सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर में लगातार सुस्ती दर्ज किए जाने के बाद से जहां पर एक ओर मोदी सरकार पर विपक्ष हमलावर है तो वहीं अब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि देश को इससे बहुत ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है। उनका मानना है कि जीडीपी में सुस्ती जरूर है, लेकिन आने वाले समय में हालात ऐसे ही नहीं रहने वाले हैं। ऐसे संकेत दिख रहे हैं कि जल्द ही अर्थव्यवस्था अपने पुराने रुख की ओर बढ़ती दिखेगी।
उन्होंने माना कि देश के सरकारी बैंकों को पूंजी की जरूरत है और उनको मुहैया कराने में कुछ गलत नहीं है। चूंकि जब पूंजी का वितरण होगा तो उसके बाद ही विकास के विकल्प खुलेंगे और लोगों को काम के मौके भी मिलेंगे। यानी अर्थव्यवस्था के रफ्तार पकड़ते ही रोजगार के मौके भी ज्यादा से ज्यादा मिलेंगे। कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान के कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी ने 2008 की आर्थिक मंदी का जिक्र करते हुए कहा कि उस दौरान बैंकों ने मजबूती दिखाई थी। तब प्रबण मुखर्जी ही देश के वित्त मंत्री थे और देश में वित्तीय संकट का पूरी दुनिया के कहसा से खास असर नहीं देखने को मिला था। उन्होंने बताया कि तब भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने उनसे संपर्क किया था कि उन्हें पूंजी की जरूरत है। बता दें कि विगत तिमाही में जीडीपी विकास दर घटकर पिछले साल में सबसे कम यानी 4.5 फीसदी दर्ज की गई।
आंकड़े भरोसेमंद हों
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि किसी भी समस्या का निदान निकालने के लिए लोकतंत्र में संवाद का होना बेहद जरूरी है। आंकड़ों की प्रामाणिकता भी जरूरी है, ताकि लोगों का भरोसा कायम रहे। इससे निवेशकों और लोगों में विश्वास बना रहता है। इससे पहले कई बार आरोप लगा है कि केंद्र सरकार बेरोजगारी समेत कई अन्य मामलों में आंकड़ों में हेर-फेर कर रही है।