जिनके भरोसे लाखों-करोड़ों लोग विमान यात्रा करते हैं वे इन्हें उड़ाने के योग्य भी हैं?

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एक सुबह तहलका के एक रिपोर्टर ने रोजगार मांगने के बहाने नागर विमानन मंत्रालय, भारत सरकार के निदेशक के निजी सचिव सुरेश कुमार लांबा से फोन पर संपर्क किया. बातचीत के संपादित अंश-

तहलका: हैलो, सर कैसे हैं?

सुरेश कुमार लांबा: बढ़िया. आप सुनाइए, कुछ नई ताजी?

तहलकाः कुछ नहीं, सर. आप बताइए.

लांबा: क्या हुआ जेट का? आपने परीक्षा दिया था…

तहलका: अभी तक रिजल्ट नहीं आया है. पिछली बार लिखित परीक्षा पास कर गया था लेकिन इंटरव्यू में रह गया था.

लांबा: अपनी िडटेल्स मुझे भेजना, अगर पहले परीक्षा दिया हुआ है तो कई बार उन पर विचार कर लेते हैं, किसी काे अप्रोच कर लेने पर.

तहलका: स्पाइस जेट या इंडिगो में कुछ जुगाड़ है क्या?

लांबा: इंडिगो में अप्लाई किया है क्या? एक क्वेश्चन बैंक आया है मेरे पास. किसी ने भेजा था. मुझे कहा था कि अगर तुम्हारा कोई बच्चा पढ़नेवाला हाे तो दे देना… भेजता हूं आपको. इसी में से आएगा.

तहलका: क्वेश्चन बैंक तो मेरे पास भी है, सर. नौकरी का कुछ करवाएं. लिखित परीक्षा पास करने के बाद कुछ जुगाड़ है क्या आपका?

लांबा: हां, जुगाड़ ताे है.

तहलका: कितने लगेंगे? एक अंदाजा तो बता दीजिए. कोई बोल रहा था 20 (लाख) तक हो जाएगा.

लांबा: मैं आपको बता दूंगा, पर काम चाहे जिससे भी करवाओ. हमसे करवाओ या किसी और से, पैसे काम के बाद ही देना, वर्ना फंस जाएंगे. रात में बता दूंगा, पहले आपको लिखित परीक्षा पास करना होगा.

तहलका: अच्छा सर, लाइसेंस कन्वर्जन भी कराना है एक दोस्त का. एक सप्ताह में हो जाएगा?

लांबा: हो जाएगा, लेकिन रेट बदल गए हैं. पहले बीस हजार में हो जाता था. अब नए बंदे आ गए हैं तो रेट बदल जाएंगे. समय-समय की बात है.

कुछ दिन बाद रोजगार के सिलसिले में दूसरे उम्मीदवार के बतौर तहलका ने लांबा से फिर संपर्क किया.

तहलका: हैलो सर.

लांबाः हां बोलिए क्या काम है?

तहलका: सर जरा रिक्रूटमेंट के बारे में बात करनी थी… इंडिगो के लिए…

लांबा: एयर इंडिया में भी वैकेंसी निकली है. उसमें अप्लाई करो.

तहलकाः ओके सर. लेकिन सर, आप भी जानते हैं न कि बिना पहचान के नहीं होता, आप अगर करवा सकते हैं तो बताइए.

लांबाः हां, हां. हो जाएगा. उसमें आप अप्लाई कर दो. अप्लाई तो हर जगह करना चाहिए. आपने इंडिगो का पेपर दिया था?

तहलका: दिया, था सर.

लांबाः पेपर तो सुना है आसान था. देखो, लिखित में तो कोई आपकी मदद नहीं कर सकता है. नतीजा आने पर ही कुछ हो सकता है.

तहलका: सर, आप भी जानते हैं कि कई बार ऐसा भी होता है कि लोगों का नाम सूची में नहीं होता है लेकिन फिर भी उनका चयन हो जाता है.

लांबा: हा, हा, हा…

तहलका: सर, कुछ करवा सकते हैं तो बताइए और अमाउंट बता दीजिए.

लांबाः रिजल्ट आने दो, फिर बात करते हैं.

तहलकाः अमाउंट बता दीजिए… 20-30? कितना?

लांबा: 20 तक हो जाएगा. जितना न्यूनतम हो जाए, लेकिन अभी मैं तुम्हें कुछ भी नहीं बता सकता. सामनेवाला क्या चाहता है, वो सब काम लेने पर ही पता चलेगा.

तहलकाः हो जाएगा क्या, सर?

लांबाः साधारण सी बात है. सेटिंग होनी चाहिए… हो जाएगा. 20 के आसपास हो जाएगा… 20 से 30 तक.

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2011 में कॉमर्शियल पायलट की नियुक्ति में नकली दस्तावेज के आधार पर नौकरी पानेवालों की खबर जब लीक हुई थी तब बहुत अफरा-तफरी मच गई थी. नागर विमानन मंत्रालय ने इस मामले में जांच के आदेश भी दिए थे. इस मसले में कइयों के लाइसेंस भी जब्त किए गए थे. इस घटना से यह बात सामने आई कि बहुत सारे नकली लाइसेंस का काम करनेवाले व्यक्ति उड्डयन क्षेत्र में काम कर रहे हैं और उनका कारोबार परवान पर है. दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने 2011 में एक पायलट को गिरफ्तार किया था जो नकली एयरलाइन ट्रांसपोर्ट लाइसेंस दूसरे को मुहैया करवाता था. नकली एयरलाइन ट्रांसपोर्ट लाइसेंस हासिल किए हुए पायलट 2013 में एयर इंडिया एक्सप्रेस के विमान उड़ा रहे थे. यह कोई अकेला मामला नहीं था.

अयोग्य पायलटों को फर्जी लाइसेंस देने वाले घोटाले को उजागर हुए चार साल बीत चुके हैं, लेकिन देश के उड्डयन क्षेत्र में नौकरी पाने की पहली योग्यता आज भी पैसा और रसूख ही है. तहलका की पड़ताल 

एक आरोपी पायलट ने बताया कि पिता ने उसके लिए लाइसेंस की व्यवस्था करवाई थी. उस पायलट के पिताजी उस वक्त डीजीसीए (डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन) के एयर सेफ्टी में निदेशक थे. दिलचस्प है कि इस पायलट को धोखाधड़ी के मामले में स्पाइसजेट से पहले ही बाहर का रास्ता भी दिखाया जा चुका था. इस समय वह एयर इंडिया एक्सप्रेस में काम कर रही हैं. वह एयर इंडिया एक्सप्रेस में नोटिस पीरियड में हैं और इंडिगो ज्वाइन करनेवाली हैं. दोनों शीर्ष हवाई जहाज कंपनियां और डीजीसीए बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार करने वालों के लिए धुरी  बन गए हैं. यहां आप तब तक फल-फूल सकते हैं जबतक कि आप धांधली करते हुए पकड़े न जाएं. यहां नौकरी पाए हुए लोग मौज मार रहे हैं लेकिन बहुत सारे लोग जो इस क्षेत्र में काम करना चाहते हैं और प्रतिभाशाली भी हैं लेकिन पैसे और प्रभावशाली लोगों के संपर्क में नहीं होने की वजह से इस क्षेत्र में नौकरी से वंचित हैं. यह विमानन क्षेत्र में विमान उड़ाने के प्रशिक्षण से लेकर नौकरी सुनिश्चित करने के दौरान होनेवाली तमाम तरह की धांधलियों की कहानी है.

खूबसूरती से काली-सफेद पोशाक पहने पायलट दुनिया के किसी भी एयरपोर्ट पर सिर हिलाते, हाथ घुमाते हुए देखे जा सकते हैं और यह किसी के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकता है. लेकिन इस चमकते हुए मुखड़े के पीछे कुछ कड़वा सच छुपा है. बहुत से पायलटों पर यह आरोप हैं कि उन्होंने इस मुकाम को हासिल करने के लिए फर्जी दस्तावेज और रिश्वत का सहारा लिया है. कुछ कैप्टन पर आपराधिक मुकदमे भी चल रहे हैं और कुछ कैप्टन जहाज उड़ा पाने के काबिल ही नहीं हैं. हालांकि इन गड़बड़ियों के बावजूद वे जहाज उड़ा रहे हैं. यह सच है कि भारत में बहुत बड़ी संख्या में काबिल उपलब्ध पायलट हैं लेकिन इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि एयरलाइंस और डीजीसीए की मिलीभगत के चलते इस क्षेत्र में अयोग्य पायलटों की भरमार होती जा रही है. अगर आपके पास पैसा या जुगाड़ है तो फिर आपका भारतीय उड्डयन क्षेत्र में स्वागत है.

एक पायलट ने बताया कि उसके पिता ने लाइसेंस की व्यवस्था की थी. उसके पिताजी उस वक्त डीजीसीए के एयर सेफ्टी विभाग में निदेशक के पद पर थे

जनवरी 2011 में एक तकनीशियन को इंडिगो  एयरक्राफ्ट के नोज गियर में कुछ गड़बड़ी मिली. इस बारे में पड़ताल की गई तो पाया गया कि एक पायलट कैप्टन परमिंदर कौर गुलाटी लैंडिग के समय मुख्य गियर की बजाए नोज गियर का इस्तेमाल करते हैं. गुलाटी के बारे में जब खोजबीन की गई तो पाया गया कि उसके दस्तावेज नकली हैं और वह पायलट के लिए लिखित परीक्षा सात बार में भी पास नहीं कर पायी थीं. इस घटना के बाद डीजीसीए और एयलाइंस के अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच मिलीभगत से अंजाम दिए जा रहे घोटाले का पर्दाफाश हुआ था. दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने इस घोटाले की तफ्तीश के दौरान 20 लोगों को गिरफ्तार भी किया था.

तहलका के पास मौजूद सूचना के अनुसार, एयर इंडिया एक्सप्रेस के पायलट कैप्टन दीपक असत्कार को उक्त घोटाले में शामिल पाया गया था. असत्कार कोच्चि में उड्डयन कंपनी में बतौर अधिकारी (फर्स्ट ऑफिसर) नियुक्त हैं. कैप्टन असत्कार अन्य पायलटों को कैप्टन प्रदीप त्यागी की मदद से फर्जी दस्तावेज मुहैया करवाते थे. घोटाले का पर्दाफाश होते ही असत्कार छह महीने के लिए फरार हो गए लेकिन बाद में उन्हें दो सितंबर 2011 को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने धर दबोचा. पुलिस दस्तावेज के अनुसार, असत्कार मध्य प्रदेश के निवासी हैं और मुंबई में रहते हैं. असत्कार ने खुद को डीजीसीए में नामांकित करवा रखा है. असत्कार ने 2007 तक डीजीसीए की कॉमर्शियल पायलट लाइसेंस पाने के लिए तीनों (एयर नेविगेशन, एविएशन मीट्रोलॉजी और एयर रेग्युलेशन) ही परीक्षाएं पास की थीं. उसने अमेरिका की ऑरलेंडो फ्लाइंग स्कूल में दाखिला लिया और 250 घंटे की अनिवार्य उड़ान भरने का प्रशिक्षण भी पूरा किया था. भारत में उड़ान भरने के लिए उसने अमेरिका की फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा जारी किए गए लाइसेंस को भारतीय लाइसेंस में तब्दील करने का आवेदन दिया लेकिन उसे दो महीने के बाद भी लाइसेंस मुहैया नहीं कराया गया. इसी क्रम में वह त्यागी के संपर्क में आया. त्यागी ने असत्कार को लाइसेंस दिलवाने में बिचौलिए की भूमिका निभाई थी.

त्यागी के डीजीसीए के अधिकारी प्रदीप शर्मा से बहुत अच्छे रिश्ते थे. प्रदीप शर्मा प्रशिक्षण व लाइसेंस निदेशालय में काम करते थे. असत्कार ने अब त्यागी के साथ मिलकर बिचौलिए का काम करना शुरू कर दिया और कर्मिशयल पायलट लाइसेंस हासिल करने की परीक्षा में फेल हो जाने वाले छात्रों को  डीजीसीए की मिलीभगत से लाइसेंस दिलवाने में मदद करने लगे. असत्कार जब मुंबई स्थित फ्लाइविंग्स एविएशन एकेडमी में पढ़ा रहा था तब उसके संपर्क में दो पायलट आए जिन्हें उसने लाइसेंस दिलवाया. इस काम के लिए

असत्कार को 5.50 लाख रुपये मिले जबकि त्यागी को इसी काम के लिए 13 लाख रुपये मिले थे.

एयरलाइंस और डीजीसीए की मिलीभगत से इस क्षेत्र में अयोग्य पायलटों की भरमार होती जा रही है. पैसे और रसूखों वालों का यहां हमेशा स्वागत है

एविएशन इंडस्ट्री से जुड़े एक व्यक्ति बताते हैं, ‘असत्कार बहुत ही मेधावी है और उसे एविएशन के बारे में बहुत अच्छी जानकारी है. उसने डीजीसीए की सभी परीक्षाएं ईमानदारी से पास की हैं लेकिन डीजीसीए में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से वह बिचौलिया बन गया और अंततः पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.’ अपराध शाखा के इंस्पेक्टर आर श्रीनिवासन का कहना है कि हमने फर्जी लाइसेंस मामले की पड़ताल की और इससे संबंधित चार्जशीट साकेत कोर्ट को सुपुर्द कर दी. मामला अभी अदालत में चल रहा है. श्रीनिवासन ने बताया कि त्यागी और असत्कार के खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 420 (ठगी और बेइमानी से धन उगाहना), 421 (बेइमानी या धोखाधड़ी से ली गई धन राशि का ब्यौरा छिपाना) के तहत मामला दर्ज है.

असत्कार को दो सितंबर 2011 में गिरफ्तार किया गया और खोजबीन की गई तो यह पाया गया कि उसे जिस साल एयर इंडिया एक्सप्रेस के लिए चुना गया था उससे अगले साल वह लिखित परीक्षा के लिए योग्य पाया गया था. वर्तमान समय में वह बोइंग 737-800 एनजी उड़ाता है. तहलका ने असत्कार से संपर्क किया तो उसने बताया कि मुझ पर पायलट को फर्जी तरीके से लाइसेंस मुहैया कराने का मामला मढ़ा गया है. मैं इस मामले में दोषी नहीं पाया गया. इस मामले में कहीं भी शामिल नहीं रहा हूं. सच तो यह है कि मैं मुंबई में छात्रों को प्रशिक्षण देता था, जिसमें कुछ इस मामले लिप्त पाए गए हैं. असत्कार ने तहलका से यह वादा किया है कि वह इस मामले में क्लीयरेंस सर्टिफिकेट मुहैया कराएगा लेकिन इस रिपोर्ट के प्रेस में छपने जाने तक उसकी ओर से कुछ भी उपलब्ध नहीं कराया जा सका. गरिमा पासी भी गलत तरीके से लाइसेंस हासिल करने की आरोपी हैं. एयर इंडिया एक्सप्रेस यह जानते हुए भी गरिमा को नियुक्त करने जा रहा है कि उन्हें स्पाइस जेट पहले ही निलंबित कर चुका है. ऐसा भला क्यों न हो, वह आखिरकार आरएस पासी की बेटी जो हैं. मालूम हो कि आरएस पासी, एयर सेफ्टी के उप-निदेशक हैं. तहलका के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार, गरिमा पासी कोच्चि स्थित एयर इंडिया एक्सप्रेस में फर्स्ट ऑफिसर के बतौर कार्यरत हैं. एक सूचना के अनुसार वह इंडिगो ज्वाइन करनेवाली हैं और इस समय एयर इंडिया एक्सप्रेस में नोटिस पीरियड पर चल रही हैं. उनके पिछले रिकॉर्ड के बारे में पड़ताल करने पर पता चला कि वह किसी भी एयरक्राफ्ट को उड़ाने में असमर्थ हैं. लेकिन इसके बावजूद वह एयर इंडिया एक्सप्रेस की बोइंग 737-800 की उड़ान भरने में व्यस्त हैं. गरिमा को स्पाइसजेट के 2008 कैडेट प्रशिक्षण के तहत अमेरिका के एरिजोना स्थित सबीना फ्लाइट एकेडमी में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था लेकिन असमर्थ पाए जाने की वजह से अकादमी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया था. उनके नाम विमान लैंडिंग से जुड़ी दो दुर्घटनाएं दर्ज हैं-  एक नोज गीयर के क्षतिग्रस्त होने का और दूसरा प्रोपेलर स्ट्राइक का. उनके दो विमान प्रशिक्षकों ने इन घटनाओं के मद्देनजर यह सिफारिश की थी कि इनके ‘विमान उड़ाने पर तत्काल रोक’ लगाई जाए.  उनके प्रशिक्षकों ने यह महसूस किया था कि वह पायलट के निर्देशों को समझने (पायलट इन कमांड) में असमर्थ हैं. गरिमा के अंदर विमान चलाने को लेकर एक डर व्याप्त है. सबीना फ्लाइट अकादमी छोड़ने के बाद वे भारत लौट आईं. यहां उन्होंने उत्तराखंड के पंतनगर में अम्बर एविएशन अकेडमी में दाखिला ले लिया. यहां प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 2009 में उन्हें सीपीएल (कमर्शियल पायलट लाइसेंस) मिल गया और उसी साल स्पाइस जेट में बतौर ट्रेनी पायलट नौकरी भी मिल गई.

डीजीसीए के नियमों के अनुसार सीपीएल के लिए आवेदन करते समय अभ्यर्थी को विमान चलाने के दौरान हुए सभी हादसों के बारे में बताना होता है. पांच साल के दौरान हुए हादसे या दुर्घटना के साथ-साथ अभ्यर्थी के खिलाफ की गई सभी अनुशासनात्मक कार्रवाइयों की जानकारी भी देनी होती है. लेकिन ऐसा लगता है कि गरिमा ने अमेरिका में हुए दो लैंडिंग हादसों की जानकारी डीजीसीए को नहीं दी. 2011 में जब यह घटना सामने आई कि गरिमा ने फर्जी तरीके से लाइसेंस हासिल किया, तब स्पाइस जेट ने उन्हें निलंबित कर दिया. उनके साथ कई और लोगों को भी इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था. इसका सीधा सा मतलब था कि उन सभी लोगों का विमान उड़ाने का करियर खत्म हो गया लेकिन गरिमा के लिए ऐसा नहीं हुआ क्योंकि उनके पास पैसा और प्रभावशाली व्यक्तियों से संपर्क दोनों ही थे. उनके पिता तत्कालीन डीजीसीए के डायरेक्टर थे. वह भी जांच के दायरे में आए. मीडिया में आई खबरों के बाद पासी को पद का दुरुपयोग कर अपनी बेटी को नौकरी दिलाने के आरोप में हटा दिया गया.

डीजीसीए प्रमुख ईके भारत भूषण ने स्पाइस जेट में गरिमा की नियुक्ति से संबंधित चिट्ठी मिलने के बाद पासी को पद से हटा दिया. चिट्ठी में कहा गया था कि गरिमा को नौकरी ‘विशेष परिस्थितियों’ के तहत दी गई थी. जांच के दौरान पाया गया कि एक और पायलट रश्मि शरण को अपने पिता के प्रभाव के कारण नौकरी मिली थी. फिलहाल रश्मि इंडिगो के लिए काम कर रही हैं. रश्मि के पिता आलोक कुमार शरण डीजीसीए के पूर्व संयुक्त निदेशक थे और जनवरी में सेवानिवृत्त हुए हैं. शरण पर आरोप है कि उन्होंने 2007 में रायपुर स्थित टचवुड फ्लाइंग स्कूल को लाइसेंस दिया, जिसके पास उस समय एक भी एयरक्राफ्ट नहीं था. उसी अकादमी से उनकी बेटी रश्मि शरण को भी पायलट का लाइसेंस दिया गया. उस समय शरण ट्रेनिंग और लाइसेंस विभाग के उपनिदेशक के पद पर तैनात थे. डीजीसीए के नियमों के अनुसार किसी भी फ्लाइंग क्लब को सीपीएल देने की अनुमति तभी मिल सकती है जब उसके पास काम करने लायक एयरक्राफ्ट हों. एयरोड्रम स्टैंडर्ड के अधिकारियों की जांच रिपोर्ट के मुताबिक टचवुड एविएशन के पास उस समय एक भी एयरक्राफ्ट नहीं था. यहां तक कि क्लब के पास जरूरी सुविधाओं का भी नितांत अभाव था. छात्रों के लिए ब्रीफिंग रूम और एयरक्राफ्ट हैंगर भी नहीं थे.

रश्मि ने अपनी फ्लाइंग 2008 में टचवुड एविएशन से ही पूरी की थी. इसके एक साल बाद संस्थान पूरी तरह से बंद हो गया. सरन पर यह भी आरोप है कि अपनी बेटी के लिए उन्होंने तीन बार विशेष परीक्षा सत्र की व्यवस्था की, जबकि ऐसा करना सरासर गलत है. लगातार पांच प्रयासों के बाद भी रश्मि एयर नेगिवेशन, एविएशन मीटरोलॉजी और एयरक्राफ्ट टेक्निकल विषयों की परीक्षा में सफल नहीं हो सकीं, जिसके बाद उनके लिए विशेष परीक्षा का आयोजन किया गया. सामान्य परीक्षाएं हर तीसरे महीने आयोजित की जाती हैं, जबकि विशेष परीक्षाओं का आयोजन कुछ समय के अंतराल पर होता है.

असत्कार को एविएशन क्षेत्र की गहरी जानकारी है. उसने डीजीसीए की सभी परीक्षाएं पास की हैं लेकिन यहां के भ्रष्ट माहौल ने उसे बिचौलिया बना दिया

डीजीसीए के नियमों के अनुसार अभ्यर्थी नियंत्रक से विशेष परीक्षा के लिए आवेदन तभी कर सकते हैं, जब विमान उड़ाने के पर्याप्त घंटे हों, या फिर नौकरी के अवसर हाथ से निकलने की स्थिति हो और अभ्यर्थी किसी एक पर्चे में फेल हो. 2007 में रश्मि जब पहली बार विशेष परीक्षा में शामिल हुईं, उस वक्त न तो उन्होंने जिन तीन विषयों में ‘बैक’ थी, उन्हें उत्तीर्ण किया था और न ही विमान उड़ाने के लिए जरूरी घंटों का अनुभव था.

डीजीसीए के नियमों के अनुसार सामान्य परीक्षाएं हर तीसरे महीने होती हैं. नाम न छापने की शर्त पर हमारे एक सूत्र ने बताया कि हर परीक्षा के बाद लगभग छह हफ्ते का अंतराल रहता है. अक्सर इस नियम की अनदेखी डीजीसीए से संपर्क रखनेवाले अभ्यर्थियों के लिए कर दी जाती है. विशेष परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना आसान होता है क्योंकि परीक्षार्थियों की संख्या बहुत कम (पांच से दस) होती है. साथ ही इन परीक्षाओं मे नियंत्रक परीक्षा हॉल में बहुत चौकस भी नहीं रहते. इन परीक्षाओं में नकल करना बहुत आसान रहता है और असफल परीक्षार्थी भी पास हो जाते हैं. शरण मार्च 2012 में 28 फ्लाइंग स्कूलों को गलत ढंग से लाइसेंस देने और उप निदेशक के पद पर रहते हुए 190 करोड़ के घपले के आरोप में बर्खास्त कर दिए गए. लेकिन अगस्त 2012 में उनकी फिर से वापसी हो गई. पिछले साल सीबीआई ने उनके ऊपर बिलासपुर के एक फ्लाइंग स्कूल को गलत दस्तावेजों के आधार पर लाइसेंस देने के आरोप में केस दायर किया.

हालांकि इन सभी अनियमितताओं के खिलाफ उन्हें क्लीन चिट मिल गई. इसके बाद तत्कालीन डीजीसीए निदेशक भूषण ने विशेष परीक्षाओं के साथ 2011 में ऑनलाइन पायलट परीक्षाओं की भी शुरुआत की.

यशराज टोंगिया और उनके यश एयर फ्लाइंग स्कूल की कहानी और भी दिलचस्प है. सभी युवा और पुराने पायलट जो भारतीय विमानन उद्योग से थोड़ा भी परिचित हैं, मध्य प्रदेश के उज्जैन के यश फ्लाइंग स्कूल की कहानी जरूर जानते हैं. बॉलीवुड स्टार सोहेल खान ने भी फ्लाइंग लाइसेंस वहीं से लिया है. संस्थान की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि यश फ्लाइंग अकादमी भारत का सबसे बड़ा उड्डयन संस्थान है. 19 मई 2010 को इसी संस्थान से प्रशिक्षण ले रहे दो छात्रों की मौत एक विमान हादसे में हो गई. दोनों छात्रों में से एक फ्लाइट प्रशिक्षक और दूसरे ट्रेनी पाइलट की मौत विमान सीजेना-152 के क्रैश होने में हुई थी. विमान हाई टेंशन तार की चपेट में आ गया और उज्जैन की सूखी नदी के किनारे दुर्घटनाग्रस्त हो गया.

इस दुर्घटना के बारे में डीजीसीए की जांच टीम ने विमान हादसे के लिए कम ऊंचाई पर फ्लाइंग के साथ विमान उड़ाने के दौरान कोई निगरानी न होने और अकुशल निरीक्षण को जिम्मेदार बताया. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि संस्थान की तरफ से स्थानीय हवाई सुरक्षा विभाग को कोई सूचना नहीं दी गई थी. यहां तक कि स्थानीय हवाई सुरक्षा विभाग ने कई बार मुख्य प्रशिक्षक टोंगिया को सूचना देने की कोशिश भी की लेकिन वह फोन पर भी उपलब्ध नहीं थे. दुर्घटना के बाद मुख्य विमान प्रशिक्षक से पहली बार 20 मई 2010 को संपर्क हो पाया, वह भी डीजीसीए के अधिकारियों के दुर्घटनास्थल पर पहुंचने के बाद.