‘छल’चित्र कथा

70 के दशक में हास्य अभिनेता महमूद ने फिल्म प्यार किए जा में आत्मा नाम के किरदार को निभाया था. इसमें वे वाह-वाह प्रोडक्शन की स्थापना करते हैं और फिल्में बनाने के लिए अपने पिता यानी ओमप्रकाश से मनमाना पैसा वसूलते हैं.  फिलहाल यह फिल्मी कहानी छत्तीसगढ़ में दोहराई जा रही है. यहां पिता की भूमिका में छत्तीसगढ़ सरकार है तो पुत्र की भूमिका में ढेरों वाह-वाह प्रोडक्शन नुमा ऐरे-गैरे प्रोडक्शन हाउस. और यहां प्रेम कहानियों के बजाय सरकार से पैसा वसूलने का काम सरकारी योजनाओं के नाम पर किया जा रहा है.

इस गोरखधंधे की शुरुआत वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के साथ ही हो गई थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी की सरकार ने नई दिल्ली की शैली सुमन प्रोडक्शन को नवा छत्तीसगढ़ नामक फिल्म बनाने का ठेका दिया था. प्रदेश के नागरिकों को छत्तीसगढ़ की विशेषताओं से परिचित कराने के उद्देश्य से लगभग 32 लाख में निर्मित की गई फिल्म के निर्देशक वैसे तो महेश भट्ट थे, लेकिन फिल्म के अधिकांश दृश्य एक स्थानीय फिल्मकार संतोष जैन की फिल्म कंपनी ‘ईरा’ ने मुहैया कराए थे. फिल्म का पहला और एकमात्र सार्वजनिक प्रदर्शन भी वर्ष 2003 में राज्योत्सव के दौरान  देखने को मिला था. अब यह फिल्म कहां और किधर है इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है. जनसंपर्क विभाग में लंबे समय तक फिल्मों का लेखा-जोखा रखने वाले सूचना सहायक शशि पाराशर कहते हैं,‘फिल्म की मूल प्रति खराब हो चुकी है, सो फिल्म का प्रदर्शन कहीं किया ही नहीं जा सकता है.’ जबकि संयुक्त संचालक संजीव तिवारी का कहना है, ‘फिल्म की एक भी कॉपी यहां तक रिकार्ड कापी भी महकमे में उपलब्ध नहीं है.’

लड़कियों की तस्करी के मामले में राज्य की भारी बदनामी को छिपाने के लिए राज्य महिला आयोग ने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण करवाया है

जोगी के सत्ता से हटने के बाद जब प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज हुई तब तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री कृष्णमूर्ति बांधी की विशेष मेहरबानी मध्य प्रदेश के भोपाल की रहवासी आरती गोस्वामी की स्मृति फिल्म्स पर बरसी. स्मृति फिल्म्स को स्वास्थ्य विभाग की उपलब्धियों के फिल्मांकन का काम लंबे समय तक सौंपा जाता रहा, लेकिन इस फिल्म्स ने किस तरह की फिल्में बनाईं और वे फिल्में अब कहां हैं इसकी जानकारी भी महकमे में उपलब्ध नहीं है. वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री अग्रवाल कहते हैं, ‘एक स्थानीय फिल्म निर्माता की शिकायत के बाद स्मृति फिल्म्स के खिलाफ जांच प्रारंभ तो की गई थी लेकिन अब यह देखना होगा कि जांच कहां पर अटकी पड़ी है.’

फरवरी, 2008 में प्रसिद्ध एंकर अन्नू कपूर की बहन सीमा कपूर ने मुंबई के फिल्म निर्देशक जुबिन खान के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ की सभ्यता और संस्कृति को दिखाने के लिए  ‘महानदी के तट पर’ शीर्षक से एक भव्य डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी. लेकिन इसका प्रदर्शन न तो सरकारी समारोहों में हो पाया और न ही निजी सिनेमाघरों में. पर्यटन मंडल में पदस्थ एक अफसर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘फिल्म में सिर्फ ओमपुरी की आवाज ही बेहतर थी बाकी फिल्मांकन इतना वाहियात था कि शुरू के कुछ मिनटों के बाद हमने उसे देखा ही नहीं.’ कुछ इसी तरह का हश्र रायपुर से रंगकर्म के जरिए फिल्मों का सफर तय करने वाले चंपक बनर्जी द्वारा निर्मित की गई फिल्मों का भी हुआ. पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के निकटतम समझे जाने वाले चंपक बनर्जी ने प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 30 लाख रुपये की लागत से पांच-पांच मिनट की अवधि वाली 12 छोटी फिल्मों का निर्माण किया था. जब पर्यटन मंडल ने फिल्मों प्रदर्शन के लिए तैयारी प्रारंभ की तब पता चला कि सभी फिल्मों की तस्वीरें घटिया थीं. पर्यटन मंत्री ने फिल्म में सुधार के सुझाव दिए लेकिन न तो फिल्म आई और न ही किसी तरह का कोई सुधार हुआ.

राजधानी रायपुर से लगभग 22 किलोमीटर दूर प्रदेश की नई राजधानी का निर्माण किया जा रहा है. राजधानी की विशेषताओं से आमजन को अवगत कराने के उद्देश्य से न्यू रायपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी
(नारडा ) ने वर्ष 2010 में 121 उद्योग विहार फेज फोर हरियाणा स्थित कंपनी मिडिटेक को बगैर निविदा के ही फिल्म निर्माण का काम सौंप दिया था. जब कंपनी ने नया रायपुर के विकास को दर्शाते हुए फिल्म का निर्माण किया और 24 जनवरी, 2011 को 47 लाख 67 हजार 65 रुपए का भुगतान भी हासिल कर लिया तब यह सवाल उठा कि नारडा ने जिस हाई डेफिनेशन फॉर्मेट का हवाला देकर मिडिटेक से फिल्म का निर्माण करवाया है उस हाई डेफिनेशन फॉर्मेट पर स्थानीय फिल्मकार भी बेहतर काम कर सकते थे. लेकिन नारडा के अफसरों ने मिडिटेक की उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया और उसे 15 मिनट की फिल्म बनाने की जवाबदारी सौंपी. छत्तीसगढ़ फिल्म निर्माण विकास समिति के पूर्व अध्यक्ष परेश बागबहरा आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘दरअसल नारडा के अफसरों को सुश्री मालिनी कुमार की कंपनी मिडिटेक को उपकृत करना था, सो नियम-कानून को ताक पर रखकर लगभग आधा करोड़ रुपये स्वाहा कर दिए गए.’

बागबहरा के आरोपों में इसलिए भी दम नजर आता है क्योंकि मिडिटेक से फिल्म बनवा लेने के बाद जब यह खुलासा हुआ कि काम उस स्तर का नहीं था जिस स्तर का होना चाहिए था तब नारडा ने एक बार फिर नई राजधानी के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिए फिल्म निर्माण की योजना बनाई. इस मर्तबा नारडा ने 28 सितम्बर, 2012 को निविदा आमंत्रित की. इस निविदा में फिल्मकारों के दफ्तरों का मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद और बैंगलोर में होना अनिवार्य किया गया. इसके साथ ही फिल्म बनाने वालों को दो से तीन करोड़ रुपये का टर्न ओवर दर्शाने के लिए भी कहा गया. इस शर्त के जुड़ जाने के बाद एक फिर यह सवाल उठने लगा है कि नारडा के अफसर किसी चहेती फिल्म कंपनी को उपकृत करने के फिराक में हैं.

छत्तीसगढ़ में सरकारी विभागों के बीच फिल्मों से प्रचार का ढर्रा इस हद तक चल पड़ा है कि लगातार बढ़ रही लड़कियों की तस्करी के बावजूद राज्य महिला आयोग ने अपनी छवि को चमकाने के लिए एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण करवाया है. इस फिल्म के निर्माण के लिए रवींद्र गोयल की जेबी कम्युनिकेशन को दो लाख 75 हजार रुपये का भुगतान किया गया है. पिछले साल  जुलाई में जनदर्शन मीडिया सेंटर ने स्टेट बेवरेज कॉर्पोरेशन के लिए एक लघु फिल्म बनाई थी. तीस मिनट की इस फिल्म के लिए मीडिया सेंटर ने तीन लाख 25 हजार रुपये का भुगतान हासिल किया था. फिल्म बनाने और भुगतान हासिल करने वालों की सूची में ‘डिस्कवरी छत्तीसगढ़’ नाम की एक संस्था भी शामिल है. इस संस्था ने राज्य बागवानी मिशन के लिए केला, आम, लीची और पपीते की खेती पर फिल्में बनाकर अप्रैल-मई, 2011 में  विभाग में जमा की थीं. इन फिल्मों के लिए उसे चार लाख 75 हजार रुपए का भुगतान किया गया है. इधर महिला एवं बाल विकास विभाग भी एक बड़े बजट के फिल्म निर्माण की तैयारियों में लगा हुआ है. विभाग के सचिव सुब्रत साहू ने तहलका को बताया कि स्त्रियों के सशक्तीकरण को रेखांकित करने के लिए फिल्म निर्माण की प्रारंभिक प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है.

राजधानी रायपुर से लगभग 22 किलोमीटर दूर प्रदेश की नई राजधानी का निर्माण किया जा रहाइन फिल्मों के निर्माण से जुड़ी सबसे दिलचस्प बात यह है कि इनमें से ज्यादातर फिल्मों का प्रदर्शन किस समारोह में हुआ या कब हुआ यह किसी को नहीं पता. फिल्म निर्माण के नाम पर सबसे ज्यादा गड़बड़झाला पर्यटन मंडल में नजर आता है. मंडल ने प्रदेश के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देने के लिए डिस्कवरी चैनल से लगभग दो करोड़ रुपये की लागत से जिस फिल्म का निर्माण किया था वह फिल्म जन-जन का हिस्सा नहीं बन पाई. प्रदेश के फिल्मकार संतोष जैन ने प्रदेश के सिरपुर इलाके में उत्खनन के दौरान मिल रहे मंदिरों को लेकर वैभव नगरी सिरपुर शीर्षक से एक लघु वृत चित्र का निर्माण किया, लेकिन यह वृतचित्र भी मंडल के दफ्तर से बाहर नहीं निकल पाया है. इसी तरह रायपुर के योगिता आर्ट्स ने ‘छत्तीसगढ़ नहीं देखा तो क्या देखा’ स्लोगन को ध्यान में रखते हुए ‘छत्तीसगढ़ दर्शन’ शीर्षक से छह छोटी फिल्में बनाई हैं. ये फिल्में भी भुगतान संबंधी विवादों के चलते डिब्बे में ही कैद है.

आनन-फानन में फिल्म निर्माण का आदेश दिए जाने के चलते पर्यटन मंडल विवादों में घिरता ही रहा है. फिलहाल एक ताजा विवाद जन-गण-मन फिल्म के निर्माण के बाद उठ खड़ा हुआ है. विवाद यह है कि मंडल ने वर्ष 2011 में छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों के प्रमोशन के लिए दो मिनट की लघु फिल्म निर्माण करने के लिए निविदा मंगवाई थी. इस फिल्म के निर्माण के लिए सात संस्थाओं ने निविदा में हिस्सेदारी दर्ज की लेकिन बाद में  मोलभाव करते हुए 32 लाख न्यूनतम बजट की फिल्म के निर्माण का काम मुंबई की पॉप्स इंटरटेनमेंट को 25 लाख रुपए में सौंप दिया गया. इस निविदा में साफ तौर पर उल्लिखित था कि चयनित फिल्मकार को पर्यटन स्थलों के प्रमोशन के लिए ही फिल्म बनानी होगी. लेकिन संस्था के निर्देशक उज्जवल दीपक ने फिल्म में पर्यटन स्थलों का फिल्मांकन तो किया ही फिल्म में पदमश्री तीजन बाई, पंडवानी गायिका ऋतु वर्मा के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी फिल्म के कलाकार योगेश अग्रवाल, अनुज शर्मा और इंडियन आइडल में हिस्सेदारी दर्ज करने वाली सुमेधा कर्महे, अमित साना को दिखाते हुए राष्ट्रगान जन -गण-मन का इस्तेमाल भी कर डाला. छत्तीसगढ़ में फिल्मों के जानकार कहते हैं कि यह फिल्म पर्यटक स्थलों पर इतना फोकस नहीं करती. लेकिन छत्तीसगढ़ में सरकारी पैसे से बनी यह अकेली फिल्म नहीं है जिसमें इतने गड़बड़झाले हुए हों. बाकी फिल्में भी कमोबेश ऐसी ही बन रही हैं या बनी हैं, लेकिन वे ज्यादातर दर्शकों के सामने ही नहीं आ पाईं इसलिए उन पर इतनी चर्चा नहीं हुई.