डिजिटल मार्केटिंग से दूर ज़्यादातर किसान

योगेश

भारतीय किसान अपनी फ़सलों को बेचने के लिए छोटे बाज़ारों और सरकारी मंडियों तक ही पहुँच रखते हैं। लेकिन फ़सल और खाने-पीने की चीज़ें की बिक्री के लिए आजकल डिजिटल मार्केटिंग को बहुत बढ़ावा दिया जा रहा है। ज़्यादातर छोटी और बड़ी कम्पनियाँ डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़ रही हैं। हमारे देश में भी डिजिटल मार्केटिंग का विस्तार हो रहा है। डिजिटल मार्केटिंग पर लाभ ज़्यादा और सीधे मिलता है। लेकिन हमारे ज़्यादातर किसान डिजिटल मार्केटिंग नहीं जानते हैं और बड़ी संख्या में सीधे इससे नहीं जुड़ पा रहे हैं। किसानों को इस प्लेटफार्म से जोड़ने के लिए केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 14 जुलाई, 2022 को 12 भाषाओं में एक मोबाइल एप्लिकेशन के रूप में इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाज़ार ई-नाम पीओपी (द्गहृ्ररू-क्कशक्क) लॉन्च किया था। लेकिन इस प्लेटफार्म पर किसानों के जुड़ने की गति बहुत कम है।

ई-नाम पीओपी प्लेटफार्म पर व्यापार, अनाज की परख, भण्डारण, वित्तीय सेवाएँ, कृषि-सलाह, कृषि विस्तार सेवाएँ, फ़सलों का बाज़ार भाव, ख़रीद और बिक्री और अन्य कृषि आगत सेवाएँ उपलब्ध हैं। सरकार ने अप्रैल, 2016 में ये ऑनलाइन बाज़ार शुरू किया था। इससे इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार पोर्टल ई-नाम से 2016 में ही देश की कुल 585 मंडियों को जोड़ दिया गया था। इस पोर्टल के माध्यम से देश की लगभग 1,260 कृषि उपज मंडियाँ ख़रीद और बिक्री का काम करती है। ये सरकारी पोर्टल कृषि उपज की ई-नीलामी के लिए काफ़ी उपयुक्त है। लेकिन बहुत बड़ी संख्या में किसान इस पोर्टल से आज तक नहीं जुड़ सके हैं।

इन दोनों सरकारी पोर्टल से बड़ी संख्या में किसानों के न जुड़ने का कारण यह है कि काफ़ी किसानों को इस पोर्टल की जानकारी नहीं है और किसान इनके ज़रिये सीधा सौदा करने में असमर्थ हैं। ई-नाम पोर्टल पर आवश्यक बुनियादी ढाँचा स्थापित करने, बाज़ार बढ़ाने और उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए कृषि प्रौद्योगिकी इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के माध्यम से 200 करोड़ का निवेश किया था। 01 अगस्त, 2023 तक 23 प्रदेशों और चार केंद्र शासित प्रदेशों की कुल 1,361 मंडियाँ ई-एनएएम) से एकीकृत हो चुकी थी। सरकारी आँकड़े दर्शाते हैं कि पिछले सात वर्षों में लगभग 1.73 करोड़ किसान और 2.25 लाख व्यापारी ई-नाम पोर्टल से जुड़कर लाभ कमा रहे हैं। लेकिन हमने एक दज़र्न से ज़्यादा किसानों से ई-पोर्टल ई-नाम और डिजिटल मार्केटिंग के बारे में पूछा, तो सभी किसानों ने इसकी जानकारी होने से मना कर दिया।

सरकारी आँकड़े दर्शाते है कि देश के करोड़ों किसानों को इससे लाभ मिला है। लेकिन सच यह है कि कई राज्यों तक तो इस पोर्टल की पहुँच नहीं है। एक किसान राजेंद्र ने कहा कि डिजिटल मार्केटिंग के बारे में सब किसान नहीं जानते। कुछ बड़े और पढ़े-लिखे किसानों को ही इस ई-पोर्टल की जानकारी है। इसी का फ़ायदा व्यापारी उठाते हैं। किसानों के बीच तो इस पोर्टल की पहुँच बहुत सीमित है। उन्होंने कहा कि किसानों के नाम इस ई-पोर्टल के सर्वे में ऐसे ही दर्ज कर लिये गये हैं, ताकि सरकारी कर्मचारी ख़ानापूर्ति कर सकें। लगभग 80 प्रतिशत से ज़्यादा किसानों को तो इसके बारे में यह जानकारी तक नहीं है कि डिजिटल मार्केटिंग होती क्या है? इन 80 प्रतिशत किसानों को ई-पोर्टल ई-नाम चलाना तक नहीं आता। ये एकीकृत व्यापार मंच मुक्त रूप से किसानों, किसान उत्पादक संगठनों, ख़रीदारों और व्यापारियों को लाभ पहुँचाने के लिए बनाया गया होता है, जिससे किसानों और व्यापारियों को महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल सके और वे इस प्लेटफार्म के माध्यम से बीज, फ़सल, कृषि सम्बन्धी अन्य चीज़ें ख़रीद और बेच सकें। लेकिन जब तक पूरे देश के किसान इससे जुड़ ही नहीं पाएँगे, तब तक सभी किसानों को लाभ कैसे मिल सकेगा?

हाल ही में दिल्ली में ई-नाम 2.0 में सुधार कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान ई-नाम 2.0 से और 28 मंडियाँ जोड़ी गयीं, जिसके बाद इनकी संख्या 1,389 हो गयी। पारिस्थितिकी तंत्र मज़बूत करने के लिए मंडियों के एकीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया यह ई-पोर्टल भविष्य में डिजिटल मार्केटिंग को बढ़ाएगा।

हाल ही में एक राष्ट्रीय कार्यशाला में निजी संगठनों, कमोडिटी एक्सचेंजों, राज्य कृषि विपणन बोर्डों, बैंकों, विपणन और निरीक्षण विभाग के अधिकारियों ने कृषि सुधारों के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। पिछले कुछ वर्षों में कृषि बाज़ारों में एक चरणबद्ध विकास हुआ है। इसमें एपीएलएम अधिनियम-2017 के माध्यम से गोदाम-रसीद (ईएनडब्ल्यूआर) व्यापार और किसान उपज के प्रत्यक्ष विपणन को बढ़ावा देने के लिए ईएनएएम 2.0 के पोर्टल के रूप में ईएनएएम 1.0 और पीओपी ऐप का अनावरण करके ईएनएएम 3.0- आधारित मॉड्यूल बनाया।

हालाँकि एपीएमसी की शेष संख्या को एकीकृत करके इसे कृषि व्यापार में अभी भी काफ़ी बढ़त हासिल करनी है। केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि कृषि-मूल्य शृंखला के सभी भागीदार एक छत के नीचे आएँ और ई-नाम पीओपी के माध्यम से उत्पादों और सेवाओं के पैकेज का लाभ उठाएँ। हालाँकि कृषि की राजनीतिक अर्थव्यवस्था, खाद्य प्रणालियों के व्यापारीकरण आदि के कारण कुछ मुद्दे उभरे हैं, जिन बहस और चर्चा होनी चाहिए। अहम् सवाल है कि क्या ई-नाम किसानों और कृषि-खाद्य मूल्य शृंखला के विविध हितधारकों को लाभकारी है?

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में आधी से ज़्यादा आबादी कृषि उद्योग पर निर्भर है। कृषि का देश की जीडीपी में बड़ा योगदान है, जिसे बढ़ाया जा सकता है। आज के आधुनिक दौर में भी कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इस क्षेत्र से जुड़े ज़्यादातर लोग मुश्किल से जीवनयापन कर पा रहे हैं। इन चुनौतियों के परिणामस्वरूप किसानों और कृषि मज़दूरों को काफ़ी समस्याएँ रहती हैं।

ई-पोर्टल ई-नाम से इन्हीं समस्याओं को कम करने की कोशिश केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने की है। अगर किसानों को इस प्लेटफार्म से सही रूप से जोड़ा जाए और उन्हें इस डिजिटल मार्केटिंग सिखायी जाए, तो उन्हें इसका अच्छा लाभ मिल सकता है और वे छोटे और खुले बाज़ार में अपनी फ़सल उत्पादन को सस्ते में बेचने से बच सकेंगे। इसके लिए छोटे किसानों के समूह बनाकर किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

हालाँकि इस राह में एक रोड़ा यह है कि अभी भी देश के ज़्यादातर किसान पढ़े लिखे नहीं है। ऐसे किसानों के लिए समूह बनाकर जो किसान पढ़े-लिखे हों, उनको ई-पोर्टल की ट्रेनिंग दी जाए। कोशिश की जानी चाहिए कि किसानों को क्षेत्रीय स्तर पर बैठक बुलाकर इसकी जानकारी दी जाए और बाज़ार भाव भी बताया जाए। इससे अनपढ़ किसान ठगी का शिकार होने से बचे रह सकेंगे। ई-पोर्टल को विस्तृत बनाने की भी कोशिश करनी चाहिए। इस पोर्टल पर कृषि सम्बन्धित ओरिजनल बीज, खाद, कीटनाशक और अच्छी गुणवत्ता के कृषि यंत्र ही बेचे जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त जैविक कृषि को बढ़ावा देना चाहिए।

अब जैविक फ़सलों का भाव भी अच्छा मिलता है और हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है। इसके साथ ही किसानों की पहुँच सीधे ग्राहकों तक होनी चाहिए। सरकार उनकी फ़सलों का भाव निश्चित करके उससे सस्ते ख़रीद पर रोक लगाये। किसानों के लिए देश और विदेश में फ़सलों के भाव को बताया जाना चाहिए। फ़सल चक्र के अतिरिक्त अनेक फ़सलें उगाने की जानकारी किसानों को दी जानी चहिए। सरकारी पोर्टल ई-नाम के अतिरिक्त प्राइवेट ऑनलाइन पोर्टल पर फ़सल उत्पादों को बेचने का हुनर भी किसानों को सिखाया जाना चाहिए।

परेशानी यह है कि किसानों की ऑनलाइन फ़सलें बेचने में रुचि नहीं जाग पा रही है। ई-नाम पर फ़सलें बेचने में भी किसानों की कोई ख़ास रुचि नहीं है। जागरूक किसान ई-नाम ई-पोर्टल पर फ़सलें बेच रहे हैं। ई-नाम पर फ़सलें बेचने वाले किसान मानते हैं कि यह पोर्टल पारदर्शी और फ़सल बेचते ही पैसा उपलब्ध कराने वाला है। मंडी में किसानों को फ़सल ले जाने का ख़र्च भी बच सकता है। इसके अतिरिक्त मंडी में किसानों को अपनी फ़सल लेकर जाना पड़ता है, जिसके लिए कई प्रक्रियाएँ हैं और समय बहुत ख़राब होता है। जबकि ई-पोर्टल पर ये झंझट नहीं है।

कृषि बाज़ार और किसानों की पहुँच देश और विदेशों तक पहुँचाने में ये पोर्टल मदद करने वाला है। यह कृषि फ़सलें ज़्यादा उगाने और इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल है, जिसे मंत्रालय भारत सरकार द्वारा विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित कृषि मंडियों को इंटरनेट से जोड़कर एकीकृत राष्ट्रीय कृषि उपज बाज़ार बनाना है। यह आभासी इंटरनेट आधारित कृषि विपणन व्यवस्था है; लेकिन एनएएम के पीछे स्थानीय कृषि उपज मंडी रहेगी।