चुनावी लड़ाई का अविश्वास प्रस्ताव

मानसून सत्र में विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया। लेकिन इसे 2024 के लोकसभा चुनावों का बिगुल माना जा रहा है। इस अविश्वास प्रस्ताव में जो बहस हुई, उससे यह तो तय है कि इस बार के लोकसभा चुनाव दोनों पक्षों के लिए पिछले दो चुनावों से ज़्यादा दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण होंगे। इस बार जिस तरह अविश्वास प्रस्ताव पर पक्ष-विपक्ष में नोकझोंक हुई, उससे साफ़ है कि दोनों तरफ़ से बड़ी चुनावी लड़ाई का नैरेटिव स्थापित हो चुका है। इस अविश्वास प्रस्ताव में दोनों पक्षों की ओर से सदस्यों की संख्या बल के बलबूते अपने पक्ष में मज़बूत प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक-दूसरे के बारे में देश के नागरिकों में नकारात्मक छवि का निर्माण करना था।

इस बार अविश्वास प्रस्ताव में राहुल गाँधी नये तेवर में दिखायी दिये। अपनी भारत जोड़ो यात्रा और संसद में वापसी से अर्जित प्रतिष्ठा के चलते वह अब मोदी-विरोधी ताक़तों के प्रतीक बनकर उभरे हैं। केंद्र सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करके एक तरह से यह स्वीकार कर लिया है कि राहुल गाँधी मोदी के लिए चुनौती बन रहे हैं। क्योंकि सवाल तो राहुल गाँधी पहले भी करते थे; लेकिन उनसे इतना ख़तरा भाजपा या मोदी ने कभी ज़ाहिर नहीं किया। सन् 2018 के अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जब राहुल गाँधी ने राफेल मामले पर केंद्र सरकार को घेरा, तब भी नहीं। न ही राहुल उस समय इतने आक्रामक दिखे, जितने कि इस बार दिखे। संसद से निष्कासित होने के बाद 8 अगस्त को पहली बार विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी सदन में पहुँचे; परन्तु उस दिन कुछ बोले नहीं। सत्ता पक्ष ने उन्हें बोलने के लिए उस दिन उकसाया भी।

अगले दिन 9 अगस्त को राहुल गाँधी जब मणिपुर पर बोले, तो सत्ता पक्ष तिलमिला उठा। राहुल ने मणिपुर में फैली हिंसा को भारत की हत्या बताया। राहुल गाँधी ने कहा- ‘कुछ ही दिन पहले मैं मणिपुर गया। हमारे प्रधानमंत्री आज तक नहीं गये, क्योंकि उनके लिए मणिपुर हिन्दुस्तान नहीं है। आज की सच्चाई यह है कि मणिपुर नहीं बचा है। मणिपुर को आपने दो भाग में बाँट दिया है; तोड़ दिया है। इन्होंने मणिपुर में हिन्दुस्तान की हत्या की है। इनकी राजनीति ने मणिपुर को नहीं, हिन्दुस्तान को मणिपुर में मारा है। हिन्दुस्तान का मणिपुर में मर्डर किया है। भारत एक आवाज़ है। उस आवाज़ की हत्या आपने मणिपुर में की। इसका मतलब आपने भारत माता की हत्या मणिपुर में की। आपने मणिपुर के लोगों को मारकर भारत की हत्या की है। आप देशभक्त, देशप्रेमी नहीं हो। आप देशद्रोही हो। इसलिए प्रधानमंत्री मणिपुर नहीं जा सकते; क्योंकि उन्होंने मणिपुर में हिन्दुस्तान की हत्या की है। आप भारत माता के हत्यारे हो। आपने मेरी माँ (भारत माँ) की हत्या की है।’

लोकसभा सदन के अन्तिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को, विशेषतौर पर कांग्रेस को हिंसा, देश के साथ विश्वासघात जैसे कई मुद्दों पर घेरा। उन्होंने कहा कि ‘कांग्रेस का शासन पूर्वोत्तर की सभी समस्याओं का मूल है। मणिपुर के लिए विपक्ष की पीड़ा और संवेदना सेलेक्टिव है। कांग्रेस का इतिहास देश तोडऩे वाला रहा है। मैंने पूर्वोत्तर का 50 बार दौरा किया है। यह सिर्फ़ एक डेटा नहीं है; यह पूर्वोत्तर के प्रति समर्पण है।’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर खुद को कोसने का आरोप भी लगाया। कुल मिलाकर हमेशा की तरह विपक्ष को कोसने से प्रधानमंत्री भी पीछे नहीं रहे। उनका पूरा भाषण विपक्ष, खासतौर पर कांग्रेस को घेरने पर केंद्रित रहा। संसद में प्रधानमंत्री ने विपक्षी गठबंधन इंडिया को लेकर भी निशाना साधा। ऐसा लगता है कि देश के मुद्दों से दूर कहीं ‘इंडिया’ शब्द को लेकर वह फँसे हुए हैं। पिछले कई भाषणों में वह इससे बाहर निकलते नहीं दिखे हैं।

एक बात जो पक्ष-विपक्ष में समान है, वह यह कि पक्ष जहाँ पूरा-का-पूरा नरेंद्र मोदी पर आकर टिक गया है; वहीं विपक्ष भी अब राहुल गाँधी पर केंद्रित होता नज़र आ रहा है। शशि थरूर जैसे बुद्धिजीवी नेता को मुख्य वक्ता के रूप में मौका न देना इसका इदाहरण है। क्या यह राहुल गाँधी के हित में था?

संसद की यह बहस बताती है कि किस तरह से पक्ष-विपक्ष के मतभेद, मनभेद के ज़रिये एक ध्रुवीकृत लड़ाई में बदल चुके हैं, जिसका एक ही मक़सद है- ‘किसी भी तरह एक-दूसरे की सत्ता की चुनौतियों को ख़त्म करना।’

दोनों की इस लड़ाई में राज्यों में तटस्थ तीसरे स्तर की पार्टियों का अस्तित्व ख़त्म होता जा रहा है। वे या तो एनडीए में शामिल हो रहे हैं या फिर विपक्षी गठबंधन इंडिया में। जो पार्टियाँ अभी तक किसी के साथ नहीं हैं, उन पर कोई एक गठबंधन चुनने का मानसिक दबाव बन रहा है। शायद इसी दबाव के चलते इंडिया गठबंधन के साथ खड़ी कई पार्टियों के प्रतिनिधि संसद से नदारद रहे। एक तरह से वे भाजपा के निकट दिखायी दिये।