कि कचहरी धमाकों के पीछे हिंदुत्ववादी ताकतों का हाथ भी हो सकता है क्योंकि कचहरी धमाकों के बाद की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तत्कालीन एडीजी (कानून एवं व्यवस्था) बृजलाल ने खुद ही पत्रकारों से कहा था कि कचहरी धमाके हैदराबाद की मक्का मस्जिद धमाकों से मिलते-जुलते हैं. वे कहते हैं, ‘अब जब यह साबित हो चुका है कि मक्का मस्जिद धमाकों में हिंदुत्ववादी ताकतों का हाथ था तो उत्तर प्रदेश एसटीएफ इस बिंदु को केंद्र में रखकर कचहरी धमाकों की जांच क्यों नहीं करती?’

तहलका ने कचहरी धमाकों की गिरफ्तारियों के बारे में डीजी (कानून एवं व्यवस्था) बृजलाल से बात की तो उन्होंने इस तरह की संभावनाओं को सिरे से खारिज कर दिया. उनका कहना था, ‘हमारी जांच एकदम सही है और कचहरी ब्लास्ट में किसी हिंदूवादी संगठन की भूमिका नहीं है. हमारी जांच पर सवाल उठाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी और छद्मधर्मनिरपेक्ष लोगों से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता.’

उन्हें भले ही इन सवालों से फर्क न पड़ता हो लेकिन उनकी ‘सही’ जांच से किसी आफताब आलम या सज्जाद वानी को कितना फर्क पड़ता है यह तो साफ हो ही चुका है.