चौटाला का घोटाला

27 जून, 1990 को पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल को उनके मुख्य संसदीय सचिव रण सिंह मान ने नौ पेज लंबा पत्र लिखा था. पत्र देवी लाल के बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला के बारे में था. चिट्ठी में मान ने देवी लाल को सचेत करते हुए बताया था कि कैसे ओमप्रकाश चौटाला अपने अनैतिक और भ्रष्ट व्यवहार से पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं. कैसे उनके हस्तक्षेप से पार्टी दिशाहीन होती जा रही है और अगर देवी लाल ने समय रहते ओमप्रकाश को नहीं रोका तो वे देवी लाल की राजनीतिक विरासत के अंत का कारण बनेंगे.

कुछ दिनों पहले ही दिल्ली की एक अदालत ने ओमप्रकाश चौटाला एवं उनके बेटे अजय चौटाला को जेबीटी (जूनियर बेसिक ट्रेंड) शिक्षक घोटाले में दोषी ठहराते हुए 10 साल की सजा सुनाई है. इन दोनों के साथ 53 और लोगों को भी तीन से लेकर 10 साल तक की सजा सुनाई गई है. जेबीटी घोटाला देवी लाल के पुत्र और इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के मुख्यमंत्रित्व काल में हुआ था. जिस दिन ओमप्रकाश और अजय चौटाला को सजा सुनाई गई उसी दिन से हरियाणा और राष्ट्रीय राजनीति तक में इस बात को लेकर चर्चा है कि क्या यह फैसला चौटाला परिवार और आईएनएलडी के राजनीतिक अंत की तरफ इशारा कर रहा है.

जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(3) के अनुसार, किसी अपराध में दो साल से अधिक के कारावास की सजा पाने वाला कोई भी व्यक्ति सजा खत्म होने के छह साल बाद तक चुनाव नहीं लड़ सकता. अगर चौटाला पिता-पुत्र की 10 साल की सजा ऊपर की अदालतों में भी बरकरार रहती है तो वे अगले 16 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. ऐसी स्थिति में पार्टी तथा चौटाला परिवार के राजनीतिक भविष्य को लेकर गंभीर सवाल उठना लाजिमी है. एक पार्टी के तौर पर आईएनएलडी भारतीय राजनीति की अन्य कई पार्टियों की तरह ही परिवार के रिमोट से संचालित होती रही है. पहले रिमोट चौधरी देवी लाल के हाथ में था. आज ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटों के हाथ में है.

ओमप्रकाश और अजय चौटाला को जेल हो चुकी है और परिवार के तीसरे प्रमुख सदस्य अभय को भी देर-सवेर पिता और भाई की राह जाना पड़ सकता है

एक तरफ जेबीटी मामले में ओमप्रकाश और अजय को कोर्ट ने सजा सुनाई है. वहीं दूसरी तरफ चौटाला परिवार और भी कई गंभीर आरोपों के घेरे में है. आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में दिल्ली की एक अदालत में चौटाला परिवार के खिलाफ सीबीआई ने मामला दर्ज कराया है. यह केस भी सुनवाई के दौर में है और इसमें ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला का भी नाम है. सूत्र बताते हैं कि इस मामले में भी चौटाला परिवार को राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. भ्रष्टाचार के एक अन्य मामले में सीबीआई ने  ओमप्रकाश चौटाला के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की सिफारिश की है. हरियाणा सिविल सेवा में अयोग्य लोगों के नामांकन से संबंधित इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से राय मांगी है. यानी फिलहाल की स्थिति यह है कि ओमप्रकाश चौटाला और अजय को जेल हो चुकी है और परिवार के तीसरे प्रमुख सदस्य अभय को भी देर-सवेर पिता और भाई की राह जाना पड़ सकता है.

खैर, अभय का क्या होता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन ओमप्रकाश चौटाला और अजय को मिली सजा इस मायने में भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये दोनों ही राज्य में पार्टी के कर्ताधर्ता थे. पिछले कुछ समय से वे दोनों पूरे राज्य में लगातार सभाएं कर रहे थे. सभाओं में खासी भीड़ भी उमड़ रही थी. लोगों के हुजूम को देखकर ओमप्रकाश लगभग हर सभा में उत्साहित होते हुए कहते कि अगली सरकार आईएनएलडी की बनने से कोई नहीं रोक सकता. तभी यह फैसला आ गया.

जानकारों का एक वर्ग मानता है कि चौटाला और उनके बड़े बेटे का जेल जाना आईएनएलडी के अंत की दिशा में एक शुरुआत है. लोकसभा के साथ ही राज्य विधानसभा का चुनाव भी 2014 में होना है. ऐसे में अगर उन्हें अपनी वर्तमान सजा पर ऊपरी अदालत से कोई रियायत नहीं मिलती है तो न तो ओमप्रकाश और न ही अजय चौटाला इन चुनावों में हिस्सा ले सकेंगे. अगर उच्च और सर्वोच्च नयायालय इस सजा को बरकरार रखते हैं तो दोनों अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव 2029 में ही लड़ सकेंगे. तब तक ओम प्रकाश चौटाला करीब 95 साल के हो चुके होंगे.

इस तरह से परिवार और पार्टी दोनों के लिए एक बेहद अंधकारमय भविष्य दिखता है. प्रश्न उठता है कि 2029 तक क्या पार्टी और परिवार अपने शीर्ष नेतृत्व के अभाव में अपनी राजनीतिक विरासत को जिंदा रख पाएंगे. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं, ‘अगर आईएनएलडी परिवार केंद्रित नहीं होती तो उसके बचने की कोई संभावना दिखती. आईएनएलडी और चौटाला उन तमाम राजनीतिक पार्टियों के लिए एक सबक हैं जो व्यक्ति या परिवार केंद्रित हैं. अगर आईएनएलडी में आंतरिक लोकतंत्र होता तो पार्टी के पास ऐसे नेता होते जो चौटाला परिवार के राजनीतिक सीन से गायब होने की स्थिति में पार्टी को आगे बढ़ाते. लेकिन ऐसा नहीं है. यही कारण है कि आज उसके अंत पर चर्चा शुरू हो गई है.’

चौटाला के जेल जाने की स्थिति में भाजपा से उनकी दोस्ती की संभावना लगभग खत्म हो चुकी है. इसका सीधा फायदा कुलदीप बिश्नोई को मिलेगा

ओमप्रकाश और अजय चौटाला के जेल जाने के बाद मैदान में सिर्फ अभय बचे हैं. इस समय पार्टी को एकजुट रखना और कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरने से रोके रखना अभय चौटाला के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व के जेल जाने और 16 साल तक राजनीति से दूर रहने की स्थिति में पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का पार्टी से मोहभंग होगा और वे धीरे-धीरे किसी और पार्टी का दामन थामते नजर आएंगे. पार्टी के एक नेता कहते हैं, ‘अभय में उतनी राजनीतिक काबिलियत है नहीं. ऐसी स्थिति में नेता-कार्यकर्ता इस डूबते जहाज से उड़ने में ही अपनी भलाई समझ सकते हैं.’ वरिष्ठ पत्रकार बलवंत तक्षक इस बात को थोड़ा और आगे ले जाते हुए कहते हैं, ‘जो अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर सतर्क हैं, वे अभी की स्थिति में आईएनएलडी से जुड़ने से रहे. और जो पार्टी से अभी जुड़े हुए हैं, वे जल्दी ही अपने राजनीतिक भविष्य को देखते हुए कुछ और ठिकाने तलाशते हुए नजर आएंगे.’

हालांकि आईएनएलडी के राज्य सभा सदस्य रणबीर सिंह प्रजापति इस तरह के बयानों से इत्तेफाक नहीं रखते, वे कहते हैं, ‘देखिए, अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो हम उससे निपट लेंगे. हमारे पास अभय चौटाला के साथ ही अशोक अरोड़ा समेत नेताओं की एक लंबी फौज है.’दैनिक जागरण की हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ की राज्य प्रमुख मीनाक्षी शर्मा इन कथनों से अलग कुछ इस तरह से अपनी राय रखती हैं, ‘देखिए, पार्टी के सामने अभी तुरंत तो राजनीतिक अस्तित्व का संकट दिखाई नहीं देता. अभय चौटाला मौजूद हैं ही राज्य में पार्टी का संगठन भी मजबूत है. हां, अगर अभय को भी संपत्ति वाले मामले में सजा हो जाती है तो फिर दिक्कत पेश आएगी.’

मगर हरियाणा, पंजाब जैसे प्रदेशों के इतिहास ज्यादातर जानकारों की आईएनएलडी के कमजोर होने की भविष्यवाणियों के उलट पंजाब विश्वविद्यालय  में समाजशास्त्र के प्रोफेसर  मंजीत सिंह इसके और अधिक मजबूत होने की संभावना हमारे सामने रखते हैं, ‘देखिए, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ जब मामला दर्ज हुआ था तो बाद के चुनाव में वो और अधिक मतों से विजयी हुए थे.’ ‘हरियाणा के जाट बहुत अलग टाइप के लोग होते हैं. अगर उनके मन में ये बात बैठ गई कि चौटाला को कांग्रेस ने जान-बूझकर फंसाया है तो फिर मामला कांग्रेस के खिलाफ जा सकता है.’ मीनाक्षी, मंजीत की बात को विस्तार देते हुए कहती हैं, ‘जाटों की मानसिकता अलग ही होती है. वो ये सोच सकते हैं कि चौटाला ने गलत कर भी दिया तो उन्हें जेल भेजने की क्या जरूरत थी.’

आईएनएलडी के दो शीर्ष नेताओं को जेल होने के कारण राज्य में विपक्ष का स्थान भी एकाएक खाली-सा हो गया है. हरियाणा विधानसभा में ओमप्रकाश चौटाला नेता प्रतिपक्ष हैं, उन्हीं के साथ सजा पाए शेर सिंह बादशामी उप नेता प्रतिपक्ष हैं. इन लोगों के जेल जाने तथा आईएनएलडी के राज्य में कमजोर होने की स्थिति में विपक्ष के स्थान पर जो शून्य बना है उस पर फिलहाल हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां)-भाजपा गठबंधन की नजर है. जिस दिन जेबीटी मामले में फैसला आया, उसी दिन हजकां अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई ने सभी आईएनएलडी नेताओं और कार्यकर्ताओं से आईएनएलडी छोड़ हजकां में शामिल होने की अपील कर दी. उनकी अपील पर लोग हजकां में जाते हैं या भाजपा में या फिर काग्रेस में यह तो देखने वाली बात होगी लेकिन ऐसा जरूर माना जा रहा है कि भविष्य में जो लोग भी राज्य कांग्रेस छोड़ेंगे वे जाहिर तौर पर आईएनएलडी से जुड़ने के बजाय हजकां या भाजपा की ओर ही रुख करेंगे.

जानकार बताते हैं कि आईएनलडी के कमजोर होने की स्थिति में हजकां को फायदा होने की उम्मीद तो है लेकिन फिलहाल इसका सबसे अधिक फायदा कांग्रेस को होने वाला है. ऐसा माना जा रहा है कि राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस के लिए इससे अधिक सुकून और राजनीतिक फायदे की बात कुछ और नहीं हो सकती कि उसके सबसे बड़े विरोधी आईएनएलडी और चौटाला परिवार बेहद कमजोर या राजनीतिक तौर पर खत्म हो जाएं. ज्यादातर जानकार इस बात पर एकमत हैं कि सीनियर चौटाला और उनके बेटे के राजनीति से बाहर, जेल में होने की स्थिति में आईएनएलडी के वफादार नेताओं, कार्यकर्ताओं और मतदाताओं का मनोबल गिरना तय है. ऐसे में कुछ समय के बाद आईएनएलडी के कोर जाट मतदाताओं का झुकाव भुपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस की तरफ हो सकता है. इस बात का एक पक्ष और है कि अगर राज्य में चौटाला परिवार सिमटता है, जो जाटों की राजनीति के लिए जाना जाता है, तो फिर ऐसी स्थिति में जाटों का दूसरा ठिकाना दूसरे जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा हो सकते हैं. कभी देवी लाल के संसदीय सचिव रहे और वर्तमान में कांग्रेस प्रवक्ता रण सिंह मान कहते हैं, ‘चौटाला के जेल जाने में हमारी कोई भूमिका नहीं है; लेकिन हां, आईएनएलडी को होने वाले चुनावी नुकसान का फायदा कांग्रेस को ही होगा.’

जिन शिक्षकों की नियुक्ति से ये पूरा घोटाला (जेबीटी) जुड़ा है, उनका भविष्य भी अधर में झूल रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि अगर कोर्ट ने इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया और गेंद राज्य सरकार के पाले में गई तो ये बिल्कुल संभव है कि हुड्डा सरकार इन लोगों की नौकरी बचाने के लिए कोई न कोई व्यवस्था करे. तक्षक कहते हैं, ‘ऐसी स्थिति में चौटाला के प्रति जिस भावनात्मक उभार की बात की जा रही है उसकी हवा निकल सकती है.’ हालांकि मीनाक्षी एक और संभावना की तरफ इशारा करती हैं, ‘देखिए, राज्य में आईएनएलडी और हजकां दोनों कांग्रेस के खिलाफ ही लड़ रहे हैं. ऐसे में इस बात की संभावना भी बनती है कि भविष्य में कांग्रेस से निपटने के लिए दोनों हाथ मिला लें.’

आईएनएलडी के दो शीर्ष नेताओं को जेल होने के कारण राज्य में विपक्ष का स्थान भी एकाएक खाली-सा हो गया है.

आईएनएलडी के राजनीतिक भविष्य के सामने एक और बड़ी बाधा भाजपा से समाप्त हुए उसके राजनीति- रिश्ते से भी उपजती है. हरियाणा में अब तक स्थिति यह रही है कि कोई भी क्षेत्रीय दल भाजपा के समर्थन के बिना सरकार नहीं बना सका है. अब चौटाला पिता-पुत्र के जेल जाने की स्थिति में भाजपा से उनकी दोस्ती की संभावना लगभग खत्म हो चुकी है. इसका सीधा फायदा हजकां को मिलेगा. अब वह कम से कम भाजपा से अपने संबंध को लेकर निश्चिंत हो सकती है.

आईएनएलडी और देवी लाल की विरासत को पराभव के इस स्तर तक पहुंचाने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ओमप्रकाश चौटाला को ही बताया जा रहा है. ‘आज तक वे अपने पिता के अच्छे कर्मों से उपजी फसल काट रहे थे. अब वो अपने कुकर्मों की फसल काट रहे हैं. ‘ रण सिंह मान कहते हैं कि देवी लाल जी की समस्या यह थी कि वे घोर परिवारवादी थे. यही कारण है कि ओमप्रकाश अपनी मनमर्जी करते गए और आगे चलकर अपने बेटों के साथ मिलकर उन्होंने एक राजनीतिक दल को ‘गैंग ’ में तब्दील कर दिया.

रशीद चौटाला परिवार की राजनीतिक विरासत में गिरावट को एक अलग नजरिये से पेश करते हुए कहते हैं, ‘देखिए, अर्थशास्त्र में  एक ‘लॉ ऑफ डिमिनिशिंग रिटर्न’ होता है जिसे अगर राजनीति में लागू करें तो उसका मतलब है जैसे-जैसे पीढ़िया बढ़ती जाएंगी वैसे-वैसे परिवार का राजनीतिक प्रभाव कम होता जाएगा.’ देवी लाल की मृत्यु के बाद से चौटाला परिवार के हरियाणा में राजनीतिक तौर पर कमजोर होने की तेजी से शुरुआत हुई. स्थिति यहां तक पहुंची कि पार्टी पिछले 2 लोकसभा चुनावों में एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई. 2004 लोकसभा के चुनावों में पार्टी ने हरियाणा, राजस्थान, चंडीगढ़ समेत उत्तर प्रदेश में 20 सीटों पर चुनाव लड़ा. इनमें से 14 पर उसके प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे.

पांच दिन से लेकर पांच साल तक हरियाणा की चार बार सरकार चलाने वाले ओमप्रकाश चौटाला का राजनीतिक जीवन शुरुआत से ही बेहद विवादित रहा है. कहा जाता है कि वे सन् 1997 के आसपास सोने की घड़ियों की स्मगलिंग तक करते थे. एक बार वे दिल्ली एयरपोर्ट पर पकड़े गए. तब देवी लाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने ओमप्रकाश चौटाला से अपना संबंध समाप्त करने की घोषणा कर दी थी. रुचिका गिरहौत्रा मामले में आरोपित पुलिस अधिकारी एसपीएस राठौर के बचाव में उतरे ओमप्रकाश चौटाला को 1996 में सैकिया आयोग ने आमिर सिंह की हत्या से जुड़े होने के कारण दोषी ठहराया जिसके बाद चौटाला को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था.

2004 लोकसभा के चुनावों में पार्टी ने हरियाणा, राजस्थान, चंडीगढ़ समेत उत्तर प्रदेश में 20 सीटों पर चुनाव लड़ा. इनमें से 14 पर उसके प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थेजानकार बताते हैं कि 1999 में पहली बार पांच साल के लिए सत्ता मिलते ही चौटाला ने भ्रष्टाचार के नए मानक स्थापित करने शुरू किए. मान कहते हैं, ‘अपने उस कार्यकाल में एक तरफ जमकर प्रदेश को लूटा वहीं केंद्र में एनडीए की सरकार होने और उसके सहयोगी होने के बावजूद वे राज्य में कोई बड़ा प्रोजेक्ट नहीं ला पाए.’ ओमप्रकाश चौटाला के दोनों बेटे भी बेहद विवादास्पद रहे. भ्रष्टाचार से लेकर अन्य कई गलत कारणों से ये लोग चर्चा में रहे हैं. यही कारण है कि पिता के साथ ही उन दोनों पर भी गंभीर मामलों में केस दर्ज है. मान कहते हैं, ‘ओमप्रकाश चौटाला के बेटे उनसे भी दो कदम आगे हैं.’ हालांकि आईएनएलडी के नेता पार्टी तथा चौटाला परिवार के राजनीतिक भविष्य को लेकर चल रही अटकलों को खारिज कर देते हैं. आईएनएलडी के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व मंत्री जसविंदर सिंह संधू कहते हैं, ‘कोर्ट का जो फैसला आया है उसका पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ेगा. केंद्र की शह पर सीबीआई ने जो चाल चली है उससे निपटने के लिए पार्टी पूरी तरह तैयार है.’

आईएनएलडी के आम कार्यकर्ताओं से लेकर नेता तक इस बात का प्रचार करने में लगे हुए हैं कि कांग्रेस ने साजिश रच कर सीबीआई के दुरुपयोग से उनके प्रिय नेता को जेल भेजा है क्योंकि वे कभी कांग्रेस के सामने नहीं झुके. इसके साथ वे एक बात और जोड़ते हैं कि चौटाला पिता-पुत्र अपने लोगों को नौकरी दिलाने की वजह से जेल में है. उन्होंने इसके लिए किसी से कोई पैसा नहीं लिया. 25 जनवरी से अभय चौटाला के नेतृत्व में पार्टी ने राज्य के सभी जिला मुख्यालयों पर जाकर सभाएं करने की शुरुआत भी की है.

रणबीर सिंह प्रजापति कहते हैं, ‘ये सच है कि कोर्ट के फैसले से हमारी पार्टी को भारी झटका लगा है लेकिन ये भी उतना ही सत्य है कि राज्य की जनता हमारे साथ है. हम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जा रहे हैं. हमें पूरी उम्मीद है वहां हमें न्याय मिलेगा.’